छोटे से शहर सीतापुर में रहने वाली एक लड़की थी—नेहा। नेहा एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी।उसके पिता सरकारी क्लर्क थे और माँ गृहिणी। बचपन से ही नेहा का सपना था पायलट बननेका। आसमान में उड़ते जहाज़ों को देखकर उसकी आँखें चमक उठती थीं। वह अक्सर अपनी माँ सेकहती—
“एक दिन मैं भी इन बादलों के ऊपर उड़ूंगी, माँ।”
माँ मुस्कुरा देतीं, लेकिन भीतर से उन्हें डर था कि ये सपना उनकी हैसियत से बहुत ऊपर है।
संघर्ष की शुरुआत
नेहा पढ़ाई में बहुत तेज़ थी। बारहवीं में उसने विज्ञान वर्ग में टॉप किया, लेकिन पायलट ट्रेनिंग केलिए लाखों रुपये की ज़रूरत थी। उसके पिता की सैलरी इतनी नहीं थी कि वह उसे फ्लाइंग स्कूलभेज सकें। कई रिश्तेदारों ने कहा,
“लड़की है, शिक्षक बन जाए तो अच्छा रहेगा। उड़ने के ख्वाब मत दिखाओ।”
पर नेहा का आत्मविश्वास अडिग था। उसने एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाना शुरू किया औरसाथ-साथ छात्रवृत्ति पाने की कोशिश करने लगी।
पहली कोशिश – असफलता
नेहा ने पायलट ट्रेनिंग के लिए कई जगह आवेदन दिए, लेकिन सब जगह पैसे या सिफारिश कीज़रूरत थी। एक दिन जब उसका अंतिम इंटरव्यू भी रिजेक्ट हो गया, तो वह टूट गई। घर लौटकरमाँ से लिपटकर रोने लगी—
“शायद मेरा सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा माँ।”
माँ ने उसका सिर सहलाते हुए कहा—
“बेटा, एक नाकामी का मतलब ये नहीं कि सब खत्म हो गया। याद रखो—जिंदगी की असलीउड़ान अभी बाकी है, जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।”
नेहा के भीतर फिर से ऊर्जा भर गई। उसने खुद से वादा किया— अब हार नहीं मानूंगी।
नई दिशा – नई शुरुआत
नेहा ने अब एयर फोर्स की परीक्षा की तैयारी शुरू की। दिन-रात मेहनत की, अपना पूरा समय औरमन लगा दिया। उसने एक बार फिर किताबों से दोस्ती कर ली और खुद को साबित करने के लिएकमर कस ली।
फाइनल मौका – और सफलता
इस बार किस्मत ने साथ दिया। नेहा का चयन भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) में होगया। ट्रेनिंग शुरू हुई तो शुरुआती दिनों में शारीरिक चुनौतियों और कठोर अनुशासन ने उसे थकादिया। लेकिन हर बार जब वह हारने लगती, माँ की वो बात याद आती—
“अभी तो उड़ान बाकी है...”
और वह फिर उठ खड़ी होती।
उड़ान का दिन
तीन साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद वह दिन आया जब नेहा पहली बार खुद विमान उड़ाने वालीथी। पूरी यूनिट तालियों से गूंज उठी जब एक सामान्य मध्यम वर्गीय घर की लड़की ने आसमानको छू लिया।
जब नेहा अपने वायुसेना की वर्दी में गाँव लौटी, तो पूरा इलाका उसके स्वागत में उमड़ पड़ा। वहीरिश्तेदार जो कभी उड़ने के सपने पर हँसते थे, अब अपनी बेटियों को नेहा जैसा बनने की सलाह देरहे थे।
अंतिम संदेश:
आज नेहा एक स्क्वाड्रन लीडर है। वह जब भी किसी छात्रा से मिलती है, एक ही बात कहती है:
“अगर तुम सपने देख सकती हो, तो उन्हें पूरा भी कर सकती हो।
रास्ते मुश्किल होंगे, लेकिन याद रखना—
जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।”
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि सपनों की उड़ान रुकावटों से नहीं, हिम्मत से तय होती है। अगर मनमें सच्चा इरादा हो और प्रयास ईमानदार हों, तो मंज़िल कितनी भी ऊँची क्यों न हो, पाई जासकती है।
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