Thursday, July 28, 2016

बीते हुए दिन

कभी हमारे जहाज भी चला करते थे। हवा में भी। पानी में भी। दो दुर्घटनाएं हुई। सब कुछ डूब गया।
जहाज हवा मे उड़ाना छूट गया। पानी में तैराना छूट गया। एक बार क्लास में हवाई जहाज उड़ाया।
मैडम के पिछबाड़े से टकराया। स्कूल से निकलने की नौबत आ गई। बहुत फजीहत हुई। कसम दिलाई गई।
औऱ जहाज उडा़ना छूट गया। वारिश के मौसम में,मां ने अठन्नी दी। चाय के लिए दूध लाना था।कोई मेहमान आया था। हमने गली की नाली में तैरते अपने जहाज में बिठा दी। तैरते जहाज के साथ हम चल रहे थे।
ठसक के साथ।खुशी खुशी। अचानक तेज बहाब आया। जहाज डूब गया। साथ में अठन्नी भी डूब गई।
ढूंढे से ना मिली। मेहमान बिना चाय पीये चला गया। फिर जमकर ठुकाई हुई। घंटे भर मुर्गा बनाया गया।
औऱ हमारा पानी में जहाज तैराना भी बंद हो गया।  आज प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें उन दिनों की याद दिलाती हैं।  बच्चे ने आठ हजार का मोबाइल गुमाया तो मां बोली, कोई  बात नहीं, पापा दूसरा दिला देंगे।
हमें अठन्नी पर मिली सजा याद आ गई।  फिर भी आलम यह है कि आज भी हमारे सर मां-बाप के
चरणों में श्रद्धा से छुकते हैं। औऱ हमारे बच्चे 'यार पापा,यार मम्मी' कहकर बात करते हैं। हम प्रगतिशील से प्रगतिवान हो गये हैं।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।

Tuesday, July 26, 2016

एकता की ताकत

एक व्यापारी था, बहुत ही बुद्धिमान और बहूत ही धनवान, उसका करोड़ो का कारोबार था, उसके शहर में आए दिन कोई न कोई चोरी होती रहती थी ,
मगर चोर कभी भी पकड़ा नही गया, क्योंकि वो हर बार चकमा देकर भाग जाता था,
उस व्यापारी ने अपने बारे में ये अफवाह फेला रखी थी की रत को उसे कुछ दिखाई नही देता क्योंकि उसे रतोंधी नामक बीमारी हे, उधर जब चोरों को ये पता चला की उसे रतोंधी नामक बीमारी हे, तो उन चोरो ने व्यापारी के घर चोरी करने की योजना बनाई, अभी तक चोर उसके घर पर चोरी करने में सफल नही हो सके थे,
एक रात जब चोर उस व्यापारी के घर चोरी करने पहोंचा तो व्यापारी की अंक खुल गई, 
और उसने चोर को देख लिया पर सोचा चोर के पास कोई हथियार भी हो सकता हे, फिर उसने एक चाल सोची, और वो अपने पास सो रही अपनी पत्नी से जोर से बोला सुनती हो अभी अभी मेने एक सुंदर सपना देखा हे , पत्नी ने पूछा क्या देखा हे”, 
सुबहा होते ही कच्चे रेशम के दाम दोगुने होने वाले हें, अपने घर तो ढेर सारा रेशम का धागा हे न?”’ हाँ हे तो मगर रात को क्या करना हे, पत्नी ने पुच्छा ,
पत्नी को नही पता था की घर में चोर घुसा हुआ हे, पति ने इशारे से बताया की चोर खम्बे के पिच्छे छुपा हुआ हे, अगर मुझे रतोंधी नही होती तो इसी वक्त सारा धागा नाप कर देखता की आखिर कितना मुनाफा सूरज निकलते ही हो जाएगा,
रहने भी दो पत्नी बोली सुबहा ही नाप कर देखलेना, 
पति बोला क्या मुझे अपने ही घर में नही पता चलेगा की कोंसी चीज कन्हा हे आओ उठ कर नापे की रेशम कितना हे बस खम्बे के चरों और लपेट लपेट कर अंदाजा लगा लूँगा की धागा कितना हे.
ठीक हे में तो सो रही हु आप ही नाप लो, उसकी पत्नी ने कहा और सोने का नाटक करने लगी, इधर व्यापारी ने अन्धे पन का नाटक करते हुए रेशम को खम्बे के चरों और लपेटना शुरू करदिया, 
इस तरह वो खम्बे के पास से कई बार गुजरा जंहा चोर खम्बे से सटकर खड़ा था , व्यापारी बार बार ये ही दिखा रहा था की उसे कुछ नही दिख रहा इस तरहां उसने खम्बे के कई चकर लगाये और चोर के लिए अब हिलना भी मुस्किल हो गया 
चोर ने ये सोचा था की रेशम के धागों को तोडकर वो एक दम से भाग निकलेगा, मगर उन कोमल धागों ने मिलकर इतना मजबूत रूप धारण कर लिया की वो उनमें बंध कर ही रहगया,
इसके बाद व्यापारी ने पुलिस को फोन कर दिया और चोर को उनके हवाले कर दिया, चोर ने ये जाल लिया की कच्चे धागे जुडकर जब एक हो जाते हें तो वो भी मजबूत हो जाते हें, अर्थात एकता की ताकत सबसे मजबूत हे 

