Saturday, November 23, 2019
येसवाल ज़रूर पूछुंगा
Wednesday, November 6, 2019
लौटना कभी आसान नहीं होता
Thursday, October 31, 2019
माँ की ममता
Wednesday, September 18, 2019
गायत्री निवास
बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर वापस आ शालू खिन्न मन से टैरेस पर जाकर बैठ गई.
सुहावना मौसम, हल्के बादल और पक्षियों का मधुर गान कुछ भी उसके मन को वह सुकून नहीं दे पा रहे थे, जो वो अपने पिछले शहर के घर में छोड़ आई थी.
शालू की इधर-उधर दौड़ती सरसरी नज़रें थोड़ी दूर एक पेड़ की ओट में खड़ी बुढ़िया पर ठहर गईं.
ओह! फिर वही बुढ़िया, क्यों इस तरह से उसके घर की ओर ताकती है ?
शालू की उदासी बेचैनी में तब्दील हो गई, मन में शंकाएं पनपने लगीं. इससे पहले भी शालू उस बुढ़िया को तीन-चार बार नोटिस कर चुकी थी.
दो महीने हो गए थे शालू को पूना से गुड़गांव शिफ्ट हुए, मगर अभी तक एडजस्ट नहीं हो पाई थी.
पति सुधीर का बड़े ही शॉर्ट नोटिस पर तबादला हुआ था, वो तो आते ही अपने काम और ऑफ़िशियल टूर में व्यस्त हो गए. छोटी शैली का तो पहली क्लास में आराम से एडमिशन हो गया, मगर सोनू को बड़ी मुश्किल से पांचवीं क्लास के मिड सेशन में एडमिशन मिला. वो दोनों भी धीरे-धीरे रूटीन में आ रहे थे, लेकिन शालू, उसकी स्थिति तो जड़ से उखाड़कर दूसरी ज़मीन पर रोपे गए पेड़ जैसी हो गई थी, जो अभी भी नई ज़मीन नहीं पकड़ पा रहा था.
सब कुछ कितना सुव्यवस्थित चल रहा था पूना में. उसकी अच्छी जॉब थी. घर संभालने के लिए अच्छी मेड थी, जिसके भरोसे वह घर और रसोई छोड़कर सुकून से ऑफ़िस चली जाती थी. घर के पास ही बच्चों के लिए एक अच्छा-सा डे केयर भी था. स्कूल के बाद दोनों बच्चे शाम को उसके ऑफ़िस से लौटने तक वहीं रहते. लाइफ़ बिल्कुल सेट थी, मगर सुधीर के एक तबादले की वजह से सब गड़बड़ हो गया.
यहां न आस-पास कोई अच्छा डे केयर है और न ही कोई भरोसे लायक मेड ही मिल रही है. उसका केरियर तो चौपट ही समझो और इतनी टेंशन के बीच ये विचित्र बुढ़िया. कहीं छुपकर घर की टोह तो नहीं ले रही? वैसे भी इस इलाके में चोरी और फिरौती के लिए बच्चों का अपहरण कोई नई बात नहीं है. सोचते-सोचते शालू परेशान हो उठी.
दो दिन बाद सुधीर टूर से वापस आए, तो शालू ने उस बुढ़िया के बारे में बताया. सुधीर को भी कुछ चिंता हुई, “ठीक है, अगली बार कुछ ऐसा हो, तो वॉचमैन को बोलना वो उसका ध्यान रखेगा, वरना फिर देखते हैं, पुलिस कम्प्लेन कर सकते हैं.” कुछ दिन ऐसे ही गुज़र गए.
