लोगों से
अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है।इसलिये लोग अपने जीवन मे एक "बेटा" की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि
बुढ़ापे अच्छे से कट जाए।ये बात
सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है।बहु के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे में
डाल देता है।और फिर बहु
बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी।जी हाँ मेरा तो यही मनाना है वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर
अपनी जीवन व्यतीत करते
हैं।एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती।कौन कब और कैसी चाय पीते है, क्या
खाना बनाना है, शाम में नाश्ता में क्या
देना,रात को हर
हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना
है।अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो पूरे
मन या बेमन से बहु ही देखभाल करती है।अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चले जाएं,बेचारे
सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही
किसी ने छीन ली हो।वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे।कोई पूछेगा नही उन्हें,उनका
अपना बेटा भी नही क्योंकि बेटा को फुर्सत नही है,और
अगर बेटे को फुरसत मिल जाये भी तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या
क्या देना है।क्योंकि
बेटा के चंद सवाल है और उसकी ज़िम्मेदारी खत्म जैसे माँ-बाबूजी को खाना खाएं,चाय
पियें, नाश्ता किये, लेकिन
कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते
कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं।ये लगभग सारे घर की कहानी है।मैंने तो ऐसी बहुएं देखी है जिसने अपनी सास की बीमारी
में तन मन से सेवा करती
थी,बिल्कुल एक बच्चे की तरह,जैसे
बच्चे सारे काम बिस्तर पर करते हैं ठीक
उसी तरह उसकी सास भी करती थी और बेचारी बहु उसको साफ करती थी।और बेटा ये बचकर निकल जाता था कि मैं अपनी माँ को ऐसी हालत में
नही देख सकता इसलिये उनके
पास नही जाता था।ऐसे की कई बहु के उदाहरण हैं।मैंने अपनी माँ और चाची को दादा-दादी की ऐसे ही सेवा करते देखा है।ऐसे ही कई
उदाहरण आपलोगो ने भी देखा
होगा,आपलोग में से ही कई बहुयें ने अपनी सास-ससुर की ऐसी सेवा
की होगी या कर
रही होगी।कभी -कभी ऐसा होता है कि बेटा संसार छोड़ चला जाता है,तब बहु
ही होती है जो उसके माँ-बाप की सेवा करती है, ज़रूरत
पड़ने पर नौकरी करती है।लेकिन
अगर बहु दुनिया से चले जाएं तो बेटा फिर एक बहु ले आता है, क्योंकि वो नही कर पाता अपने माँ-बाप की सेवा,उसे खुद उस बहु नाम की लाठी की ज़रूरत पड़ती है।इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती ही
बुढ़ापे की असली लाठी
लेकिन अफसोस "बहु" की त्याग और सेवा उन्हें भी नही दिखती जिसके लिये सारा दिन वो दौड़-भाग करती रहती है।
Monday, October 9, 2017
Wednesday, October 4, 2017
प्रसंग जिंदगी का
एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर परमात्मा से मिलने की जिद किया करता था। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो परमात्मा के साथ खाये।
एक दिन उसने 1 थैले में 5, 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा।
चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।
उसने देखा नदी के तट पर 1 बुजुर्ग बूढ़ा बैठा हैं, और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठा उसका रास्ता देख रहा हों।
वो 6 साल का मासूम बालक,बुजुर्ग बूढ़े के पास जा कर बैठ गया,।अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।और उसने अपना रोटी वाला हाँथ बूढे की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा,बूढे ने रोटी ले ली,। बूढ़े के झुर्रियों वाले चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे,,,,
बच्चा बुढ़े को देखे जा रहा था, जब बुढ़े ने रोटी खा ली बच्चे ने एक और रोटी बूढ़े को दी।
बूढ़ा अब बहुत खुश था। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाज़त ले घर की ओर चलने लगा।
वो बार बार पीछे मुड़ कर देखता , तो पाता बुजुर्ग बूढ़ा उसी की ओर देख रहा था।
बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,बच्चा बहूत खुश था।
माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया !
माँ,....आज मैंने परमात्मा के सांथ बैठ कर रोटी खाई,आपको पता है उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,,माँ परमात्मा् बहुत बूढ़े हो गये हैं,,,मैं आज बहुत खुश हूँ माँ
उस तरफ बुजुर्ग बूढ़ा भी जब अपने गाँव पहूँचा तो गाव वालों ने देखा बूढ़ा बहुत खुश हैं,तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा????
बूढ़ा बोलां,,,,मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेला भूखा बैठा था,,मुझे पता था परमात्मा आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।
आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठ कर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई,बहुत प्यार से मेरी और देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया,,परमात्मा बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।
असल में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में परमात्मा के लिए प्यार बहुत सच्चा है। और परमात्मा ने दोनों को,दोनों के लिये, दोनों में ही (परमात्मा) खुद को भेज दिया। *जब मन परमात्मा में रम जाता है तो मन को हर एक में वो ही नजर आने लग जाता है क्योंकि परमात्मा प्रेम का सागर है।
Monday, September 25, 2017
सफल जीवन का राज
एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित
करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम
को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं। इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें, प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें क्यों कि प्रेम ही
सफल जीवन का राज है।
Saturday, September 23, 2017
माँ की जादू की झप्पी
बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी...रसोई का नल चल रहा है माँ रसोई में है.... तीनों बहुऐं अपने-अपने कमरे में सोने जा चुकी.... माँ रसोई में है... माँ का काम बकाया रह गया था पर काम तो सबका था पर माँ तो अब भी सबका काम अपना ही मानती है.... दूध गर्म करके ठण्ड़ा करके जावण देना है... ताकि सुबह बेटों को ताजा दही मिल सके... सिंक में रखे बर्तन माँ को कचोटते हैं चाहे तारीख बदल जाये, सिंक साफ होना चाहिये.... बर्तनों की आवाज़ से बहू-बेटों की नींद खराब हो रही है बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा "तुम्हारी माँ को नींद नहीं आती क्या? ना खुद सोती है और ना ही हमें सोने देती है" मंझली ने मंझले बेटे से कहा " अब देखना सुबह चार बजे फिर खटर-पटर चालू हो जायेगी, तुम्हारी माँ को चैन नहीं है क्या?" छोटी ने छोटे बेटे से कहा " प्लीज़ जाकर ये ढ़ोंग बन्द करवाओ कि रात को सिंक खाली रहना चाहिये" माँ अब तक बर्तन माँज चुकी थी । झुकी कमर कठोर हथेलियां लटकी सी त्वचा जोड़ों में तकलीफ आँख में पका मोतियाबिन्द माथे पर टपकता पसीना पैरों में उम्र की लड़खडाहट मगर.... दूध का गर्म पतीला वो आज भी अपने पल्लू से उठा लेती है और... उसकी अंगुलियां जलती नहीं है, क्यों कि वो माँ है । दूध ठण्ड़ा हो चुका... जावण भी लग चुका... घड़ी की सुईयां थक गई... मगर... माँ ने फ्रिज में से भिण्ड़ी निकाल ली और... काटने लगी उसको नींद नहीं आती है, क्यों कि वो माँ है । कभी-कभी सोचता हूं कि माँ जैसे विषय पर लिखना, बोलना, बनाना, बताना, जताना क़ानूनन बन्द होना चाहिये....
क्यों कि यह विषय निर्विवाद है क्यों कि यह रिश्ता स्वयं कसौटी है । रात के बारह बजे सुबह की भिण्ड़ी कट गई... अचानक याद आया कि गोली तो ली ही नहीं... बिस्तर पर तकिये के नीचे रखी थैली निकाली.. मूनलाईट की रोशनी में गोली के रंग के हिसाब से मुंह में रखी और गटक कर पानी पी लिया... बगल में एक नींद ले चुके बाबूजी ने कहा " आ गई" "हाँ, आज तो कोई काम ही नहीं था" माँ ने जवाब दिया । और... लेट गई, कल की चिन्ता में पता नहीं नींद आती होगी या नहीं पर सुबह वो थकान रहित होती हैं, क्यों कि वो माँ है । सुबह का अलार्म बाद में बजता है माँ की नींद पहले खुलती है याद नहीं कि कभी भरी सर्दियों में भी माँ गर्म पानी से नहायी हो उन्हे सर्दी नहीं लगती, क्यों कि वो माँ है । अखबार पढ़ती नहीं, मगर उठा कर लाती है चाय पीती नहीं, मगर बना कर लाती है जल्दी खाना खाती नहीं, मगर बना देती है.... क्यों कि वो माँ है । माँ पर बात जीवनभर खत्म ना होगी..
Tuesday, September 19, 2017
बुजुर्गों का सम्मान
बूढ़ा पिता अपने IAS बेटे के चेंबर में जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया ! और प्यार से अपने पुत्र से पूछा..."इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है"?पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा "मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी "!पिता
को इस जवाब की आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा
पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना
योग्य बनाया ! उनकी आँखे छलछला आई ! वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे ! उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???*
पुत्र ने इस बार कहा...