Monday, July 25, 2016

कछुए की तरह ही जीवन

एक साधु गंगा किनारे अपनी झोपड़ी में रहता था। सोने के लिए एक बिस्‍तर, पानी पीने के लिए मिट्टी का एक घड़ा और दो कपड़े, बस यही उस साधु की पूंजी थी।
उस साधु ने एक कछुआ पाल रखा था। इसलिए जब वह साधु भिक्षा मांगने के लिए जाता, तो कछुए के लिए भी कुछ न कुछ ले आता था।
साधु के पास कछुआ था इसलिए बहुत से लोग उन्‍हे कछुआ वाले बाबा भी कहते थे।
एक दिन एक आदमी ने साधु से पूछा, “बाबा… आपने यह एक गंदा सा जीव क्‍यों पाल रखा हैॽ इसे आप गंगा में क्‍यों नहीं डाल आतेॽ
साधु ने कहा, “कृपया ऐसा न कहे, इस कछुए को मैं अपना गुरू मानता हूँ।
साधु की बात सुन कर वह आदमी बोला, “बाबा… भला कछुआ किसी का गुरू कैसे हो सकता है?
साधु ने कहा, “देखो, किसी भी तरह की आहट होने पर यह अपने सभी अंग अपने भीतर खींचकर छुपा लेता है। इसके बाद इसे चाहे जितना हिलाओ, यह अपना एक अंग भी बाहर नहीं निकालता है। ठीक इसी प्रकार से मनुष्‍य को भी लोभ, क्रोध, हिंसा आदि दुर्गुणों से स्‍वयं को बचाकर रखना चाहिए। यह चीजें उसे कितना भी आमंत्रण दे, किंतु इनसे दूर ही रहना चाहिए।
मैं इस कछुए को जब भी देखता हूँ, मुझे यह ऐहसास हो जाता है कि मैं भी इसी तरह से अपने अन्‍दर किसी भी प्रकार का ऐसा भाव नही आने दुं, जिससे मेरा ही नुकसान हो। मुझे यह बात याद आ जाती है कि मुझे सदैव इस कछुए की तरह ही जीवन जीना है।

Friday, July 22, 2016

अनमोलपूँजी


😭एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एक मोरनी भी रहती थी। एक दिन मोर ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि-
 "हम तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे?" मोरनी ने पूछा- "तुम्हारे मित्र कितने है ?" मोर ने कहा उसका कोई मित्र नहीं है। तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया। मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है। उसने एक सिंह से.., एक कछुए से.., और सिंह के लिए शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से.., दोस्ती कर लीं। जब उसने यह समाचार
मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिए तैयार हो गई। पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते थे। एक दिन शिकारी आए। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गए और सोचने लगे, पेड़ पर चढ़कर अंडे- बच्चों से भूख बुझाई जाए। मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के लिए दौड़ा। बस फिर क्या था.., टिटहरी ने जोर- जोर से चिल्लाना शुरू किया। सिंह समझ गया, कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे चला.., जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया। सिंह से डरकर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने  की बात सोची। जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया। शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए। इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया। मोरनी ने कहा- "मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न, यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।” मित्रता सभी रिश्तों में अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है। और मित्र किसी भी व्यक्ति की अनमोलपूँजी होते है। अगर गिलास दुध से भरा हुआ है तो आप उसमे और दुध नहीं डाल सकते । लेकिन आप उसमे शक्कर डाले । शक्कर अपनी जगह बना लेती है और अपना होने का अहसास दिलाती है उसी प्रका अच्छे लोग हर किसी के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं... 

