बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव में, एक युवक रहता था जिसका नाम रमेश था। रमेश केमाता-पिता उसे बड़े ही प्यार से पालते थे और चाहते थे कि वह जीवन में कुछ बड़ा करे। परंतु, रमेश को मेहनत करने में कोई रुचि नहीं थी। वह दिनभर अपने दोस्तों के साथ घूमता, बिना किसीलक्ष्य के समय व्यर्थ करता, और सोने-चुने काम करता। अगर उसे कभी कोई काम करने को कहा जाता, तो वह हमेशा किसी न किसी बहाने से उसे टाल देता।
गाँव के लोग रमेश के आलस्य के बारे में जानते थे और अक्सर उसके बारे में बातें करते। "रमेश के पास कोई दिशा नहीं है," लोग कहते, "आलसी व्यक्ति का न वर्तमान होता है न भविष्य।"
रमेश की माँ को उसकी चिंता सताती थी। वह अक्सर उसे समझाती, "बेटा, जीवन में सफल होनाहै तो मेहनत करनी पड़ेगी। केवल सपने देखने से कुछ नहीं होता, उनके लिए काम भी करना पड़ता है।"
परंतु रमेश हमेशा यह कहकर बात को टाल देता, "अरे माँ, अभी तो मैं युवा हूँ, बहुत समय है मेरेपास। जब सही समय आएगा, तब मैं सब कर लूंगा।"
एक दिन गाँव में एक प्रसिद्ध संत का आगमन हुआ। संत अपने ज्ञान और भविष्यवाणी के लिएदूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। गाँव के सभी लोग उनके पास अपनी समस्याओं का हल लेने जाते थे। रमेश की माँ भी उसे संत के पास ले गईं।
संत ने रमेश की ओर देखा और धीरे से मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, तुम्हारे पास अभी भी समय है, लेकिन यह समय अनमोल है। यदि तुम इसे व्यर्थ करते रहोगे तो भविष्य में कुछ भी हासिल नहींकर पाओगे। जो व्यक्ति आलस्य करता है, उसका न वर्तमान में कोई महत्व होता है और न भविष्यमें। जीवन नदी की धारा की तरह है, इसे रोकने की कोशिश मत करो। अगर तुमने इस धारा को रोका, तो समय निकल जाएगा और तुम पीछे रह जाओगे।"
रमेश ने संत की बातें सुनीं, लेकिन उसने इसे भी हल्के में लिया। "अरे, संत महोदय, अभी तो बहुतसमय है मेरे पास। मैं जल्द ही कुछ बड़ा करूंगा।"
संत ने रमेश को गहरी नज़रों से देखा और कहा, "बेटा, जो व्यक्ति आज आलस्य करता है, उसकाकल कभी नहीं आता। याद रखना, आलसी का कोई वर्तमान और भविष्य नहीं होता।" यह कहकर संत ने रमेश को चेतावनी दी और आगे बढ़ गए।
कुछ साल बीत गए। रमेश ने अपनी आदतें नहीं बदलीं। वह वैसे ही आलसी बना रहा। उसकासमय व्यर्थ जाता रहा, और उसके दोस्त, जो कभी उसके साथ समय व्यर्थ करते थे, अबअपने-अपने काम में जुट गए थे। गाँव के अन्य युवक मेहनत करने लगे, कोई खेती में अच्छा करनेलगा, तो कोई व्यापार में। कुछ युवक शिक्षा प्राप्त कर शहर चले गए और अच्छे पदों पर कामकरने लगे। पर रमेश का जीवन वहीं का वहीं ठहर गया था।
धीरे-धीरे रमेश को यह महसूस होने लगा कि उसने अपने जीवन के कीमती वर्ष यूं ही गँवा दिए।अब जब वह कुछ करना चाहता था, तो उसके पास न तो समय था और न ही साधन। उसकीआलसी प्रवृत्ति ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा था। वह गाँव के बाकी लोगों से पीछे छूट चुका था। उसे संत की कही बात याद आने लगी, "आलसी का न वर्तमान होता है न भविष्य।"
एक दिन रमेश अपने पुराने दोस्तों से मिला, जिन्होंने जीवन में सफलता प्राप्त कर ली थी। उन्होंनेरमेश से पूछा, "तुम अब क्या कर रहे हो?" रमेश के पास कोई उत्तर नहीं था। वह शर्मिंदा महसूसकरने लगा, लेकिन अब पछतावे के सिवाय कुछ बचा नहीं था। उसके मित्रों ने उसे मेहनत करने की सलाह दी, परंतु रमेश अब जीवन में अपने खोए हुए समय की भरपाई नहीं कर पा रहा था।
समय बीतता गया, और रमेश के पास कुछ भी नहीं बचा था - न कोई योजना, न कोई लक्ष्य, औरन कोई अवसर। उसके माता-पिता भी वृद्ध हो गए थे, और अब वे भी उसकी मदद नहीं कर सकतेथे। रमेश का जीवन बर्बाद हो चुका था, और वह इस सच्चाई का सामना करने के लिए मजबूर था कि आलस्य ने उसकी पूरी जिंदगी को नष्ट कर दिया।
एक दिन वह गाँव के किनारे बैठा हुआ, अपने बीते हुए जीवन पर विचार कर रहा था। उसने देखाकि गाँव के वही लोग जो कभी उसके साथ समय व्यर्थ करते थे, अब अपने-अपने जीवन में सफलहो चुके हैं। कोई बड़ा व्यापारी बन चुका था, तो कोई सरकारी अधिकारी। सबके पास कुछ न कुछ था, सिवाय रमेश के।
रमेश के मन में संत की वह बात गूंजने लगी, "आलसी का कोई वर्तमान और भविष्य नहीं होता।" अब उसे यह बात पूरी तरह समझ में आ गई थी, पर अब कुछ भी करने का समय उसके हाथ से निकल चुका था।
उसने एक गहरी सांस ली और सोचा, "काश, मैंने समय रहते संत की बात मानी होती। काश, मैंनेअपने आलस्य को त्यागकर मेहनत की होती। आज मेरे पास भी कुछ होता, एक सम्मानित जीवनहोता।" परंतु अब पछताने से कुछ नहीं हो सकता था।
रमेश का यह हाल देखकर गाँव के युवाओं ने उससे एक महत्वपूर्ण शिक्षा ली। उन्होंने रमेश कीकहानी से सीखा कि आलस्य व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर सकता है। गाँव के बुजुर्ग भी रमेश की कहानी सुनाकर युवाओं को प्रेरित करने लगे कि मेहनत और अनुशासन से ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
रमेश की कहानी एक सजीव उदाहरण बन गई कि "आलसी का न वर्तमान होता है और नभविष्य।" आलस्य एक ऐसा दोष है जो व्यक्ति को जीवन के हर मोड़ पर पीछे धकेल देता है।केवल परिश्रम, अनुशासन और आत्मविश्वास से ही व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है।
अंततः, रमेश की कहानी एक चेतावनी बन गई कि समय और अवसर कभी किसी का इंतजार नहींकरते। जो आज आलस्य करता है, वह कल पछताता है। इसलिए, हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि आज का परिश्रम ही आने वाले कल की नींव रखता है।
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