कॉलेज खत्म हुआ, लेकिन नौकरी नहीं मिली। कोविड के दौर में हालात और भी ख़राब हो गए।घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई, कर्ज़ बढ़ गया, लेकिन विशाल ने हिम्मत नहीं हारी।
उसने तय किया कि वह अपना सपना अब शुरू करेगा—एक डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म बनाना जोग्रामीण छात्रों को मुफ्त में टेक्नोलॉजी सिखा सके।
पर कहाँ से शुरू करे? ना पैसे, ना टीम, ना अनुभव।
इंटरनेट कैफ़े से बनी उम्मीद
विशाल ने एक पुराने इंटरनेट कैफ़े में काम पकड़ लिया। वहीं कंप्यूटर पर काम करते-करते, वहकोडिंग सीखता रहा, वीडियो बनाता रहा, और अपना प्लेटफॉर्म तैयार करता रहा।
रात को जब सब सो जाते, तो वह देर रात तक स्क्रीन पर झुका रहता। माँ फोन पर कहती,
“बेटा, इतनी मेहनत क्यों करता है? आराम कर ले।”
तो वह जवाब देता,
“माँ, अगर आज आराम कर लिया, तो कल कोई और मेरा सपना पूरा कर देगा।”
पहली सफलता की किरण
छोटे-छोटे वीडियो बनाकर वह उन्हें यूट्यूब और सोशल मीडिया पर डालने लगा। शुरुआत में व्यूजकम थे, लेकिन कंटेंट दमदार था। धीरे-धीरे छात्रों का ध्यान उसकी ओर गया।
कुछ शिक्षकों ने उसके वीडियो देखकर संपर्क किया और जुड़ने की इच्छा जताई। उसने एकछोटा-सा मोबाइल ऐप बनाया – “ग्राम लर्नर” – जो सस्ती इंटरनेट स्पीड में भी चलता था।
कुछ ही महीनों में ऐप के 10,000 से ज्यादा डाउनलोड हो गए।
अब पहचान मिलने लगी
एक दिन दिल्ली की एक एनजीओ ने उसके काम पर ध्यान दिया और उससे संपर्क किया। उन्होंनेउसे आर्थिक सहायता दी और प्लेटफॉर्म को और बड़ा करने में मदद की।
आज “ग्राम लर्नर” ऐप से 1 लाख से ज़्यादा ग्रामीण छात्र पढ़ रहे हैं। विशाल का सपना अबहक़ीक़त बन गया है।
गाँव में वापसी और गर्व
विशाल अब भी महीने में एक बार अपने गाँव आता है। उसी स्कूल में जाकर बच्चों से मिलता है, जहाँ से उसने शुरुआत की थी।
वह हमेशा एक बात कहता है:
> “सपनों से ज़्यादा ज़रूरी है अपने इरादों से प्यार करना।
हालात चाहे जैसे भी हो जाएँ, इरादे नहीं बदलने चाहिए।
क्योंकि असली मज़ा तो तब है,
जब हालात बदल जाएँ, लेकिन इरादे न बदलें।”
सीख / संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, कभी मुश्किल, कभीआसान। लेकिन जो इंसान अपने इरादों पर डटा रहता है, वही सच में सफल होता है।
बदलते हालात के सामने घुटने टेकना आसान है,
लेकिन उन्हें झुकाकर आगे बढ़ जाना ही असली जीत है।
इरादा कभी मत बदलो, चाहे दुनिया कितनी भी बदल जाए।
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