बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में मोहन नाम का एक युवक रहता था। मोहन बुद्धिमान था, तेजस्वी था, और शारीरिक रूप से भी बलशाली था। उसके परिवार वाले और गाँव के लोग उसे बहुत प्यार करते थे और उम्मीद करते थे कि वह एक दिन कुछ बड़ा करेगा। परंतु, मोहन के सामने एक समस्या थी—उसे यह समझ में नहीं आता था कि उसे अपने जीवन में क्या करना चाहिए।
मोहन का मन कभी एक काम में लगता तो कभी दूसरे काम में। कभी वह सोचता कि उसे एक सफल व्यापारी बनना चाहिए, तो कभी वह किसी सैनिक की तरह राज्य की सेवा करने की कल्पना करता। कई बार वह खेती करने की योजना बनाता, लेकिन कुछ ही दिनों में उसे यह काम उबाऊ लगने लगता। इस तरह, मोहन का जीवन बिना किसी ठोस लक्ष्य के यूं ही बीतता जा रहा था
एक दिन गाँव में एक प्रसिद्ध संत का आगमन हुआ। संत अपनी शिक्षा और मार्गदर्शन के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। गाँव के लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए संत के पास जाते थे। मोहन के माता-पिता ने भी उसे संत से मिलने की सलाह दी, ताकि वह अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सके और सही मार्ग पर चल सके।
मोहन संत के पास गया और उनके चरणों में प्रणाम किया। उसने अपनी समस्या बताई, "गुरुदेव, मुझे समझ में नहीं आता कि मुझे अपने जीवन में क्या करना चाहिए। मैं एक दिन कुछ सोचता हूँ और दूसरे दिन कुछ और। मेरी कोई दिशा नहीं है, और मैं नहीं जानता कि अपने जीवन को कैसे सही मार्ग पर लाऊं।"
संत ने मुस्कराते हुए मोहन की बात सुनी और कहा, "बेटा, जीवन में एक स्पष्ट लक्ष्य का होना बहुत आवश्यक है। जो व्यक्ति अपना लक्ष्य तय नहीं कर सकता, वह कभी जीत भी नहीं सकता। बिना लक्ष्य के व्यक्ति की स्थिति उस नाविक के समान होती है, जो बिना दिशा के समुद्र में बहता रहता है। ऐसे व्यक्ति को कभी किनारा नहीं मिलता।"
मोहन ने ध्यान से संत की बात सुनी, परंतु उसे स्पष्टता नहीं मिली। उसने संत से विनम्रतापूर्वक पूछा, "गुरुदेव, लेकिन मैं कैसे जानूं कि मेरा लक्ष्य क्या है?
संत ने गहरी सांस ली और कहा, "जीवन में लक्ष्य तय करने के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि तुम्हें किस चीज में सबसे ज्यादा खुशी मिलती है। वह काम, जिसे करते समय तुम अपना सर्वश्रेष्ठ दे सको, वही तुम्हारा सच्चा लक्ष्य हो सकता है। इसके लिए आत्मचिंतन और धैर्य की आवश्यकता होती है। तुम अपने मन में झांको और उसे सुनो। एक बार जब तुम अपने जीवन का लक्ष्य समझ जाओगे, तो उसे पाने के लिए मेहनत और लगन से काम करो
संत की यह बातें सुनकर मोहन ने गहरी सोच में डूब गया। उसने सोचा कि अब तक उसने अपने जीवन में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है, इसी वजह से वह सफलता से दूर है। उसने संत से विदा ली और अपने जीवन के लक्ष्य को ढूंढने के लिए आत्मचिंतन करना शुरू कर दिया।
कुछ दिनों के आत्ममंथन के बाद, मोहन को यह एहसास हुआ कि उसे किस काम में सबसे ज्यादा आनंद आता है। उसे बचपन से ही खेती में रुचि थी। उसने देखा कि जब भी वह अपने पिता के साथ खेतों में काम करता था, तो उसे संतोष और आनंद की अनुभूति होती थी। अब उसे अपना लक्ष्य स्पष्ट दिखने लगा था—उसे एक सफल किसान बनना है, और आधुनिक तरीकों से खेती कर के गाँव में समृद्धि लानी है।
यह निर्णय लेने के बाद, मोहन ने पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ काम करना शुरू कर दिया। उसने खेती के बारे में नई-नई तकनीकें सीखी, अन्य सफल किसानों से मार्गदर्शन लिया, और अपने खेतों में प्रयोग करने लगा। धीरे-धीरे, उसकी मेहनत रंग लाई, और उसकी फसलें अन्य किसानों से बेहतर होने लगीं।
मोहन की खेती से इतनी पैदावार होने लगी कि न केवल उसका परिवार खुशहाल हो गया, बल्कि उसने गाँव के अन्य किसानों की भी मदद की। उसने अपनी सफलता के बाद गाँव के युवाओं को भी खेती के महत्व और उसमें सफलता पाने के तरीके सिखाए। अब मोहन गाँव का सबसे सफल और सम्मानित व्यक्ति बन गया था।
एक दिन संत फिर से गाँव आए। मोहन उनके पास गया और धन्यवाद देते हुए कहा, "गुरुदेव, आपकी शिक्षाओं ने मेरा जीवन बदल दिया। आपने सही कहा था—जो व्यक्ति अपना लक्ष्य तय नहीं कर सकता, वह जीत भी नहीं सकता। आज, मुझे अपने जीवन का लक्ष्य मिला है, और उसी के कारण मैं सफल हो पाया हूँ।"
संत ने मुस्कराते हुए मोहन को आशीर्वाद दिया और कहा, "बेटा, तुमने सही मार्ग चुना और मेहनत से उसे प्राप्त किया। यही जीवन की सच्ची विजय है।
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