एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें।
बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते!
जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे।
एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी।
संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई है।
संत, "मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास था।
"पिता... ओह ये बात...। खाली कुर्सी। आप...!
आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद करेंगे...!
संत को ये सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाज़ा बंद कर दिया...।
पिता.. "दरअसल इस खाली कुर्सी का राज़ मैंने किसी को नहीं बताया। अपनी बेटी को भी नहीं। पूरी ज़िंदगी, मैं ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है। मंदिर जाता था, पुजारी जी के श्लोक सुनता। वो सिर के ऊपर से गुज़र जाते। कुछ पल्ले नहीं पड़ता था। मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया...!
लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मिला।
उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ नहीं,भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है।
उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो।
फिर विश्वास करो कि वहां भगवान खुद ही विराजमान हैं।
अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो,जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो।
मैंने ऐसा करके देखा। मुझे बहुत अच्छा लगा।
फिर तो मैं रोज़ दो-दो घंटे ऐसा करके देखने लगा। लेकिन ये ध्यान रखता कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले।
अगर वो देख लेती तो वो फिर मुझे साइकाइट्रिस्ट के पास ले जाती...!"
ये सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की। सिर पर हाथ रखा और भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा।
संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था इसलिए विदा लेकर चले गए |
दो दिन बाद बेटी का संत को फोन आया कि उसके पिता की उसी दिन कुछ घंटे बाद मृत्यु हो गई थी, जिस दिन वो आप से मिले थे |
संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई ?
बेटी ने जवाब दिया... नहीं!
मैं जब घर से काम पर जा रही थी तो उन्होंने मुझे बुलाया...मेरा माथा प्यार से चूमा |
ये सब करते हुए उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी, जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी।
जब मैं वापस आई तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे |
लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज़ भी देखी...वो ऐसी मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाया हो।
संत जी, वो क्या था...।
ये सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले... बड़ी मुश्किल से बोल पाए... काश, मैं भी जब दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊं।
ईश्वर कहीं दूर नहीं हैं ,
हमारे विश्वास में कमी और हमारा अहंकार हमें उनकी अनूभूति नहीं होने देता |
जिस पल हमारा विश्वास दृढ होता है,
हम उसे अपने निकट ही पाते हैं !