Wednesday, July 9, 2025

रुकना मत, चाहे थक जाओ

एक छोटा-सा पहाड़ी गाँव थानवगांव। यहाँ का एक साधारण लड़का था सागर। उसका सपनाथा आईएएस अफसर बनना। लेकिन उसके हालात उससे बिलकुल भी मेल नहीं खाते थे। पिताएक छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे और माँ खेतों में मजदूरी करती थीं। घर में चार छोटेभाई-बहन और एक ही कमराजहाँ सपनों को पनपने की जगह भी नहीं मिलती थी।


सागर पढ़ाई में तेज़ थालेकिन गरीबी ने उसे कई बार रोकने की कोशिश की। कई बार उसे भूखेपेट पढ़ना पड़ापुराने फटे कपड़ों में स्कूल जाना पड़ा। गाँव के लोग भी कहते,

इतनी बड़ी बातें मत सोचो सागरतुम्हारे जैसे लड़के मजदूरी ही करते हैं।


लेकिन सागर को अपने आप पर भरोसा था। उसने खुद से वादा किया था

रुकना नहीं हैचाहे जितना भी थक जाऊंचलना है... मंज़िल जरूर मिलेगी।


संघर्ष की शुरुआत


सागर ने बारहवीं अच्छे अंकों से पास कीलेकिन अब असली चुनौती थी सिविल सेवा की तैयारी।उसने शहर जाकर पढ़ने का निर्णय लियालेकिन पैसे नहीं थे। तब उसके पिता ने अपनी दुकान कीछोटी सी जमीन गिरवी रख दी और कहा,

बेटाजा... लेकिन हार के मत आना। हमारे सपनों की उम्मीद तू ही है।


दिल्ली पहुँचना उसके लिए किसी और दुनिया में कदम रखने जैसा था। वहाँ की भीड़किताबों कीकीमतेंकिरायासब कुछ बोझ की तरह था। लेकिन सागर ने हिम्मत नहीं हारी।

दिन में लाइब्रेरी जातारात में सब्ज़ी मंडी में मजदूरी करता।


थकावट और उम्मीद की लड़ाई


कई बार शरीर जवाब दे जाताआँखें नींद से बोझिल हो जातीं। एक रात वह फुटपाथ पर किताबलिए सो गया। पास से एक बुज़ुर्ग रिक्शाचालक गुज़राउसने उसे उठाया और कहा,

बेटासो जाओ… लेकिन सपने मत छोड़ना।


यह बात सागर के दिल में उतर गई। उसने तय कर लिया— अब कोई थकावटकोई भूखउसेरोक नहीं सकती।


पहला प्रयास – असफलता


तीन साल की मेहनत के बाद वह UPSC की परीक्षा में बैठा। उम्मीदें बहुत थींलेकिन वह प्रीपरीक्षा में ही रह गया। वह टूट गया। लगा जैसे सब खत्म हो गया हो। लेकिन उसी समय उसेअपनी माँ की बात याद आई,

बेटारुक मत जाना… मंज़िल सिर्फ चलने वालों को मिलती है।


सागर ने फिर से किताबें उठाईं। इस बार और ज्यादा जुनून के साथ। वह जान चुका था कि एककोशिश काफी नहीं होती।


दूसरा प्रयास – सफलता की ओर


अब उसके अंदर सिर्फ एक ही चीज़ थीसंकल्प। वह दिन-रात पढ़तागलतियों से सीखता औरखुद को बेहतर बनाता। अगले साल फिर परीक्षा दी और इस बार

उसका नाम मेरिट लिस्ट में था!

 

उसके गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। वही लोग जो कभी उसे रोकते थेअब उसकी मिसालें देनेलगे। उसके पिता की आँखों में आँसू थेगर्व के आँसू।


अंत में संदेश:


सागर अब एक आईएएस अफसर हैलेकिन वह आज भी कहता है:


 "अगर उस रात फुटपाथ पर मैं हार मान लेतातो आज यहाँ तक कभी नहीं पहुँचता।

रुकना मतचाहे थक जाओक्योंकि चलने वालों को ही मंज़िलें मिलती हैं।"


सीख:

यह कहानी हमें सिखाती है कि हालात चाहे जैसे भी होंअगर हौसला ज़िंदा है और कदम थमे नहींहैंतो मंज़िल जरूर मिलती है। जिंदगी की राहों में थकावट  सकती हैलेकिन रुक जाना हारहै।

