Sunday, February 26, 2017

क्लास रूम

क्लास रूम में प्रोफेसर ने एक सीरियस टॉपिक पर चर्चा प्रारंभ की। जैसे ही वे ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखने के लिए पलटे तो तभी एक शरारती छात्र ने सीटी बजाई। प्रोफेसर ने पलटकर सारी क्लास को घूरते हुए " सीटी किसने मारी " पूछा, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। प्रोफेसर ने शांति से अपना सामान समेटा और आज की
क्लास समाप्त बोलकर, बाहर की तरफ बढ़े। स्टूडेंट्स खुश हो गए कि, चलो अब फ्री हैं। अचानक प्रोफेसर रुके, वापस अपनी टेबल पर पहुँचे और बोले---"  चलो, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ , इससे हमारे बचे हुए समय का उपयोग भी हो जाएगा। " सभी स्टूडेंट्स उत्सुकता और इंटरेस्ट के साथ कहानी सुनने लगे। प्रोफेसर बोले---" कल रात मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैंने सोचा कि, कार में पेट्रोल भरवाकर ले आता हूँ जिससे सुबह मेरा समय बच जाएगा। पेट्रोल पम्प से टैंक फुल कराकर मैं आधी रात को सूनसान पड़ी सड़कों पर ड्राइव का आनंद लेने लगा। अचानक एक चौराहे के कार्नर पर मुझे एक बहुत खूबसूरत लड़की शानदार ड्रेस पहने हुए अकेली खड़ी नजर आई। मैंने कार रोकी और उससे पूछा कि, क्या मैं उसकी कोई सहायता कर सकता हूँ तो उसने कहा
कि, उसे उसके घर ड्रॉप कर दें तो बड़ी मेहरबानी होगी। मैंने सोचा नींद तो वैसे भी नहीं आ रही है , चलो, इसे इसके घर छोड़ देता हूँ। वो मेरी बगल की सीट पर बैठी। रास्ते में हमने बहुत बातें कीं। वो बहुत इंटेलिजेंट थी, ढेरों टॉपिक्स पर उसका कमाण्ड था। जब कार उसके बताए एड्रेस पर पहुँची तो उतरने से पहले वो बोली कि,
वो मेरे नेचर और व्यवहार से बेहद प्रभावित हुई है और मुझसे प्यार करने लगी है। मैं खुद भी उसे पसंद करने लगा था। मैंने उसे बताया कि, " मैं यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूँ। " वो बहुत खुश हुई फिर उसने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर लिया और अपना नंबर दिया। अंत में उसने बताया की, उसका भाई भी यूनिवर्सिटी में ही पढ़ता है और उसने मुझसे रिक्वेस्ट की कि, मैं उसके भाई का ख़याल रखूँ। मैंने कहा कि, " तुम्हारे भाई के लिए कुछ भी करने पर मुझे बेहद खुशी होगी। क्या नाम है तुम्हारे भाई का...?? ". इस पर लड़की ने कहा कि, " बिना नाम बताए भी आप उसे पहचान सकते हैं क्योंकि वो सीटी बहुत ज्यादा और बहुत बढ़िया बजाता है। " जैसे ही प्रोफेसर ने सीटी वाली बात की तो, तुरंत क्लास के सभी स्टूडेंट्स उस छात्र की तरफ देखने लगे, जिसने प्रोफ़ेसर की पीठ पर सीटी बजाई थी। प्रोफेसर उस लड़के की तरफ घूमे और उसे घूरते हुए बोले- " बेटा, मैंने अपनी पी एच डी की डिग्री, मटर छीलकर हासिल नहीं की है, हरामखोर निकल क्लास से बाहर...!! "

Friday, February 24, 2017

तुलसी विवाह

`तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा``` -
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर``` आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प
नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे
ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे
सती हो गयी।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में
बिना तुलसी जी के भोग```
```स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में```
```किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !

Wednesday, February 22, 2017

कलियुग

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।
पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे,
उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन में विचार आया कि इन सब में बुद्धिमान कौन है परिक्षा ली जाय।
शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।
अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी
और वो आकर्षित हो गया ,
भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ ।
भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,
भीम बोला- मुझे महल देखना है!
शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।
1- शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।
2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।
3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।
भीम ने कहा- मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा ।
और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया ।
वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,
आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।
बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।
दरबान - क्या देखा आपने ?
भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।
दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।
अर्जुन आया बोला- मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।
आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है। एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल ।
बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा
मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।
दरबान ने पुछा क्या देखा,
अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।
शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।
नकुल आया बोला मुझे महल देखना है ।
फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।
शनिदेव ने पुछा क्या देखा ?
नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।
सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।
चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।
भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।
युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?
भीम ने कुंऐ के बारे में बताया
तब युधिष्ठिर ने कहा- यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।
भीम को छोड़ दिया।
अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ??
उसने फसल के बारे में बताया
युधिष्ठिर ने कहा- यह भी कलियुग में होने वाला है वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।
अर्जुन भी छूट गया।
नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।
तब युधिष्ठिर ने कहा- कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।
तब नकुल भी छूट गया।
सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,
तब युधिष्ठिर बोले- कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।।  आज के कलयुग में यह सारी बातें सच साबित हो रही है

