गांव राजपुर की संकरी गलियों में एक छोटा सा घर था, जिसमें अमन नाम का लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता बढ़ई थे और दिन-रात मेहनत करके घर चलाते थे। अमन पढ़ाई में बहुत होशियार था, लेकिन उसके पास अच्छे स्कूल में पढ़ने के लिए पैसे नहीं थे। फिर भी, उसकी आंखों में एक बड़ा सपना था—एक दिन बड़ा इंजीनियर बनने का।
सपना देखने की हिम्मत
अमन रोज़ स्कूल जाता, पुराने फटे किताबों से पढ़ता और जब बिजली नहीं होती, तो लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करता। उसके दोस्त जब नए कपड़े पहनकर स्कूल आते, तब उसे अपनी गरीबी का एहसास होता, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।
एक दिन स्कूल में एक वैज्ञानिक आए और उन्होंने बच्चों को बताया, "अगर तुम बड़े सपने देख सकते हो, तो उन्हें पूरा करने की ताकत भी तुम्हारे अंदर ही होती है। बस मेहनत करने से मत घबराना!" अमन के दिल में यह बात गहरे उतर गई। उसने तय कर लिया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह अपने सपने को जरूर पूरा करेगा।
मेहनत की राह पर चलना आसान नहीं
अमन के घर की हालत खराब थी। उसके पिता की कमाई इतनी नहीं थी कि वह उसे ट्यूशन पढ़ा सकें, लेकिन अमन ने हार नहीं मानी। वह स्कूल से आने के बाद खेतों में मजदूरी करता, लकड़ियां काटता, और रात को पढ़ाई करता।
गांव के लोग उसका मजाक उड़ाते, "अरे, बढ़ई का बेटा इंजीनियर बनेगा? यह तो मजाक है!" लेकिन अमन के हौसले बुलंद थे। उसने नकारात्मक बातों को नजरअंदाज किया और पढ़ाई में और मेहनत करने लगा।
पहली सफलता
दसवीं की परीक्षा में अमन ने पूरे जिले में पहला स्थान प्राप्त किया। यह उसकी मेहनत का पहला बड़ा इनाम था। उसे सरकारी छात्रवृत्ति मिली और अब वह शहर के एक अच्छे कॉलेज में पढ़ सकता था। लेकिन संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ था।
कॉलेज में अमन को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। शहर के बच्चे अंग्रेजी में बातें करते थे, अच्छे कपड़े पहनते थे, और महंगे किताबों से पढ़ते थे। अमन को शुरुआत में बहुत कठिनाई हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह लाइब्रेरी में ज्यादा समय बिताने लगा, पुराने नोट्स से पढ़ने लगा और रात-रात भर मेहनत करने लगा।
धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। परीक्षा में उसने शानदार प्रदर्शन किया और कॉलेज के टॉप स्टूडेंट्स में शामिल हो गया।
सपना पूरा होने की ओर
कॉलेज के आखिरी साल में अमन को एक बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने का मौका मिला। लेकिन यहां भी चुनौती कम नहीं थी। इंटरव्यू अंग्रेजी में था, और अमन की अंग्रेजी इतनी अच्छी नहीं थी।
लेकिन उसने पहले ही तय कर लिया था कि वह मेहनत से हर चुनौती को पार करेगा। उसने रात-रात भर मेहनत की, अंग्रेजी सुधारने के लिए अखबार पढ़ा, और खुद से प्रैक्टिस करता रहा।
इंटरव्यू के दिन, अमन ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखी। कंपनी के अधिकारी उसकी मेहनत और संघर्ष की कहानी से प्रभावित हुए।
और फिर... अमन का सिलेक्शन हो गया!
यह पल उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था। वह जो सपना बचपन में अपनी टूटी-फूटी किताबों के साथ देखा करता था, वह आज सच हो गया था।
संघर्ष से सफलता तक
आज अमन एक सफल इंजीनियर है। उसने न सिर्फ अपने परिवार की गरीबी दूर की, बल्कि गांव के बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी भी बनवाई, ताकि कोई भी बच्चा केवल पैसों की वजह से अपने सपनों से दूर न हो।
वह जब भी गांव आता, तो बच्चों को यही सीख देता—
"सपने बड़े देखो, मेहनत उससे भी बड़ी करो! सफलता तुम्हारे कदम जरूर चूमेगी!"
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