छोटे से गांव धनपुर में रहने वाला अजय एक गरीब किसान का बेटा था। उसके पिता दिन-रातखेतों में मेहनत करते थे, लेकिन फिर भी परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। अजय पढ़ाई मेंबहुत अच्छा था, लेकिन उसके पास अच्छे स्कूल में पढ़ने या ट्यूशन लेने के पैसे नहीं थे।
गांव के लोग कहते, "किसान का बेटा किसान ही बनेगा, बड़े सपने मत देखो!" लेकिन अजय कीमां हमेशा उसे एक ही बात सिखाती, "संघर्ष जितना बड़ा होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी!"
संघर्ष की शुरुआत
अजय का सपना था कि वह एक IAS अधिकारी बने और अपने गांव की हालत बदले। लेकिनउसके पास किताबें खरीदने तक के पैसे नहीं थे। वह गांव के एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था, जहांसुविधाएं बहुत कम थीं।
रात को बिजली नहीं होती थी, तो वह मिट्टी के दीये की रोशनी में पढ़ाई करता। कभी-कभी उसेमजदूरी भी करनी पड़ती, ताकि घर की आर्थिक मदद कर सके। लेकिन उसने हार नहीं मानी।
पहली चुनौती
बारहवीं की परीक्षा के बाद अजय ने दिल्ली जाकर UPSC की तैयारी करने का फैसला किया।लेकिन समस्या थी—पढ़ाई और रहने के लिए पैसे कहां से आएंगे?
उसने खुद पर भरोसा रखा और मेहनत करने की ठानी। दिन में वह एक छोटी नौकरी करता और रातको पढ़ाई करता। वह लाइब्रेरी में घंटों बैठकर किताबें पढ़ता और सीनियर छात्रों से नोट्स मांगकरपढ़ाई करता।
संघर्ष और धैर्य
UPSC की परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक थी। अजय ने पूरी मेहनत से पढ़ाईकी, लेकिन पहले प्रयास में वह असफल हो गया।
लोगों ने ताने मारे, "देखा, गरीब का बेटा अफसर नहीं बन सकता!"
लेकिन अजय ने हार नहीं मानी। उसने अपनी गलतियों से सीखा और दुगुनी मेहनत से तैयारी करनेलगा।
संघर्ष का इनाम
तीसरे प्रयास में अजय ने UPSC की परीक्षा पास कर ली! जब रिजल्ट आया और उसका नामटॉपर्स की सूची में था, तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे।
गांव में जब वह बतौर IAS अधिकारी वापस लौटा, तो वही लोग जो उसे ताने मारते थे, अब गर्वसे उसका स्वागत कर रहे थे।
सफलता की कहानी
आज अजय एक सफल अधिकारी है और उसने अपने गांव में शिक्षा और रोजगार के कई नएअवसर बनाए हैं। जब लोग उससे उसकी सफलता का राज पूछते हैं, तो वह बस यही कहता—
"संघर्ष जितना बड़ा होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी!"
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