Tuesday, February 12, 2019

पत्नि हो तो ऐैसी

बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...इसलिए  बात-बात पर  अपनी माँ से झगड़ पड़ता था .... ये  वही माँ थी जो बेटे के  लिए पति से भी लड़ जाती थी।मगर अब फाइनेसिअली   इंडिपेंडेंट बेटा  पिता के कई बार समझाने पर भी  इग्नोर  कर देता और कहता, "यही तो उम्र है शौक की, खाने पहनने की, जब  आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा।"
बहू खुशबू  भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इसलिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी। बेटे की नौकरी  अच्छी थी तो  फ्रेंड सर्किल  उसी हिसाब से मॉडर्न थी । बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती .....वो कहता "कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो। क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।"
और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि  लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।"
आज अचानक पापा   आई. सी. यू. में एडमिट  हुए थे। हार्ट अटेक आया  था। डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, तीन लाख और जमा करने थे। डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था मगर अब ये तीन लाख भारी लग रहे थे। वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे..... उसने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ बहाना कर दिया। आँखों में आँसू थे और वह उदास था।.....तभी खुशबू  खाने का टिफिन लेकर आई और बोली, "अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। ऐसे उदास होने से क्या होगा? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा आप चिन्ता मत करो । कुछ खा लो  फिर पैसों का इंतजाम भी तो करना है आपको।.... मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये। ".......पति की आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे।
"कहा न आप चिन्ता मत कीजिये। जिन दोस्तों के साथ आप मॉडर्न पार्टियां करते हैं आप उनको फ़ोन  कीजिये , देखिए तो सही, कौन कौन मदद को आता हैं।"......पति खामोश और सूनी निगाहों से जमीन की तरफ़ देख रहा था। कि खुशबू का   का हाथ  उसकी पीठ  पर आ गया। और वह पीठ  को सहलाने लगी।
"सबने मना कर दिया। सबने कोई न कोई बहाना बना दिया खुशबू ।आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है जब तक जेब में पैसा है। किसी ने  भी  हाँ नहीं  कहा  जबकि उनकी पार्टियों पर मैंने लाखों उड़ा दिये।"
"इसी दिन के लिए बचाने को तो माँ-बाबा कहते थे। खैर, कोई बात नहीं, आप चिंता न करो, हो जाएगा सब ठीक। कितना जमा कराना है?"
"अभी तो तनख्वाह मिलने में भी समय है, आखिर चिन्ता कैसे न करूँ खुशबू ?"
"तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा है।"
"क्या मतलब?"
"तुम जो नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए मुझे पैसे देते थे वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं। माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं। मेरे पास दो लाख थे। बाकी मैंने अपने भैया से मंगवा लिए हैं। टिफिन में सिर्फ़ एक ही डिब्बे में खाना है बाकी में पैसे हैं।" खुशबू  ने थैला टिफिन सहित उसके हाथों में थमा दिया।

"खुशबू ! तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें मॉडर्न बनाना चाहता था, हवा में उड़ रहा था। मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े.... आज वही काम आए हैं। "

सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू थे  उसे आज  खुद के नहीं  बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था  और वो  बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपरवाले का शुक्रिया अदा कर रही थी।

Sunday, February 10, 2019

मायने

एक   जंगल में दोपहर के वक्त एक खोह के बाहर एक खरगोश जल्दी-जल्दी अपने computer
 से कुछ टाइप कर रहा था l
तभी वहां एक लोमड़ी आई उसने खरगोश से पूछा ...
लोमड़ी - तुम क्या कर रहे हो ?
खरगोश - मैं थीसिस लिख रहा हूँ !
लोमड़ी - अच्छा ! किस बारे में लिख रहे हो ?
खरगोश - विषय है -- खरगोश किस तरह लोमड़ी को मार के खा जाता है ?

लोमड़ी - क्या बकवास है !! कोई मूर्ख भी बता देगा कि खरगोश कभी लोमड़ी को मार कर खा नहीं सकता ...

खरगोश - आओ मैं तुम्हें प्रत्यक्ष दिखाता हूँ  ...