"पिताजी आप हैैं,
इस दुनिया के सब से
शक्तिशाली इंसान "!
पिता
सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा "अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया
का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो " ??? पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते हुए कहा .."पिताजी
उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता
का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,बोलिए पिताजी" !पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लगा लिया ! तब में चन्द पंक्तिया लिखता हुं"
जो पिता के पैरों को छूता है वो कभी गरीब नहीं होता। जो मां के पैरों को छूता है वो कभी बदनसीब नही होता। जो भाई के पैराें को छुता हें वो कभी गमगीन नही होता। जो बहन के पैरों को छूता है वो कभी चरित्रहीन नहीं होता। जो गुरू के पैरों को छूता है उस जेसा कोई खुशनसीब नहीं होता....... अच्छा दिखने के लिये मत जिओ बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओजो झुक सकता है वह सारी दुनिया को झुका सकता है अगर बुरी आदत समय पर न बदली जाये तो बुरी आदत समय बदल देती है चलते रहने से ही सफलता है, रुका हुआ तो पानी भी बेकार हो जाता है झूठे दिलासे से स्पष्ट इंकार बेहतर है अच्छी सोच, अच्छी भावना, अच्छा विचार मन को हल्का करता है मुसीबत सब प आती है कोई बिखर जाता हे और कोई निखर जाता हें "तेरा मेरा"करते एक दिन चले जाना है...
जो भी कमाया यही रहे जाना हे
Saturday, September 16, 2017
बनिए की बुद्धी
एक गाँव में एक बनिया रहता था, उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी।
एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। काफी देर चर्चा के बाद उसने कहा –
“महाशय, आप बहुत बड़े सेठ है, इतना बड़ा कारोबार है पर आपका लडका इतना मूर्ख क्यों है ? उसे भी कुछ सिखायें।
उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नही पता॥” यह कहकर वह जोर से हंस पडा..
बनिए को बुरा लगा, वह घर गया व लडके से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?”
“सोना”, बिना एकपल भी गंवाए उसके लडके ने कहा।
“तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उठाई।”
लडके के समझ मे आ गया, वह बोला “राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं,
जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग मे ही पडता है।
मुझे
देखते हि बुलवा लेते हैं, अपने एक हाथ मे सोने का व दूसरे मे चांदी का
सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं...
ओर मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मजा लेते हैं। ऐसा तकरीबन हर दूसरे दिन होता है।”
“फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नही उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ मे मेरी भी।”
लडका हंसा व हाथ पकडकर पिता को अंदर ले गया ऒर कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी।
यह देख बनिया हतप्रभ रह गया।
लडका बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा।
वो मुझे मूर्ख समझकर मजा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नही मिलेगा।”
बनिए का बेटा हु अक़्ल से काम लेता हूँ
मूर्ख होना अलग बात है व समझा जाना अलग.. स्वर्णिम मॊके का फायदा उठाने से बेहतर है, हर मॊके को स्वर्ण मे तब्दील करना।
जैसे
समुद्र सबके लिए समान होता है, कुछ लोग पानी के अंदर टहलकर आ जाते हैं,
कुछ मछलियाँ ढूंढ पकड लाते हैं .. व कुछ मोती चुन कर आते हैं|
बनिए की बुद्धी पे शक मत करना
Monday, September 11, 2017
नर्क के दरवाजे
एक बार एक व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिका वासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... ! यह सुनकरवह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से
भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक- एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि सजा क्या
है ? पहरेदार ने कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर
आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़
मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ
जाओ अन्दर Sunday, September 3, 2017
अच्छाइयों के गवाह
कल की शाम दोस्तों के बीच लँबी चर्चा-परिचर्चा में कब रात के दस बज गए पता ही नहीं चला...!
आखिरकार एक-एक लस्सी पीते हुए घर जाना तय हुआ।
लस्सी
का ऑर्डर देकर हम सब आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई मे लगे ही थे कि
लगभग 70-75 साल की एक माताजी कुछ पैसे माँगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर
खड़ी हो गईं ...
उनकी कमर
झुकी हुई थी, धोती बहुत पुरानी थी मगर गन्दी ना थी... चेहरे की झुर्रियों
में भूख तैर रही थी... आँखें भीतर को धँसी हुई किन्तु सजल थीं...!
उनको देखकर मन में ना जाने क्या आया कि मैने जेब में सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया:
"दादी लस्सी पिहौ का?"
मेरी
इस बात पर- दादी कम अचँभित हुईं और मेरे मित्र अधिक...! क्योंकि अगर मैं
उनको पैसे देता तो बस 2-4-5 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 35 रुपए की एक
है..
इसलिए लस्सी पिलाने से "मेरे" गरीब हो जाने की और उन दादी के, मुझे ठगकर, अमीर हो जाने की सँभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी !
दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो माँग कर जमा किए हुए 06-07 ₹ थे वो अपने काँपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए...
मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने उनसे पूछा-
"ये काहे के लिए?"
तो दादी बोली:
"इनका मिलाई के पियाइ देओ पूत !"
भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी !
एकाएक आँखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैंने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा...
उन्होंने अपने पैसे वापस मुट्ठी में बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गईं...
अब
मुझे वास्तविकता में अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहाँ पर मौजूद
दुकानदार, अपने ही दोस्तों और अन्य कई ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर
बैठने के लिए ना कह सका !
डर था कि कहीं कोई टोंक ना दे...
कहीं
किसी को एक भीख माँगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बैठ जाने पर
आपत्ति ना हो...! लेकिन वो कुर्सी जिसपर मैं बैठा था मुझे काट रही थी...
लस्सी कुल्लड़ों में भरकर हम लोगों के हाथों में आते ही मैं भी अपना कुल्लड़ पकड़कर दादी के पड़ोस मे ही जमीन पर बैठ गया,
क्योंकि ये करने के लिए मैं स्वतंत्र था...
इससे किसी को आपत्ति नहीं हो सकती...
हाँ!
मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा... लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही
दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बिठाया और मेरी ओर
मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा ..
"ऊपर बैठ जाईए साहब !"
अब सबके हाथों में लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर मुस्कुराहट थी बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आँखों में तृप्ति के आँसू...
होठों पर मलाई के कुछ अंश और सैकड़ों दुआएँ थीं...।
ना
जाने क्यों जब कभी हमें 10-20-50 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उसपर
खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं लेकिन सोचिए कभी कि...
क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं ?
क्या उन रुपयों को सिगरेट, रजनीगंधा पर खर्चकर दुआएँ खरीदी जा सकती हैं ?
जब कभी अवसर मिले अच्छे काम करते रहें,
भले
ही कोई "अभी" आपका साथ ना दे... लेकिन ऊपर जब अच्छाईयों का हिसाब किया
जाएगा तब यही दुआएँ देते होंठ तुम्हारी अच्छाइयों के गवाह बनेंगेTuesday, August 29, 2017
भगवान से मांगते वक़्त
भगवान कृष्ण की भूमि वृंदावन का है. वृंदावन पहुंच कर,मैँ मुग्ध
होकर पावन धरा को निहार रहा था। जयपुर से लंबी यात्रा के बाद हम सभी को
कड़ाके की भूख लगी थी सो एक साफ से दिखने वाले रेस्टोरेंट पर रुक गये । समय
नष्ठ ना करने के लिए थाली मंगाई गई। एक साफ से ट्रे में दाल, सब्जी,चावल,
रायता व साथ एक टोकरी में रोटियां आई। पहले
कुछ कौर में ध्यान नही गया फिर मुझे कुछ ठीक नही लगा। मुझे रोटी में
खट्टेपन का अहसास हुआ, फिर सब्जी की ओर ध्यान दिया तो देखा सब्जी में हर
टुकड़े का रंग अलग अलग सा था। चावल चखा तो वहां भी माजरा गड़बड़ था। सारा खाना
छोड़ दिया। फिर काउंटर पर बिल पूछा यो 650 का बिल थमाया। मैंने कहा 'भैया!