Wednesday, July 20, 2016

दान की महिमा

*एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल दिए, इस अंधविश्वास के कारण कि भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देखकर दूसरों को भी लगता है कि इसे पहले से ही किसी ने कुछ दे रखा है।*

*पूर्णिमा का दिन था। भिखारी सोच रहा था कि आज अगर ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती हुई दिखाई दी।*

*भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा कि राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से आज तो उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएंगी और उसका जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रूकवाया और उतर कर उसके निकट पहुंचे।*

*भिखारी की तो मानो सांसें ही रूकने लगीं, लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उल्टे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और उससे भीख की याचना करने लगा। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुनः याचना की। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था।*

*जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकाले और राजा की चादर में डाल दिए। उस दिन हालांकि भिखारी को अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा। शाम को जब उसने अपनी झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही।*

*जो जौ वह अपने साथ झोली में ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। अब उसे समझ में आया कि यह दान की महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि - काश! उस समय उसने राजा को और अधिक जौ दिए होते लेकिन दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने की आदत जो नहीं थी।*

*शिक्षा-*
*१. देने से कोई चीज कभी घटती नहीं।*
*२. लेने वाले से देने वाला बड़ा होता है।*
*३. अंधेरे में छाया बुढ़ापे में काया और अन्त समय में माया किसी का साथ नहीं देती*

Saturday, July 16, 2016

मेरी बिटिया

मेरी बिटिया बड़ी हो गयी।
एक रोज उसने बड़े सहज भाव में मुझसे पूछा---" पापा, क्या मैंने आपको कभी रुलाया ?? "
मैंने कहा---" हाँ। "
" कब ? "---उसने आश्चर्य से पूछा।
मैंने बताया---" उस समय तुम करीब एक साल की थीं, घुटनों पर सरकती थीं। मैंने तुम्हारे सामने पैसे, पेन और खिलौना रख दिया क्योंकि मैं देखना चाहता था कि, तुम तीनों में से किसे उठाती हो। तुम्हारा चुनाव मुझे बताता कि, बड़ी होकर तुम किसे अधिक महत्व देतीं। जैसे पैसे मतलब संपत्ति, पेन मतलब बुद्धि और खिलौना मतलब आनंद।
मैंने ये सब बहुत सहजता से लेकिन उत्सुकतावश किया था। मुझे तुम्हारा चुनाव देखना था।
तुम एक जगह स्थिर बैठीं टुकुर टुकुर उन तीनों वस्तुओं को देख रहीं थीं। मैं तुम्हारे सामने उन वस्तुओं की दूसरी ओर खामोश बैठा तुम्हें देख रहा था।
तुम घुटनों और हाथों के बल सरकती आगे बढ़ीं, मैं श्वांस रोके तुम्हें देख रहा था और क्षण भर में ही तुमने तीनों वस्तुओं को आजू बाजू सरका दिया और उन्हें पार करती हुई आकर मेरी गोद में बैठ गयीं।
मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि, उन तीनों वस्तुओं के अलावा तुम्हारा एक चुनाव मैं भी तो हो सकता था।
वो पहली और आखरी बार थी बेटा जब, तुमने मुझे रुलाया.......बहुत रुलाया।। "

Wednesday, July 13, 2016

तुलसी विवाह

एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपसे ही भगवान विष्णु जी की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी.जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र  से उत्पन्न हुआ था.वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपनेपति की सेवा किया करती थी एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब  जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा स्वामी आप युध पर जा रहे है आपजब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठकर  आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्पनही छोडूगी,जलंधर  तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर में बैठ गयी,उनके व्रत के प्रभावसे देवता भी जलंधर
को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये.सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त  है में उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप  ही हमारी मदद कर सकते है. भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत  पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसेही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओ
ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा नेदेखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये  जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ  ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई,उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के  हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गये सबी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्राथना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी. उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूपइस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से  तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मेंबिना तुलसी जी के भोगस्वीकार नहीं करुगा.तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने  लगे.और  तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है .देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में
मनाया जाता है.

