Monday, February 3, 2025

अगर आप उड़ नहीं सकते तो दौड़िए, अगर दौड़ नहीं सकते तो चलिए और अगर चल भी नहीं सकते तो रेंगिए, जो कुछ भी कीजिए लेकिन आपको सिर्फ आगे ही बढ़ना है

यह कहानी मोहन की है, जो एक छोटे से गाँव में रहता था। मोहन का सपना था कि वह एक दिन एक बड़ा धावक बने और राष्ट्रीय स्तर पर दौड़ में हिस्सा ले। उसका सपना बड़ा था, लेकिन उसकी परिस्थितियाँ बेहद कठिन। उसके पिता किसान थे और घर में आर्थिक तंगी थी। मोहन के पास दौड़ने के लिए न तो सही जूते थे और न ही प्रशिक्षण का कोई साधन।

सपनों की शुरुआत

मोहन हर सुबह सूरज उगने से पहले उठता और खेतों के बीच कच्ची सड़कों पर दौड़ने निकल जाता। उसके पैर अक्सर पत्थरों और काँटों से घायल हो जाते, लेकिन उसने हार मानना कभी नहीं सीखा। वह खुद से कहता, "अगर मैं उड़ नहीं सकता, तो दौड़ूंगा। अगर दौड़ नहीं सकता, तो चलूंगा। लेकिन रुकूंगा नहीं।"

पहली बाधा

एक दिन मोहन के स्कूल में एक दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। मोहन ने हिस्सा लिया और पूरे गाँव के सामने दौड़ा। उसके पास न तो जूते थे और न ही सही कपड़े, लेकिन उसकी लगन और मेहनत ने उसे दौड़ का विजेता बना दिया। सभी ने उसकी प्रशंसा की, लेकिन कुछ लोगों ने कहा, "यह तो केवल गाँव की प्रतियोगिता है। बड़े शहरों में ऐसे लड़कों का कोई भविष्य नहीं होता।"

मोहन ने यह सुना और खुद से वादा किया, "मैं यह साबित करूंगा कि मेरी मेहनत मुझे हर जगह ले जा सकती है।"

संघर्ष और चोट

मोहन ने शहर की एक बड़ी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का फैसला किया। लेकिन तैयारी के दौरान एक दिन वह गिर गया और उसके पैर में गहरी चोट लग गई। डॉक्टर ने कहा, "तुम्हें कुछ हफ्तों तक आराम करना होगा। दौड़ने का ख्याल भी मत रखना।"

यह खबर मोहन के लिए दिल तोड़ने वाली थी। लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह बिस्तर पर लेटे-लेटे ही व्यायाम करता, अपने पैर को धीरे-धीरे हिलाता और खुद को मानसिक रूप से मजबूत रखता। उसने खुद से कहा, "अगर मैं दौड़ नहीं सकता, तो रेंगूंगा। लेकिन रुकूंगा नहीं।"

वापसी

कुछ हफ्तों बाद, जब उसका पैर ठीक हुआ, तो उसने फिर से अभ्यास शुरू किया। इस बार वह पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा। उसने गाँव की सीमाओं को पार करते हुए शहर के प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला लिया। शुरुआत में लोग उसका मजाक उड़ाते, क्योंकि उसके पास अच्छे कपड़े और जूते नहीं थे। लेकिन मोहन ने इन बातों को नजरअंदाज किया और सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया।

सफलता की ओर

कई महीनों की कड़ी मेहनत और छोटे-मोटे मुकाबले जीतने के बाद मोहन ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई किया। यह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन था। प्रतियोगिता के दिन जब वह दौड़ने के लिए ट्रैक पर खड़ा हुआ, तो उसकी आँखों में आत्मविश्वास और मेहनत की चमक थी।

दौड़ शुरू हुई, और मोहन ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। उसने अपने पिछले संघर्षों को याद किया—काँटों से घायल पैर, गिरने के बाद की चोट, और लोगों की ताने। इन सबने उसे और मजबूत बना दिया था। अंत में, मोहन ने दौड़ जीत ली।

प्रेरणा

मोहन ने अपनी जीत को अपने गाँव और उन सभी लोगों को समर्पित किया, जो परिस्थितियों से हार मान लेते हैं। उसने कहा, "अगर मैं उड़ नहीं सकता था, तो मैंने दौड़ना चुना। अगर दौड़ नहीं सका, तो मैंने चलना चुना। और अगर चलने की ताकत भी नहीं थी, तो मैंने रेंगना चुना। लेकिन मैंने कभी रुकने का नाम नहीं लिया। यही मेरे जीवन का मंत्र है।"

सीख

मोहन की कहानी हमें सिखाती है कि जिंदगी में परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन हों, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। अगर हम आगे बढ़ने का इरादा कर लें, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।

निष्कर्ष

"अगर आप उड़ नहीं सकते तो दौड़िए, अगर दौड़ नहीं सकते तो चलिए और अगर चल भी नहीं सकते तो रेंगिए, जो कुछ भी कीजिए लेकिन आपको सिर्फ आगे ही बढ़ना है।" यही सोच हमें हमारे सपनों तक पहुँचने में मदद करती है। मोहन ने यह साबित कर दिया कि जो लोग अपने इरादों में अडिग होते हैं, वे किसी भी परिस्थिति में जीत हासिल कर सकते हैं।

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