बिहार के एक छोटे से गांव, मधुपुर में एक लड़का रहता था—नाम था करन। साधारण परिवार, सीमित संसाधन, लेकिन सपने असीम। उसका सपना था—देश के ग्रामीण बच्चों के लिए एकऐसा स्कूल बनाना, जो शहरों से बेहतर हो।
गांव में शिक्षा को कोई गंभीरता से नहीं लेता था। करन जब भी अपने दोस्तों से पढ़ने की बातकरता, वे हँसते और कहते, "तू किताबों में क्या ढूंढता है? आखिर में सबको तो खेत ही जोतना है!"
करन चुप रहता, लेकिन उसका मन बोलता,
"जो खुद पर भरोसा रखते हैं, वही दुनिया को बदलने का दम रखते हैं!"
करन के पिता एक किसान थे और माँ घर पर कपड़े सिलती थीं। घर की आर्थिक स्थिति बहुतखराब थी। लेकिन करन को पढ़ाई का जुनून था। वह रोज़ स्कूल 6 किलोमीटर पैदल जाकर पढ़ताऔर लौटकर खेतों में मदद करता।
रात को लालटेन की रोशनी में पढ़ते हुए वह खुद से वादा करता—"एक दिन मैं ऐसा स्कूलबनाऊंगा, जहां हर बच्चा बिना डर के सपने देख सके।"
गांव के हालात ऐसे थे कि दसवीं के बाद ज़्यादातर बच्चे पढ़ाई छोड़ देते। लेकिन करन ने हार नहींमानी। उसने 12वीं में जिला टॉप किया। अखबार में उसका नाम आया तो गांव में पहली बार लोगउसकी ओर अलग नजर से देखने लगे।
पर असली परीक्षा अभी बाकी थी।
कॉलेज की पढ़ाई के लिए शहर जाना था, लेकिन पैसे नहीं थे। करन ने छोटे-मोटे काम किए—कभी होटल में बर्तन धोए, कभी स्टेशन पर किताबें बेचीं। इन सबके बीच भी उसने पढ़ाई नहींछोड़ी।
एक दिन उसके प्रोफेसर ने पूछा, "इतनी तकलीफों के बावजूद तुम क्यों नहीं हारते?"
करन ने मुस्कराकर जवाब दिया,
"सर, मुझे खुद पर भरोसा है। जब तक मैं खुद को नहीं छोड़ता, दुनिया मुझे नहीं हरा सकती।"
कॉलेज के आखिरी साल में करन ने एक प्रोजेक्ट तैयार किया—"गांव के बच्चों के लिए डिजिटलशिक्षा योजना।" उसने सरकार को प्रस्ताव भेजा, लेकिन कई महीनों तक कोई जवाब नहीं आया।दोस्तों ने कहा, "तू क्यों वक्त बर्बाद कर रहा है? नौकरी कर, जिंदगी चला।"
लेकिन करन का जवाब वही था—"जो खुद पर भरोसा रखते हैं, वही दुनिया को बदलने का दमरखते हैं!"
आख़िरकार, एक दिन करन को राज्य सरकार की ओर से फोन आया। उनका प्रस्ताव पास हो गयाथा। उन्हें एक छोटा अनुदान और जमीन मिली—अपने गांव में पहला मॉडल स्कूल बनाने के लिए।
करन ने खुद मिट्टी उठाई, दीवारें बनाईं, लोगों को जोड़ा, पुराने लैपटॉप मंगवाए और एक छोटालेकिन आधुनिक स्कूल खड़ा कर दिया—"विश्वास पब्लिक स्कूल"।
अब गांव के बच्चे जो कभी स्कूल से डरते थे, वे डिजिटल क्लास में बैठकर विज्ञान, गणित औरकंप्यूटर सीखते थे। जो मां-बाप कभी पढ़ाई को बेकार समझते थे, वे खुद बच्चों को स्कूल छोड़नेआए।
करन अब सिर्फ एक लड़का नहीं था, वह गांव की आशा और बदलाव की मिसाल बन चुका था।
एक दिन स्कूल की दीवार पर एक बड़ा पोस्टर लगाया गया, जिस पर लिखा था:
"जो खुद पर भरोसा रखते हैं, वही दुनिया को बदलने का दम रखते हैं!"
सीख:
दुनिया आपको तब तक नहीं पहचानती जब तक आप खुद को नहीं पहचानते। हालात चाहे जैसेभी हों, अगर खुद पर विश्वास हो, तो असंभव भी संभव बन जाता है।