बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से राज्य में वीर प्रताप नाम का एक योद्धा रहता था। प्रताप अपनी बहादुरी, साहस, और निडरता के लिए प्रसिद्ध था। उसने कई युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और राज्य की रक्षा की थी। उसके मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं था, क्योंकि वह मानता था कि "भय से बचने का एकमात्र उपाय उसका सामना करना है।"
प्रताप का जीवन बहुत ही सरल और अनुशासनप्रिय था, लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे उसकी निडरता को चुनौती मिली। राज्य के पड़ोसी राजा ने अचानक हमला करने की योजना बनाई। वह राजा चालाक और शक्तिशाली था, और उसके सैनिकों की संख्या भी प्रताप के राज्य से कहीं अधिक थी। जब यह समाचार राज्य के लोगों तक पहुंचा, तो हर कोई भयभीत हो गया।
प्रताप के पास भी यह समाचार पहुंचा, और उसे यह एहसास हुआ कि इस बार शत्रु बहुत ताकतवर है। राज्य के मंत्री और अधिकारी भी चिंता में डूबे हुए थे। वे प्रताप के पास गए और उसे सलाह दी कि "इस बार शत्रु बहुत बड़ा है, और हमें उनके खिलाफ लड़ने की बजाय उनके साथ संधि करनी चाहिए।"
प्रताप ने गंभीरता से उनकी बात सुनी, लेकिन उसके मन में शांति नहीं थी। वह जानता था कि संधि करने का मतलब शत्रु के सामने आत्मसमर्पण करना होगा, और ऐसा करना उसकी निडरता और उस राज्य के गौरव के खिलाफ था, जिसकी रक्षा करने का उसने प्रण लिया था।
प्रताप ने अकेले में जाकर गहराई से विचार किया। उसने सोचा, "यह भय केवल शत्रु की संख्या और ताकत का नहीं है, यह मेरे अंदर के भय का परिणाम है। अगर मैं इस भय को अभी समाप्त नहीं करता, तो यह हमेशा मुझे पीछे धकेलेगा।"
तभी उसे अपने गुरु की कही हुई बात याद आई, "जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो।" प्रताप ने निर्णय लिया कि वह इस भय का सामना करेगा, चाहे शत्रु कितना ही बड़ा और ताकतवर क्यों न हो।
अगली सुबह, प्रताप ने सभी मंत्रियों और अधिकारियों को बुलाया और घोषणा की, "हम शत्रु से नहीं डरेंगे। यदि हमने अभी उनके खिलाफ साहस के साथ कदम नहीं उठाया, तो हमेशा के लिए हमें डर के साये में जीना पड़ेगा। हमें अपने भय का सामना करना होगा और युद्ध में विजय प्राप्त करनी होगी।"
प्रताप ने अपने सैनिकों को एकजुट किया और उन्हें उत्साहित किया, "यह युद्ध सिर्फ शत्रु से नहीं, बल्कि हमारे अंदर के भय से भी है। हमें निडर होकर आगे बढ़ना है। यदि हम अभी डरे तो शत्रु को कभी नहीं हरा पाएंगे। याद रखो, डर को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है उसका सामना करना और उसे नष्ट कर देना।"
सैनिकों में नया जोश भर गया। वे प्रताप की बातों से प्रेरित हुए और युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हो गए। प्रताप ने युद्ध की रणनीति बनाई, और अपने छोटे से दल के साथ साहसिक कदम उठाए। शत्रु की सेना बड़ी थी, लेकिन प्रताप और उसके सैनिकों का आत्मविश्वास अडिग था।
युद्ध शुरू हुआ, और प्रताप ने अपनी कुशलता और वीरता का परिचय देते हुए शत्रु के सैनिकों पर आक्रमण किया। वह बिना किसी भय के युद्धभूमि में डटा रहा। उसकी साहसिक रणनीति और निडरता ने शत्रु की सेना को हिला कर रख दिया। धीरे-धीरे, शत्रु सेना कमजोर पड़ने लगी और अंततः पीछे हटने पर मजबूर हो गई।
प्रताप और उसकी सेना ने वह युद्ध जीत लिया, जो शुरुआत में असंभव लग रहा था। राज्य के लोग खुशी से झूम उठे, और प्रताप की वीरता की प्रशंसा हर तरफ होने लगी। राज्य में फिर से शांति स्थापित हो गई, और प्रताप की निडरता ने यह साबित कर दिया कि भय का सामना करने से ही उसे हराया जा सकता है।
युद्ध के बाद प्रताप ने अपनी सेना और प्रजा के सामने खड़े होकर कहा, "हमने शत्रु को हराया, लेकिन असली जीत हमारे भीतर के भय पर हुई है। जब हम डरते हैं, तो हमें कमजोर लगता है, परंतु अगर हम साहस के साथ उसका सामना करें, तो वह हमें कभी नहीं हरा सकता। जैसे ही भय निकट आए, उसका सामना करो, आक्रमण करके उसका नाश कर दो। यही जीवन का सबसे बड़ा सबक है।"
प्रताप की यह बात सुनकर सभी ने सहमति में सिर हिलाया और उसकी प्रशंसा की। उस दिन के बाद से राज्य के हर व्यक्ति ने यह सीख ली कि जीवन में चाहे कोई भी चुनौती क्यों न आए, उसे भय के साथ नहीं, बल्कि निडरता और साहस के साथ सामना करना चाहिए। भय का सामना करने से ही जीत सुनिश्चित होती है।
इस प्रकार, प्रताप की निडरता ने न केवल राज्य की रक्षा की, बल्कि सबको यह सिखाया कि "जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो" ही सच्चे वीर की पहचान है।
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