Tuesday, June 17, 2025

मेहनत की रौशनी

राजन एक छोटे शहर का सामान्य लड़का था। उसके पिता दर्जी का काम करते थे और मां एकगृहिणी थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद सामान्य थीलेकिन राजन के सपने असाधारण थे।वह एक दिन देश का नाम रोशन करना चाहता थाखेलों मेंपढ़ाई मेंऔर जीवन में।


लेकिन सपने जितने बड़े थेरास्ता उतना ही कठिन।


राजन का मन पढ़ाई और दौड़ने में खूब लगता था। हर सुबह वह पांच बजे उठकर दौड़ने जाता औरफिर स्कूल के बाद घंटों पढ़ाई करता। उसके पास महंगे जूते नहीं थेकिताबें पुरानी थीं और नोट्सदूसरे छात्रों से माँगकर बनाता था।


कई बार जब उसके दोस्त खेलने जातेराजन खुद से कहता

"जो आज जलता है मेहनत की आग मेंवही कल चमकता है सफलता की रोशनी में।"

और फिर एक बार और किताब खोल लेता।


शुरुआत की ठोकर


राजन ने दसवीं कक्षा में टॉप कियालेकिन ग्यारहवीं में साइंस लेने के बाद चीज़ें और मुश्किल होगईं। फॉर्मूले समझ नहीं आते थेऔर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग की ज़रूरतथीजो वह अफोर्ड नहीं कर सकता था।


कुछ समय तक वह बिल्कुल टूट गया। उसे लगने लगा कि बिना साधनों के मेहनत बेकार है। एकरात उसने अपने पापा को कहते सुना,

राजन बहुत मेहनत करता हैलेकिन बिना मदद के ये कैसे कर पाएगा?”


उसने चुपचाप सुनालेकिन अगले दिन सुबह फिर दौड़ पर गयानंगे पाँवठंडी सड़क परसिर्फएक वाक्य मन में दोहराते हुए

"मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।"


एक नई दिशा


राजन ने तय किया कि वह अपनी कमज़ोरी को अपनी ताकत बनाएगा। उसने यूट्यूब से फ्री लेक्चरदेखने शुरू किए। पुराने पेपर्स हल करने लगा। गाँव के एक रिटायर्ड मास्टर जी से जाकर पढ़नेलगा। दिन में सिर्फ दो बार खाना खाता ताकि ज़्यादा समय पढ़ाई को दे सके।


दो साल तक उसने जैसे खुद को तपाया। टीवी देखना छोड़ दियासोशल मीडिया कभी इस्तेमालनहीं किया। बस सुबह दौड़दिनभर पढ़ाईऔर रात को लक्ष्य की कल्पना।


पहली परीक्षापहली उम्मीद


राजन ने नीट की परीक्षा दी। एग्जाम सेंटर तक जाने के लिए उसे अपने पापा की साइकिल पर 30 किलोमीटर जाना पड़ा। लेकिन उसने शिकायत नहीं की। परीक्षा के बाद जब रिजल्ट आयाराजन का चयन हो गया था।


पूरा मोहल्ला तालियाँ बजा रहा था। माँ की आँखों में आँसू थेऔर पापा पहली बार अपने बेटे कोगले लगाकर रो पड़े।


राजन ने अपनी डायरी में लिखा:

आज मैं चमक रहा हूँक्योंकि मैंने जलना सीखा था। मेहनत की आग से निकला हूँऔर अब येरोशनी मेरी है।


एक और संघर्ष की शुरुआत


मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिलना कोई अंत नहीं थाबल्कि संघर्ष की एक नई शुरुआत थी।अब शहर बड़ा थालोग स्मार्ट थेऔर भाषा अंग्रेज़ी में होती थी। राजन को कई बार शर्मिंदगीझेलनी पड़ी क्योंकि वह उतनी अच्छी अंग्रेज़ी नहीं जानता था।


लेकिन उसने हार नहीं मानी। अपने क्लास के दोस्तों से मदद माँगीखुद से बोलने की प्रैक्टिस कीऔर हर दिन कुछ नया सीखा।