पैसे तो दूँगा लेकिन एक बार आपकी रसोई देखना चाहता हूं" वो अटपटा गया और
पूछने लगा "क्यों?"मैंने कहा "जो पैसे देता है उसे देखने का हक़ है कि खाना
साफ बनता है या नहीँ?"इससे पहले की वो कुछ समख पाता मैंने होटल की रसोई की
ओर रुख किया। आश्चर्य
की सीमा ना रही जब देखा रसोई में कोई खाना नहीं पक रहा था। एक टोकरी में
कुछ रोटियां पड़ी थी। फ्रिज खोल तो खुले डिब्बों में अलग अलग प्रकार की पकी
हुई सब्जियां पड़ी हुई थी।कुछ खाने में तो फफूंद भी लगी हुई थी। फ्रिज
से बदबू का भभका आ रहा था।डांटने पर रसोइये ने बताया की सब्जियां करीब एक
हफ्ता पुरानी हैं। परोसने के समय वो उन्हें कुछ तेल डालकर कड़ाई में तेज
गर्म कर देता है और धनिया टमाटर से सजा देता है। रोटी का आटा 2 दिन में एक
बार ही गूंधता है। कई
कई घण्टे जब बिजली चली जाती है तो खाना खराब होने लगता है तो वो उसे तेज़
मसालों के पीछे छुपाकर परोस देते हैं। रोटी का आटा खराब हो तो उसे वो नॉन
बनाकर परोस देते हैं। मैंने
रेस्टोरेंट मालिक से कहा कि "आप भी कभी यात्रा करते होंगे, इश्वेर करे जब
अगली बार आप भूख से बिलबिला रहे हों तो आपको बिल्कुल वैसा ही खाना मिले
जैसा आप परोसते हैं" उसका चेहरा स्याह हो गया.... आज आपको खतरो, धोखों व
ठगी से सिर्फ़ जागरूकता ही बचा सकती है क्योंकी भगवान को भी दुष्टों ने घेर
रखा है। भारत से सही व गलत का भेद खत्म होता जा रहा है.... हर
दुकान व प्रतिष्ठान में एक कोने में भगवान का बड़ा या छोटा मंदिर होता है,
व्यपारी सवेरे आते ही उसमे धूप दीप लगाता है, गल्ले को हाथ जोड़ता है और फिर
सामान के साथ आत्मा बेचने का कारोबार शुरू हो जाता है!!! भगवान से मांगते
वक़्त ये नही सोचते की वो स्वयं दुनिया को क्या दे रहे हैं!
Wednesday, August 2, 2017
सर्वशक्तीमान
एक शख्स गाड़ी से उतरा.. और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट मे घुसा , जहाज़ उड़ने
के लिए तैयार था , उसे किसी कांफ्रेंस मे पहुंचना था जो खास उसी के लिए
आयोजित की जा रही थी.....
वह अपनी सीट पर बैठा और जहाज़ उड़
गया...अभी कुछ दूर ही जहाज़ उड़ा था कि....कैप्टन ने ऐलान किया , तूफानी
बारिश और बिजली की वजह से जहाज़ का रेडियो सिस्टम ठीक से काम नही कर
रहा....इसलिए हम क़रीबी एयरपोर्ट पर उतरने के लिए मजबूर हैं.।
जहाज़
उतरा वह बाहर निकल कर कैप्टन से शिकायत करने लगा कि.....उसका एक-एक मिनट
क़ीमती है और होने वाली कांफ्रेस मे उसका पहुचना बहुत ज़रूरी है....पास खड़े
दूसरे मुसाफिर ने उसे पहचान लिया....और बोला डॉक्टर पटनायक आप जहां
पहुंचना चाहते हैं.....टैक्सी द्वारा यहां से केवल तीन घंटे मे पहुंच सकते
हैं.....उसने शुक्रिया अदा किया और टैक्सी लेकर निकल पड़ा...
लेकिन ये क्या आंधी , तूफान , बिजली , बारिश ने गाड़ी का चलना मुश्किल कर दिया , फिर भी ड्राइवर चलता रहा...
अचानक ड्राइवर को एह़सास हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है...
ना उम्मीदी के उतार चढ़ाव के बीच उसे एक छोटा सा घर दिखा....इस तूफान मे वही ग़नीमत समझ कर गाड़ी से नीचे उतरा और दरवाज़ा खटखटाया....
आवाज़ आई....जो कोई भी है अंदर आ जाए..दरवाज़ा खुला है...
अंदर एक बुढ़िया आसन बिछाए भगवद् गीता पढ़ रही थी...उसने कहा ! मांजी अगर इजाज़त हो तो आपका फोन इस्तेमाल कर लूं...
बुढ़िया मुस्कुराई और बोली.....बेटा कौन सा फोन ?? यहां ना बिजली है ना फोन..
लेकिन
तुम बैठो..सामने चरणामृत है , पी लो....थकान दूर हो जायेगी..और खाने के
लिए भी कुछ ना कुछ फल मिल जायेगा.....खा लो ! ताकि आगे सफर के लिए कुछ
शक्ति आ जाये...
डाक्टर ने शुक्रिया अदा किया और
चरणामृत पीने लगा....बुढ़िया अपने पाठ मे खोई थी कि उसकेे पास उसकी नज़र
पड़ी....एक बच्चा कंबल मे लपेटा पड़ा था जिसे बुढ़िया थोड़ी थोड़ी देर मे हिला
देती थी...
बुढ़िया फारिग़ हुई तो उसने कहा....मांजी ! आपके स्वभाव और एह़सान ने मुझ पर जादू कर दिया है....आप मेरे लिए भी दुआ
कर दीजिए....यह मौसम साफ हो जाये मुझे उम्मीद है आपकी दुआऐं ज़रूर क़बूल होती होंगी...
बुढ़िया
बोली....नही बेटा ऐसी कोई बात नही...तुम मेरे अतिथी हो और अतिथी की सेवा
ईश्वर का आदेश है....मैने तुम्हारे लिए भी दुआ की है.... परमात्मा का शुक्र
है....उसने मेरी हर दुआ सुनी है..
बस एक दुआ और मै उससे माँग रही हूँ शायद जब वह चाहेगा उसे भी क़बूल कर लेगा...
कौन सी दुआ..?? डाक्टर बोला...
बुढ़िया बोली...ये जो 2 साल का बच्चा तुम्हारे सामने अधमरा
पड़ा
है , मेरा पोता है , ना इसकी मां ज़िंदा है ना ही बाप , इस बुढ़ापे मे इसकी
ज़िम्मेदारी मुझ पर है , डाक्टर कहते हैं...इसे कोई खतरनाक रोग है जिसका वो
इलाज नही कर सकते , कहते हैं एक ही नामवर डाक्टर है , क्या नाम बताया था
उसका !
हां "डॉ पटनायक " ....वह इसका ऑप्रेशन कर सकता है ,
लेकिन मैं बुढ़िया कहां उस डॉ तक पहुंच सकती हूं ? लेकर जाऊं भी तो पता नही
वह देखने पर राज़ी भी हो या नही ? बस अब बंसीवाले से ये ही माँग रही थी कि
वह मेरी मुश्किल आसान कर दे..!!
डाक्टर की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा है....वह भर्राई हुई आवाज़ मे बोला !
माई...आपकी
दुआ ने हवाई जहाज़ को नीचे उतार लिया , आसमान पर बिजलियां कौदवां दीं ,
मुझे रस्ता भुलवा दिया , ताकि मैं यहां तक खींचा चला आऊं ,हे भगवान! मुझे
यकीन ही नही हो रहा....कि कन्हैया एक दुआ क़बूल करके अपने भक्तौं के लिए इस
तरह भी मदद कर सकता है.....!!!!