ये कह कर खरगोश लोमड़ी के साथ खोह में घुस जाता है और कुछ मिनट बाद लोमड़ी की हड्डियाँ लेकर वापस आता है....

और दोबारा से टाइपिंग में व्यस्त हो जाता है..
थोड़ी देर बाद वहां एक भेड़िया घूमता-घामता आता है वो खरगोश से पूछता है ...
भेड़िया- क्या कर रहे हो इतने ध्यान से ....

खरगोश - थीसिस लिख रहा हूँ
भेड़िया - हा हा ह l!  किस बारे में जरा बताओ तो ?

खरगोश - विषय है - एक खरगोश किस तरह एक भेड़िये को खा गया ...

भेड़िया - गुस्से में .. मूर्ख ये कभी हो नहीं सकता ...

खरगोश - अच्छा !! आओ सबूत देता हूँ ..
और कह कर भेड़िये को उस खोह में ले गया ...

 थोड़ी देर बाद खरगोश भेड़िये की हड्डी लेकर बाहर आ गया....

और फिर टाइपिंग ...

उसी वक्त एक भालू वहां से गुजरा उसने पूछा ये हड्डियाँ कैसी पड़ी हैं ...

खरगोश ने कहा एक खरगोश ने इन्हें मार दिया ....

भालू हंसा ... और बोला मजाक अच्छा करते हो .. अब बताओ ये क्या लिख रहे हो .... ?

खरगोश - थीसिस लिख रहा हूँ ...एक खरगोश ने एक भालू को मार के कैसे खा लिया .....

भालू -- क्या कह रहे हो ?? ये कभी नहीं हो सकता !

खरगोश - चलो दिखाता हूँ ...

और खरगोश भालू को खोह में ले गया .....

जहां एक शेर बैठा था ......

इसी लिए ये मायने नहीं रखता कि आपकी थीसिस कितनी बकवास है या बेबुनियाद है

मायने रखता है ...
आपका गाइड कितना ताकतवर है 

Sunday, January 20, 2019

तकलीफ का स्वाद

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।

उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।*

कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था।

वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था।

मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी।

वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा।

परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था।

ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।

नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया।

वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"

 बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी।

दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।

 कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा।

उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे।

कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया।

वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया।

नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ।

 बादशाह ने दार्शनिक से पूछा : "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था। अब देखो, कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"

दार्शनिक बोला : "खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।"

Wednesday, January 9, 2019

बुद्धिमान व्यक्ति

एक गाँव में एक बुद्धिमान व्यक्ति रहता था। उसके पास 19 ऊंट थे। एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को, उसका एक चौथाई मेरी बेटी को, और उसका पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?

19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार फिर??

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।

सबने पहले तो सोचा कि एक वो पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10 बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5 बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4 नौकर को दे दिए।

10+5+4=19 बच गया एक ऊँट जो बुद्धिमान व्यक्ति का था वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

सो हम सब के जीवन में 5 ज्ञानेंद्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 प्राण, और 4 अंतःकरण चतुष्टय( मन,बुद्धि, चित्त, अहंकार) कुल 19 ऊँट होते हैं। सारा जीवन मनुष्य इन्हीं के बँटवारे में उलझा रहता है और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन (आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता) नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

Friday, January 4, 2019

कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है

एक बार एक अमीर आदमी कहीं जा रहा होता है तो उसकी कार ख़राब हो जाती है। उसका कहीं पहुँचना बहुत जरुरी होता है। उसको दूर एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई देता है। वो उस रिक्शा वाले पास जाता है। वहा जाकर देखता है कि रिक्शा वाले ने अपने पैर हैंडल के ऊपर रखे होते है। पीठ उसकी अपनी सीट पर होती है और सिर जहा सवारी बैठती है उस सीट पर होती है ।

 और वो मज़े से लेट कर गाना गुन-गुना रहा होता है। वो अमीर व्यक्ति रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान होता है कि एक व्यक्ति ऐसे बेआराम जगह में कैसे रह सकता है, कैसे खुश रह सकता है। कैसे गुन-गुना सकता है।

