Sunday, October 24, 2021

सच्ची साधना

एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था। धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था। जब भी उसे शौच, स्नान आदि के लिये जाना होता था वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे। 
         धीरे-धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी-कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे। इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे। जब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा।
        एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है। अब ये रोज का नियम हो गया।
        एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है। 
        एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड़ लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं। तभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया। 
          वह व्यक्ति रोते हुये कहता है- "हे प्रभु ! आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे हैं।। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना।"  प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध हैं। आप मेरे सच्चे साधक है, हर समय मेरा नाम जप करते हैं इसलिये मैं आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ। व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है, क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ?
        प्रभु कहते है, मेरी कृपा सर्वोपरि हैं ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है, लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा। यही कर्म नियम है। इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ। प्रभु कहते है,  प्रारब्ध तीन तरह के होते है। "मन्द, तीव्र तथा तीव्रतम" मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते हैं।। तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते हैं। पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पडते है। लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं, उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ।
एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था। धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था। जब भी उसे शौच, स्नान आदि के लिये जाना होता था वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे। 
         धीरे-धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी-कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे। इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे। जब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा।
        एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है। अब ये रोज का नियम हो गया।
        एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है। 
        एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड़ लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं। तभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया। 
          वह व्यक्ति रोते हुये कहता है- "हे प्रभु ! आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे हैं।। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना।"  प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध हैं। आप मेरे सच्चे साधक है, हर समय मेरा नाम जप करते हैं इसलिये मैं आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ। व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है, क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ?
        प्रभु कहते है, मेरी कृपा सर्वोपरि हैं ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है, लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा। यही कर्म नियम है। इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ। प्रभु कहते है,  प्रारब्ध तीन तरह के होते है। "मन्द, तीव्र तथा तीव्रतम" मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते हैं।। तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते हैं। पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पडते है। लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं, उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ।

Saturday, October 9, 2021

जीवन का आनंद

गाँव में एक बूढ़ा रहता था। सारा गाँव उससे थक गया था; वह हमेशा उदास रहता था, वह लगातार शिकायत करता था और हमेशा बुरे मूड में रहता था। वह जितने लंबे समय तक जीवित रहा, वह उतना ही निंदनीय होता गया और उसके शब्द अधिक जहरीले होते गए। लोगों ने उससे बचने की पूरी कोशिश की क्योंकि उसका दुर्भाग्य संक्रामक था। उसने दूसरों में दुख की भावना पैदा की।
लेकिन एक दिन, जब वह अस्सी वर्ष के हुए, एक अविश्वसनीय बात हुई। फ़ौरन सभी को यह अफवाह सुनाई देने लगी: 'बूढ़ा आदमी आज खुश है, वह किसी बात की शिकायत नहीं करता, मुस्कुराता है, और उसका चेहरा भी तरोताज़ा हो जाता है।'
सारा गाँव उस आदमी के पास इकट्ठा हो गया और उससे पूछा, “तुम्हें क्या हुआ?”
बूढ़े ने जवाब दिया, 'कुछ खास नहीं। अस्सी साल से मैं खुशी का पीछा कर रहा हूं और यह बेकार था। और फिर मैंने खुशी के बिना जीने और जीवन का आनंद लेने का फैसला किया। इसलिए मैं अब खुश हूं।'