दोस्तों वह
सर्वशक्तीमान है....परमात्मा के बंदो उससे लौ लगाकर तो देखो...जहां जाकर
इंसान बेबस हो जाता है , वहां से उसकी परमकृपा शुरू होती है...।यह आप सबसे
अधिक लोगो को भेजे ताकि मुझ जैसे लाखो लोगो की आँखे खुले।
Monday, July 24, 2017
खुशी की वजह
मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर
के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द
था कि अंदर जाकर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को
रोक ना सका।
अंदर जा कर
मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के
साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को
क्यों मार रही हो ? जबकि आप खुद भी रोती हो।
उसने
जवाब दिया भाई साहब इसके पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत
ही गरीब हैं, उनके जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इसकी
पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता
है और रोज़ाना घर देर से आता है।
जाते
हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान
नहीं देता है जिसकी वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है।
मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।
इस
घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी
मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से
मार खाता था। मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो
दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो
उनसे कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली
में डाल लेता।
मैं यह
नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का
चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उसकी झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के
किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर
मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार
ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।
अचानक
एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिसकी दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही
सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक
ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर
धक्का दे दिया।
वह बच्चा
आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी
देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस
शख्स का जिसकी दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स
ने बच्चे को कुछ नहीं कहा।
थोड़ी
सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और
वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार
को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस
स्कूल की और चल पड़ा। और मैं भी उसके पीछे पीछे चल रहा था।
बच्चे
ने रास्ते में अपना मुंह धोकर स्कूल चल दिया। मै भी उसके पीछे स्कूल चला
गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उसके टीचर
ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जाकर टीचर को मना किया कि मासूम
बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही
आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार
मै इसके घर पर भी खबर दे चुका हूँ।
खैर
बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का
मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम
के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ
से एक बार फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।
सुबह
उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी
पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और
बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके
घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप
का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।
वह
फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों
खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम
तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर
देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और
आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।
अचानक
मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह बहुत ही दर्द भरी
सिसकियां लेकर लगातार रो रही थी, और मैने फौरन उसके टीचर की तरफ देखा तो
बहुत शिद्दत से उसके आंसू बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था
जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का
एहसास हो रहा हो।
उसकी
माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया।
बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते
हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट लेलो, बच्चे
ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया।
आज
भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रखकर
मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से
उसे मार ले। टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगाकर इस क़दर ज़ोर से
रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।
मैने
अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह
जो बैग में सूट है वह किसके लिए है। बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी
माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते
हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास
पैसे नही हैं इसलिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।
तो
यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे ? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने
मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने
जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे
दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए
दर्जी के पास जमा किये हैं।
टीचर
और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और
विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उनके बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल
होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।
Tuesday, July 18, 2017
गधे की समाधी
किसी मंदीर में एक पंडित रहते थे। पंडित के पास 1गधा भी था सैकड़ों भक्त उस मंदीर पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे उन भक्तों में एक बंजारा भी था। वह बहुत गरीब था , फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता, पंडित की सेवा करता, और फिर अपने काम पर जाता, उसका कपड़े का व्यवसाय था, कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता, कपड़े बेचता❗ एक दिन उस पंडित को उस
पर दया आ गई, उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया❗ अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गईं। वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक जाता तो खुद भी गधे पर बैठ जाता इसी बीच गधा भी अपने नये मालीक से काफी घूलमील गया था यूं ही कुछ महीने बीत गए, एक दिन गधे की मृत्यु हो गई❗ बंजारा बहुत दुखी हुआ, उसने गधे को उचित स्थान पर दफनाया, और उसकी समाधी बनाई और फूट-फूट कर रोने लगा❗ समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने जब यह दृश्य देखा, तो सोचा जरूर किसी संत की समाधी होगी❗ तभी यह बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है❗ यह सोचकर उस व्यक्ति ने समाधी पर माथा टेका और अपनी मनोकामना हेतु वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया❗ कुछ दिनों के उपरांत ही उस व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई उसने खुशी के मारे सारे गांव में डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण संत की समाधी है❗ वहां जाकर जो मनोकामना मांगो वह पूर्ण होती है। मनचाही मुरादे बख्शी जाती हैं उस दिन से उस समाधी पर भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया❗ दूर-दराज से भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु आने लगे। बंजारे की तो चांदी हो गई,
बैठे-बैठे उसे कमाई का साधन मिल गया था❗ और धीरे धीरे वह समाधी भी पूरी तरह से मंदीर का आकार ले चुकी थी❗ एक दिन वही पूराने पंडित जिन्होंने बंजारे को अपना गधा भेंट स्वरूप दिया था वहां से गुजर रहे थे❗
उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला- "आपके गधे ने तो मेरी जिंदगी बना दी❗
जब तक जीवित था तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था और मरने के बाद मेरी जीविका का साधन उसका मंदीर बन गया है❗" पंडित हंसते हुए बोले, "बच्चा! जिस मंदीर में तू नित्य माथा टेकने आता था, वह मंदीर इस गधे की मां का था❗" यूही चल रहा है भारत.....
*इस प्रसंग का......*
*G* - *गधे की*
*S* - *समाधी पे*
*T* - *टेको माथा*
Sunday, July 16, 2017
एक खूबसूरत सोच
एक व्यक्ति एक दिन बिना बताए काम पर नहीं गया. मालिक ने,सोचा इस कि तन्खाह बढ़ा दी जाये तो यह
और दिल्चसपी से काम करेगा.....और उसकी तन्खाह बढ़ा दी....अगली बार जब उसको तन्खाह से ज़्यादा पैसे दिये तो वह कुछ नही बोला चुपचाप पैसे रख लिये..... कुछ महीनों बाद वह फिर ग़ैर हाज़िर हो गया...... मालिक को बहुत ग़ुस्सा आया..... सोचा इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ यह नहीं सुधरेगाऔर उस ने बढ़ी हुई
तन्खाह कम कर दी और इस बार उसको पहले वाली ही तन्खाह दी...... वह इस बार भी चुपचाप ही रहा और
ज़बान से कुछ ना बोला.... तब मालिक को बड़ा ताज्जुब हुआ.... उसने
उससे पूछा कि जब मैने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद तुम्हारी तन्खाह
बढा कर दी तुम कुछ नही बोले और आज तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्खाह
कम कर के दी फिर भी खामोश ही रहे.....!! इस की क्या वजह है..? उसने जवाब दिया....जब मै पहले ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था....!! आपने मेरी तन्खाह बढ़ा कर दी तो मै समझ गया..... परमात्मा ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेज दिया है...... और जब दोबारा मै ग़ैर हाजिर हुआ तो मेरी माता जी का निधन हो गया था...जब आप ने मेरी तन्खाह कम दी तो मैने यह मान लिया की मेरी माँ अपने हिस्से का
अपने साथ ले गयीं..... फिर मै इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ जिस का ज़िम्मा ख़ुद परमात्मा ने ले रखा है.....
एक खूबसूरत सोच :
अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया,
तो
बेशक कहना, जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी और जो भी पाया वो प्रभू की
मेहेरबानी थी, खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच में, ज्यादा मैं
मांगता. नहीं और कम वो देता नहींFriday, July 14, 2017
आप भी बूढ़े होगें।
एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर
गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।
रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।
खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके
कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा
पहनाया और फिर बाहर लाया।
सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के
साथ
बाहर जाने लगा।
तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या
तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर
नहीं जा रहा। "
वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ
छोड़ कर जा रहे हो,
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद
(आशा)। "
आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना
पसंद नहीँ करते
और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता
नहीं ठीक से खाया भी नहीं जाता आप तो घर पर ही रहो वही अच्छा
होगा.
क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी
गोद मे उठा कर ले जाया
करते थे,
आप जब ठीक से खा नही
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर
जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी
फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते हैं???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...
क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होगें।
Sunday, July 9, 2017
किचन कॉलिंग
सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेके रात तक, रात से फिर सुबह तक........
सच
में ऐसा लगता है, किचन और खाना के अलावा ज़िन्दगी में कुछ और है ही नही। हर
औरत की दुविधा, कब और क्या बनाना है। कभी कभी लगता हैं खुद को ही पका
डालू।सॉरी । ऐसा बोलना नही चाहती पर ऐसा ही लगता है।
ऐसा
नही की मुझे खाना बनाना पसंद नही। मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है, और लोग
कहते है कि मै बहुत टेस्टी खाना बनाती हूँ। पर हर चीज़ की हद होती है। अगर
24 घंटे में 8 घंटे भी किचन में रहना पड़े तो कैसा लगेगा?
