Tuesday, March 4, 2025

जो रास्ते से नहीं डरे, वही मंजिल तक पहुँचे

सुमित एक छोटे से गाँव में रहने वाला लड़का था, जिसकी आँखों में बड़े सपने थे। वह एक पर्वतारोही बनना चाहता था और दुनिया की सबसे ऊँची चोटी, माउंट एवरेस्ट, पर तिरंगा फहराने का सपना देखता था। लेकिन उसके परिवार और गाँव के लोग इस सपने को असंभव मानते थे।


उसके पिता एक साधारण किसान थे और चाहते थे कि सुमित पढ़-लिखकर कोई अच्छी नौकरी करे। लेकिन सुमित के दिल में बस एक ही जुनून था – पर्वतारोहण। जब भी वह पास के पहाड़ों को देखता, तो उसकी आँखों में चमक आ जाती।


सपने की ओर पहला कदम


सुमित जानता था कि एवरेस्ट फतह करना आसान नहीं है। इसके लिए कड़ी मेहनत, धैर्य और अटूट साहस की जरूरत थी। उसने अपने गाँव के पास के पहाड़ों पर चढ़ना शुरू किया। बिना किसी गाइड के, बिना किसी आधुनिक उपकरण के, बस अपनी हिम्मत के सहारे वह नई ऊँचाइयाँ छूने की कोशिश करता।


लेकिन गाँव के लोग उसका मज़ाक उड़ाते थे। वे कहते, "गाँव का लड़का पहाड़ चढ़ेगा? यह कोई खेल नहीं, जान भी जा सकती है!" लेकिन सुमित को उनकी बातों से फर्क नहीं पड़ता।


उसने अपने छोटे-छोटे सफरों से सीखा कि असली ताकत शरीर में नहीं, बल्कि मन में होती है।


पहली परीक्षा – कठिन प्रशिक्षण


सुमित ने अपने सपने को पूरा करने के लिए एक पेशेवर पर्वतारोहण प्रशिक्षण संस्थान में दाखिला लेने का फैसला किया। लेकिन समस्या यह थी कि उसके पास इतने पैसे नहीं थे।


उसने हार नहीं मानी और गाँव में छोटे-मोटे काम करने लगा। वह खेतों में मजदूरी करता, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता और जो भी काम मिलता, उसे करता। कई महीनों की कड़ी मेहनत के बाद, उसने अपनी फीस जमा कर ली और प्रशिक्षण के लिए शहर चला गया।


संस्थान में आकर उसे महसूस हुआ कि असली परीक्षा तो अब शुरू हुई थी। वहाँ के प्रशिक्षक बहुत सख्त थे और छोटी सी गलती भी जानलेवा साबित हो सकती थी। कई बार वह गिरा, कई बार चोट लगी, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।


एवरेस्ट अभियान की शुरुआत


सालों की मेहनत और कठिन प्रशिक्षण के बाद, सुमित को आखिरकार एवरेस्ट अभियान के लिए चुना गया। यह उसके जीवन का सबसे बड़ा मौका था।


वह अन्य पर्वतारोहियों के साथ नेपाल पहुँचा और एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू हुई। पहले कुछ दिन ठीक-ठाक गुजरे, लेकिन जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ी, मुश्किलें भी बढ़ने लगीं। तेज़ बर्फीली हवाएँ, ऑक्सीजन की कमी, और कड़ाके की ठंड – यह सब सुमित के धैर्य की परीक्षा ले रहे थे।


कुछ पर्वतारोहियों ने बीच में ही हार मान ली। एक ने कहा, "यह नामुमकिन है, मैं अपनी जान जोखिम में नहीं डाल सकता!" और वापस लौट गया। लेकिन सुमित जानता था – जो रास्ते से डर गए, वे मंजिल तक नहीं पहुँच सकते।


सबसे बड़ा इम्तिहान


जब वह चोटी के करीब पहुँचा, तो अचानक बर्फीला तूफान आ गया। टीम के कई सदस्य बुरी तरह घबरा गए। कुछ लोगों ने वापस लौटने का फैसला किया।


सुमित भी दुविधा में था। क्या वह भी लौट जाए? क्या यह सफर यहीं खत्म हो जाएगा?


लेकिन तभी उसे अपने पिता की कही बात याद आई, "बेटा, अगर तू अपने रास्ते से डर गया, तो कभी मंजिल तक नहीं पहुँचेगा!"


उसने साहस जुटाया और आगे बढ़ने का फैसला किया। तेज़ हवाओं और जमा देने वाली ठंड में भी वह चलता रहा। उसकी ऊर्जा खत्म हो रही थी, लेकिन उसका हौसला अटूट था।


मंजिल की जीत


आखिरकार, तमाम कठिनाइयों को पार करते हुए, सुमित एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचा। वहाँ खड़े होकर उसने नीचे देखा – वह बादलों से भी ऊपर था!


उसने अपने देश का तिरंगा वहाँ फहराया और खुशी के आँसू उसकी आँखों से छलक पड़े। उसने अपने संघर्ष के हर उस पल को याद किया जब लोगों ने उसे कमजोर कहा था, जब उसे पैसों की तंगी से जूझना पड़ा था, जब वह गिरा था, जब उसे चोटें लगी थीं।


लेकिन उसने यह भी याद किया कि उसने कभी हार नहीं मानी। उसने रास्ते की मुश्किलों से डरने के बजाय उनसे लड़ने का फैसला किया, और इसीलिए वह अपनी मंजिल तक पहुँचा।


निष्कर्ष


सुमित की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में सफलता उन्हीं को मिलती है, जो रास्ते की कठिनाइयों से नहीं डरते। हर मंजिल तक पहुँचने के लिए रास्तों की मुश्किलों का सामना करना ही पड़ता है।

अगर आप अपने रास्ते से डर गए, तो आप कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाएंगे। लेकिन अगर आप डटे रहे, तो एक दिन दुनिया आपकी जीत को सलाम करेगी!

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