एक छोटे से गांव में निशा नाम की एक लड़की रहती थी। निशा बहुत होशियार और समझदार थी, लेकिन उसमें एक कमी थी—वह अपनी बात दूसरों के सामने रखने से डरती थी। जब भी उसे किसी विषय पर अपनी राय देनी होती, वह चुप रह जाती। उसे हमेशा लगता था कि लोग उसकी बात का मजाक उड़ाएंगे या उसे नकार देंगे।
गांव के स्कूल में पढ़ाई के दौरान निशा का यही डर उसके प्रदर्शन को प्रभावित करता था। वह जानती थी कि वह क्लास के कई बच्चों से ज्यादा प्रतिभाशाली है, लेकिन जब भी कोई प्रतियोगिता होती या सवाल-जवाब का समय आता, वह हमेशा पीछे हट जाती। उसकी सहेलियां और शिक्षक अक्सर उसे बोलने के लिए प्रोत्साहित करते, लेकिन वह अपनी झिझक को तोड़ नहीं पाती थी।
एक मौका
एक दिन, स्कूल में एक बड़ी वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। यह प्रतियोगिता जिला स्तर पर होनी थी, और विजेता को राज्य स्तर की प्रतियोगिता में जाने का मौका मिलता। निशा के शिक्षक को पता था कि निशा के पास बेहतरीन तर्क और विचार हैं, लेकिन उसकी सबसे बड़ी चुनौती थी खुद को दूसरों के सामने व्यक्त करना।
शिक्षक ने निशा से कहा, "अगर तुमने अपनी बात दुनिया के सामने नहीं रखी, तो तुम्हारी प्रतिभा का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। लोग तुम्हारे विचारों को तभी जानेंगे जब तुम उन्हें साझा करोगी।"
निशा ने शिक्षक की बात पर विचार किया। उसने सोचा, "अगर मैं अपनी बात रखने की कोशिश नहीं करूंगी, तो मुझे कभी नहीं पता चलेगा कि मैं क्या कर सकती हूं।" उसने प्रतियोगिता में भाग लेने का फैसला किया।
तैयारी का सफर
निशा ने दिन-रात मेहनत करनी शुरू की। उसने अपने विषय पर गहराई से शोध किया और अपनी बातें लिखनी शुरू कीं। उसके शिक्षक और माता-पिता ने उसे प्रोत्साहित किया और उसकी हर संभव मदद की। लेकिन जैसे-जैसे प्रतियोगिता का दिन नज़दीक आता गया, निशा का डर फिर से बढ़ने लगा।
एक रात, उसकी माँ ने उससे कहा, "निशा, डर केवल तुम्हारे मन का भ्रम है। जब तुम अपनी बात दिल से रखोगी, तो लोग तुम्हारी सच्चाई को समझेंगे। डर को अपने सपने पर हावी मत होने दो।"
प्रतियोगिता का दिन
आखिरकार, प्रतियोगिता का दिन आ गया। निशा का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। जैसे ही उसका नाम पुकारा गया, वह मंच पर गई। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन उसने खुद को संभाला और बोलना शुरू किया।
शुरुआत में उसकी आवाज धीमी थी, लेकिन धीरे-धीरे उसने आत्मविश्वास जुटाया। उसने अपने तर्क इतने प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किए कि पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। लोगों ने उसकी सोच और विचारों की जमकर सराहना की।
सफलता की शुरुआत
निशा ने न केवल उस प्रतियोगिता को जीता, बल्कि उसने राज्य स्तर की प्रतियोगिता में भी भाग लिया और वहां भी अपना परचम लहराया। उसकी इस सफलता ने न केवल उसे आत्मविश्वास दिया, बल्कि गांव के और भी बच्चों को प्रेरित किया कि वे अपनी बात कहने में झिझक महसूस न करें।
निशा की सीख
निशा की कहानी हमें यह सिखाती है कि अपनी बात सामने रखना बेहद ज़रूरी है। अगर हम अपनी सोच और विचारों को दबाते रहेंगे, तो हमारी प्रतिभा कभी सामने नहीं आ पाएगी। किसी भी नई शुरुआत में डर लगना स्वाभाविक है, लेकिन उस डर को जीतने का सबसे अच्छा तरीका है उसे सामना करना।
"अपनी बात ज़रूर रखें, क्योंकि आपकी आवाज़ में दुनिया को बदलने की ताकत है।"
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