Tuesday, July 22, 2025

संघर्ष जितना बड़ा होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी!

छोटे से गांव धनपुर में रहने वाला अजय एक गरीब किसान का बेटा था। उसके पिता दिन-रातखेतों में मेहनत करते थेलेकिन फिर भी परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। अजय पढ़ाई मेंबहुत अच्छा थालेकिन उसके पास अच्छे स्कूल में पढ़ने या ट्यूशन लेने के पैसे नहीं थे।


गांव के लोग कहते, "किसान का बेटा किसान ही बनेगाबड़े सपने मत देखो!" लेकिन अजय कीमां हमेशा उसे एक ही बात सिखाती, "संघर्ष जितना बड़ा होगाजीत उतनी ही शानदार होगी!"


संघर्ष की शुरुआत


अजय का सपना था कि वह एक IAS अधिकारी बने और अपने गांव की हालत बदले। लेकिनउसके पास किताबें खरीदने तक के पैसे नहीं थे। वह गांव के एक सरकारी स्कूल में पढ़ता थाजहांसुविधाएं बहुत कम थीं।


रात को बिजली नहीं होती थीतो वह मिट्टी के दीये की रोशनी में पढ़ाई करता। कभी-कभी उसेमजदूरी भी करनी पड़तीताकि घर की आर्थिक मदद कर सके। लेकिन उसने हार नहीं मानी।


पहली चुनौती


बारहवीं की परीक्षा के बाद अजय ने दिल्ली जाकर UPSC की तैयारी करने का फैसला किया।लेकिन समस्या थीपढ़ाई और रहने के लिए पैसे कहां से आएंगे?


उसने खुद पर भरोसा रखा और मेहनत करने की ठानी। दिन में वह एक छोटी नौकरी करता और रातको पढ़ाई करता। वह लाइब्रेरी में घंटों बैठकर किताबें पढ़ता और सीनियर छात्रों से नोट्स मांगकरपढ़ाई करता।

 

संघर्ष और धैर्य


UPSC की परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक थी। अजय ने पूरी मेहनत से पढ़ाईकीलेकिन पहले प्रयास में वह असफल हो गया।


लोगों ने ताने मारे, "देखागरीब का बेटा अफसर नहीं बन सकता!"


लेकिन अजय ने हार नहीं मानी। उसने अपनी गलतियों से सीखा और दुगुनी मेहनत से तैयारी करनेलगा।


संघर्ष का इनाम


तीसरे प्रयास में अजय ने UPSC की परीक्षा पास कर लीजब रिजल्ट आया और उसका नामटॉपर्स की सूची में थातो उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे।


गांव में जब वह बतौर IAS अधिकारी वापस लौटातो वही लोग जो उसे ताने मारते थेअब गर्वसे उसका स्वागत कर रहे थे।


सफलता की कहानी


आज अजय एक सफल अधिकारी है और उसने अपने गांव में शिक्षा और रोजगार के कई नएअवसर बनाए हैं। जब लोग उससे उसकी सफलता का राज पूछते हैंतो वह बस यही कहता

"संघर्ष जितना बड़ा होगाजीत उतनी ही शानदार होगी!"

Monday, July 21, 2025

सपनों की उड़ान

 सपनों को सच करने से पहलेउन्हें देखने की हिम्मत करनी पड़ती है।"

यह पंक्ति सुनकर शायद बहुत से लोग मुस्कुरा देंगेलेकिन जो इसका मतलब समझते हैंउनके लिए यह ज़िंदगी बदल देने वाली बात है।

यह कहानी है बिहार के छोटे से गाँव "नवगांवके एक लड़केराघव की। राघव का परिवार बहुतसाधारण था। पिता गाँव के स्कूल में चपरासी थे और माँ घर पर सिलाई का काम करती थीं। घरमें सुविधाएँ  के बराबर थींलेकिन राघव के मन में हमेशा एक सपना पल रहा था — वोआसमान को छूना चाहता था।


जब राघव आसमान में उड़ते हवाई जहाज़ को देखतातो उसके मन में एक अजीब सी बेचैनीहोती। वह अपने दोस्तों से कहता, "एक दिन मैं भी इन बादलों के ऊपर उड़ूँगापायलट बनूँगा।"

दोस्त हँसते, "अरे राघवसपने मत देख। हमारे जैसे गाँव वालों के लिए ये सब नहीं है।"


