नेहा जब छोटी थी, तब उसने अपनी बस्ती में कई बार लोगों को इलाज के अभाव में दम तोड़तेदेखा था। तब से उसने तय कर लिया था कि वह डॉक्टर बनेगी और अपने गाँव के लोगों की सेवा करेगी।
पर हर सपना आसान नहीं होता।
उसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उसे प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सकें। सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए, वह हर दिन अपने सपने को सहेजती रही।
पहली चुनौती
10वीं की परीक्षा में नेहा ने अपने जिले में टॉप किया।
लेकिन जब उसने अपने माता-पिता से कहा कि वह डॉक्टर बनना चाहती है, तो माँ-पिता दोनोंचुप हो गए।
माँ बोली, "बेटा, पढ़ाई तो अच्छी कर ली, अब घर की जिम्मेदारी निभा। मेडिकल की पढ़ाई केलिए लाखों रुपये चाहिए। हम कहाँ से लाएंगे?"
नेहा ने मुस्कुरा कर कहा,
"माँ, मुझे सिर्फ आपके आशीर्वाद की ज़रूरत है। पैसे का रास्ता मैं ढूँढ लूँगी।"
संघर्ष की राह
नेहा ने 12वीं के बाद मेडिकल प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी शुरू की।
पैसों की कमी के कारण वह किसी कोचिंग संस्थान में दाखिला नहीं ले सकी।
उसने यूट्यूब पर वीडियो देख-देख कर पढ़ाई की, पुराने प्रश्नपत्र हल किए और अपनी छोटी सी लाइब्रेरी बनाई।
सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई करना, दिन में दुकान पर पिता की मदद करना और रात में फिर से किताबों में डूब जाना — यही उसकी दिनचर्या थी।
गाँव के लोग कहते, "लड़की होकर डॉक्टर बनने के सपने देख रही है! ये सब बड़े घरों के बच्चोंके लिए है।"
लेकिन नेहा के इरादे बुलंद थे।
वह जानती थी कि "अगर इरादे बुलंद हों, तो मुश्किलों की दीवार भी रास्ता बन जाती है।"
असफलता का सामन
पहले प्रयास में नेहा का चयन नहीं हुआ।
पर उसने हार नहीं मानी।
दूसरे प्रयास के लिए उसने दिन-रात मेहनत की।
अपने पुराने नोट्स फिर से पढ़े, कमजोर विषयों पर ध्यान दिया, खुद को मानसिक रूप से तैयार किया।
इस दौरान कई बार ऐसा हुआ जब घर की आर्थिक स्थिति और समाज के ताने उसे तोड़ने लगे।
पर वह हर रात अपने कमरे में दीवार पर लिखी यह पंक्ति पढ़ती —
"हार मानने से पहले एक बार और कोशिश कर।"
सपनों की उड़ान
आखिरकार, दूसरे प्रयास में नेहा ने NEET परीक्षा में शानदार रैंक हासिल की।
सरकारी मेडिकल कॉलेज में उसका दाखिला हुआ।
पूरा गाँव, जो कभी उसके सपनों का मज़ाक उड़ाता था, आज तालियाँ बजा रहा था।
नेहा की मेहनत रंग लाई।
उसने MBBS की पढ़ाई पूरी की और अपने गाँव में एक फ्री हेल्थ क्लिनिक खोला, जहाँ वहरोज़ गरीबों का इलाज करती थी।
कहानी से सीख
नेहा की कहानी हमें यह सिखाती है कि रास्ते में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर आपकेइरादे मजबूत हैं, तो वे दीवारें रास्ता बन जाती हैं।
समाज क्या कहेगा, हालात कैसे हैं, पैसों की कमी है — ये सब तभी तक रुकावट हैं, जब तकहम खुद हार मान लें।
अगर हौसला बना रहे और मेहनत सच्चे दिल से की जाए, तो कोई सपना असंभव नहीं।
कहानी का सारांश
"मुश्किलें रास्ता रोकने नहीं आतीं, बल्कि यह परखने आती हैं कि आपके इरादे कितने मजबूतहैं।
जो अपने सपनों पर विश्वास करता है, वह हर दीवार को रास्ता बना सकता है।"
अगर चाहें, तो मैं इस कहानी का एक छोटा प्रेरक मैसेज भी बना दूँ, जिसे आप सोशल मीडियापर शेयर कर सकें।
बोलिए, बना दूँ?
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