स्वयं पर विजय प्राप्त करना प्राचीन काल में एक राजा था जिसका नाम विक्रमादित्य था। वह अपने राज्य के सबसे पराक्रमी और न्याय प्रिय शासकों मेंसे एक माना जाता था। राजा विक्रमादित्य ने अपने जीवन में अनेक युद्ध लड़े और सभी में विजय प्राप्त की। वह न केवल एक महान योद्धा था, बल्कि एक कुशलशासक और प्रजा के बीच अत्यधिक सम्मानित था।राजा का साम्राज्य दूर-दूरतकफैला हुआ था। उसने अपने पराक्रम से आस-पास के कई राज्यों कोजीतकरअपने राज्य में मिला लिया था। लेकिन इतनी सारी बाहरी विजय केबावजूद, राजा के मन में एक अजीब सी अशांति थी। उसने जीवन में वह सब कुछ हासिल कर लिया था, जो वह चाहता था—धन, वैभव, सम्मान, और शक्ति। फिर भी, उसे ऐसा लगता था कि कुछ महत्वपूर्ण अभी भी अधूरा है।एकदिन, एक बूढ़ेसंत राजा के दरबार में आए। राजा ने उनका आदरपूर्वक स्वागतकिया और उनसेउनके आगमन का कारण पूछा। संत ने मुस्कुराते हुए कहा, "हेराजन, मैंने सुना हैकि आप इस धरती के सबसे शक्तिशाली राजा हैं। आपनेअनेक राज्यों कोजीता है और आपकी वीरता की चर्चा चारों दिशाओं में होतीहै।"राजाविक्रमादित्य ने विनम्रता से सिर झुकाया और कहा, "हे संत, यह सच हैकि मैंनेकई युद्धों में विजय प्राप्त की है। लेकिन फिर भी मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी है। मैं अपने आप को कभी भी पूरी तरह संतुष्ट महसूस नहीं करता।"संतने राजा की बात ध्यान से सुनी और फिर बोले, "हे राजन, आप बाहर की दुनिया में विजय प्राप्त करने में सफल रहे हैं, लेकिन क्या आपने कभी अपने भीतर की दुनिया पर ध्यान दिया है? क्या आपने कभी स्वयं पर विजय प्राप्त करने की कोशिश की है ? " राजा इस सवाल से चौंक गया। उसने सोचा, "स्वयं पर विजयप्राप्त करना ? यह तो कभी मैंने सोचा ही नहीं था। लेकिन इसका मतलब क्याहो सकता है ? "संत ने राजा की उलझन को समझते हुए कहा, "राजन, बाहरी विजयसे अधिक महत्वपूर्ण है आंतरिक विजय। जीवन में हजारों लड़ाइयाँ जीतने से बेहतर है कि हम स्वयं पर विजय प्राप्त करें।"राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "संत, कृपया मुझे समझाएँ कि इसका क्या अर्थ है।"संत ने कहा, "राजन, बाहरकी लड़ाइयाँ जीतने के लिए शारीरिक शक्ति, सैन्य कौशल और रणनीति कीआवश्यकता होती है। लेकिन स्वयं पर विजय पाने
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Thursday, September 19, 2024
स्वयं पर विजय
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