शालू का घर को दोबारा ढर्रे पर लाकर नौकरी करने का संघर्ष जारी था, पर इससे बाहर आने की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही थी
एक दिन सुबह शालू ने टैरेस से देखा, वॉचमैन उस बुढ़िया के साथ उनके मेन गेट पर आया हुआ था. सुधीर उससे कुछ बात कर रहे थे. पास से देखने पर उस बुढ़िया की सूरत कुछ जानी पहचानी-सी लग रही थी. शालू को लगा उसने यह चेहरा कहीं और भी देखा है, मगर कुछ याद नहीं आ रहा था. बात करके सुधीर घर के अंदर आ गए और वह बुढ़िया मेन गेट पर ही खड़ी रही
अरे, ये तो वही बुढ़िया है, जिसके बारे में मैंने आपको बताया था. ये यहां क्यों आई है ?” शालू ने चिंतित स्वर में सुधीर से पूछा.
बताऊंगा तो आश्चर्यचकित रह जाओगी. जैसा तुम उसके बारे में सोच रही थी, वैसा कुछ भी नहीं है. जानती हो वो कौन है ?
शालू का विस्मित चेहरा आगे की बात सुनने को बेक़रार था.
वो इस घर की पुरानी मालकिन हैं. क्या ? मगर ये घर तो हमने मिस्टर शांतनु से ख़रीदा है. ये लाचार बेबस बुढ़िया उसी शांतनु की अभागी मां है, जिसने पहले धोखे से सब कुछ अपने नाम करा लिया और फिर ये घर हमें बेचकर विदेश चला गया, अपनी बूढ़ी मां गायत्री देवी को एक वृद्धाश्रम में छोड़कर.
छी… कितना कमीना इंसान है, देखने में तो बड़ा शरीफ़ लग रहा था.”
सुधीर का चेहरा वितृष्णा से भर उठा. वहीं शालू याद्दाश्त पर कुछ ज़ोर डाल रही थी.
हां, याद आया. स्टोर रूम की सफ़ाई करते हुए इस घर की पुरानी नेमप्लेट दिखी थी. उस पर ‘गायत्री निवास’ लिखा था, वहीं एक राजसी ठाठ-बाटवाली महिला की एक पुरानी फ़ोटो भी थी. उसका चेहरा ही इस बुढ़िया से मिलता था, तभी मुझे लगा था कि इसे कहीं देखा है, मगर अब ये यहां क्यों आई हैं ?
क्या घर वापस लेने ? पर हमने तो इसे पूरी क़ीमत देकर ख़रीदा है.” शालू चिंतित हो उठी.
नहीं, नहीं. आज इनके पति की पहली बरसी है. ये उस कमरे में दीया जलाकर प्रार्थना करना चाहती हैं, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी.”
इससे क्या होगा, मुझे तो इन बातों में कोई विश्वास नहीं.”
तुम्हें न सही, उन्हें तो है और अगर हमारी हां से उन्हें थोड़ी-सी ख़ुशी मिल जाती है, तो हमारा क्या घट जाएगा ?
ठीक है, आप उन्हें बुला लीजिए.” अनमने मन से ही सही, मगर शालू ने हां कर दी.
गायत्री देवी अंदर आ गईं. क्षीण काया, तन पर पुरानी सूती धोती, बड़ी-बड़ी आंखों के कोरों में कुछ जमे, कुछ पिघले से आंसू. अंदर आकर उन्होंने सुधीर और शालू को ढेरों आशीर्वाद दिए.
नज़रें भर-भरकर उस पराये घर को देख रही थीं, जो कभी उनका अपना था. आंखों में कितनी स्मृतियां, कितने सुख और कितने ही दुख एक साथ तैर आए थे.
वो ऊपरवाले कमरे में गईं. कुछ देर आंखें बंद कर बैठी रहीं. बंद आंखें लगातार रिस रही थीं.
फिर उन्होंने दिया जलाया, प्रार्थना की और फिर वापस से दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहने लगीं, “मैं इस घर में दुल्हन बनकर आई थी. सोचा था, अर्थी पर ही जाऊंगी, मगर…” स्वर भर्रा आया था.
“यही कमरा था मेरा. कितने साल हंसी-ख़ुशी बिताए हैं यहां अपनों के साथ, मगर शांतनु के पिता के जाते ही…” आंखें पुनः भर आईं.
