सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेके रात तक, रात से फिर सुबह तक........
सच
में ऐसा लगता है, किचन और खाना के अलावा ज़िन्दगी में कुछ और है ही नही। हर
औरत की दुविधा, कब और क्या बनाना है। कभी कभी लगता हैं खुद को ही पका
डालू।सॉरी । ऐसा बोलना नही चाहती पर ऐसा ही लगता है।
ऐसा
नही की मुझे खाना बनाना पसंद नही। मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है, और लोग
कहते है कि मै बहुत टेस्टी खाना बनाती हूँ। पर हर चीज़ की हद होती है। अगर
24 घंटे में 8 घंटे भी किचन में रहना पड़े तो कैसा लगेगा?
हमारे
यहाँ तोरू परवल कोई नही खाता। बैगन गोबी पसंद नही। करेले से तो एलर्जी है।
तो क्या रहा? आलू और भिंडी।पापा डाईबेटिक पेशेंट है, इसलिए आलू अवॉयड करते
हैं।
पति को छोले पनीर पसंद है, पापा को भाती नही। पापा को मंगोड़ी पापड़ पसंद हैं, पति ने आज तक चखा नही।
अब हमारी प्यारी माताजी।दांतों का इलाज चल रहा हैं। चावल खिचड़ी उपमा, उनको भाता नही। बचा बिचारा दलिया। उसके साथ भी कढ़ी और आलू।
अब
सुनो ये रात से सुबह तक के किस्से। कभी रात 12 बजे दही ज़माना याद आता हैं।
कभी रात के 1 बजे चने भिगोने।कभी 2 बजे लगता है कहीं किचन की मोटर तो ओंन
नही। कभी 3 बजे फ्रीजर से बोतल निकालना। 4 बज गए तो दही अंदर रख दु नही तो
खट्टा हो जाएगा।
क्या करूँ मैं और मेरे जैसी बिचारियाँ
ये
किचन कॉलिंग यही खत्म नही होता। बच्चे 7 बजे दूध पीते है, माँ पापा 8 बजे
चाय। पति देव 9 बजे कॉफ़ी।बच्चे 10 बजे नास्ता करते है, पति 11 और माँ 12।
सासु माँ 2 बजे लंच करती हैं । बच्चे 3 बजे। थैंक्स गॉड, इनका और पापा का लंच पैक होता हैं।
डिनर की तो पूछो मत। बच्चे 8 बजे। पापा 9 बजे। माँ 10 बजे और पति देव 11 बजे।
12 से 4 की कहानी तो मैं पहले ही सुना चुकी हूँ।
सच बोलू तो ये कोई व्यंग्य नही है। मेरी ज़िंदगी की हकीकत हैं। पहले पहले तो रोती थीं, ये सब अखरता था, सारा दिन चिड़चिड़ी रहती थी।
फिर
किसी ने मुझे समझाया, जो चीज़ हम बदल नही सकते, उसे accept करो और enjoy
करो।इसलिए अब इसे व्यंग्य के रूप में बता कर हँस लेती हूँ और हँसा देती
हूँ।
No comments:
Post a Comment