राजस्थान के एक छोटे से गाँव में अर्जुन नाम का एक साधारण लड़का रहता था। उसकापरिवार बहुत गरीब था। पिता खेतों में मजदूरी करते थे और माँ घर-घर जाकर कामकरती थी। अर्जुन पढ़ाई में अच्छा था लेकिन हालात ऐसे थे कि कई बार उसे स्कूलछोड़ने का मन करता। गाँव के लोग भी ताने देते, "अरे अर्जुन! पढ़ाई से पेट नहीं भरता।तेरे बाप-दादा भी तो खेत में मजदूरी करते रहे। तू भी वही करेगा। सपने देखना छोड़ दे।"
लेकिन अर्जुन के अंदर एक आग थी। उसके गुरुजी हमेशा कहते थे — "अगर खुद परभरोसा है, तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं।" अर्जुन ने इस बात को अपने दिल में बैठालिया था।
स्कूल के बाद वह खेतों में अपने पिता के साथ काम करता, लेकिन रात होते ही वहलालटेन की हल्की रौशनी में किताबों में डूब जाता। उसके पास अच्छे कपड़े नहीं थे, किताबें पुरानी थीं, कभी-कभी तो पेट भी खाली रहता, लेकिन उसकी आँखों में अपनेसपनों की चमक थी।
एक दिन स्कूल में एक घोषणा हुई — जिले में एक प्रतियोगिता होने वाली थी, जिसमेंअव्वल आने वाले छात्र को शहर के बड़े स्कूल में फ्री में पढ़ने का मौका मिलेगा। अर्जुनके दोस्तों ने कहा, "अरे, ये बड़े शहर के बच्चों के लिए है। हमारे जैसे गाँव वालों के लिएनहीं।"
लेकिन अर्जुन ने ठान लिया था। उसने अपने गुरुजी से कहा, "मुझे इस प्रतियोगिता मेंभाग लेना है।" गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा, "रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन अगर खुदपर भरोसा है, तो रास्ते खुद-ब-खुद बनेंगे।"
अर्जुन ने दिन-रात पढ़ाई शुरू कर दी। खेत में काम करते समय भी वह मन ही मन सवालहल करता रहता। माँ के लिए लकड़ियाँ बीनने जाते समय रास्ते में वह पहाड़ों से कहता, "मैं हार नहीं मानूंगा।"
प्रतियोगिता का दिन आया। अर्जुन फटे पुराने कपड़े पहनकर शहर गया। सामने बड़े-बड़ेस्कूलों के बच्चे, महंगे कपड़े, चमकदार बैग और स्मार्टफोन के साथ खड़े थे। अर्जुन थोड़ीदेर के लिए घबरा गया। लेकिन तभी उसे अपने गुरुजी की बात याद आई — "खुद परभरोसा रख, बेटा। तेरा रास्ता तुझे मिल जाएगा।"
अर्जुन ने पूरे दिल से परीक्षा दी। जब परिणाम आया, तो पूरा गाँव हैरान रह गया। अर्जुनने प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त किया था।
अब उसके सामने एक नई दुनिया थी — शहर का बड़ा स्कूल, नए लोग, नई चुनौतियाँ।यहाँ भी लोग उसका मजाक उड़ाते। कोई कहता, "ये गाँव का लड़का हमारे साथ क्याकरेगा?" कोई कहता, "इसे तो अंग्रेजी भी नहीं आती।"
लेकिन अर्जुन ने हार नहीं मानी। हर दिन वह थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़ता। अंग्रेजी सीखने केलिए वह लाइब्रेरी में घंटों बैठा रहता। गणित के सवालों के लिए रात-रात भर जागता।उसे यह एहसास हो गया था कि अगर वह खुद पर भरोसा रखे, तो उसकी मेहनत बेकारनहीं जाएगी।
धीरे-धीरे हालात बदलने लगे। अर्जुन की मेहनत रंग लाने लगी। स्कूल में उसने टॉपकिया। पढ़ाई के साथ-साथ उसने स्पोर्ट्स और डिबेट प्रतियोगिताओं में भी भाग लेनाशुरू किया। हर जीत के साथ उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया।
फिर वह दिन आया जब उसे देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग परीक्षा में सफलता मिली।गाँव में ढोल नगाड़े बजने लगे। वही लोग, जो कभी कहते थे कि मजदूरी ही उसकीकिस्मत है, अब उसके घर बधाई देने आ रहे थे।
अर्जुन ने अपने माता-पिता के साथ गुरुजी के पास जाकर कहा, "गुरुजी, आपकी बातसच निकली। सच में, अगर खुद पर भरोसा है, तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं।"
गुरुजी ने मुस्कुरा कर कहा, "रास्ते कभी बनकर सामने नहीं आते, बेटा। भरोसे की रोशनीमें ही रास्ते दिखाई देते हैं। तूने उस रोशनी को जलाए रखा, इसलिए मंज़िल तकपहुँचा।"
अर्जुन ने गाँव के बच्चों के लिए एक फ्री कोचिंग सेंटर खोला, ताकि कोई और बच्चाहालात से हार न माने। वह बच्चों से हमेशा एक ही बात कहता
"मत देखो कि रास्ता कितना कठिन है, देखो कि तुम्हारे अंदर उसे पार करने की ताकतकितनी है।"
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