Monday, July 11, 2016

वाणी पर नियंत्रण


एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला
नौजवान चोर है l

यह बात दूर - दूर तक फैल गई आस - पास के लोग उस नौजवान से बचने लगे l

 नौजवान परेशान हो गया कोई उस पर विश्वास ही नहीं करता था l

तभी गाँव में चोरी की एक वारदात हुई और शक उस नौजवान पर गया उसे गिरफ्तार कर लिया गया l

लेकिन कुछ दिनों के बाद सबूत के अभाव में वह निर्दोष साबित हो गया l

निर्दोष साबित होने के बाद वह नौजवान चुप नहीं बैठा उसने बूढ़े आदमी पर गलत आरोप लगाने के लिए मुकदमा दायर कर दिया पंचायत में बूढ़े आदमी ने अपने बचाव में सरपंच से कहा l

'मैंने जो कुछ कहा था, वह एक टिप्पणी से अधिक कुछ नहीं था किसी को नुकसान पहुंचाना मेरा मकसद नहीं था l
सरपंच ने बूढ़े आदमी से कहा, 'आप एक कागज के टुकड़े पर वो सब बातें लिखें, जो आपने उस नौजवान के बारे में कहीं थीं, और जाते समय उस कागज के टुकड़े - टुकड़े करके घर के रस्ते पर फ़ेंक दें कल फैसला सुनने के लिए आ जाएँ बूढ़े व्यक्ति ने वैसा ही किय.. अगले दिन सरपंच ने बूढ़े आदमी से कहा कि फैसला सुनने से पहले आप बाहर जाएँ और उन कागज के टुकड़ों को, जो आपने कल बाहर फ़ेंक दिए थे, इकट्ठा कर ले आएं l

बूढ़े आदमी ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता उन टुकड़ों को तो हवा कहीं से कहीं उड़ा कर ले गई होगी अब वे नहीं मिल सकेंगें मैं कहाँ - कहाँ उन्हें खोजने के लिए जाऊंगा ?

सरपंच ने कहा 'ठीक इसी तरह, एक सरल - सी टिप्पणी भी किसी का मान - सम्मान उस सीमा तक नष्ट कर सकती है, जिसे वह व्यक्ति किसी भी दशा में दोबारा प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकता l

इसलिए यदि किसी के बारे में कुछ अच्छा नहीं कह सकते, तो चुप रहें l

वाणी पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए, ताकि हम शब्दों के दास न बनें 

Sunday, July 10, 2016

भगवान बहुत ही मासूम हैं


एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था पर मिलने की तमन्ना भरपूर थी।उसकी चाहत थी कि एक समय की रोटी वो भगवान के सांथ खायेगा।
1 दिन उसने 1 थैले में 5 - 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को को ढूंढने निकल पड़ा।
चलते चलते वो बहुत  दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।
उसने देखा नदी के तट पर 1 बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं,जिनकी आँखों में बहुत  गजब की चमक थी, प्यार था,और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठी उसका रस्ता देख रहीं हों।
वो 6 साल का मासूम बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।
फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली , माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आँसू भी थे,,,,
बच्चा माता को देखे जा रहा था , जब माता ने रोटी खा ली बच्चे ने 1 और रोटी माता को दी।
माता अब बहुत खुश थी। बच्चा भी बहुत  खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
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जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत ले घर की ओर चलने लगा
वो बार बार पीछे मुड़ कर देखता ! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती।
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बच्चा घर पहुँचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,
बच्चा बहुत  खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा,
तो बच्चे ने बताया!
माँ,....आज मैंने भगवान के सांथ बैठ क्ऱ रोटी खाई, आपको पता है उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,,माँ भगवान् बहुत  बूढ़े हो गये हैं,,,मैं आज बहुत खुश हूँ माँ☺
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उस तरफ बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची  तो गाँव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं,तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा????
माता जी बोलीं,,,,मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी,,मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।
आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठ के रोटी खाई मुझे भी बहुत  प्यार से खिलाई,बहुत प्यार से मेरी और देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया,,भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।
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इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है।
असल में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में ईश्वर के लिए प्यार बहुत in सच्चा है ।
और ईश्वर ने दोनों को ,दोनों के लिये , दोनों में ही ( ईश्वर)खुद को भेज दिया।
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जब मन ईश्वर भक्ति में रम जाता है तो
हमे हर शय में वो ही नजर आता है।

Saturday, July 9, 2016

खुश रहने का राज़

कठिनाईयां लेकर आते थे और ऋषि उनका मार्गदर्शन करते थे| एक दिन एक व्यक्ति, ऋषि के पास आया और ऋषि से एक प्रश्न पूछा| उसने ऋषि से पूछा कि “गुरुदेव मैं यह जानना चाहता हुईं कि हमेशा खुश रहने का राज़ क्या है ऋषि ने उससे कहा कि तुम मेरे साथ जंगल में चलो, मैं तुम्हे खुश रहने का राज़ बताता हूँ|

