एक छोटा-सा पहाड़ी गाँव था—नवगांव। यहाँ का एक साधारण लड़का था सागर। उसका सपनाथा आईएएस अफसर बनना। लेकिन उसके हालात उससे बिलकुल भी मेल नहीं खाते थे। पिताएक छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे और माँ खेतों में मजदूरी करती थीं। घर में चार छोटेभाई-बहन और एक ही कमरा, जहाँ सपनों को पनपने की जगह भी नहीं मिलती थी।
सागर पढ़ाई में तेज़ था, लेकिन गरीबी ने उसे कई बार रोकने की कोशिश की। कई बार उसे भूखेपेट पढ़ना पड़ा, पुराने फटे कपड़ों में स्कूल जाना पड़ा। गाँव के लोग भी कहते,
“इतनी बड़ी बातें मत सोचो सागर, तुम्हारे जैसे लड़के मजदूरी ही करते हैं।”
लेकिन सागर को अपने आप पर भरोसा था। उसने खुद से वादा किया था—
“रुकना नहीं है, चाहे जितना भी थक जाऊं, चलना है... मंज़िल जरूर मिलेगी।”
संघर्ष की शुरुआत
सागर ने बारहवीं अच्छे अंकों से पास की, लेकिन अब असली चुनौती थी सिविल सेवा की तैयारी।उसने शहर जाकर पढ़ने का निर्णय लिया, लेकिन पैसे नहीं थे। तब उसके पिता ने अपनी दुकान कीछोटी सी जमीन गिरवी रख दी और कहा,
“बेटा, जा... लेकिन हार के मत आना। हमारे सपनों की उम्मीद तू ही है।”
दिल्ली पहुँचना उसके लिए किसी और दुनिया में कदम रखने जैसा था। वहाँ की भीड़, किताबों कीकीमतें, किराया, सब कुछ बोझ की तरह था। लेकिन सागर ने हिम्मत नहीं हारी।
दिन में लाइब्रेरी जाता, रात में सब्ज़ी मंडी में मजदूरी करता।
थकावट और उम्मीद की लड़ाई
कई बार शरीर जवाब दे जाता, आँखें नींद से बोझिल हो जातीं। एक रात वह फुटपाथ पर किताबलिए सो गया। पास से एक बुज़ुर्ग रिक्शाचालक गुज़रा, उसने उसे उठाया और कहा,
“बेटा, सो जाओ… लेकिन सपने मत छोड़ना।”
यह बात सागर के दिल में उतर गई। उसने तय कर लिया— अब कोई थकावट, कोई भूख, उसेरोक नहीं सकती।
पहला प्रयास – असफलता
तीन साल की मेहनत के बाद वह UPSC की परीक्षा में बैठा। उम्मीदें बहुत थीं, लेकिन वह प्रीपरीक्षा में ही रह गया। वह टूट गया। लगा जैसे सब खत्म हो गया हो। लेकिन उसी समय उसेअपनी माँ की बात याद आई,
“बेटा, रुक मत जाना… मंज़िल सिर्फ चलने वालों को मिलती है।”
सागर ने फिर से किताबें उठाईं। इस बार और ज्यादा जुनून के साथ। वह जान चुका था कि एककोशिश काफी नहीं होती।
दूसरा प्रयास – सफलता की ओर
अब उसके अंदर सिर्फ एक ही चीज़ थी—संकल्प। वह दिन-रात पढ़ता, गलतियों से सीखता औरखुद को बेहतर बनाता। अगले साल फिर परीक्षा दी और इस बार…
उसका नाम मेरिट लिस्ट में था!
उसके गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। वही लोग जो कभी उसे रोकते थे, अब उसकी मिसालें देनेलगे। उसके पिता की आँखों में आँसू थे—गर्व के आँसू।
अंत में संदेश:
सागर अब एक आईएएस अफसर है, लेकिन वह आज भी कहता है:
"अगर उस रात फुटपाथ पर मैं हार मान लेता, तो आज यहाँ तक कभी नहीं पहुँचता।
रुकना मत, चाहे थक जाओ, क्योंकि चलने वालों को ही मंज़िलें मिलती हैं।"
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर हौसला ज़िंदा है और कदम थमे नहींहैं, तो मंज़िल जरूर मिलती है। जिंदगी की राहों में थकावट आ सकती है, लेकिन रुक जाना हारहै।
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