धीरे-धीरे वह क्लास के टॉपर्स में आने लगा। उसने अपने प्रोफेसर्स को भी चौंका दिया।


अंतिम मुकाम


पाँच साल की कड़ी मेहनत के बाद राजन डॉक्टर बन गया। लेकिन उसने वहीं रुकने की बजायगांव लौटने का फैसला किया। उसने एक छोटा क्लिनिक खोलाजहाँ गरीबों का मुफ्त इलाजकरता था।


राजन अब चमकता हुआ नाम थासमाज मेंगाँव मेंऔर अपने माता-पिता की आँखों में। लोगआज भी जब अपने बच्चों को मेहनत का महत्व समझाते हैंतो कहते हैं:

राजन जैसा बनो। उसने मेहनत से अपनी दुनिया बदली।


सीख

 

राजन की कहानी हमें यह सिखाती है कि हालात चाहे जैसे भी होंअगर इरादे मजबूत हों औरमेहनत सच्ची होतो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।


जो आज जलता है मेहनत की आग मेंवही कल चमकता है सफलता की रोशनी में।

सपनों की चमक तभी आती है जब इंसान खुद को तपाकर तैयार करेठीक जैसे सोना आग मेंतपकर कुंदन बनता है।

Friday, June 13, 2025

जागते हुए सपने

 छत्तीसगढ़ के एक छोटे से कस्बे भानुप्रतापपुर में रहने वाला रवि एक सामान्य परिवार का लड़का था। उसके पिता एक बढ़ई थे और मां घरों में काम करती थीं। रवि पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन परिस्थितियाँ उसकी राह को कठिन बना रही थीं। 

रवि का सपना थाएक दिन बड़ा अफसर बनकर अपने मां-बाप को आराम की जिंदगी देना। जब भी वो आंखें बंद करता, खुद को पुलिस की वर्दी में देखता। पर जैसे ही आंखें खुलतीं, टूटे चप्पल, किताबों की कमी और दो वक्त की रोटी की चिंता सामने खड़ी मिलती।


एक दिन स्कूल में शिक्षक ने पूछा, "तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?"

सब बच्चों ने जल्दी-जल्दी जवाब दिएडॉक्टर, इंजीनियर, टीचर...

रवि चुप था। जब गुरुजी ने उसे टोका, तो उसने धीरे से कहा, "मैं IPS बनना चाहता हूं।"

क्लास हँसने लगी। एक लड़का बोला, "तेरे जैसे गरीब लड़के के लिए सपना देखना ही गुनाह है!"


रवि की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उस दिन घर आकर वह बहुत देर तक सोचता रहा। फिर उसने एक पेन उठाया और अपने कमरे की दीवार पर लिखा:

"सपने वो नहीं जो नींद में आएं, सपने वो हैं जो नींद को तोड़ दें!"


अगले दिन से रवि की जिंदगी बदल गई। वह सुबह 4 बजे उठता, खेत के कोने में बैठकर टॉर्च की रोशनी में पढ़ता। स्कूल से लौटकर मां के काम में हाथ बंटाता और फिर रात को फिर से पढ़ाई करता। उसके दोस्त खेलते, त्योहार मनाते, लेकिन रवि के पास सिर्फ एक ही त्योहार थाउसका सपना।


धीरे-धीरे उसके शिक्षक भी उसके जुनून को समझने लगे और मदद करने लगे। किताबें जुटाईं, पुराने नोट्स दिए और मोटिवेशन दिया।

 

पर रास्ता आसान नहीं था। एक बार उसके पिता बीमार पड़ गए और घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया। मां बोली, "रवि, पढ़ाई बाद में कर लेना, पहले कुछ काम कर लो।"


रवि ने मां का हाथ थामा और कहा, "अम्मा, अगर मैं अभी रुक गया, तो हम हमेशा ऐसे ही जिएंगे। थोड़ी तकलीफ और सही, पर एक दिन मैं सब बदल दूंगा।"


उसने दिन में सब्जी बेचने का काम शुरू किया और रात में पढ़ाई करता रहा। जिस उम्र में बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं, रवि अपनी किताबों के पन्नों में भविष्य तलाशता रहा।


सालों की मेहनत के बाद वह दिन आया जब UPSC का रिजल्ट आया। गांव में किसी के पास इंटरनेट नहीं था, तो रवि साइकिल से 10 किलोमीटर दूर साइबर कैफे गया। रोल नंबर डाला, स्क्रीन पर लिखा था—“Qualified – IPS”