Tuesday, July 8, 2025

उड़ान अभी बाकी है

 छोटे से शहर सीतापुर में रहने वाली एक लड़की थीनेहा। नेहा एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी।उसके पिता सरकारी क्लर्क थे और माँ गृहिणी। बचपन से ही नेहा का सपना था पायलट बननेका। आसमान में उड़ते जहाज़ों को देखकर उसकी आँखें चमक उठती थीं। वह अक्सर अपनी माँ सेकहती

एक दिन मैं भी इन बादलों के ऊपर उड़ूंगीमाँ।


माँ मुस्कुरा देतींलेकिन भीतर से उन्हें डर था कि ये सपना उनकी हैसियत से बहुत ऊपर है।


संघर्ष की शुरुआत


नेहा पढ़ाई में बहुत तेज़ थी। बारहवीं में उसने विज्ञान वर्ग में टॉप कियालेकिन पायलट ट्रेनिंग केलिए लाखों रुपये की ज़रूरत थी। उसके पिता की सैलरी इतनी नहीं थी कि वह उसे फ्लाइंग स्कूलभेज सकें। कई रिश्तेदारों ने कहा,

लड़की हैशिक्षक बन जाए तो अच्छा रहेगा। उड़ने के ख्वाब मत दिखाओ।

पर नेहा का आत्मविश्वास अडिग था। उसने एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाना शुरू किया औरसाथ-साथ छात्रवृत्ति पाने की कोशिश करने लगी।


पहली कोशिश – असफलता


नेहा ने पायलट ट्रेनिंग के लिए कई जगह आवेदन दिएलेकिन सब जगह पैसे या सिफारिश कीज़रूरत थी। एक दिन जब उसका अंतिम इंटरव्यू भी रिजेक्ट हो गयातो वह टूट गई। घर लौटकरमाँ से लिपटकर रोने लगी

शायद मेरा सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा माँ।


माँ ने उसका सिर सहलाते हुए कहा

बेटाएक नाकामी का मतलब ये नहीं कि सब खत्म हो गया। याद रखोजिंदगी की असलीउड़ान अभी बाकी हैजिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।

 

नेहा के भीतर फिर से ऊर्जा भर गई। उसने खुद से वादा किया— अब हार नहीं मानूंगी।


नई दिशा – नई शुरुआत


नेहा ने अब एयर फोर्स की परीक्षा की तैयारी शुरू की। दिन-रात मेहनत कीअपना पूरा समय औरमन लगा दिया। उसने एक बार फिर किताबों से दोस्ती कर ली और खुद को साबित करने के लिएकमर कस ली।


फाइनल मौका – और सफलता


इस बार किस्मत ने साथ दिया। नेहा का चयन भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) में होगया। ट्रेनिंग शुरू हुई तो शुरुआती दिनों में शारीरिक चुनौतियों और कठोर अनुशासन ने उसे थकादिया। लेकिन हर बार जब वह हारने लगतीमाँ की वो बात याद आती

अभी तो उड़ान बाकी है...”

 

और वह फिर उठ खड़ी होती।

 

उड़ान का दिन

 

तीन साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद वह दिन आया जब नेहा पहली बार खुद विमान उड़ाने वालीथी। पूरी यूनिट तालियों से गूंज उठी जब एक सामान्य मध्यम वर्गीय घर की लड़की ने आसमानको छू लिया।

 

जब नेहा अपने वायुसेना की वर्दी में गाँव लौटीतो पूरा इलाका उसके स्वागत में उमड़ पड़ा। वहीरिश्तेदार जो कभी उड़ने के सपने पर हँसते थेअब अपनी बेटियों को नेहा जैसा बनने की सलाह देरहे थे।


अंतिम संदेश:


आज नेहा एक स्क्वाड्रन लीडर है। वह जब भी किसी छात्रा से मिलती हैएक ही बात कहती है:


अगर तुम सपने देख सकती होतो उन्हें पूरा भी कर सकती हो।

रास्ते मुश्किल होंगेलेकिन याद रखना

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,

जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।

  

सीख:

 

यह कहानी हमें सिखाती है कि सपनों की उड़ान रुकावटों से नहींहिम्मत से तय होती है। अगर मनमें सच्चा इरादा हो और प्रयास ईमानदार होंतो मंज़िल कितनी भी ऊँची क्यों  होपाई जासकती है।