लेकिन राघव के दिल में एक चिंगारी थी। वह जानता था कि सपनों को सच करने के लिए पहलेउन्हें देखने की हिम्मत चाहिए। उसे यह भी पता था कि उसके पास  पैसे थे साधनऔर  हीकोई जान-पहचान। पर सपनों की कोई कीमत नहीं होती — देखने के लिए बस हौसला चाहिए।


स्कूल के बाद वह अपने पिता के साथ स्कूल की सफाई करतामाँ के साथ कपड़े सिलाने में हाथबँटातालेकिन किताबों से प्यार कभी कम नहीं हुआ। गाँव की लाइब्रेरी में जाकर वह हर उसकिताब को पढ़ताजिसमें आसमानविज्ञान और पायलट बनने की बात होती। अंग्रेज़ी कमजोरथीलेकिन उसने खुद से सीखनी शुरू की।


समय बीतता गया। स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई। राघव ने अच्छे अंकों से परीक्षा पास कीलेकिनआगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। परिवार का खर्च भी चलाना था। पिता ने कहा, "बेटाअबकोई छोटी-मोटी नौकरी कर ले। सपनों से पेट नहीं भरता।"


राघव की आँखों में आँसू थेलेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने गाँव में बच्चों को ट्यूशन पढ़ानाशुरू किया और जो भी पैसे मिलतेवह उन्हें जमा करता। उसके दोस्त अब शहर जाकर काम करनेलगे थेलेकिन राघव अपने सपने के पीछे लगा रहा।


एक दिन उसे पता चला कि सरकार पायलट की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप देती है। शर्त थी किप्रवेश परीक्षा में अच्छे अंक लाने होंगे।

राघव ने दिन-रात मेहनत शुरू कर दी। नींदआराममनोरंजन — सब छोड़कर सिर्फ एक लक्ष्य परफोकस किया — अपने सपने को सच करना।


परीक्षा का दिन आया। राघव ने परीक्षा दीलेकिन परिणाम आने तक उसके मन में कई बार डरसंशय और निराशा की लहरें उठीं। लेकिन वह खुद से यही कहता रहा — "अगर सपना देखा हैतोडर के आगे भाग नहीं सकता।"


परिणाम आया। राघव का चयन हो गया था।


अब असली संघर्ष शुरू हुआ। पायलट ट्रेनिंग आसान नहीं थी। शहर का माहौलअंग्रेज़ी में पढ़ाईमहँगी किताबें और उसके जैसे साधारण परिवार से आए बच्चे के लिए हर दिन एक नई चुनौतीथी। कई बार उसे खुद पर शक होतालेकिन फिर माँ के शब्द याद आते —

"जो सपना देखने की हिम्मत करता हैवही उसे सच करने की ताकत भी पाता है।"


राघव ने हर कठिनाई का सामना किया। उसने समय से पहले उड़ान के नियम सीखेअतिरिक्तप्रैक्टिस कीहर गलती से सीखा। धीरे-धीरे वह बाकी छात्रों के साथ खड़ा हो गया।


कई सालों के संघर्ष के बादवह दिन आया जब राघव अपने पहले फ्लाइट की वर्दी में खड़ा था।उसके सीने पर "कमर्शियल पायलटका बैज चमक रहा था।

जब वह पहली बार कॉकपिट में बैठा और आसमान की तरफ देखातो उसे अपना पुराना गाँवअपने पिता की झुकी हुई कमरमाँ के सिले हुए कपड़े और दोस्तों की हँसी याद आई। उसने मनही मन कहा —

"देखोमैंने सपना देखने की हिम्मत की थीइसलिए आज मैं यहाँ हूँ।"


कुछ समय बाद राघव ने गाँव लौटकर एक सभा में बच्चों से कहा —

"बचपन में जब मैं कहता था कि पायलट बनूंगालोग हँसते थे। पर आज मैं वही हूँ। क्योंकि मैंनेसबसे पहले सपना देखने की हिम्मत की। याद रखोअगर तुम्हारे अंदर हिम्मत हैतो हालात बदलसकते हैंदुनिया झुक सकती है।

सपनों को सच करने से पहलेउन्हें देखने की हिम्मत करनी पड़ती है।"


राघव ने अपने गाँव में एक छोटी लाइब्रेरी खोलीताकि हर बच्चा सपनों को पढ़ सकेसमझ सकेऔर देखने की हिम्मत कर सके।

वचन का मान