रवि की आंखों से आंसू बह निकले। वो भागकर अपने गांव लौटा और अपनी मां को गले लगाकर कहा, "अम्मा, अब तुम दूसरों के घर नहीं जाओगी। अब सब बदल जाएगा।"


पूरा गांव चकित था। वही लड़का, जिस पर कभी हंसी उड़ाई गई थी, अब गर्व का प्रतीक बन गया था।

रवि ने दीवार से वह पुराना कागज निकाला और एक नई फ्रेम में सजाकर अपने ऑफिस में लगाया

"सपने वो नहीं जो नींद में आएं, सपने वो हैं जो नींद को तोड़ दें!"


सीख:

सपने वो नहीं होते जो सोते वक्त सुंदर लगें। असली सपने वो होते हैं जो इंसान को सोने न दें, जो हर सुबह एक मकसद के साथ उठने को मजबूर करें, और जो हिम्मत, जुनून और मेहनत से पूरे किए जाएं।

Tuesday, June 10, 2025

नई सुबह, नया रास्ता

छोटे से गांव रामपुर में एक लड़का रहता थानाम था अर्जुन। अर्जुन एक साधारण किसान परिवार से था, लेकिन उसके सपने साधारण नहीं थे। वह कुछ बड़ा करना चाहता था, पर उसे खुद पर विश्वास नहीं था।


हर सुबह वह खेतों में अपने पिता के साथ काम करता, लेकिन उसका मन अक्सर शहर की ओर भागता। वह सोचता, "काश! मैं भी कुछ अलग कर पाता।" पर जैसे ही वह कुछ करने की कोशिश करता, डर और असफलता का ख्याल उसे पीछे खींच लेता।

 

एक दिन गांव में एक वृद्ध व्यक्ति आए। उनका नाम था श्रीमान प्रसाद। उन्होंने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। अर्जुन भी उनके पास सीखने जाने लगा। एक दिन प्रसाद जी ने बोर्ड पर एक वाक्य लिखा

"हर सुबह एक नया मौका है खुद को बेहतर बनाने का। उठो, जागो और आगे बढ़ो!"


अर्जुन ने वह पंक्ति ध्यान से पढ़ी और पूछा, “गुरुजी, क्या हर सुबह सच में कोई नया मौका लाती है?”


प्रसाद जी मुस्कराए और बोले, “बिलकुल, बेटा। जब सूरज उगता है, तो वह सिर्फ रोशनी नहीं लाता, बल्कि उम्मीद और नए सपनों की किरणें भी लाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कौन उस रोशनी में चलने का साहस करता है।

 

उस दिन के बाद अर्जुन ने तय किया कि वह हर दिन को एक नए मौके की तरह जीएगा। उसने अपनी दिनचर्या बदली। सुबह जल्दी उठता, पढ़ाई करता, खेती में मदद करता और शाम को प्रसाद जी से ज्ञान लेता।


धीरे-धीरे उसमें आत्मविश्वास आने लगा। उसने एक दिन गांव में ही एक छोटा लाइब्रेरी खोल दी ताकि बाकी बच्चे भी पढ़ सकें। कुछ लोग हँसे, बोले, “किसान का बेटा क्या किताबों का काम करेगा?” पर अर्जुन ने ध्यान नहीं दिया।


हर सुबह वह खुद से कहता, “उठो, जागो और आगे बढ़ो!” और यही मंत्र उसका संबल बन गया।


समय बीता। अर्जुन ने सरकारी परीक्षा पास की और एक शिक्षक बन गया। उसने गांव में एक स्कूल की नींव रखी। अब वह दूसरों को भी वही सिखाता था जो उसने सीखाहर दिन एक नई शुरुआत है।


गांव के लोग अब अर्जुन पर गर्व करते थे। वह न केवल खुद को बेहतर बना पाया, बल्कि गांव के बच्चों के भविष्य को भी रोशन कर पाया।

एक दिन, उसी बोर्ड पर वह पंक्ति दोबारा लिखी गई

"हर सुबह एक नया मौका है खुद को बेहतर बनाने का। उठो, जागो और आगे बढ़ो!"