हमारे
यहाँ तोरू परवल कोई नही खाता। बैगन गोबी पसंद नही। करेले से तो एलर्जी है।
तो क्या रहा? आलू और भिंडी।पापा डाईबेटिक पेशेंट है, इसलिए आलू अवॉयड करते
हैं।
पति को छोले पनीर पसंद है, पापा को भाती नही। पापा को मंगोड़ी पापड़ पसंद हैं, पति ने आज तक चखा नही।
अब हमारी प्यारी माताजी।दांतों का इलाज चल रहा हैं। चावल खिचड़ी उपमा, उनको भाता नही। बचा बिचारा दलिया। उसके साथ भी कढ़ी और आलू।
अब
सुनो ये रात से सुबह तक के किस्से। कभी रात 12 बजे दही ज़माना याद आता हैं।
कभी रात के 1 बजे चने भिगोने।कभी 2 बजे लगता है कहीं किचन की मोटर तो ओंन
नही। कभी 3 बजे फ्रीजर से बोतल निकालना। 4 बज गए तो दही अंदर रख दु नही तो
खट्टा हो जाएगा।
क्या करूँ मैं और मेरे जैसी बिचारियाँ
ये
किचन कॉलिंग यही खत्म नही होता। बच्चे 7 बजे दूध पीते है, माँ पापा 8 बजे
चाय। पति देव 9 बजे कॉफ़ी।बच्चे 10 बजे नास्ता करते है, पति 11 और माँ 12।
सासु माँ 2 बजे लंच करती हैं । बच्चे 3 बजे। थैंक्स गॉड, इनका और पापा का लंच पैक होता हैं।
डिनर की तो पूछो मत। बच्चे 8 बजे। पापा 9 बजे। माँ 10 बजे और पति देव 11 बजे।
12 से 4 की कहानी तो मैं पहले ही सुना चुकी हूँ।
सच बोलू तो ये कोई व्यंग्य नही है। मेरी ज़िंदगी की हकीकत हैं। पहले पहले तो रोती थीं, ये सब अखरता था, सारा दिन चिड़चिड़ी रहती थी।
फिर
किसी ने मुझे समझाया, जो चीज़ हम बदल नही सकते, उसे accept करो और enjoy
करो।इसलिए अब इसे व्यंग्य के रूप में बता कर हँस लेती हूँ और हँसा देती
हूँ।
Wednesday, July 5, 2017
"उठो दोस्त, हिम्मत करो,
एक बार एक किसान का घोडा बीमार हो गया। उसने उसके इलाज के लिए डॉक्टर को बुलाया डॉक्टर ने घोड़े का अच्छे से मुआयना किया और बोला... "आपके घोड़े को काफी गंभीर बीमारी है। हम तीन दिन तक इसे दवाई देकर देखते हैं, अगर यह ठीक हो गया तो ठीक नहीं तो हमें इसे मारना होगा। क्योंकि यह बीमारी दूसरे जानवरों में भी फ़ैल सकती है।" यह सब बातें पास में खड़ाएक बकरा भी सुन रहा था। अगले दिन* डॉक्टर आया, उसने घोड़े को दवाई दी चला गया। उसके जाने के बाद बकरा घोड़े केपास गया और बोला, "उठो दोस्त, हिम्मत करो, नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे।" दूसरे दिन डॉक्टर फिर आया और दवाई देकर चला गया। बकरा फिर घोड़े के पास आया और बोला,"दोस्त तुम्हें उठना ही होगा। हिम्मत करो नहीं तो तुम मारे जाओगे। मैं तुम्हारी मदद करता हूँ। चलो उठो" तीसरे दिन जब डॉक्टर आया तो किसान से बोला, "मुझे अफ़सोस है कि हमें इसे मारना पड़ेगा क्योंकि कोई भी सुधार नज़र नहीं आ रहा।" जब वो वहाँ से गए तो बकरा घोड़े के पास
फिर आया और बोला, "देखो दोस्त,तुम्हारे लिए अब करो या मरो वाली स्थिति बन गयी है। अगर तुम आज भी नहीं उठे तो कल तुम मर जाओगे। इसलिए हिम्मत करो। हाँ, बहुत अच्छे। थोड़ा सा और, तुम कर सकते हो। शाबाश, अब भाग कर देखो, तेज़ और तेज़।" इतने में किसान वापस आया तो उसने देखा कि उसका घोडाभाग रहा है। वो ख़ुशी से झूम उठा और सब घर वालों को इकट्ठा कर के चिल्लाने लगा, "चमत्कार हो गया, मेरा घोडा ठीक हो गया। हमें जश्न मनाना चाहिए.. आज बकरे की बिरयानी खायेंगे।"
शिक्षा , ---------->
*Management* या
*government* को
*कभी नही पता होता कि*
*कौन employee*
*काम कर रहा है।*
*जो काम कर रहा होता है उसी का ही काम तमाम हो जाता है।
ये पूर्णतया सत्य है ...
Sunday, July 2, 2017
सादगी से जियो
एक पुराना ग्रुप कॉलेज छोड़ने के बहुत दिनों बाद मिला। वे सभी अच्छे केरियर के साथ खूब पैसे कमा रहे थे। वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर के घर जाकर मिले। प्रोफेसर साहब उनके काम के बारे में पूछने लगे। धीरे-धीरे बात लाइफ में बढ़ती स्ट्रेस और काम के प्रेशर पर आ गयी। इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि, भले वे अब आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हों पर उनकी लाइफ में अब वो मजा नहीं रह गया जो पहले हुआ करता था। प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे, वे अचानक ही उठे और थोड़ी देर बाद किचन से लौटे और बोले, "डीयर स्टूडेंट्स, मैं आपके लिए गरमा-गरम कॉफ़ी बना कर लाया हूँ , लेकिन प्लीज आप सब किचन में जाकर अपने-अपने लिए कप्स लेते आइये।" लड़के तेजी से अंदर गए, वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे, सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा कप उठाने में लग गये, किसी ने क्रिस्टल का शानदार कप उठाया तो किसी ने पोर्सिलेन का कप सेलेक्ट किया, तो किसी ने शीशे का कप उठाया। सभी के हाथों में कॉफी आ गयी । तो प्रोफ़ेसर साहब बोले, "अगर आपने ध्यान दिया हो तो, जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे। आपने
उन्हें ही चुना और साधारण दिखने वाले कप्स की तरफ ध्यान नहीं दिया। जहाँ एक तरफ अपने लिए सबसे अच्छे की चाह रखना
एक नॉर्मल बात है। वहीँ दूसरी तरफ ये हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स और स्ट्रेस लेकर आता है। फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि कप, कॉफी की क्वालिटी में कोई बदलाव नहीं लाता। ये तो बस एक जरिया है जिसके माध्यम से आप कॉफी पीते है। असल में जो आपको चाहिए था। वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं, पर फिर भी आप सब सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए और अपना लेने के बाद दूसरों के कप निहारने लगे।" अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये लाइफ कॉफ़ी की तरह है ; हमारी नौकरी, पैसा, पोजीशन, कप की तरह हैं। ये बस लाइफ जीने के साधन हैं, खुद लाइफ नहीं ! और हमारे पास कौन सा कप है। ये न हमारी लाइफ को डिफाइन करता है और ना ही उसे चेंज करता है। इसीलिए कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।" "दुनिया के सबसे खुशहाल लोग वो नहीं होते , जिनके पास सबकुछ सबसे बढ़िया होता है, खुशहाल वे होते हैं, जिनके पास जो होता है । बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं, एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!
सदा हंसते रहो। सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो। सबकी केअर करो।
जीवन का आनन्द लो ।
एक नॉर्मल बात है। वहीँ दूसरी तरफ ये हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स और स्ट्रेस लेकर आता है। फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि कप, कॉफी की क्वालिटी में कोई बदलाव नहीं लाता। ये तो बस एक जरिया है जिसके माध्यम से आप कॉफी पीते है। असल में जो आपको चाहिए था। वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं, पर फिर भी आप सब सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए और अपना लेने के बाद दूसरों के कप निहारने लगे।" अब इस बात को ध्यान से सुनिये ...
"ये लाइफ कॉफ़ी की तरह है ; हमारी नौकरी, पैसा, पोजीशन, कप की तरह हैं। ये बस लाइफ जीने के साधन हैं, खुद लाइफ नहीं ! और हमारे पास कौन सा कप है। ये न हमारी लाइफ को डिफाइन करता है और ना ही उसे चेंज करता है। इसीलिए कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।" "दुनिया के सबसे खुशहाल लोग वो नहीं होते , जिनके पास सबकुछ सबसे बढ़िया होता है, खुशहाल वे होते हैं, जिनके पास जो होता है । बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं, एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!
सदा हंसते रहो। सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो। सबकी केअर करो।
जीवन का आनन्द लो ।
Thursday, June 29, 2017
करदाता
Income tax अधिकारी ने एक वृद्ध करदाता को अपने कार्यालय में बुलाया।
करदाता ठीक समय पर पहुँच गया, अपने वकील के साथ।
Income tax अधिकारी:-
"आप तो रिटायर हो चुके हैं।
हमें पता चला है कि आप बड़े ठाट- बाट से रहते हैं।
आपको इसके लिए पैसे कहाँ से आते हैं?"
करदाता:- "जुएं में जीतता हूँ।"
Income tax वाले:-
"हमें यकीन नहीं"
करदाता :- "मैं साबित कर सकता हूँ। क्या आप एक Demo देखना चाहते हैं?"
Income tax वाला:- "अच्छी बात है। जरा हम भी देखें। शुरूहो जाइए।"
करदाता
:- "एक हज़ार रुपये की शर्त लगाने के लिए क्या आप तैयार हैं? मैं यह दावा
कर रहा हूँ कि मैं अपनी ही एक आँख को अपने दाँतों से काट सकता हूँ।
Income tax वाले:- क्या!!
नामुमकिन। लग गई शर्त!
करदाता अपनी शीशे की एक कृत्रिम आँख निकालकर,
अपने दाँतों से काटा।
Income tax वाले ने हार मान ली है और एक हज़ार रुपया उस वृद्ध करदाता को दिया।
करदाता कहता है "अब दो हज़ार की शर्त लगाने के लिए तैयार हो?
मैं अपनी दूसरी आँख को भी काट सकता हूँ।"
Income tax वाले ने सोचा, जाहिर है कि यह अँधा तो नहीं है।
उसकी दूसरी आँख शीशे की नहीं हो सकती। कैसे कर पाएगा, देखते हैं। फिर कहा "लग गई शर्त"
करदाता ने अपनी नकली दाँत मुँह से निकालकर,
अपने आँख को हलके से काटा।
Income tax वाला हैरान हुआ पर कुछ कह नहीं सका।
चुपचाप दो हज़ार रुपये अदा किए।
करदाता ने आगे कहा: चलो एक और मौका देता हूँ तुम्हें।
दस हज़ार की शर्त लगाने के लिए तैयार हो?"
Income tax वाले ने कहा "अब कौनसी बहादुरी का प्रदर्शन करोगे?"