शालू और सुधीर नि:शब्द बैठे रहे. थोड़ी देर घर से जुड़ी बातें कर गायत्री देवी भारी क़दमों से उठीं और चलने लगीं.
पैर जैसे इस घर की चौखट छोड़ने को तैयार ही न थे, पर जाना तो था ही. उनकी इस हालत को वो दोनों भी महसूस कर रहे थे.
आप ज़रा बैठिए, मैं अभी आती हूं.” शालू गायत्री देवी को रोककर कमरे से बाहर चली गई और इशारे से सुधीर को भी बाहर बुलाकर कहने लगी, “सुनिए, मुझे एक बड़ा अच्छा आइडिया आया है, जिससे हमारी लाइफ़ भी सुधर जाएगी और इनके टूटे दिल को भी आराम मिल जाएगा.
क्यों न हम इन्हें यहीं रख लें ?* *अकेली हैं, बेसहारा हैं और इस घर में इनकी जान बसी है. यहां से कहीं जाएंगी भी नहीं और हम यहां वृद्धाश्रम से अच्छा ही खाने-पहनने को देंगे उन्हें.”
तुम्हारा मतलब है, नौकर की तरह ?
नहीं, नहीं. नौकर की तरह नहीं. हम इन्हें कोई तनख़्वाह नहीं देंगे. काम के लिए तो मेड भी है. बस, ये घर पर रहेंगी, तो घर के आदमी की तरह मेड पर, आने-जानेवालों पर नज़र रख सकेंगी. बच्चों को देख-संभाल सकेंगी.
ये घर पर रहेंगी, तो मैं भी आराम से नौकरी पर जा सकूंगी. मुझे भी पीछे से घर की, बच्चों के खाने-पीने की टेंशन नहीं रहेगी.”
आइडिया तो अच्छा है, पर क्या ये मान जाएंगी ?”
“क्यों नहीं. हम इन्हें उस घर में रहने का मौक़ा दे रहे हैं, जिसमें उनके प्राण बसे हैं, जिसे ये छुप-छुपकर देखा करती हैं.”
और अगर कहीं मालकिन बन घर पर अपना हक़ जमाने लगीं तो ?”
तो क्या, निकाल बाहर करेंगे. घर तो हमारे नाम ही है. ये बुढ़िया क्या कर सकती है.”
ठीक है, तुम बात करके देखो.” सुधीर ने सहमति जताई.
शालू ने संभलकर बोलना शुरू किया, “देखिए, अगर आप चाहें, तो यहां रह सकती हैं.”
बुढ़िया की आंखें इस अप्रत्याशित प्रस्ताव से चमक उठीं. क्या वाक़ई वो इस घर में रह सकती हैं, लेकिन फिर बुझ गईं.
आज के ज़माने में जहां सगे बेटे ने ही उन्हें घर से यह कहते हुए बेदख़ल कर दिया कि अकेले बड़े घर में रहने से अच्छा उनके लिए वृद्धाश्रम में रहना होगा. वहां ये पराये लोग उसे बिना किसी स्वार्थ के क्यों रखेंगे ?
नहीं, नहीं. आपको नाहक ही परेशानी होगी.”
परेशानी कैसी, इतना बड़ा घर है और आपके रहने से हमें भी आराम हो जाएगा.”
हालांकि दुनियादारी के कटु अनुभवों से गुज़र चुकी गायत्री देवी शालू की आंखों में छिपी मंशा समझ गईं, मगर उस घर में रहने के मोह में वो मना न कर सकीं.
गायत्री देवी उनके साथ रहने आ गईं और आते ही उनके सधे हुए अनुभवी हाथों ने घर की ज़िम्मेदारी बख़ूबी संभाल ली.
सभी उन्हें अम्मा कहकर ही बुलाते. हर काम उनकी निगरानी में सुचारु रूप से चलने लगा.
घर की ज़िम्मेदारी से बेफ़िक्र होकर शालू ने भी नौकरी ज्वॉइन कर ली. सालभर कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला.
