कहानी एक छोटे से गांव की है, जो कहीं किसानों की आत्मा का प्रतीक था। यह गांव अपनी हरियाली और प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन वहां के लोग बहुत ही गरीब थे। उनका प्रमुख जीवन धान के उत्पादन पर आधारित था, और उनकी रोजमर्रा की ज़िन्दगी की चुनौतियों ने उन्हें मजबूत बना दिया था।
इस छोटे से गांव में एक ऐसा व्यक्ति था जिसका नाम मोहन था। मोहन गरीबी के बावजूद एक बड़ा सपना देखता था। उसका सपना था एक अच्छा और सुखमय जीवन जीने का, लेकिन उसके पास किसी प्रकार के आर्थिक संसाधन नहीं थे।
मोहन का सपना था कि उसका बच्चा शिक्षित हो, और वह अपने परिवार को बेहतर जीवन दे सके। लेकिन उसकी सारी आशाएँ और सपने एक छोटे से घड़ी की टिक-टिक पर आश्रित थे।
मोहन गांव का एक लकड़हारा था, जिसका काम होता था पेड़ों को कटने का। वह हमेशा अपने कुल्हाड़ी के साथ बड़े उत्साह और संजीवनी शक्ति की तरह काम करता था। उसका प्रमुख सपना था कि वह एक दिन अपने परिवार के साथ बेहतर जीवन जी सके।
एक दिन, मोहन ने लकड़हारे से बात की और उससे अपने सपनों के बारे में बताया। लकड़हारा ने उसकी मेहनत और संघर्ष को सुना और कहा, "मोहन, जिन्दगी का रास्ता अकसर कठिन होता है, लेकिन हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। चुनौतियों को गले लगाना ही हमारे सपनों की ओर कदम बढ़ाने का मार्ग होता है।"
मोहन ने लकड़हारे के शब्दों से प्रेरणा ली और उसने अपने सपनों के लिए और भी मेहनत करना शुरू किया। वह हर दिन अपने काम में और अपने बच्चे की शिक्षा में लग जाता। वह कभी भी हार नहीं मानता और हमेशा आगे बढ़ता रहता।
समय बीतता गया, और मोहन का बच्चा बड़ा हो गया। वह एक बड़ा शिक्षित और सफल व्यक्ति बन गया, और मोहन के सपने को पूरा किया। मोहन ने अपने कठिन प्रयासों के बावजूद सफलता पाई, और उसने दिखाया कि घड़ी की टिक-टिक जीवन पर विजय पाई जा सकती है।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि जिन्दगी के हर पल को महत्वपूर्णीयता देना चाहिए, चाहे हमारे पास बड़े सपने हों या छोटे। हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए, और हमेशा मेहनत करना चाहिए, क्योंकि यह ही हमें सफलता की ओर बढ़ता है, जैसे कि मोहन ने किया।