Saturday, February 18, 2017

मनुष्य का भाग्य

एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है... नारदमुनि ने कहा - भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है... आदमी बहुत खुश रहने लगा... उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी...एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ... आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना... इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को... मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है... अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई... उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है...?? नारदमुनि ने कहा - तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या...?? हाँ हुई है... तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे... एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी...फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है...क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ...?? मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है... हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है... किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता...लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया,,,मैंने कमाया,,,
मेरा है,,, मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है... हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है

Tuesday, February 14, 2017

सकारात्मक दृष्टीकोण

एक 6 वर्षका लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।
अचानक से उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पिछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, "कुछ चाहिये तुम्हे ?" लडकी एक गुडिया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुडिया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी है।
दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुडिया की ?"
दुकानदार एक शांत व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे होते थें। उन्होने बडे प्यार और अपनत्व से बच्चे पूछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?"
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोडी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर लायी थी।
दुकानदार वो सब लेकर यू गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।
सीपें ( शिंपले ) गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?"
दुकानदार :-" नही नही, ये तो इस गुडिया की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मै वापस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बडी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुडिया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?"
दुकानदार मुस्कुराते हुये बोला,
"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र मे वो नही जानता की पैसे क्या होते है ?
पर जब वह बडा होगा ना...
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुडिया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, वह सोचेगा कि,,,,,,
"यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।"
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टीकोण बढाने मे मदद करेगी और वो भी अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा।

Friday, February 10, 2017

हमारे माँ-बाप

गुप्ता जी जब लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु गुप्ता जी ने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी।
पुत्र जब वयस्क हुआ तो गुप्ता जी ने पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी मंदिर और आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे।
पुत्र की शादी के बाद गुप्ता जी और अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया।
पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दुपहरी में गुप्ता जी खाना खा रहे थे, पुत्र भी ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था।
उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये।
पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया।
लगभग दस दिन बाद पुत्र ने गुप्ता जी से कहा- ‘‘ पापा आज आपको कोर्ट चलना है,आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’
पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा विवाह क्यों?’’
पुत्र ने कहा ‘‘ पिता जी, न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी,
मैं तो केवल आपके लिये दही का इन्तजाम कर रहा हूँ।
कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’

Wednesday, February 8, 2017

ईश्वर का इंसाफ.

एक अमीर ईन्सान था। उसने समुद्र मेँ अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवाई। छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सेर करने निकला। आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तुफान आया।
उसकी नाव पुरी तरह से तहस-नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र मेँ कूद गया। जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता-तैरता एक टापू पर पहुंचा। लेकिन वहाँ भी कोई नही था।
टापू के चारो और समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नही आ रहा था। उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिदंगी मेँ किसी का कभी भी बुरा नही किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ ?
उस ईन्सान को लगा कि खुदा ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी खुदा ही बताएगा। धीरे-धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-फल-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा।
अब धीरे-धीरे उसकी आस टूटने लगी, खुदा पर से उसका यकीन उठने लगा। फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यही इस टापू पर ही बितानी है तो क्यूँ ना एक झोपडी बना लूँ ?
फिर उसने झाड की डालियो और पत्तो से एक छोटी सी झोपडी बनाई। उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपडी मेँ सोने को मिलेगा आज से बाहर नही सोना पडेगा।
रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलियाँ जोर जोर से कड़कने लगी! तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर आ गिरी और झोपडी धधकते हुए जलने लगी।
यह देखकर वह ईन्सान टूट गया। आसमान की तरफ देखकर बोला या खुदा ये तेरा कैसा इंसाफ है ? तूने मुज पर अपनी रहम की नजर क्यूँ नहीं की ?
फीर वह इन्सान हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था। कि अचानक एक नाव टापू के पास आई नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये। और बोले कि हम तुम्हे बचाने आये हैं। दूर से इस वीरान टापू मे जलता हुआ झोपडा देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत मेँ है।
अगर तुम अपनी झोपडी नही जलाते तो हमे पता नही चलता कि टापू पर कोई है। उस आदमी की आँखो से आँसू गिरने लगे। उसने खुदा से माफी माँगी और बोला कि "या रब मुझे क्या पता कि तूने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपडी जलाई थी। यक़ीनन तू अपने बन्दों का हमेशा ख्याल रखता है। तूने मेरे सब्र का इम्तेहान लिया लेकिन मैं उसमे फ़ैल हो गया, मुझे माफ़ फरमा दे।"
दिन चाहे सुख के हों या दुख के,
खुदा अपने बन्दों के साथ हमेशा रहता हैं।