अम्मा सुबह दोनों बच्चों को उठातीं, तैयार करतीं, मान-मनुहार कर खिलातीं और स्कूल बस तक छोड़तीं. फिर किसी कुशल प्रबंधक की तरह अपनी देखरेख में बाई से सारा काम करातीं. रसोई का वो स्वयं ख़ास ध्यान रखने लगीं, ख़ासकर बच्चों के स्कूल से आने के व़क़्त वो नित नए स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन तैयार कर देतीं.
शालू भी हैरान थी कि जो बच्चे चिप्स और पिज़्ज़ा के अलावा कुछ भी मन से न खाते थे, वे उनके बनाए व्यंजन ख़ुशी-ख़ुशी खाने लगे थे.
बच्चे अम्मा से बेहद घुल-मिल गए थे. उनकी कहानियों के लालच में कभी देर तक टीवी से चिपके रहनेवाले बच्चे उनकी हर बात मानने लगे. समय से खाना-पीना और होमवर्क निपटाकर बिस्तर में पहुंच जाते.
अम्मा अपनी कहानियों से बच्चों में एक ओर जहां अच्छे संस्कार डाल रही थीं, वहीं हर व़क़्त टीवी देखने की बुरी आदत से भी दूर ले जा रही थीं.
शालू और सुधीर बच्चों में आए सुखद परिवर्तन को देखकर अभिभूत थे, क्योंकि उन दोनों के पास तो कभी बच्चों के पास बैठ बातें करने का भी समय नहीं होता था.
पहली बार शालू ने महसूस किया कि घर में किसी बड़े-बुज़ुर्ग की उपस्थिति, नानी-दादी का प्यार, बच्चों पर कितना सकारात्मक प्रभाव डालता है. उसके बच्चे तो शुरू से ही इस सुख से वंचित रहे, क्योंकि उनके जन्म से पहले ही उनकी नानी और दादी दोनों गुज़र चुकी थीं.
आज शालू का जन्मदिन था. सुधीर और शालू ने ऑफ़िस से थोड़ा जल्दी निकलकर बाहर डिनर करने का प्लान बनाया था. सोचा था, बच्चों को अम्मा संभाल लेंगी, मगर घर में घुसते ही दोनों हैरान रह गए. बच्चों ने घर को गुब्बारों और झालरों से सजाया हुआ था.*
वहीं अम्मा ने शालू की मनपसंद डिशेज़ और केक बनाए हुए थे. इस सरप्राइज़ बर्थडे पार्टी, बच्चों के उत्साह और अम्मा की मेहनत से शालू अभिभूत हो उठी और उसकी आंखें भर आईं.
इस तरह के वीआईपी ट्रीटमेंट की उसे आदत नहीं थी और इससे पहले बच्चों ने कभी उसके लिए ऐसा कुछ ख़ास किया भी नहीं था.
बच्चे दौड़कर शालू के पास आ गए और जन्मदिन की बधाई देते हुए पूछा, “आपको हमारा सरप्राइज़ कैसा लगा ?”
बहुत अच्छा, इतना अच्छा, इतना अच्छा… कि क्या बताऊं…” कहते हुए उसने बच्चों को बांहों में भरकर चूम लिया.
हमें पता था आपको अच्छा लगेगा. अम्मा ने बताया कि बच्चों द्वारा किया गया छोटा-सा प्रयास भी मम्मी-पापा को बहुत बड़ी ख़ुशी देता है, इसीलिए हमने आपको ख़ुशी देने के लिए ये सब किया.”
शालू की आंखों में अम्मा के लिए कृतज्ञता छा गई. बच्चों से ऐसा सुख तो उसे पहली बार ही मिला था और वो भी उन्हीं के संस्कारों के कारण.
केक कटने के बाद गायत्री देवी ने अपने पल्लू में बंधी लाल रुमाल में लिपटी एक चीज़ निकाली और शालू की ओर बढ़ा दी.
ये क्या है अम्मा ?
तुम्हारे जन्मदिन का उपहार.
