बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव में रघु नाम का एक युवक रहता था। रघु गरीब था, लेकिन वह मेहनती और ईमानदार था। वह खेतों में काम करता और दिन-रात मेहनत कर के अपने परिवार का पेट भरता था। हालांकि, रघु के मन में एक कमी थी – वह जल्दी अमीर बनने के सपने देखा करता था। उसे मेहनत से ज्यादा, पैसा कमाने का आसान रास्ता चाहिए था।
एक दिन रघु की मुलाकात एक धनी व्यापारी से हुई। उस व्यापारी का नाम मोहन था, और वह अपनी धूर्तता और बेईमानी के लिए प्रसिद्ध था। मोहन ने गाँव में अपना व्यापार फैला रखा था, लेकिन उसकी दौलत का बड़ा हिस्सा धोखाधड़ी और अन्यायपूर्ण तरीकों से कमाया हुआ था। उसने कई निर्दोष लोगों की जमीन छीन ली थी और गरीब किसानों को धोखा देकर उनसे उनका पैसा हड़प लिया था।
रघु मोहन की संपत्ति देखकर उसकी ओर आकर्षित हुआ। उसने सोचा, "अगर मोहन इतना अमीर हो सकता है, तो मैं क्यों नहीं?" वह जल्दी से अमीर बनने की चाहत में मोहन के पास गया और उससे कहा, "मुझे भी अमीर बनना है, मुझे सिखाओ कि तुमने कैसे इतनी दौलत कमाई।"
मोहन ने रघु को देखा और मुस्कराते हुए कहा, "धन कमाने का आसान तरीका है – बस अपने मन में दया, ईमानदारी, और न्याय को भूल जाओ। अगर तुम यह कर सकते हो, तो तुम्हें अमीर बनने से कोई नहीं रोक सकता।" रघु ने मोहन की बात मान ली और उसके व्यापार में शामिल हो गया।
धीरे-धीरे, रघु ने मोहन से अन्यायपूर्ण तरीके से धन कमाने के गुर सीख लिए। वह गरीब किसानों से धोखाधड़ी करने लगा, उन्हें कम कीमत पर उनकी जमीनें बेचने के लिए मजबूर करता और फिर उस जमीन को ऊंचे दाम पर बेचता। उसने कर्ज देकर लोगों को फंसाया और फिर उनके कर्ज न चुका पाने पर उनकी संपत्ति हड़प ली। इस तरह, रघु जल्दी से अमीर बन गया। उसके पास धन, आलीशान घर और महंगे वस्त्र थे। गाँव के लोग उसकी धनी जीवनशैली को देखकर हैरान थे, लेकिन वे उसकी गलतियों से अनजान नहीं थे।
परंतु, रघु को यह समझ में नहीं आ रहा था कि यह अन्याय से कमाया हुआ धन उसे लंबे समय तक सुख नहीं दे पाएगा। उसने अपने अच्छे स्वभाव और ईमानदारी को खो दिया था, और उसके अंदर सिर्फ लालच और अहंकार बचा था।
कुछ वर्षों बाद, अचानक एक बड़ा संकट आया। गाँव में बाढ़ आ गई, और रघु की अधिकांश संपत्ति बह गई। उसकी जमीनें बर्बाद हो गईं, और जिन लोगों से उसने अन्यायपूर्ण तरीके से धन कमाया था, वे भी अब उसे छोड़ने लगे थे। धीरे-धीरे, उसका व्यापार ठप हो गया, और उसकी सारी दौलत बर्बाद हो गई। अब वह अकेला और निराश था। उसके पास न धन बचा, न सम्मान।
रघु ने सोचा कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। उसने मोहन से जाकर पूछा, "मैंने तुम्हारे बताए हुए सारे तरीके अपनाए, फिर भी मेरी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। यह क्यों हुआ?"
मोहन ने गंभीरता से कहा, "तुम्हें याद रखना चाहिए था कि अन्याय से कमाया हुआ धन कभी स्थायी नहीं होता। मैंने भी यही गलती की थी, और अब मैं भी बर्बाद हो चुका हूँ। अन्याय और धोखाधड़ी से कमाई गई दौलत एक न एक दिन नष्ट हो ही जाती है। धन से बड़ा न्याय है, और जब न्याय की बलि चढ़ती है, तो वह धन भी हमारे पास नहीं टिकता।"
रघु को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था। उसे समझ में आया कि उसने जल्द अमीर बनने की चाहत में अपनी ईमानदारी और न्यायप्रियता को खो दिया था, और उसी का परिणाम आज उसे भुगतना पड़ रहा था। उसने अपनी गलतियों का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया।
रघु ने अपने बचे हुए जीवन में उन लोगों से माफी मांगी जिनके साथ उसने अन्याय किया था। उसने जितना हो सका, उन लोगों की मदद की और अपनी गलती सुधारने की कोशिश की। उसने अब यह समझ लिया था कि सच्चा धन वही होता है जो ईमानदारी, मेहनत और न्याय के रास्ते से कमाया जाता है।
रघु की कहानी गाँव के लोगों के लिए एक सबक बन गई। गाँव के लोग अब यह बात समझ गए थे कि "अन्याय से कमाया हुआ धन निश्चित रूप से नष्ट हो जाएगा।" ईमानदारी और न्याय से कमाया गया धन ही व्यक्ति को सच्चा सुख और शांति दे सकता है, जबकि अन्यायपूर्ण तरीके से कमाया गया धन अंत में केवल विनाश ही लाता है।
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