ऐसा कहकर ऋषि और वह व्यक्ति जंगल की तरफ चलने लगे| रास्ते में ऋषि ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और उस व्यक्ति को कह दिया कि इसे पकड़ो और चलो| उस व्यक्ति ने पत्थर को उठाया और वह ऋषि के साथ साथ जंगल की तरफ चलने लगा|
कुछ समय बाद उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा लेकिन वह चुप रहा और चलता रहा| लेकिन जब चलते हुए बहुत समय बीत गया और उस व्यक्ति से दर्द सहा नहीं गया तो उसने ऋषि से कहा कि उसे दर्द हो रहा है| तो ऋषि ने कहा कि इस पत्थर को नीचे रख दो| पत्थर को नीचे रखने पर उस व्यक्ति को बड़ी राहत महसूस हुयी|
तभी ऋषि ने कहा – “यही है खुश रहने का राज़ | व्यक्ति ने कहा – गुरुवर मैं समझा नहीं|
तो ऋषि ने कहा-
 जिस तरह इस पत्थर को एक मिनट तक हाथ में रखने पर थोडा सा दर्द होता है और अगर इसे एक घंटे तक हाथ में रखें तो थोडा ज्यादा दर्द होता है और अगर इसे और ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे तो दर्द बढ़ता जायेगा उसी तरह दुखों के बोझ को जितने ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे उतने ही ज्यादा हम दु:खी और निराश रहेंगे| यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों के बोझ को एक मिनट तक उठाये रखते है या उसे जिंदगी भर| अगर तुम खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं

Thursday, July 7, 2016

उम्मीदवार की योग्यता

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

 भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

 वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

 ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

 ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

 सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

 अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

 लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

 हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

 हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

 यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

Wednesday, July 6, 2016

इंतजार और प्रार्थना

एक भिखारी, एक सेठ के घर के बाहर खडा होकर भजन गा रहा था और बदले में खाने को रोटी मांग रहा था।
सेठानी काफ़ी देर से उसको कह रही थी , रुको आ रही हूं | रोटी हाथ मे थी पर फ़िर भी कह रही थी की रुको आ रही हूं |
भिखारी भजन गा रहा था और रोटी मांग रहा था।
सेठ ये सब देख रहा था , पर समझ नही पा रहा था,
आखिर सेठानी से बोला - रोटी हाथ में लेकर खडी हो, वो बाहर मांग रहा हैं , उसे कह रही हो आ रही हूं तो उसे रोटी क्यो नही दे रही हो ?
सेठानी बोली हां रोटी दूंगी, पर क्या है ना की मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा हैं, अगर उसको रोटी दूंगी तो वो आगे चला जायेगा,
मुझे उसका भजन और सुनना हैं !!
यदि प्रार्थना के बाद भी भगवान आपकी नही सुन रहा हैं तो समझना की उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही हैं इसलिये इंतज़ार करो और प्रार्थना करते रहो।
जीवन मे कैसा भी दुख और कष्ट आये पर भक्ति मत छोडिए।
क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड देते है?
क्या बीमारी आती है तो आप सांस लेना छोड देते हैं? नही ना ?
फिर जरा सी तकलीफ़ आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हो ?
कभी भी दो चीज मत छोड़िये- - भजन और भोजन !
भोजन छोड़ दोंगे तो ज़िंदा नहीं रहोगे, भजन छोड़ दोंगे तो कहीं के नही रहोगे।
सही मायने में भजन ही भोजन है।

Saturday, July 2, 2016

माँ बाप बोझ क्यो

एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।

रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।

खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उसके कपड़े साफ़ किये, उसका चेहरा साफ़ किया, उसके बालों में कंघी की,चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया।

सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ 
बाहर जाने लगा।

तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ 
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "

बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर 
नहीं जा रहा। "

वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ 
छोड़ कर जा रहे हो, 
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)। "

दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते

और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता
नही ठीक से खाया भी नही जाता आपतो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया 
करते थे,

आप जब ठीक से खा नही 
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी

फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते है???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...

क्योकि एक दिन आप भी बुढे होगे फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद मत करना.