शालू ने खोलकर देखा तो रुमाल में सोने की चेन थी.
वो चौंक पड़ी, “ये तो सोने की मालूम होती है.
हां बेटी, सोने की ही है. बहुत मन था कि तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें कोई तोहफ़ा दूं. कुछ और तो नहीं है मेरे पास, बस यही एक चेन है, जिसे संभालकर रखा था. मैं अब इसका क्या करूंगी. तुम पहनना, तुम पर बहुत अच्छी लगेगी.”
शालू की अंतरात्मा उसे कचोटने लगी. जिसे उसने लाचार बुढ़िया समझकर स्वार्थ से तत्पर हो अपने यहां आश्रय दिया, उनका इतना बड़ा दिल कि अपने पास बचे इकलौते स्वर्णधन को भी वह उसे सहज ही दे रही हैं.
नहीं, नहीं अम्मा, मैं इसे नहीं ले सकती.”
ले ले बेटी, एक मां का आशीर्वाद समझकर रख ले. मेरी तो उम्र भी हो चली. क्या पता तेरे अगले जन्मदिन पर तुझे कुछ देने के लिए मैं रहूं भी या नहीं.”
नहीं अम्मा, ऐसा मत कहिए. ईश्वर आपका साया हमारे सिर पर सदा बनाए रखे.” कहकर शालू उनसे ऐसे लिपट गई, जैसे बरसों बाद कोई बिछड़ी बेटी अपनी मां से मिल रही हो.
वो जन्मदिन शालू कभी नहीं भूली, क्योंकि उसे उस दिन एक बेशक़ीमती उपहार मिला था, जिसकी क़ीमत कुछ लोग बिल्कुल नहीं समझते और वो है नि:स्वार्थ मानवीय भावनाओं से भरा मां का प्यार. वो जन्मदिन गायत्री देवी भी नहीं भूलीं, क्योंकि उस दिन उनकी उस घर में पुनर्प्रतिष्ठा हुई थी.
घर की बड़ी, आदरणीय, एक मां के रूप में, जिसकी गवाही उस घर के बाहर लगाई गई वो पुरानी नेमप्लेट भी दे रही थी, जिस पर लिखा था
गायत्री निवास
Wednesday, September 11, 2019
समाज का एक अंग
एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।
एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी।
ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया।
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर *बकरे* को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई, जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था।
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।
तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी।
कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।
खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया।
कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया।
चूहा अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ……….
अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।
समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा समाज व पूरा देश खतरे में है।
Friday, August 30, 2019
मंदी
एक छोटे से शहर मे एक बहुत ही मश्हूर बनवारी लाल सामोसे बेचने वाला था। वो ठेला लगाकर रोज दिन में 500 समोसे खट्टी मीठी चटनी के साथ बेचता था रोज नया तेल इस्तमाल करता था और कभी अगर समोसे बच जाते तो उनको कुत्तो को खिला देता। बासी समोसे या चटनी का प्रयोग बिलकुल नहीं करता था, उसकी चटनी भी ग्राहकों को बहुत पसंद थी जिससे समोसों का स्वाद और बढ़ जाता था। कुल मिलाकर उसकी क्वालिटी और सर्विस बहुत ही बढ़िया थी।
उसका लड़का अभी अभी शहर से अपनी MBA की पढाई पूरी करके आया था।
एक दिन लड़का बोला पापा मैंने न्यूज़ में सुना है मंदी आने वाली है, हमे अपने लिए कुछ cost cutting करके कुछ पैसे बचाने चाहिए, उस पैसे को हम मंदी के समय इस्तेमाल करेंगे।
समोसे वाला: बेटा में अनपढ़ आदमी हु मुझे ये cost cutting wost cutting नहीं आता ना मुझसे ये सब होगा, बेटा तुझे पढ़ाया लिखाया है अब ये सब तू ही सम्भाल।