करदाता ने कहा "आपके कमरे में कोने में कूडे का डिब्बा देख रहे हो? मेरा दावा है कि मैं यहाँ आपके मेज के सामने खड़े होकर,
सीधे उस डिब्बे के अंदर थूक विसर्जन कर सकता हूँ।
आपके टेबल पर एक बूँद भी नहीं गिरेगी।"
वकील चिल्लाया मत लगाओ,
मत लगाओ।
पर इनकम टैक्स वाला नहीं माना
Income
tax वाले ने देखा कि दूरी १५ फुट से भी ज्यादा है और कोई भी यह काम नहीं
कर सकेगा और अवश्य इस बनिए से तो यह नहीं हो सकेगा। बहुत सोचकर,
अपने खोए हुए पैसे को वापस जीतने की उम्मीद से,
शर्त लगाने के लिए राजी हो गया।
वकील ने माथा ठोक लिया
करदाता मुंह नीचे करके, शुरू हो गया पर उसकी कोशिश नाकामयाब रही।
Income tax वाले की टेबल को थूक से खराब कर दिया। पर Income tax वाला बहुत खुश हुआ
पर उसने देखा
करदाता का वकील रो रहा है।
उसने पूछा "क्या बात है,
वकील भाई?"
वकील ने कहा
*"आज सुबह इस शैतान ने मुझसे पचास हज़ार की शर्त लगाई थी,*
*कि वह आप इनकम टैक्स वालों के टेबल पर थुकेगा और वो बजाय नाराज होने के इससे खुश होंगे।"*
Tuesday, June 27, 2017
नकारात्मक विचार
एक दिन एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था। ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था। एक कार अचानक ही पार्किंग से निकलकर रोड पर आ गई। ऑटो चालक ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार ऑटो से टकराते टकराते बची। कार चालक गुस्से में ऑटो वाले को ही भला-बुरा कहने लगा, जबकि गलती कार- चालक की थी। ऑटो चालक ने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और क्षमा माँगते हुए आगे बढ़ गया। ऑटो में बैठे व्यक्ति को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था। उसने ऑटो वाले से पूछा: तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया? उसने तुम्हें भला-बुरा कहा, जबकि गलती तो उसकी थी। ऑटो वाले ने कहा: हमारी किस्मत अच्छी है, वरना उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते। साहब, बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े के ट्रक) की तरह होते हैं। वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं। जिन चीजों की जीवन में कोई ज़रूरत नहीं होती उनको मेहनत करके जोड़ते रहते हैं - जैसे क्रोध, घृणा, चिंता, निराशा आदि। जब उनके दिमाग में इनका कूड़ा बहुत अधिक हो जाता है, तो वे अपना बोझ हल्का करने के लिए इसे दूसरों पर फेंकने का मौका ढूँढते हैं। इसलिए मैं ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखता हूँ और उन्हें दूर से ही मुस्कराकर अलविदा कह देता हूँ। क्योंकि अगर उन जैसे लोगों द्वारा गिराया हुआ कूड़ा मैंने स्वीकार कर लिया तो मैं भी एक कूड़े का ट्रक बन जाऊँगा और अपने साथ-साथ आसपास के लोगों पर भी कूड़ा गिराता रहूँगा। मैं सोचता हूँ जिंदगी बहुत ख़ूबसूरत है। इसलिए जो हमसे अच्छा व्यवहार करते हैं उन्हें धन्यवाद कहो और जो हमसे अच्छा व्यवहार नहीं करते उन्हें मुस्कुराकर माफ़ कर दो। हमें यह याद रखना चाहिए कि सभी मानसिक रोगी केवल अस्पताल में ही नहीं रहते हैं। कुछ हमारे आस-पास खुले में भी घूमते रहते हैं। यदि दिमाग में सकारात्मक विचार न भरें जाएँ, तो
नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं। जिसके पास जो होता है वह वही बांटता है। एक सफल इंसान वही कहलाता है, जो सफलता बाँटता है।
नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं। जिसके पास जो होता है वह वही बांटता है। एक सफल इंसान वही कहलाता है, जो सफलता बाँटता है।
Wednesday, June 21, 2017
टेढ़ी पूड़ीयाँ
बहू ! आज माताजी का पूजन करना है घर में ही पूड़ीयाँ , हलवा और चने का प्रशाद बनेगा ।"
.
"ओहो
! ये त्योहार भी आज ही आना था और ऊपर से ये पुराने रीतिरिवाज ढ़ोने वाली ये
सास । इनके मुंह में तो जुबान ही नहीं है जो कुछ कह सकें माँ से ! "
.
"अरे! यार कभी तो माँ की भी मान लिया करो , हमेशा अपनी ही चलाती हो । इस बार तो अपनी मनमर्जी को लगाम दो! "
.
"तुम्हें
मालूम है न ....मुझसे ये सब नहीं होने वाला है । रही बात बच्चियों में
देवी माँ को देखने की तो मैं समझती हूँ कि अब जिस तरह से छोटी -छोटी
देवियाँ राक्षसों द्वारा हलाल की जा रहीं हैं , पूजा से ज्यादा उन्हें
बचाने की जरूरत है ।"
.
"ये तुम
और तुम्हारी समाज सेवा मैं तो समझ सकता हूँ मगर माँ नहीं समझेगी और
ज्यादा देर हुई तो वो खुद बैठ जाएंगी रसोई में और फिर जो होगा तुम जानती
ही हो । "
.
"कोई चिंता की
जरूरत नहीं है मुझे मालूम था कि आज ये सब होने वाला है और मैं पहले ही
इंतजाम करके आई थी रात को ही । पंडित जी सुबह नौ बजे आएंगे और साथ ही
बच्चियाँ भी आएंगी ।"
.
लगभग
एक घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी तो पंडित जी के साथ दस बारह बच्चियाँ भी
थी । पूजा स्थान पर पंडित जी को सामान देकर वह सास को भी बुला लाई । पूजा
अच्छी तरह से सम्पन्न हुई अब भोग लगाने की बारी थी ।
.
"जाओ बहू भोग का सामान ले आओ !"
.
"लंच बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की कई थैलियाँ बहू ने सामने रख दीं । "
.
"अरे! ये क्या है ? कन्या पूजन करना है मुझे ! देवी को भोग लगाना है । प्रसाद क्या बनाया है वो लेकर आओ ।"
.
"माँ
! देवी तो कोई प्रसाद नहीं खाती उन्हें जो भी भोग लगा दो वे ग्रहण कर लेती
है । ये बच्चियाँ भी देवी का ही रूप हैं । मैंने इनके लिए पनीर, पुलाव
बनाया है और रोटियाँ हैं मिठाई बाहर से मँगवा ली है । इसी का भोग लगेगा
आज !"
.
"राम राम राम ! कैसी बात कर रही हो बहू ? क्या तुम पूजा को भी मज़ाक समझती हो ? देवी माँ नाराज हो जाएंगी !"
.
"माँ
जी ! ये तो मैं नहीं जानती कि देवी माँ नाराज होंगी या नहीं पर ये जरूर
जानती हूँ कि ये बच्चियाँ जो मैंने पास की गरीब बस्ती से बुलाई हैं आज
जरूर खुश होंगी और दूसरों को खुशी देना ही पूजा है मेरे लिए । "
.
सास हैरान और परेशान उस सामान को देख रही थी और साथ ही बहू को ।
.
"पंडित जी से देवी माँ को मिठाई और भोजन का भोग लगवाकर पूजा समाप्त करें ताकि बच्चियों को भोजन करवाया जा सके ।"
.
बच्चियों को अच्छे और नए आसनों पर बैठाया गया । सब के सामने भोजन परोसा गया और प्रेम से बच्चियों को भोजन करवाया गया ।
.
"आइये माँ जी ! लीजिये कन्याओं को अपने हाथों से उपहार दीजिये !"
.
अनमने
मन से सास आगे आई तो बहू ने पचास -पचास के नोट उनके हाथों में थमा दिये ।
हर बच्ची को लंच बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की थैली के
साथ पचास रुपये दिये ।
.
"बहू ! तू तो पैसे लुटा रही है बेकार में इन गरीबों पर और ये मनमानी ठीक नहीं है ।"
.
"माँ
जी ! ये जिंदा देवियाँ हैं , इनकी मदद ही हमारी पूजा है । जो प्रसाद
गलियों में फेंक दिया जाय और अनादर हो, मैं पसंद नहीं करती , इसलिए मैंने
जरूरत का सामान उन्हें दिया है जिस से सही में खुशी हासिल हो । वैसे भी
पूजा के बदले हम चाहते भी क्या हैं खुशी ही न ! अब मेरी टेढ़ी-मेढ़ी पूड़ीयाँ
ये खुशी कहाँ दे पाती !"
.
