Wednesday, July 16, 2025

हौसलों की ताकत

मुश्किलें तब ही बड़ी लगती हैंजब हौसले छोटे हो जाते हैं।"

यह बात सबको सुनने में आसान लगती हैलेकिन जब ज़िंदगी की ठोकरें पड़ती हैंतब इसेसमझना सबसे ज़रूरी होता है।

यह कहानी है एक छोटे से गाँव के लड़के विवेक की।


विवेक का जन्म एक बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता गाँव के किसान थे और माँघर में सिलाई करके परिवार चलाने में मदद करती थीं। घर की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी।बारिश  हो तो खेत सूखे रह जाते और घर में दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता।


लेकिन विवेक के मन में एक अलग आग थी। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। बचपन से हीउसके अंदर एक सपना था — कलेक्टर बनने का। वह सोचता था कि एक दिन ऐसा आएगा जबउसके गाँव के लोग उसे देखकर कहेंगे, "देखोये वही लड़का है जिसने गरीबी से लड़कर अपनीमंज़िल पाई।"


पर रास्ता आसान नहीं था। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बादजब उसने सिविल सर्विसेज कीतैयारी करने की बात घर में कहीतो माँ-पिता दोनों ने कहा, "बेटाहमारी हालत देखपढ़ाईछोड़कर कोई नौकरी कर ले। ज़िम्मेदारियाँ बहुत हैं।"


गाँव के लोग भी कहते, "अरेये बड़े-बड़े इम्तिहान गाँव के बच्चों के बस की बात नहीं। हमारे बच्चोंकी किस्मत में तो खेत या दुकान ही है।"


विवेक के लिए यह समय बेहद कठिन था। घर की आर्थिक हालतरिश्तेदारों की बातें और समाजका ताना — सब कुछ उसके सपनों के रास्ते में काँटे की तरह बिछा हुआ था। लेकिन उसने मन मेंठान लिया था — "मुश्किलें तब ही बड़ी लगती हैंजब हौसले छोटे हो जाते हैं।"


विवेक ने एक छोटे से शहर में जाकर सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की। पैसे नहीं थेइसलिएवह दिन में ट्यूशन पढ़ाता और रात में खुद पढ़ाई करता। कई बार खाने के लिए पैसे नहीं होतेकमरे का किराया देने के लिए उधार लेना पड़ता। ठंडी रातों में भूखे पेट किताबों के पन्ने पलटनापंखा  होने पर गर्मी में पसीने से भीगते हुए पढ़ाई करना — ये उसकी रोज़मर्रा की कहानी थी।


तैयारी के दौरान कई बार उसके मन में भी विचार आया कि क्या वह सही कर रहा हैक्या सच मेंइतनी मुश्किलों के बावजूद वह सफल हो पाएगा?

कई बार परीक्षा में असफलता मिली। आसपास के लोग कहने लगे, "अब छोड़ देतेरे बस कीबात नहीं।"


लेकिन हर बार जब वह हार मानने के करीब पहुँचतातो उसे अपनी माँ के शब्द याद आते —

"बेटाअगर तू हार मान गयातो मुश्किलें सच में बड़ी हो जाएँगी। लेकिन अगर तू डटकर खड़ारहातो मुश्किलें खुद छोटी लगने लगेंगी।"


विवेक ने फिर से खुद को संभाला। उसने अपनी असफलताओं से सीखाजहाँ गलती हुईवहाँदोबारा मेहनत की। उसने अपने सपनों के सामने अपनी परेशानियों को झुका दिया।


फिर वह दिन आयाजिसका उसे बरसों से इंतज़ार था। परिणाम घोषित हुआ और विवेक का नामसूची में सबसे ऊपर था। वह IAS अधिकारी बन चुका था।


पूरा गाँव उस दिन सड़कों पर था। ढोल-नगाड़े बज रहे थेमिठाइयाँ बाँटी जा रही थीं। जिन लोगोंने कभी कहा था कि यह उसके बस की बात नहींवही आज गर्व से कह रहे थे — "यह हमारे गाँवका बेटा है।"


विवेक ने गाँव के स्कूल में जाकर बच्चों से कहा —

"मैं भी तुम जैसा ही था — एक गरीब किसान का बेटा। अगर मैं यह कर सकता हूँतो तुम भी करसकते हो। याद रखोमुश्किलें कभी बड़ी नहीं होतीं। हम ही उन्हें बड़ा बना देते हैंजब अपनेहौसले छोटे कर लेते हैं। अगर तुम्हारा हौसला बड़ा हैतो दुनिया की कोई ताकत तुम्हें रोक नहींसकती।"


उसने अपने पहले वेतन से गाँव के स्कूल के लिए किताबें खरीदीं और एक लाइब्रेरी बनवाईताकिगाँव के बच्चों के सपने कभी हालातों की वजह से रुकें नहीं।


विवेक की कहानी यही सिखाती है कि कठिनाइयाँ जीवन का हिस्सा हैंलेकिन जब आपके अंदरहौसला होतो पहाड़ जैसी मुश्किलें भी रेत की तरह बह जाती हैं।

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