Monday, June 30, 2025

कामयाबी रातों से लड़कर मिलती है"

मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव राजपुरा में रहता था मनोजजो गरीब किसान का बेटा था। उसकेघर में रोज़ की दो वक्त की रोटी का भी ठिकाना नहीं था। लेकिन मनोज के दिल में एक बड़ी आगथीवह आईआईटी में पढ़ना चाहता था और एक सफल इंजीनियर बनकर अपने परिवार कीतक़दीर बदलना चाहता था।


सपना और संघर्ष की शुरुआत


स्कूल में मनोज पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहता था। उसके अध्यापक तक कहते थे, "ये लड़का एकदिन जरूर कुछ बड़ा करेगा।लेकिन गाँव में कोचिंग सेंटर नहीं था किताबें थीं और  इंटरनेट।जब उसने अपने एक दोस्त को कहा, “मैं आईआईटी की तैयारी करूंगा,” तो सब हँस पड़े

अरे भाईआईआईटी वालों के पास AC कमरे होते हैंलैपटॉप होते हैं। तू तो ढिबरी में पढ़ता है!”


मनोज बस मुस्कुराया और बोला:

कामयाबी पाने के लिए बातों से नहींरातों से लड़ना पड़ता है।


अंधेरे में उम्मीद की लौ


दिन में वह खेतों में पिता के साथ काम करताऔर रात में ढिबरी की रौशनी में पढ़ता। वह दिन16 घंटे की मेहनत करताघंटे खेत, 8 घंटे पढ़ाईऔर बाकी समय घर के कामों में हाथबँटाना। उसके पास महंगे कोचिंग मटेरियल नहीं थेलेकिन गाँव के पुराने स्टूडेंट्स से पुराने नोट्सइकट्ठा कर लिए थे।

 

रातें लंबी थींऔर नींद दुश्मन बन चुकी थी। मच्छरों की आवाज़गर्मी से बहता पसीना औरढिबरी की टिमटिमाती लौयही उसकी दुनिया थी। लेकिन हर रात जब उसका शरीर थककर हारमानने को होतावह खुद से कहता:

अभी नहीं रुकनाक्योंकि सफलता की कीमत रातों से लड़कर चुकानी पड़ती है।

 

पहली ठोकरहार का स्वाद

 

मनोज ने जी-जान से तैयारी कीलेकिन पहले साल में JEE Mains से सिर्फ दो नंबर से चूकगया। आँखों से आँसू बहने लगे। गाँव वालों ने फिर ताने दिए

अब क्या करेगावापस खेत संभाल!”

 

पर माँ ने उसका सिर सहलाया और कहा:

बेटातू थका नहीं हैतू टूटा नहीं है। तूने जो मेहनत की हैउसका फल जरूर मिलेगा।


असली लड़ाईदूसरा प्रयास

इस बार मनोज ने किताबें नहींअपनी गलती पढ़ी। जहाँ पिछली बार वह कमजोर थावहाँ उसनेदुगुना ध्यान दिया। गर्मी हो या सर्दीवह पढ़ाई से डिगा नहीं। लाइट  हो तो दिया जलायापंखा हो तो गीले कपड़े से पसीना पोछालेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी।

 

जब दोस्त रात 10 बजे सो जातेमनोज 2 बजे तक पढ़ता। वह जान चुका था

"सपने देखने से कुछ नहीं होताजब तक उन्हें पूरा करने के लिए नींद की कुर्बानी  दी जाए।"


अंततः परीक्षा और परिणाम


मनोज ने दूसरी बार परीक्षा दी। जब रिज़ल्ट आयातो वह चुपचाप मंदिर गयामाँ की तस्वीर केसामने बैठा और आँखों से अश्रुधार बह निकली।

AIR Rank – 457

IIT Bombay – Mechanical Engineering में चयन हो गया।

 

पूरे गाँव में ढोल बजने लगे। जिसने भी मज़ाक उड़ाया थावही लोग अब अपने बच्चों को मनोजकी कहानी सुनाने लगे।


आज का मनोज


आज मनोज एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर इंजीनियर है। अपने गाँव में एक Digital Learning Center खोला हैजहाँ ढिबरी की जगह LED जलती हैऔर बच्चे इंटरनेट से पढ़तेहैं।

 

वह जब भी छात्रों से मिलता हैसिर्फ एक बात दोहराता है:

 

> “कामयाबी चुपचाप चलने वालों को मिलती है। जो रातों से लड़ते हैंवही मंज़िल तक पहुँचतेहैं।


सीख / संदेश

 

