Saturday, March 8, 2025

सपनों को पाने की चाहत, मेहनत को अपना साथी बना लेती है

सौरभ एक छोटे से गाँव का रहने वाला था। उसका सपना था कि वह एक दिन बड़ा इंजीनियरबने और अपने माता-पिता को गर्व महसूस कराए। लेकिन हालात उसके अनुकूल नहीं थे।उसके पिता एक किसान थे और घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी।

बचपन से ही सौरभ ने देखा था कि उसके पिता खेतों में मेहनत करके परिवार का पेट भरते थे।लेकिन वह जानता था कि अगर उसे अपनी ज़िंदगी बदलनी हैतो उसे भी मेहनत को अपनासाथी बनाना होगा। वह पढ़ाई में बहुत होशियार थालेकिन महंगे स्कूल में पढ़ने के लिए पैसेनहीं थे। इसलिए वह गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था और वहाँ भी अपनी कड़ी मेहनत सेहमेशा अव्वल आता।

संघर्ष की शुरुआत

सौरभ का सपना था कि वह आईआईटी में दाखिला ले और एक बड़ा इंजीनियर बने। लेकिनआईआईटी की तैयारी के लिए महंगे कोचिंग संस्थानों में पढ़ना उसके लिए संभव नहीं था।उसने खुद ही किताबें इकट्ठी कीं और दिन-रात मेहनत करने लगा। वह स्कूल के बाद खेतों मेंअपने पिता की मदद करता और रात में लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करता।

 

उसके दोस्त उसे चिढ़ाते और कहते, "तू इतने छोटे गाँव से हैतेरे बस की बात नहीं आईआईटीमें जाना!" लेकिन सौरभ ने कभी हार नहीं मानी। उसे पता था कि सपने देखने से कुछ नहीं होताउन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।

पहली जीत

सौरभ ने अपनी मेहनत जारी रखी और बिना किसी कोचिंग के आईआईटी की प्रवेश परीक्षा मेंबैठा। जब परिणाम आयातो पूरे गाँव को गर्व हुआ – सौरभ ने आईआईटी में प्रवेश पा लियाथायह उसकी जिंदगी की पहली बड़ी जीत थी।

लेकिन मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थीं। उसके पास कॉलेज की फीस भरने के लिए पैसे नहींथे। उसने स्कॉलरशिप के लिए आवेदन कियालेकिन उसमें भी कई अड़चनें आईं। उसने हिम्मतनहीं हारी और अपने गाँव के कुछ शिक्षकों और समाजसेवियों से मदद मांगी। उन्होंने उसकीकाबिलियत को देखते हुए उसकी मदद की और उसे स्कॉलरशिप मिल गई।

नई दुनियानई चुनौतियाँ

आईआईटी में दाखिला मिलने के बाद भी चुनौतियाँ खत्म नहीं हुईं। शहर की तेज़ जिंदगीअंग्रेज़ी में पढ़ाई और आधुनिक माहौल – यह सब सौरभ के लिए नया था। पहले कुछ महीनोंतक वह खुद को पिछड़ा महसूस करतालेकिन फिर उसने तय किया कि उसे अपने डर सेभागना नहीं हैबल्कि डटकर सामना करना है।

उसने मेहनत को फिर से अपना साथी बना लिया। दिन-रात पढ़ाई कीअंग्रेज़ी सुधारने के लिएदोस्तों से बातचीत करने लगा और अपनी कमज़ोरियों को अपनी ताकत में बदलने की कोशिशकरने लगा। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई और वह अपनी क्लास के सबसे होशियार छात्रोंमें गिना जाने लगा।

सपनों की उड़ान

कॉलेज के अंतिम वर्ष में उसे एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी का ऑफर मिला। यहवही सपना था जिसके लिए उसने इतनी मेहनत की थी। जब वह पहली बार अपने माता-पिताको यह खुशखबरी देने गाँव पहुँचातो उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे।

सौरभ ने गाँव के बच्चों के लिए एक फ्री कोचिंग सेंटर भी खोलाताकि कोई और बच्चा सिर्फपैसों की कमी के कारण अपने सपनों से समझौता  करे।

निष्कर्ष

सौरभ की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हमारे सपने बड़े हैंतो हमें अपनी मेहनत कोअपना साथी बनाना होगा। रास्ते में कितनी भी मुश्किलें आएंअगर हम सच्चे दिल से मेहनतकरते हैंतो कोई भी ताकत हमें सफल होने से नहीं रोक सकती।

सपनों को पाने की चाहत जब सच्ची होती हैतो मेहनत उसे पूरा करने का सबसे अच्छा साथीबन जाती है!

 

 

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