बेटा: ठीक है पिताजी आप रोज रोज ये जो फ्रेश तेल इस्तमाल करते हो इसको हम 80% फ्रेश और 20% पिछले दिन का जला हुआ तेल इस्तेमाल करेंगे।
अगले दिन समोसों का टेस्ट हल्का सा चेंज था पर फिर भी उसके 500 समोसे बिक गए और शाम को बेटा बोलता है देखा पापा हमने आज 20% तेल के पैसे बचा लिए और बोला पापा इसे कहते है COST CUTTING।
समोसे वाला: बेटा मुझ अनपढ़ से ये सब नहीं होता ये तो सब तेरे पढाई लिखाई का कमाल है।
लड़का:पापा वो सब तो ठीक है पर अभी और पैसे बचाने चाहिए। कल से हम खट्टी चटनी नहीं देंगे और जले तेल की मात्रा 30% प्रयोग में लेंगे।
अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए और स्वाद बदल जाने के कारन 100 समोसे नहीं बिके जो उसने जानवरो और कुत्तो को खिला दिए।
लड़का: देखा पापा मैंने बोला था ना मंदी आने वाली है आज सिर्फ 400 समोसे ही बिके हैं।
समोसे वाला: बेटा अब तुझे पढ़ाने लिखाने का कुछ फायदा मुझे होना ही चाहिए। अब आगे भी मंदी के दौर से तू ही बचा।
लड़का: पापा कल से हम मीठी चटनी भी नहीं देंगे और जले तेल की मात्रा हम 40% इस्तेमाल करेंगे और समोसे भी कल से 400 हीे बनाएंगे।
अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए पर सभी ग्राहकों को समोसे का स्वाद कुछ अजीब सा लगा और चटनी ना मिलने की वजह से स्वाद और बिगड़ा हुआ लगा।
शाम को लड़का अपने पिता से: देखा पापा, आज हमे 40% तेल , चटनी और 100 समोसे के पैसे बचा लिए। पापा इसे कहते है cost कटाई और कल से जले तेल की मात्रा 50% करदो और साथ में टिशू पेपर देना भी बंद करदो।
अगले दिन समोसों का स्वाद कुछ और बदल गया और उसके 300 समोसे ही बीके।
शाम को लड़का अपने पिता से: पापा बोला था ना आपको की मंदी आने वाली है।
समोसे वाला: हा बेटा तू सही कहता है मंदी आगई है अब तू आगे देख क्या करना है कैसे इस मंदी से लड़ें।
लड़का : पापा एक काम करते हैं, कल 200 समोसे ही बनाएंगे और जो आज 100 समोसे बचे है कल उन्ही को दोबारा तल कर मिलाकर बेचेंगे।
अगले दिन समोसों का स्वाद और बिगड़ गया, कुछ ग्राहकों ने समोसे खाते वक़्त बनवारी लाल को बोला भी और कुछ चुप चाप खाकर चले गए। आज उसके 100 समोसे ही बिके और 100 बच गए।
शाम को लड़का बनवारी लाल से: पापा देखा मैंने बोला था आपको और ज्यादा मंदी आएगी। अब देखो कितनी मंदी आगई है।
समोसे वाला: हाँ, बेटा तू सही बोलता है तू पढ़ा लिखा है समझदार है। अब् आगे कैसे करेगा?
लड़का: पापा कल हम आज के बचे हुए 100 समोसे दोबारा तल कर बेचेंगे और नए समोसे नहीं बनाएंगे।
अगले दिन उसके 50 समोसे ही बीके और 50 बच गए। ग्राहकों को समोसा का स्वाद बेहद ही ख़राब लगा और मन ही मन सोचने लगे बनवारी लाल आजकल कितने बेकार समोसे बनाने लगा है और चटनी भी नहीं देता कल से किसी और दुकान पर जाएंगे।
शाम को लड़का बोला, पापा देखा मंदी आज हमनें 50 समोसों के पैसे बचा लिए। अब कल फिर से 50 बचे हुए समोसे दोबारा तल कर गरम करके बचेंगे।
अगले दिन उसकी दुकान पर शाम तक एक भी ग्राहक नहीं आया और बेटा बोला देखा पापा मैंने बोला था आपको और मंदी आएगी और देखो आज एक भी ग्राहक नहीं आया और हमने आज भी 50 समोसे के पैसा बचा लिए। इसे कहते है Cost Cutting।
बनवारी लाल समोसे वाला : बेटा खुदा का शुक्र है तू पढ़ लिख लिया वरना इस मंदी का मुझ अनपढ़ को क्या पता की cost cutting क्या होता है।
और अब एक बात और सुन.....