Friday, July 1, 2016

भाव के भूखें

एक पंडितजी थे वो श्रीबांके बिहारी लाल को बहुत मानते थे सुबह-शाम बस ठाकुरजी ठाकुरजी करके व्यतीत होता ...पारिवारिक समस्या के कारण उन्हें धन की आवश्यकता हुई ...तो पंडित जी सेठ जी के पास धन मांगने गये ...सेठ जी धन दे तो दिया पर उस धन को लौटाने की बारह किस्त बांध दी ...पंडितजी को कोई एतराज ना हुआ ...उन्होंने स्वीकृति प्रदान कर दी ....अब धीरे-धीरे पंडितजी ने ११ किस्त भर दीं एक किस्त ना भर सके ...इस पर सेठ जी १२ वीं किस्त के समय निकल जाने पर पूरे धन का मुकद्दमा पंडितजी पर लगा दिया कोर्ट-कचहरी हो गयी ...जज साहब बोले पंडितजी तुम्हारी तरफ से कौन गवाही देगा ....इस पर पंडितजी बोले की मेरे ठाकुर बांकेबिहारी लाल जी गवाही देंगे ...पूरा कोर्ट ठहाकों से भर गया ...अब गवाही की तारीख तय हो गयी ...पंडितजी ने अपनी अर्जी ठाकुरजी के श्रीचरणों में लिखकर रख दी अब गवाही का दिन आया कोर्ट सजा हुआ था वकील, जज अपनी दलीलें पेश कर रहे थे पंडित को ठाकुर पर भरोसा था ....जज ने कहा पंडित अपने गवाह को बुलाओ पंडित ने ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगाया तभी वहाँ एक वृद्व आया जिसके चेहरे पर मनोरम तेज था उसने आते ही गवाही पंडितजी के पक्ष में दे दी ...वृद्व की दलीलें सेठ के वहीखाते से मेल खाती थीं की फलां- फलां तारीख को किश्तें चुकाई गयीं अब पंडित को ससम्मान रिहा कर दिया गया ...ततपश्चात जज साहब पंडित से बोले की ये वृद्व जन कौन थे जो गवाही देकर चले गये ....तो पंडित बोला अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर था .....जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया ...इतना सुनना था की जज पंडित जी के चरणों में लेट गया .....और ठाकुर जी का पता पूछा ...पंडित बोला मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है वो हर जगह है अब जज ने घरबार काम धंधा सब छोङ ठाकुर को ढूंढने निकल पङा ...सालों बीत गये पर ठाकुर ना मिला ...अब जज पागल सा मैला कुचैला हो गया  वह भंडारों में जाता पत्तलों पर से जुठन उठाता ...उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी मूर्ति को अर्पित करता आधा खुद खाता ...इसे देख कर लोग उसके खिलाफ हो गये उसे मारते पीटते ....पर वो ना सुधरा जूठन बटोर कर खाता और खिलाता रहा ...एक भंडारे में लोगों ने अपनी पत्तलों में कुछ ना छोङा ताकी ये पागल ठाकुरजी को जूठन ना खिला सके पर उसने फिर भी सभी पत्तलों को पोंछ-पाछकर एक निवाल इकट्ठा किया और अपने मुख में डाल लिया ....पर अरे ये क्या वो ठाकुर को खिलाना तो भूल ही गया अब क्या करे उसने वो निवाला अन्दर ना सटका की पहले मैं खा लूंगा तो ठाकुर का अपमान हो जायेगा और थूका तो अन्न का अपमान होगा ....करे तो क्या करें निवाल मुँह में लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगा रहा था की एक सुंदर ललाट चेहरा लिये बाल-गोपाल स्वरूप में बच्चा पागल जज के पास आया और बोला क्यों जज साहब आज मेरा भोजन कहाँ है जज साहब मन ही मन गोपाल छवि निहारते हुये अश्रू धारा के साथ बोले ठाकुर बङी गलती हुई आज जो पहले तुझे भोजन ना करा सका ...पर अब क्या करुं ...?
तो मन मोहन ठाकुर जी मुस्करा के बोले अरे जज तू तो निरा पागल हो गया है रे जब से अब तक मुझे दूसरों का जूठन खिलाता रहा ...आज अपना जूठन खिलाने में इतना संकोच चल निकाल निवाले को आज तेरी जूठन सही ...जज की आंखों से अविरल धारा निकल पङी जो रुकने का नाम ना ले रही और मेरा ठाकुर मेरा ठाकुर कहता-कहता बाल गोपाल के श्रीचरणों में गिर पङा और वहीं देह का त्याग कर दिया ....और मित्रों वो पागल जज कोई और नहीं वही (पागल बाबा) थे जिनका विशाल मंदिर आज वृन्दावन में स्थित है तो दोस्तो भाव के भूखें हैं प्रभू और भाव ही एक सार है ...और भावना से जो भजे तो भव से बेङा पार है ...तो बोलिए नन्द के आनंद की जय बोल वृन्दावन बिहारी लाल की जय ...बांके बिहारी लाल की जय