Monday, February 6, 2017

बुजुर्ग दंपति

रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले लड़के की नजरें अचानक एक बुजुर्ग दंपति पर पड़ी। उसने देखा कि वो बुजुर्ग
पति अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर उसे सहारा देते हुए चल रहा था । थोड़ी दूर जाकर वो दंपति एक खाली जगह
देखकर बैठ गए । कपड़ो के पहनावे से वो गरीब ही लग रहेथे  तभी ट्रेन के आने के संकेत हुए और वो चाय वाला अपने काम में लग गया। शाम में जब वो चाय वाला वापिस स्टेशन पर आया तो देखाकि वो बुजुर्ग दंपति अभी भी उसी जगह बैठे हुए है । वो उन्हें देखकर कुछ सोच में पड़ गया । देर रात तक जब चाय वाले ने उन बुजुर्ग
दंपति को उसी जगह पर देखा तो वो उनके पास गया और उनसे पूछने लगा: बाबा आप सुबह से यहाँ क्या कर रहे है ? आपको जाना कहाँ है ? बुजुर्ग पति ने अपना जेब से कागज का एक टुकड़ा निकालकर चाय वाले को दिया और कहा: बेटा हम दोनों में से किसी को पढ़ना नहीं आता,इस कागज में मेरे बड़े बेटे का पता लिखा हुआ है ।मेरे छोटे बेटे ने कहा था कि अगर भैया आपको लेने ना आ पाये तो किसी को भी ये पता बता देना, आपको सही
जगह पहुँचा देगा । चाय वाले ने उत्सुकतावश जब वो कागज खोला तो उसके होश उड़ गये । उसकी आँखों से एकाएक आंसूओं की धारा बहने लगी ।
.उस कागज में लिखा था कि.........
"कृपया इन दोनों को आपके शहर के किसी वृध्दाश्रम में
भर्ती करा दीजिए, बहुत बहुत
मेहरबानी होगी..."

Thursday, February 2, 2017

जीवन की सच्चाई

एक आदमी की चार पत्नियाँ थी । वह अपनी चौथी पत्नी  से  बहुत प्यार  करता था और उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता । वह अपनी तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और हमेशा उसे अपने  मित्रों  को  दिखाना  चाहता था । हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है   वह अपनी दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था । जब भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर की पत्नी के  पास  जाता  और  वो  उसकी  समस्या सुलझा देती । वह अपनी पहली पत्नी से प्यार नहीं करता था जबकि पत्नी उससे बहुत गहरा प्यार करती थी और उसकी खूब देखभाल करती । एक दिन वह बहुत बीमार पड़  गया और  जानता था की जल्दी ही वह मर जाएगा । उसने  अपने  आप से कहा, "मेरी चार पत्नियां हैं, उनमें से मैं एक को अपने साथ ले जाता हूँ..जब मैं मरूं तो वह मरने में मेरा साथ दे ।" तब उसने चौथी पत्नी से अपने साथ आने को कहा तो वह बोली, "नहीं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता और चली गयी । उसने तीसरी पत्नी से पूछा तो वह बोली की, "ज़िन्दगी बहुत अच्छी है यहाँ जब तुम मरोगे तो मैं दूसरी शादी कर लूंगी ।" उसने दूसरी पत्नी से कहा तो वह बोली, "माफ़ कर दो, इस बार मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती ।,ज्यादा से ज्यादा मैं  तुम्हारे दफनाने तक तुम्हारे साथ रह सकती हूँ ।" अब तक उसका दिल बैठ  सा  गया और  ठंडा  पड़ गया । तब एक आवाज़ आई, "मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ । तुम जहाँ जाओगे मैं तुम्हारे साथ चलूंगी ।" उस आदमी ने जब देखा तो  वह  उसकी पहली पत्नी थी । वह बहुत बीमार सी हो गयी थी खाने पीने के अभाव में । वह आदमी पश्चाताप के आंसूं के साथ बोला, "मुझे तुम्हारी अच्छी देखभाल  करनी चाहिए थी और मैं कर सकता था ।" दरअसल हम सब की चार पत्नियां हैं जीवन में ।
1. चौथी पत्नी हमारा शरीर है । हम चाहें जितना सजा लें संवार लें पर जब हम मरेंगे तो यह हमारा साथ छोड़ देगा ।
2. तीसरी पत्नी है हमारी  जमा  पूँजी, रुतबा । जब हम मरेंगे तो ये दूसरों के पास चले जायेंगे।
3. दूसरी पत्नी है हमारे दोस्त व रिश्तेदार । चाहें वे कितने भी करीबी क्यूँ ना हों हमारे जीवन काल में पर मरने के बाद हद से हद वे हमारे अंतिम संस्कार तक साथ रहते हैं ।
4. पहली पत्नी हमारी आत्मा है, जो सांसारिक मोह माया में हमेशा उपेक्षित रहती है ।
यही वह चीज़ है जो हमारे साथ रहती है जहाँ भी हम जाएँ.......कुछ देना है तो  इसे दो.... देखभाल करनी है तो इसकी करो.... प्यार करना है तो इससे
करो...
         मिली थी जिन्दगी
      किसी के 'काम' आने के लिए..

           पर वक्त बीत रहा है
     कागज के टुकड़े कमाने के लिए..
   क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
 ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'

       और ये मौत के फ़रिश्ते तो
           'रिश्वत' भी नही लेते...