मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव राजपुरा में रहता था मनोज, जो गरीब किसान का बेटा था। उसकेघर में रोज़ की दो वक्त की रोटी का भी ठिकाना नहीं था। लेकिन मनोज के दिल में एक बड़ी आगथी—वह आईआईटी में पढ़ना चाहता था और एक सफल इंजीनियर बनकर अपने परिवार कीतक़दीर बदलना चाहता था।
सपना और संघर्ष की शुरुआत
स्कूल में मनोज पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहता था। उसके अध्यापक तक कहते थे, "ये लड़का एकदिन जरूर कुछ बड़ा करेगा।" लेकिन गाँव में कोचिंग सेंटर नहीं था, न किताबें थीं और न इंटरनेट।जब उसने अपने एक दोस्त को कहा, “मैं आईआईटी की तैयारी करूंगा,” तो सब हँस पड़े—
“अरे भाई, आईआईटी वालों के पास AC कमरे होते हैं, लैपटॉप होते हैं। तू तो ढिबरी में पढ़ता है!”
मनोज बस मुस्कुराया और बोला:
“कामयाबी पाने के लिए बातों से नहीं, रातों से लड़ना पड़ता है।”
अंधेरे में उम्मीद की लौ
दिन में वह खेतों में पिता के साथ काम करता, और रात में ढिबरी की रौशनी में पढ़ता। वह दिन16 घंटे की मेहनत करता—6 घंटे खेत, 8 घंटे पढ़ाई, और बाकी समय घर के कामों में हाथबँटाना। उसके पास महंगे कोचिंग मटेरियल नहीं थे, लेकिन गाँव के पुराने स्टूडेंट्स से पुराने नोट्सइकट्ठा कर लिए थे।
रातें लंबी थीं, और नींद दुश्मन बन चुकी थी। मच्छरों की आवाज़, गर्मी से बहता पसीना औरढिबरी की टिमटिमाती लौ—यही उसकी दुनिया थी। लेकिन हर रात जब उसका शरीर थककर हारमानने को होता, वह खुद से कहता:
“अभी नहीं रुकना, क्योंकि सफलता की कीमत रातों से लड़कर चुकानी पड़ती है।”
पहली ठोकर—हार का स्वाद
मनोज ने जी-जान से तैयारी की, लेकिन पहले साल में JEE Mains से सिर्फ दो नंबर से चूकगया। आँखों से आँसू बहने लगे। गाँव वालों ने फिर ताने दिए—
“अब क्या करेगा? वापस खेत संभाल!”
पर माँ ने उसका सिर सहलाया और कहा:
“बेटा, तू थका नहीं है, तू टूटा नहीं है। तूने जो मेहनत की है, उसका फल जरूर मिलेगा।”
असली लड़ाई—दूसरा प्रयास
इस बार मनोज ने किताबें नहीं, अपनी गलती पढ़ी। जहाँ पिछली बार वह कमजोर था, वहाँ उसनेदुगुना ध्यान दिया। गर्मी हो या सर्दी, वह पढ़ाई से डिगा नहीं। लाइट न हो तो दिया जलाया, पंखान हो तो गीले कपड़े से पसीना पोछा, लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी।
जब दोस्त रात 10 बजे सो जाते, मनोज 2 बजे तक पढ़ता। वह जान चुका था—
"सपने देखने से कुछ नहीं होता, जब तक उन्हें पूरा करने के लिए नींद की कुर्बानी न दी जाए।"
अंततः परीक्षा और परिणाम
मनोज ने दूसरी बार परीक्षा दी। जब रिज़ल्ट आया, तो वह चुपचाप मंदिर गया, माँ की तस्वीर केसामने बैठा और आँखों से अश्रुधार बह निकली।
AIR Rank – 457
IIT Bombay – Mechanical Engineering में चयन हो गया।
पूरे गाँव में ढोल बजने लगे। जिसने भी मज़ाक उड़ाया था, वही लोग अब अपने बच्चों को मनोजकी कहानी सुनाने लगे।
आज का मनोज
आज मनोज एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर इंजीनियर है। अपने गाँव में एक Digital Learning Center खोला है, जहाँ ढिबरी की जगह LED जलती है, और बच्चे इंटरनेट से पढ़तेहैं।
वह जब भी छात्रों से मिलता है, सिर्फ एक बात दोहराता है:
> “कामयाबी चुपचाप चलने वालों को मिलती है। जो रातों से लड़ते हैं, वही मंज़िल तक पहुँचतेहैं।”
सीख / संदेश
"कामयाबी सिर्फ बातें करने से नहीं मिलती। उसे पाने के लिए नींद, आराम, और हर बहाने सेलड़ना पड़ता है। जब हम थक जाते हैं, और फिर भी चलना नहीं छोड़ते—वहीं से कामयाबी कीअसली शुरुआत होती है।"
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