बेटा : क्या.....????
बनवारी लाल समोसे वाला : कल से चुपचाप बर्तन धोने बैठ जाना यहाँ पर...... मंदी को मैं खुद देख लुंगा.....
Sunday, August 11, 2019
प्रभु चलिए
रात के ढाई बजे था, एक सेठ को नींद नहीं आ रही थी,
वह घर में चक्कर पर चक्कर लगाये जा रहा था।
पर चैन नहीं पड़ रहा था ।
आखिर थक कर नीचे उतर आया और कार निकाली
शहर की सड़कों पर निकल गया। रास्ते में एक मंदिर दिखा सोचा थोड़ी देर इस मंदिर में जाकर भगवान के पास बैठता हूँ।
प्रार्थना करता हूं तो शायद शांति मिल जाये।
वह सेठ मंदिर के अंदर गया तो देखा, एक दूसरा आदमी पहले से ही भगवान की मूर्ति के सामने बैठा था, मगर उसका उदास चेहरा, आंखों में करूणा दर्श रही थी।
सेठ ने पूछा " क्यों भाई इतनी रात को मन्दिर में क्या कर रहे हो ?"
आदमी ने कहा " मेरी पत्नी अस्पताल में है, सुबह यदि उसका आपरेशन नहीं हुआ तो वह मर जायेगी और मेरे पास आपरेशन के लिए पैसा नहीं है "
उसकी बात सुनकर सेठ ने जेब में जितने रूपए थे वह उस आदमी को दे दिए। अब गरीब आदमी के चहरे पर चमक आ गईं थीं ।
सेठ ने अपना कार्ड दिया और कहा इसमें फोन नम्बर और पता भी है और जरूरत हो तो निसंकोच बताना।
उस गरीब आदमी ने कार्ड वापिस दे दिया और कहा
"मेरे पास उसका पता है " इस पते की जरूरत नहीं है सेठजी
आश्चर्य से सेठ ने कहा "किसका पता है भाई
"उस गरीब आदमी ने कहा
"जिसने रात को ढाई बजे आपको यहां भेजा उसका"
इतने अटूट विश्वास से सारे कार्य पूर्ण हो जाते है
घर से जब भी बाहर जाये
तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर मिलकर जाएं
और
जब लौट कर आए तो उनसे जरूर मिले
क्योंकि
उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार रहता है
"घर" में यह नियम बनाइए की जब भी आप घर से बाहर निकले तो घर में मंदिर के पास दो घड़ी खड़े रह कर "प्रभु चलिए..आपको साथ में रहना हैं"..!
ऐसा बोल कर ही निकले क्यूँकि आप भले ही *"लाखों की घड़ी" हाथ में क्यूँ ना पहने हो पर "समय" तो "प्रभु के ही हाथ" में हैं न
-
यह कहानी एक आम लड़के, अर्जुन, की है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए अनछुई दूरीयों को तय करने का संकल्प करता है। अर्जुन गाँव का एक गरीब लड़...
-
यह कहानी है एक युवक, आर्यन, की जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए असफलता के कई मोड़ों से गुजरता है, परंतु उसकी मेहनत, आत्मविश्वास, और संघर्ष...
-
यह कहानी है एक छोटे से गाँव के एक युवक की, जिसका नाम विजय था। विजय गरीब परिवार से था, लेकिन उसमें अच्छे सपने और आत्मविश्वास की भावना थी। वह...