एक बार की बात है, एक युवक जो अपने सपनों की पुरस्कार जीना चाहता था। उसका सपना था कि वह एक मशहूर लेखक बने और उनकी किताबें पूरी दुनिया में प्रकाशित हों। वह अपनी रातों को जगता था, लेखन के लिए ज्ञान संग्रह करता था और लाखों शब्दों को अपने कंप्यूटर पर लिख रहा था।
परंतु, उसकी एक समस्या थी - नींद। जब वह रात को लिखने बैठता, तो उसकी आंखें भारी होने लगती थीं और उसे सोने की भूख महसूस होती थी। कई बार वह नींद के आगे हार जाता और लिखना छोड़ देता। यह स्थिति उसे बहुत चिंतित करती थी क्योंकि उसे अपना सपना पूरा करने के लिए अपने आप को मजबूत और मेहनती बनाना था।
एक दिन, उसने एक अनोखा साधु देखा, जो वृक्ष के नीचे बैठकर मन्त्र जप रहा था। युवक ने उसके पास जाकर अपनी समस्या साझा की।
साधु ने ध्यान से कहा, "अगर तुम अपने सपनों को पूरा करना चाहते हो, तो नींद से इतना प्यार न करो कि मंज़िल भी ख्वाब बन जाए
यह सुनकर युवक को बहुत ही समझ आया। उसने साधु से पूछा, "पर कैसे, महात्मा जी? मुझे तो नींद बहुत प्यारी लगती है और बिना नींद के कैसे लिख सकता हूँ?"
साधु ने मुस्कान सहित उत्तर दिया, "बेटा, नींद जरूरी है, लेकिन उसे अपने सपनों के रास्ते में एक बाधा न बनने दो। जब नींद आए, तब अपने दिमाग को समझाओ कि अब आपकी मंज़िल आपके सामने है और इसके लिए आपको अग्रसर होना होगा। नींद के स्वागत के बजाय, विचारों को नश्ते करो, और उन्हें सतत प्रगति के रास्ते पर ले जाने का प्रयास करो।"
युवक ने इस बात को समझा और साधु के उपायों को अपनाने का निश्चय किया। उसने अपनी रातों की व्यवस्था करके अब नींद की संख्या को कम कर दिया और जागृतता के समय में लिखने का समय बना लिया।
शुरू में वह थोड़े थकावट महसूस करता था, लेकिन धैर्य से उसने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहा।
सालों के बाद, उस युवक ने अपने सपने को पूरा किया। उसकी किताबें चारों ओर धूम मचा रही थीं और उसे लेखक के रूप में शोहरत मिली। उसने खुद को सिद्ध किया था कि नींद सिर्फ एक ज़रूरत है, और वह उसे अपने पक्ष में रखता था।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें नींद से ज्यादा प्यार नहीं करना चाहिए, बल्कि हमें उसे अपने सपनों को पूरा करने का एक माध्यम मानना चाहिए। अगर हम अपने लक्ष्य की ओर प्रतिबद्ध रहें और नींद के बावजूद मेहनत और समर्पण के साथ काम करें, तो हम जीवन में मंज़िल तक पहुँच सकते हैं।