लेकिन इस बार, वह पंक्ति सिर्फ एक सीख नहीं थी, वह अर्जुन की ज़िंदगी की कहानी बन चुकी थी।


सीख:

हर इंसान की ज़िंदगी में मौका आता है, फर्क बस इतना है कि कौन उस मौके को पहचानकर उसका उपयोग करता है। सुबह की पहली किरण के साथ हम सबको एक नई शुरुआत का वरदान मिलता है। बस ज़रूरत है तो उठने, जागने और आगे बढ़ने की।

Thursday, June 5, 2025

रास्ता ही मंज़िल की पहचान है

उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में एक लड़की रहती थीनेहा। उसका सपना था पहाड़ों के बीचबसे अपने गांव के बच्चों को शिक्षा की रोशनी देना। लेकिन उसके गांव में  स्कूल था शिक्षक।लोग मानते थे कि लड़कियों को पढ़ाने का कोई फायदा नहींवे तो घर ही संभालेंगी।


नेहा बचपन से ही जिद्दी और जुझारू थी। जब उसके भाई खेलते थेवह किताबें पढ़ती थी। गांवके बाहर एक छोटा स्कूल थाजो पहाड़ी रास्तों से होकर 5 किलोमीटर दूर था। वहां तक पहुंचने केलिए उसे रोज़ पत्थरीले रास्तों सेनदी पार करके जाना होता था।


लोग कहते, "इतनी दूर क्यों जाती हैक्या करेगी पढ़-लिखकर?"

नेहा मुस्कराकर कहती, "अगर रास्ता खूबसूरत है तो ज़रूर मंज़िल शानदार होगीबस रुको मतचलते रहो!"


हर दिन की शुरुआत सूरज से पहले होती। सिर पर पानी का घड़ाहाथ में किताबें और मन मेंहौसला। स्कूल पहुंचते-पहुंचते उसके कपड़े कीचड़ से गंदे हो जातेपैर थक जातेलेकिन वह कभीनहीं रुकी।


एक बार बारिश में नदी का पुल बह गया। दूसरे बच्चों ने स्कूल जाना बंद कर दियालेकिन नेहा नेपास की चट्टानों से होकर एक नया रास्ता बना लिया। जब शिक्षक ने पूछा, "इतनी मेहनत क्योंकरती हो?"

उसने कहा, "मुझे मंज़िल से प्यार हैइसलिए रास्ता कितना भी मुश्किल होमैं चलती रहूंगी।"


12वीं पास करने के बाद वह आगे पढ़ने के लिए शहर गई। वहां सब नया थाभाषामाहौललोग। कई बार हिम्मत डगमगाईलेकिन मां की बात याद आती"बेटीतू रुकी तो तुझे रोकनेवाले जीत जाएंगे।"


कॉलेज में उसने समाज सेवा से जुड़ना शुरू किया। हर छुट्टी में वह अपने गांव आती और बच्चों कोपढ़ाती। गांव वालों ने पहले विरोध कियालेकिन धीरे-धीरे बदलाव दिखने लगा। जो बच्चे स्कूलनहीं जाते थेअब पढ़ने लगे।

नेहा ने बी.एडकी पढ़ाई पूरी की और शिक्षक बन गई। लेकिन उसने नौकरी किसी बड़े शहर मेंनहीं कीवह अपने गांव लौटी और वहां पहला स्कूल खोला। खुद पढ़ातीखुद बच्चों के घरजाकर उन्हें बुलाती।


अब वह वही रास्ता रोज़ तय करती थीलेकिन अकेली नहीं। उसके साथ बच्चों की लंबी कतारहोती थी। जो रास्ता कभी डराता थाअब उम्मीद बन चुका था।


गांव का हर कोना अब बच्चों की हँसी से गूंजता था। लोग कहते, “हमने तो सोचा नहीं था कि एकलड़की ये सब कर पाएगी।


नेहा मुस्कराकर कहती,

"रास्ता चाहे कठिन हो या आसानअगर इरादे पक्के होंतो हर मोड़ मंज़िल की ओर ले जाता है।"


उसने स्कूल की दीवार पर एक वाक्य बड़े अक्षरों में लिखा:

"अगर रास्ता खूबसूरत है तो ज़रूर मंज़िल शानदार होगीबस रुको मतचलते रहो!"