"कामयाबी सिर्फ बातें करने से नहीं मिलती। उसे पाने के लिए नींदआरामऔर हर बहाने सेलड़ना पड़ता है। जब हम थक जाते हैंऔर फिर भी चलना नहीं छोड़तेवहीं से कामयाबी कीअसली शुरुआत होती है।"

Sunday, June 29, 2025

जो गिरकर उठता है, वही असली विजेता कहलाता है

राजस्थान के एक छोटे से कस्बे बागपुर में रहने वाला रवि एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। उसकेपिता एक प्राइवेट कंपनी में चौकीदार थे और माँ गृहिणी। रवि बचपन से ही पढ़ाई में तेज था औरउसका सपना था – नीट (NEET) पास करके डॉक्टर बनना।

हर कोई रवि से उम्मीद करता था। शिक्षक कहते, "तू बागपुर का पहला डॉक्टर बनेगा!" माँ कहती, "तेरे लिए ही तो सब सह रहे हैं बेटा।"

पहली ठोकर – उम्मीद का टूटना

रवि ने 12वीं के बाद NEET की परीक्षा दी। उसे पूरा विश्वास था कि वह पास हो जाएगा।लेकिन जब परिणाम आयातो वह कटऑफ से 14 नंबर से पीछे रह गया।

वह पूरी तरह टूट गया। कमरे में खुद को बंद कर लिया। फोन बंदकिताबें बंदसपने भी बंद। एकदिन पिता ने दरवाज़ा खटखटाया और कहा:

रविहारने से कोई छोटा नहीं होता बेटालेकिन हार मान लेने वाला कभी बड़ा नहीं बन पाता। जोगिरकर उठता हैवही असली विजेता कहलाता है।

पिता की यह बात सीधे दिल में उतर गई। उसने आंसू पोंछे और फिर किताबें उठाईं।

दूसरी कोशिश – और गिरावट


रवि ने खुद को फिर से तैयार किया। उसने एक साल घर पर रहकर दिन-रात मेहनत की। सोशलमीडिया से दूरी बनाईटीवी बंददोस्त कमबस एक ही लक्ष्य – NEET 2023


परीक्षा दीरिज़ल्ट आया… लेकिन इस बार भी महज 3 नंबर से रह गया।


अब उसके रिश्तेदार तक कहने लगे –

शायद यह इसके बस का नहीं है। अच्छा होता बी.एससी में एडमिशन ले लेता।


पर माँ ने रवि का माथा सहलाते हुए कहा –

बेटागिरने से नहीं डरते। तू फिर से उठफिर से लड़। तीसरी बार की जीतसबसे बड़ी होगी।

तीसरी कोशिश – नई सोचनया रवैया

 

अब रवि ने सिर्फ पढ़ाई नहींसोच को भी बदला। इस बार वह केवल रट्टा नहीं लगाताबल्कि हरटॉपिक को समझकर पढ़ता। सुबह चार बजे उठतायोग करतामन को शांत रखताऔर खुद कोरोज़ मोटिवेट करता:

 

> “मैं गिरा हूंलेकिन टूटा नहीं हूं।

मैं फिर से उठूंगाऔर इस बार रुकूंगा नहीं।


दिन में 10 घंटे पढ़ाई और हफ़्ते में एक बार खुद से बात – “मैं कर सकता हूँ।

अंततः… वह दिन


NEET 2024 का रिज़ल्ट आया। रवि ने कंप्यूटर स्क्रीन पर रोल नंबर डाला और आँखें बंद करलीं। जब स्क्रीन खुलीतो उसकी माँ की चीख निकल गई


रवितू सेलेक्ट हो गया बेटासरकारी मेडिकल कॉलेज मिला है!”

 

रवि की आँखों से आँसू झरने लगेलेकिन अब ये आँसू हार के नहींजीत की पहचान थे।

गाँव लौटकर संदेश


आज रवि जयपुर के एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में MBBS की पढ़ाई कर रहा है। छुट्टियों मेंजब वह अपने गाँव आता हैतो वह स्कूल जाकर बच्चों से यही कहता है:


मैं दो बार गिरालेकिन तीसरी बार उठ खड़ा हुआ।

अगर मैं हार मान लेतातो आज यहाँ नहीं होता।

इसलिए याद रखना

जो गिरकर उठता हैवही असली विजेता कहलाता है।


सीख / संदेश


जीवन में गिरना कोई असफलता नहीं है।

सच्ची हार तब होती हैजब हम उठने से इनकार कर देते हैं।

हर असफलता एक मौका है खुद को और मजबूत करने का।

जो इंसान ठोकर खाकर भी मुस्कुराता हैऔर फिर से चल पड़ता है

वही असली विजेता कहलाता है।

भरोसे की उड़ान