"सही कह रही है बहू ! मैं ही न समझ सकी तेरी बात । तेरी पूजा ही सफल है ।" और बहू को गले लगा लिया ।
Thursday, June 15, 2017
वृंदावन की एक गोपी
वृंदावन की एक गोपी रोज दूध दही बेचने मथुरा जाती थी, एक दिन व्रज में एक संत आये, गोपी भी कथा सुनने गई, संत कथा में कह रहे थे, भगवान के नाम की बड़ी महिमा है, नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते है. नाम तो भव सागर से तारने वाला है, यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोडना. कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली, बीच में यमुना जी थी. गोपी को संत की बात याद आई, संत ने कहा था भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है, जिस भगवान का नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता ? ऐसा सोचकर गोपी ने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई. अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर गई, पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई, और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया पार जाने का, रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने पड़ेगे. एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये, अगले दिन गोपी जब दही बेचने गई, तब संत से घर में भोजन करने को कहा संत तैयार हो गए, अब बीच में फिर यमुना नदी आई. संत नाविक को बुलने लगा तो गोपी बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे है. हम ऐसे ही यमुना जी में चलेगे. संत बोले - गोपी ! कैसी बात करती हो, यमुना जी को ऐसे ही कैसे पार करेगे ?*
गोपी बोली - बाबा ! आप ने ही तो रास्ता बताया था, आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है. तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते ? और मै ऐसा ही करने लगी, इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती. संत को विश्वास नहीं हुआ बोले - गोपी तू ही पहले चल ! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ, गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई. अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से पानी में गिर गए, संत को बड़ा आश्चर्य, अब गोपी ने जब देखा तो कि संत तो पानी में गिर गए है तब गोपी वापस आई है और संत का हाथ पकड़कर जब चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे जमीन पर चल रहे हो संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े, और बोले - कि गोपी तू धन्य है ! वास्तव में तो सही अर्थो में नाम का आश्रय तो तुमने लिया है और मै जिसने नाम की महिमा बताई तो सही पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया.. सच मे भक्त मित्रो हम भगवान नाम का जप एंव आश्रय तो लेते है पर भगवान नाम मे पूर्ण विश्वाव एंव श्रद्धा नही होने से हम इसका पूर्ण लाभ प्राप्त नही कर पाते.. शास्त्र बताते है कि भगवान श्री कृष्ण का एक नाम इतने पापो को मिटा सकता है जितना कि एक पापी व्यक्ति कभी कर भी नही सकता.. अतएव भगवान नाम पे पूर्ण श्रद्धा एंव विश्वास रखकर ह्रदय के अंतकरण से भाव विह्वल होकर जैसे एक छोटा बालक अपनी माँ के लिए बिलखता है ..उसी भाव से सदैव नाम प्रभु का सुमिरन एंव जप करे कलियुग केवल नाम अधारा ! सुमिर सुमिर नर उताराहि ही पारा!!*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
गोपी बोली - बाबा ! आप ने ही तो रास्ता बताया था, आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है. तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते ? और मै ऐसा ही करने लगी, इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती. संत को विश्वास नहीं हुआ बोले - गोपी तू ही पहले चल ! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ, गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई. अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से पानी में गिर गए, संत को बड़ा आश्चर्य, अब गोपी ने जब देखा तो कि संत तो पानी में गिर गए है तब गोपी वापस आई है और संत का हाथ पकड़कर जब चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे जमीन पर चल रहे हो संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े, और बोले - कि गोपी तू धन्य है ! वास्तव में तो सही अर्थो में नाम का आश्रय तो तुमने लिया है और मै जिसने नाम की महिमा बताई तो सही पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया.. सच मे भक्त मित्रो हम भगवान नाम का जप एंव आश्रय तो लेते है पर भगवान नाम मे पूर्ण विश्वाव एंव श्रद्धा नही होने से हम इसका पूर्ण लाभ प्राप्त नही कर पाते.. शास्त्र बताते है कि भगवान श्री कृष्ण का एक नाम इतने पापो को मिटा सकता है जितना कि एक पापी व्यक्ति कभी कर भी नही सकता.. अतएव भगवान नाम पे पूर्ण श्रद्धा एंव विश्वास रखकर ह्रदय के अंतकरण से भाव विह्वल होकर जैसे एक छोटा बालक अपनी माँ के लिए बिलखता है ..उसी भाव से सदैव नाम प्रभु का सुमिरन एंव जप करे कलियुग केवल नाम अधारा ! सुमिर सुमिर नर उताराहि ही पारा!!*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
Monday, June 12, 2017
दौलत कमाऊँगा
कल रात मैंने एक "सपना" देखा.! मेरी Death हो गई.... जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये... देवराज इंद्र ने मुस्कुराकरमेरा स्वागत किया... मेरे हाथ में Bag देखकर पूछने लगे ''इसमें क्या है..?" मैंने कहा... '' इसमें मेरे जीवन भर की कमाई है, पांच करोड़ रूपये हैं ।" इन्द्र ने 'BRP-16011966' नम्बर के Locker की ओर इशारा करते हुए कहा- ''आपकी अमानत इसमें रख दीजिये..!'' मैंने Bag रख दी... मुझे एक Room भी दिया... मैं Fresh होकर Market में निकला... देवलोक के Shopping मॉल मे अदभूत वस्तुएं देखकर मेरा मन ललचा गया..! मैंने कुछ चीजें पसन्द करके Basket में डाली, और काउंटर पर जाकर उन्हें हजार हजार के करारे नोटें देने लगा... Manager ने नोटों को देखकर कहा, ''यह करेंसी यहाँ नहीं चलती..!'' यह सुनकर मैं हैरान रह गया..! मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि, ''आप व्यापारी होकर इतना भी नहीं जानते..? कि आपकी करेंसी बाजु के मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका और बांगलादेश में भी नही चलती... और आप मृत्यूलोक की करेंसी स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता कर रहे हो..?'' यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया..! मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर रोने लगा. और परमात्मा से दरखास्त करने लगा, ''हे भगवान्.ये... क्या हो गया.?'' ''मैंने कितनी मेहनत से ये पैसा कमाया..!'' ''दिन नही देखा, रात नही देखा,"'' पैसा कमाया...!'' 'माँ बाप की सेवा नही की, पैसा कमाया, बच्चों की परवरीश नही की, पैसा कमाया... पत्नी की सेहत की ओर ध्यान नही दिया, पैसा कमाया...!'' ''रिश्तेदार, भाईबन्द, परिवार और यार दोस्तों से भी किसी तरह की हमदर्दी न रखते हुए पैसा कमाया.!!" ''जीवन भर हाय पैसा हाय पैसा किया...!
ना चैन से सोया, ना चैन से खाया... बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!'' ''और यह सब व्यर्थ गया..?'' ''हाय राम, अब क्या होगा..!'' इंद्र ने कहा,- ''रोने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है.!! " जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।" "जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये,
धीरू भाई अम्बानी के 29 हजार करोड़ अमेरिकन डॉलर... सबका पैसा यहां पड़ा है...!" मैंने इंद्र से पूछा-
"फिर यहां पर कौनसी करेंसी चलती है..?" इंद्र ने कहा- "धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म किये है...! जैसे किसी दुखियारे को मदद की, किसी रोते हुए को हसाया, किसी गरीब बच्ची की शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया...! किसी को व्यसनमुक्त किया...! किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया...!" "ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को यहाँ पर एक Credit Card मिलता है...! और उसे वापर कर आप यहाँ स्वर्गीय सुख का उपभोग ले सकते है..!'' मैंने कहा, "भगवन.... मुझे यह पता नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!" "हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये..!'' और मैं गिड़गिड़ाने लगा.! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!! इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी..! मैं जाग गया..! अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी..!!
ना चैन से सोया, ना चैन से खाया... बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!'' ''और यह सब व्यर्थ गया..?'' ''हाय राम, अब क्या होगा..!'' इंद्र ने कहा,- ''रोने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है.!! " जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।" "जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये,
धीरू भाई अम्बानी के 29 हजार करोड़ अमेरिकन डॉलर... सबका पैसा यहां पड़ा है...!" मैंने इंद्र से पूछा-
"फिर यहां पर कौनसी करेंसी चलती है..?" इंद्र ने कहा- "धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म किये है...! जैसे किसी दुखियारे को मदद की, किसी रोते हुए को हसाया, किसी गरीब बच्ची की शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया...! किसी को व्यसनमुक्त किया...! किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया...!" "ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को यहाँ पर एक Credit Card मिलता है...! और उसे वापर कर आप यहाँ स्वर्गीय सुख का उपभोग ले सकते है..!'' मैंने कहा, "भगवन.... मुझे यह पता नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!" "हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये..!'' और मैं गिड़गिड़ाने लगा.! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!! इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी..! मैं जाग गया..! अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी..!!
