यह कहानी एक ऐसे व्यापारी की है जिसका नाम था मोहनलाल। वह शहर का सबसेबड़ा और समृद्ध व्यापारी था। उसके पास अपार धन-दौलत थी, बड़े-बड़े घर, आलीशानगाड़ियां, और एक शानदार जीवन। उसके व्यापार की गिनती न केवल शहर में बल्किअन्य शहरों में भी होती थी। लोग उसकी बुद्धिमत्ता और व्यापारिक कौशल की तारीफकरते थे, लेकिन उसके भीतर एक कमी थी। मोहनलाल बहुत स्वार्थी था। उसने कभी भीअपने धन का उपयोग दूसरों की मदद के लिए नहीं किया, और हमेशा अपने लाभ कीचिंता में ही रहता।
वह मानता था कि जितना अधिक धन उसके पास रहेगा, उतना ही उसका जीवन सुरक्षितऔर सुखमय होगा। लेकिन यह धन उसे भीतर से संतुष्टि नहीं दे पा रहा था। उसके घर मेंसुख-सुविधाएं थीं, लेकिन मन में शांति की कमी थी। मोहनलाल का समय अपनेव्यापार को बढ़ाने में ही निकलता और वह समाज से कटता जा रहा था।
एक दिन, मोहनलाल के शहर में एक गरीब आदमी आया। उसका नाम रामू था, जो बहुतही साधारण व्यक्ति था। उसके पास न तो रहने का ठिकाना था और न ही खाने कासाधन। वह रोज मेहनत करता, लोगों के घरों में छोटा-मोटा काम करता और अपना पेटभरता। रामू का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, फिर भी वह हमेशा हंसमुख औरसंतुष्ट दिखाई देता था। उसने कभी अपनी गरीबी को अपनी खुशी के रास्ते में नहीं आनेदिया।
एक बार रामू की मुलाकात मोहनलाल से हुई। रामू को मोहनलाल के पास काम कीतलाश में आना पड़ा। मोहनलाल ने उसे काम पर रखा, लेकिन बहुत ही कम पैसे दिए।रामू ने फिर भी काम किया और पूरे मन से अपना काम निभाया। समय बीतता गया, औररामू मोहनलाल के व्यापार का अभिन्न हिस्सा बन गया। लेकिन रामू की गरीबी कम नहींहुई, वह अब भी छोटी-छोटी चीजों के लिए संघर्ष करता रहा।
एक दिन, मोहनलाल ने देखा कि रामू के चेहरे पर हमेशा एक खास तरह की शांति औरसंतोष दिखाई देता है। मोहनलाल ने उससे पूछा, "रामू, तुम इतने गरीब हो, तुम्हारे पासन तो धन है और न ही कोई बड़ी संपत्ति, फिर भी तुम हमेशा खुश कैसे रहते हो?"
रामू ने हंसते हुए जवाब दिया, "मालिक, धन से केवल भौतिक सुख खरीदा जा सकता है, लेकिन असली खुशी दूसरों की मदद करने से मिलती है। जब मैं किसी की मदद करताहूं, तो मुझे अंदर से संतोष मिलता है। यही मेरे लिए असली धन है।"
मोहनलाल इस जवाब से हतप्रभ रह गया। उसने सोचा, "मैं जिसके पास इतना धन है, फिर भी मैं संतुष्ट क्यों नहीं हूं?" वह रातभर इस सवाल पर विचार करता रहा। अगलेदिन, वह एक निर्णय पर पहुंचा। उसने सोचा, "मैंने अपने जीवन में बहुत धन कमाया है, लेकिन इससे न मुझे खुशी मिली और न ही संतोष। क्यों न मैं इस धन का उपयोग दूसरोंकी भलाई के लिए करूं?"
उस दिन से मोहनलाल का जीवन बदल गया। उसने अपने व्यापार से जो लाभ कमाया, उसका एक बड़ा हिस्सा समाज की भलाई के लिए खर्च करना शुरू कर दिया। उसनेगरीबों के लिए स्कूल और अस्पताल बनवाए, जरूरतमंदों की मदद की और गांव-गांवजाकर लोगों की परेशानियों को सुना। धीरे-धीरे उसकी पहचान एक दयालु औरसमाजसेवी व्यक्ति के रूप में होने लगी।
मोहनलाल ने पाया कि जब वह दूसरों की मदद करता है, तो उसे अंदर से जो संतोष औरखुशी मिलती है, वह किसी भी भौतिक संपत्ति से कहीं अधिक मूल्यवान है। अब वहपहले से अधिक खुश और संतुष्ट रहने लगा था।
समय के साथ, मोहनलाल ने यह महसूस किया कि धन का असली मूल्य तब है जबइसका उपयोग दूसरों की भलाई के लिए किया जाए। अगर इसे केवल अपने स्वार्थ औरइच्छाओं को पूरा करने में लगाया जाए, तो यह केवल एक बोझ बन जाता है, एक ऐसीदौलत जो न किसी के काम आती है और न ही किसी को खुशी देती है।
रामू के विचारों ने मोहनलाल की सोच को पूरी तरह से बदल दिया था। अब मोहनलालका सारा जीवन दूसरों की सेवा में लग गया था। वह कहता, "धन वही सार्थक है जोदूसरों के जीवन में सुधार लाए। अगर इसका उपयोग सिर्फ अपने लिए किया जाए, तोयह केवल बुराई का ढेर है, जो हमें अंधकार में ही धकेलता है।"
मोहन लाल का यह बदलाव उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुई। उसका नाम अब व्यापार के क्षेत्र में नहीं, बल्कि समाज सेवा और परोपकार के कार्यों में लिया जाने लगा। उसने यह साबित कर दिया कि धन का असली मूल्य तब है, जब इसकाउपयोग लोगों की भलाई में हो।
संदेश: इस कहानी से हमें यह सिकने को मिलता है कि धन का उपयोग सही तरीके से करना ही उसे मूल्यवान बनाता है। यदि हम इसे केवल अपने लिए संजोकर रखते हैं, तो यह हमारे जीवन को बोझिल बना देता है। लेकिन जब हम इसे दूसरों की मदद और भलाई के लिए खर्च करते हैं, तो यह हमारे जीवन में वास्तविक खुशी और संतोष लाता है।
No comments:
Post a Comment