एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक युवक था जिसका नाम था मोहन। मोहन एक मेहनती और सपनों से भरा हुआ लड़का था। वह अपने जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता था, लेकिन उसकी मूर्खता अक्सर उसे कष्ट में डाल देती थी। उसकी माँ हमेशा उसे समझाती थी, "बेटा, अपनी मूर्खताओं से सीखो। यह तुम्हारे लिए कष्टदायक होगा।"
मोहन ने गाँव के एक बड़े शहर में काम करने का निश्चय किया, जहाँ उसने सुना था कि वहाँ के लोग अच्छा कमाते हैं। वह अपने माता-पिता को छोड़कर शहर चला गया। शहर में पहुँचकर, उसने एक बड़े व्यवसायी के यहाँ नौकरी कर ली। व्यवसायी ने उसे काम पर रखा, लेकिन मोहन की मूर्खता से उसके काम में बाधा आने लगी। वह अक्सर समय पर नहीं आता था और काम में ध्यान नहीं देता था।
एक दिन, व्यवसायी ने मोहन को बुलाया और कहा, "तुम्हारी मूर्खता के कारण मेरा काम प्रभावित हो रहा है। यदि तुम अपनी स्थिति नहीं सुधारोगे, तो तुम्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा।" मोहन को यह बात समझ में आई, लेकिन वह फिर भी अपने व्यवहार को सुधारने में असफल रहा।
कुछ दिनों बाद, शहर में एक मेले का आयोजन हुआ। मोहन ने सोचा कि उसे मेले में जाकर मज़े करने चाहिए। उसने अपने काम को नजरअंदाज किया और मेले में चला गया। वहाँ उसने बहुत सारे पैसे खर्च किए, और जब वह वापस आया, तो उसे अपने काम का ख्याल आया। व्यवसायी ने उसे बर्खास्त कर दिया। अब मोहन को अपनी मूर्खता का दुख हुआ, लेकिन अब उसके पास कोई विकल्प नहीं था।
इस घटना के बाद, मोहन ने सोचा कि वह अपने गाँव लौट जाएगा। लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे, और उसे दूसरे के घर में रहना पड़ा। उसने एक सहकर्मी के घर में रहने का निश्चय किया। उस सहकर्मी का नाम था राजू, जो अपने परिवार के साथ शहर में रह रहा था।
राजू ने मोहन को अपने घर में रहने दिया, लेकिन उसके घर के नियमों का पालन करना अनिवार्य था। राजू की पत्नी, सुमन, ने मोहन से कहा, "हमारे घर में शांति और अनुशासन होना चाहिए। कृपया ध्यान रखें।" मोहन ने हामी भरी, लेकिन उसके मन में यह सोच थी कि वह राजू के घर में रहकर कुछ खास नहीं कर सकेगा।
कुछ दिनों बाद, मोहन को महसूस हुआ कि राजू और सुमन के घर में रहना उसके लिए कष्टदायक हो रहा है। उन्हें अपनी दिनचर्या में व्यवस्थित रहना था, और मोहन को उनकी आदतों में भी सामंजस्य बैठाना पड़ता था। राजू हमेशा काम पर जाता था, और सुमन घर का काम करती थी। मोहन को अक्सर उनकी बातें सुननी पड़ती थीं, और वह उनके रहन-सहन में अपनी स्वतंत्रता महसूस नहीं कर पा रहा था।
एक दिन, जब राजू और सुमन काम पर चले गए, तो मोहन ने निर्णय लिया कि अब वह यहाँ और नहीं रह सकता। उसने अपने मन में ठान लिया कि वह वापस गाँव लौटेगा। लेकिन उसे यह भी महसूस हुआ कि उसकी मूर्खता और बेवकूफी के कारण उसे यह कष्ट भोगना पड़ा था।
मोहन ने राजू और सुमन को धन्यवाद कहा और कहा, "मैं अब यहाँ नहीं रह सकता। मुझे अपने गाँव वापस जाना है। मैंने समझ लिया है कि मूर्खता वास्तव में कष्टदायक होती है।" राजू ने उसे समझाया, "बेटा, हम सब गलती करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि हम उनसे सीखें।"
मोहन ने इस सलाह को मान लिया और गाँव लौटने का निर्णय लिया। अपने गाँव पहुँचकर, उसने अपने माता-पिता से माफी मांगी और ठान लिया कि वह अब से अपनी मूर्खता को छोड़कर एक समझदार इंसान बनेगा।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मूर्खता और यौवन के कष्ट तो सहन किए जा सकते हैं, लेकिन किसी और के घर में रहना, जहाँ आपको अपनी स्वतंत्रता का अभाव महसूस हो, उससे भी अधिक कष्टदायक होता है।
मोहन ने सीखा कि जीवन में अपनी मूर्खताओं से सबक लेना और दूसरों की सीमाओं का सम्मान करना आवश्यक है। हर व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी में स्वतंत्रता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, और इसके लिए हमें अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
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