सपनों को सच करने से पहले, उन्हें देखने की हिम्मत करनी पड़ती है।"
यह पंक्ति सुनकर शायद बहुत से लोग मुस्कुरा देंगे, लेकिन जो इसका मतलब समझते हैं, उनके लिए यह ज़िंदगी बदल देने वाली बात है।
यह कहानी है बिहार के छोटे से गाँव "नवगांव" के एक लड़के, राघव की। राघव का परिवार बहुतसाधारण था। पिता गाँव के स्कूल में चपरासी थे और माँ घर पर सिलाई का काम करती थीं। घरमें सुविधाएँ न के बराबर थीं, लेकिन राघव के मन में हमेशा एक सपना पल रहा था — वोआसमान को छूना चाहता था।
जब राघव आसमान में उड़ते हवाई जहाज़ को देखता, तो उसके मन में एक अजीब सी बेचैनीहोती। वह अपने दोस्तों से कहता, "एक दिन मैं भी इन बादलों के ऊपर उड़ूँगा, पायलट बनूँगा।"
दोस्त हँसते, "अरे राघव! सपने मत देख। हमारे जैसे गाँव वालों के लिए ये सब नहीं है।"
लेकिन राघव के दिल में एक चिंगारी थी। वह जानता था कि सपनों को सच करने के लिए पहलेउन्हें देखने की हिम्मत चाहिए। उसे यह भी पता था कि उसके पास न पैसे थे, न साधन, और न हीकोई जान-पहचान। पर सपनों की कोई कीमत नहीं होती — देखने के लिए बस हौसला चाहिए।
स्कूल के बाद वह अपने पिता के साथ स्कूल की सफाई करता, माँ के साथ कपड़े सिलाने में हाथबँटाता, लेकिन किताबों से प्यार कभी कम नहीं हुआ। गाँव की लाइब्रेरी में जाकर वह हर उसकिताब को पढ़ता, जिसमें आसमान, विज्ञान और पायलट बनने की बात होती। अंग्रेज़ी कमजोरथी, लेकिन उसने खुद से सीखनी शुरू की।
समय बीतता गया। स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई। राघव ने अच्छे अंकों से परीक्षा पास की, लेकिनआगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। परिवार का खर्च भी चलाना था। पिता ने कहा, "बेटा, अबकोई छोटी-मोटी नौकरी कर ले। सपनों से पेट नहीं भरता।"
राघव की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने गाँव में बच्चों को ट्यूशन पढ़ानाशुरू किया और जो भी पैसे मिलते, वह उन्हें जमा करता। उसके दोस्त अब शहर जाकर काम करनेलगे थे, लेकिन राघव अपने सपने के पीछे लगा रहा।
एक दिन उसे पता चला कि सरकार पायलट की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप देती है। शर्त थी किप्रवेश परीक्षा में अच्छे अंक लाने होंगे।
राघव ने दिन-रात मेहनत शुरू कर दी। नींद, आराम, मनोरंजन — सब छोड़कर सिर्फ एक लक्ष्य परफोकस किया — अपने सपने को सच करना।
परीक्षा का दिन आया। राघव ने परीक्षा दी, लेकिन परिणाम आने तक उसके मन में कई बार डर, संशय और निराशा की लहरें उठीं। लेकिन वह खुद से यही कहता रहा — "अगर सपना देखा है, तोडर के आगे भाग नहीं सकता।"
परिणाम आया। राघव का चयन हो गया था।
अब असली संघर्ष शुरू हुआ। पायलट ट्रेनिंग आसान नहीं थी। शहर का माहौल, अंग्रेज़ी में पढ़ाई, महँगी किताबें और उसके जैसे साधारण परिवार से आए बच्चे के लिए हर दिन एक नई चुनौतीथी। कई बार उसे खुद पर शक होता, लेकिन फिर माँ के शब्द याद आते —
"जो सपना देखने की हिम्मत करता है, वही उसे सच करने की ताकत भी पाता है।"
राघव ने हर कठिनाई का सामना किया। उसने समय से पहले उड़ान के नियम सीखे, अतिरिक्तप्रैक्टिस की, हर गलती से सीखा। धीरे-धीरे वह बाकी छात्रों के साथ खड़ा हो गया।
कई सालों के संघर्ष के बाद, वह दिन आया जब राघव अपने पहले फ्लाइट की वर्दी में खड़ा था।उसके सीने पर "कमर्शियल पायलट" का बैज चमक रहा था।
जब वह पहली बार कॉकपिट में बैठा और आसमान की तरफ देखा, तो उसे अपना पुराना गाँव, अपने पिता की झुकी हुई कमर, माँ के सिले हुए कपड़े और दोस्तों की हँसी याद आई। उसने मनही मन कहा —
"देखो, मैंने सपना देखने की हिम्मत की थी, इसलिए आज मैं यहाँ हूँ।"
कुछ समय बाद राघव ने गाँव लौटकर एक सभा में बच्चों से कहा —
"बचपन में जब मैं कहता था कि पायलट बनूंगा, लोग हँसते थे। पर आज मैं वही हूँ। क्योंकि मैंनेसबसे पहले सपना देखने की हिम्मत की। याद रखो, अगर तुम्हारे अंदर हिम्मत है, तो हालात बदलसकते हैं, दुनिया झुक सकती है।
सपनों को सच करने से पहले, उन्हें देखने की हिम्मत करनी पड़ती है।"
राघव ने अपने गाँव में एक छोटी लाइब्रेरी खोली, ताकि हर बच्चा सपनों को पढ़ सके, समझ सकेऔर देखने की हिम्मत कर सके।
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