Friday, June 9, 2017
आपसी प्रेम
एक सुनार से लक्ष्मी जी रूठ गई । जाते वक्त बोली मैं जा रही हूँ और मेरी जगह नुकसान आ रहा है । तैयार हो जाओ। लेकिन मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ। मांगो जो भी इच्छा हो। सुनार बहुत समझदार था।
उसने विनती की नुकसान आए तो आने दो । लेकिन उससे कहना की मेरे परिवार में आपसी प्रेम बना रहे। बस मेरी यही इच्छा है। लक्ष्मी जी ने तथास्तु कहा। कुछ दिन के बाद सुनार की सबसे छोटी बहू खिचड़ी बना रही थी। उसने नमक आदि डाला और अन्य काम करने लगी। तब दूसरे लड़के की बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई। इसी प्रकार तीसरी, चौथी बहुएं आई और नमक डालकर चली गई उनकी सास ने भी ऐसा किया। शाम को सबसे पहले सुनार आया। पहला निवाला मुह में लिया। देखा बहुत ज्यादा नमक है। लेकिन वह समझ गया नुकसान (हानि) आ चुका है। चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया। इसके बाद बङे बेटे का नम्बर आया। पहला निवाला मुह में लिया। पूछा पिता जी ने खाना खा लिया क्या कहा उन्होंने ? सभी ने उत्तर दिया-" हाँ खा लिया, कुछ नही बोले।" अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ नही बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ। इस प्रकार घर के अन्य सदस्य एक -एक आए। पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए। रात को नुकसान (हानि) हाथ जोड़कर सुनार से कहने लगा -,"मै जा रहा हूँ।" सुनार ने पूछा- क्यों ? तब नुकसान (हानि ) कहता है, " आप लोग एक किलो तो नमक खा गए ।
लेकिन बिलकुल भी झगड़ा नही हुआ। मेरा यहाँ कोई काम नहीं।" निचोङ झगड़ा कमजोरी, हानि, नुकसान की पहचान है। जहाँ प्रेम है, वहाँ लक्ष्मी का वास है। सदा प्यार -प्रेम बांटते रहे। छोटे -बङे की कदर करे ।
जो बङे हैं, वो बङे ही रहेंगे । चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई से बङी हो।
उसने विनती की नुकसान आए तो आने दो । लेकिन उससे कहना की मेरे परिवार में आपसी प्रेम बना रहे। बस मेरी यही इच्छा है। लक्ष्मी जी ने तथास्तु कहा। कुछ दिन के बाद सुनार की सबसे छोटी बहू खिचड़ी बना रही थी। उसने नमक आदि डाला और अन्य काम करने लगी। तब दूसरे लड़के की बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई। इसी प्रकार तीसरी, चौथी बहुएं आई और नमक डालकर चली गई उनकी सास ने भी ऐसा किया। शाम को सबसे पहले सुनार आया। पहला निवाला मुह में लिया। देखा बहुत ज्यादा नमक है। लेकिन वह समझ गया नुकसान (हानि) आ चुका है। चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया। इसके बाद बङे बेटे का नम्बर आया। पहला निवाला मुह में लिया। पूछा पिता जी ने खाना खा लिया क्या कहा उन्होंने ? सभी ने उत्तर दिया-" हाँ खा लिया, कुछ नही बोले।" अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ नही बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ। इस प्रकार घर के अन्य सदस्य एक -एक आए। पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए। रात को नुकसान (हानि) हाथ जोड़कर सुनार से कहने लगा -,"मै जा रहा हूँ।" सुनार ने पूछा- क्यों ? तब नुकसान (हानि ) कहता है, " आप लोग एक किलो तो नमक खा गए ।
लेकिन बिलकुल भी झगड़ा नही हुआ। मेरा यहाँ कोई काम नहीं।" निचोङ झगड़ा कमजोरी, हानि, नुकसान की पहचान है। जहाँ प्रेम है, वहाँ लक्ष्मी का वास है। सदा प्यार -प्रेम बांटते रहे। छोटे -बङे की कदर करे ।
जो बङे हैं, वो बङे ही रहेंगे । चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई से बङी हो।
Sunday, June 4, 2017
गरीब आदमी
जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई, एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे
में घुस पडे़।दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा
था।जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।टीसी को
टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए।
" ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।" कह टीसी आगे चला गया।
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। " साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।" टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी।देश में बुलेट ट्रेन जो आ रही है।एक लाख करोड़ का खर्च है।कहाँ से आयेगा इतना पैसा ? रसीद बना-बनाकर ही तो जमा करना है।ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।" इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो। पास ही खड़े दो यात्री बतिया रहे थे।" ये बुलेट ट्रेन क्या बला है ? "
" बला नहीं जादू है जादू।बिना पासपोर्ट के जापान की सैर। जमीन पर चलने वाला हवाई जहाज है, और इसका किराया भी हबाई सफ़र के बराबर होगा, बिना रिजर्वेशन उसे देख भी लो तो चालान हो जाएगा। एक लाख करोड़ का प्रोजेक्ट है। राजा हरिश्चंद्र को भी ठेका मिले तो बिना एक पैसा खाये खाते में करोड़ों जमा हो जाए।
सुना है, "अच्छे दिन " इसी ट्रेन में बैठकर आनेवाले हैं। "
उनकी इन बातों पर आसपास के लोग मजा ले रहे थे। मगर वे दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे
ऐसे बैठे थे मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके सोग में जा रहे हो। कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए? क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं। आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।" पत्नी के कहा। " मगर मुन्ने के कम करना....""
और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-" इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।" उसकी आँख फिर छलके पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें
मोदीजी को वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत
" ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।" कह टीसी आगे चला गया।
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। " साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।" टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी।देश में बुलेट ट्रेन जो आ रही है।एक लाख करोड़ का खर्च है।कहाँ से आयेगा इतना पैसा ? रसीद बना-बनाकर ही तो जमा करना है।ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।" इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो। पास ही खड़े दो यात्री बतिया रहे थे।" ये बुलेट ट्रेन क्या बला है ? "
" बला नहीं जादू है जादू।बिना पासपोर्ट के जापान की सैर। जमीन पर चलने वाला हवाई जहाज है, और इसका किराया भी हबाई सफ़र के बराबर होगा, बिना रिजर्वेशन उसे देख भी लो तो चालान हो जाएगा। एक लाख करोड़ का प्रोजेक्ट है। राजा हरिश्चंद्र को भी ठेका मिले तो बिना एक पैसा खाये खाते में करोड़ों जमा हो जाए।
सुना है, "अच्छे दिन " इसी ट्रेन में बैठकर आनेवाले हैं। "
उनकी इन बातों पर आसपास के लोग मजा ले रहे थे। मगर वे दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे
ऐसे बैठे थे मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके सोग में जा रहे हो। कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए? क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं। आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।" पत्नी के कहा। " मगर मुन्ने के कम करना....""
और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-" इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।" उसकी आँख फिर छलके पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें
मोदीजी को वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत
Thursday, June 1, 2017
आपको भी सर्दी लगती है क्या
रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे कृष्ण प्रेरणा से ब्रज में आकर बस गये उनका कन्हैया से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया पर्दा हटाकर देखा तो हलवे में छोटी छोटी उँगलियों के निशान थे जिसे देख कर 'निक्सन' की आखों से अश्रु धारा बहने लगी क्यूँ कि इससे पहले भी वे कई बार भोग लगा चुके थे पर पहलेकभी ऐसा नहीं हुआ था | और एक दिन तो ऐसी घटना घटी कि सर्दियों का समय था, निक्सन जी कुटिया के बाहर सोते थे | ठाकुर जी को अंदर सुलाकर विधिवत रजाई ओढाकर फिर खुद लेटते थे | एक दिन निक्सन सो रहे थे मध्यरात्रि को अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें आवाज दी हो... दादा ! ओ दादा ! उन्होंने उठकर देखा जब कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे हो सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया.... दादा ! ओ दादा ! उन्होंने अंदर जाकर देखा तो पता चला की वे ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाना भूल गये थे | वे ठाकुर जी के पास जाकर बैठ गये और बड़े प्यार से बोले... ''आपको भी सर्दी लगती है क्या...?'' निक्सन का इतना कहना था कि ठाकुर जी के श्री विग्रह से आसुओं की अद्भुत धारा बह चली... ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सनजी भी फूट फूट कर रोने लगे.....
उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी | हे ठाकुर जी ! हम इस लायक तो नहीं कि ऐसे भाव के साथ आपके लिए रो सकें..... पर फिर भी इतनी प्रार्थना करते हैं कि.... ''हमारे अंतिम समय में हमे दर्शन भले ही न देना पर अंतिम समय तक ऐसा भाव जरूर दे देना जिससे आपके लिए तडपना और व्याकुल होना ही हमारी मृत्यु का कारण बने....''
उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी | हे ठाकुर जी ! हम इस लायक तो नहीं कि ऐसे भाव के साथ आपके लिए रो सकें..... पर फिर भी इतनी प्रार्थना करते हैं कि.... ''हमारे अंतिम समय में हमे दर्शन भले ही न देना पर अंतिम समय तक ऐसा भाव जरूर दे देना जिससे आपके लिए तडपना और व्याकुल होना ही हमारी मृत्यु का कारण बने....''
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