 वो उसको चलने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला झट से उठता है और उसे 20 रूपए देने के लिए बोलता है।

  रास्ते में वो रिक्शा वाला वही गाना गुन-गुनाते हुए मज़े से रिक्शा खींचता है। वो अमीर व्यक्ति एक बार फिर हैरान कि एक व्यक्ति 20 रूपए लेकर इतना खुश कैसे हो सकता है। इतने मज़े से कैसे गुन-गुना सकता है। वो थोडा इर्ष्यापूर्ण  हो जाता है और रिक्शा वाले को समझने के लिए उसको अपने बंगले में रात को खाने के लिए बुला लेता है। रिक्शा वाला उसके बुलावे को स्वीकार कर देता है।

 वो अपने हर नौकर को बोल देता है कि इस रिक्शा वाले को सबसे अच्छे खाने की सुविधा दी जाए। अलग अलग तरह के खाने की सेवा हो जाती है। सूप्स, आइस क्रीम, गुलाब जामुन सब्जियां यानि हर चीज वहाँ मौजूद थी।

  वो रिक्शा वाला खाना शुरू कर देता है, कोई प्रतिक्रिया, कोई घबराहट बयान नहीं करता। बस वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से वो खाना खाता है। सभी लोगो को ऐसे लगता है जैसे रिक्शा वाला ऐसा खाना पहली बार नहीं खा रहा है। पहले भी कई बार खा चुका है। वो अमीर आदमी एक बार फिर हैरान एक बार फिर इर्ष्यापूर्ण कि कोई आम आदमी इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देख के भी कोई हैरानी वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता और वैसे कैसे गुन-गुना रहा है जैसे रिक्शे में गुन-गुना रहा था।

 यह सब कुछ देखकर अमीर आदमी की इर्ष्या और बढती है।
अब वह रिक्शे वाले को अपने बंगले में कुछ दिन रुकने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला हाँ कर देता है।

  उसको बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है। कोई उसको जूते पहना रहा होता है, तो कोई कोट। एक बेल बजाने से तीन-तीन नौकर सामने आ जाते है। एक बड़ी साइज़ की टेलीविज़न स्क्रीन पर उसको प्रोग्राम दिखाए जाते है। और एयर-कंडीशन कमरे में सोने के लिए बोला जाता है।

 अमीर आदमी नोट करता है कि वो रिक्शा वाला इतना कुछ देख कर भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। वो वैसे ही साधारण चल रहा है। जैसे वो रिक्शा में था वैसे ही है। वैसे ही गाना गुन-गुना रहा है जैसे वो रिक्शा में गुन-गुना रहा था।

  अमीर आदमी के इर्ष्या बढ़ती चली जाती है और वह सोचता है कि अब तो हद ही हो गई। इसको तो कोई हैरानी नहीं हो रही, इसको कोई फरक ही नहीं पढ़ रहा। ये वैसे ही खुश है, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा।

 अब अमीर आदमी पूछता है: आप खुश हैं ना?
वो रिक्शा वाला कहते है: जी साहेब बिलकुल खुश हूँ।

  अमीर आदमी फिर पूछता है: आप आराम में  हैं ना ?
रिक्शा वाला कहता है: जी बिलकुल आरामदायक हूँ।

 अब अमीर आदमी तय करता है कि इसको उसी रिक्शा पर वापस छोड़ दिया जाये। वहाँ जाकर ही इसको इन बेहतरीन चीजो का एहसास होगा। क्योंकि वहाँ जाकर ये इन सब बेहतरीन चीजो को याद करेगा।

  अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी को बोलता है की इसको कह दो कि आपने दिखावे के लिए कह दिया कि आप खुश हो, आप आरामदायक हो। लेकिन साहब समझ गये है कि आप खुश नहीं हो आराम में नहीं हो। इसलिए आपको उसी रिक्शा के पास छोड़ दिया जाएगा।”

 सेक्रेटरी के ऐसा कहने पर रिक्शा वाला कहता है: ठीक है सर, जैसे आप चाहे, जब आप चाहे।

  उसे वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है जहाँ पर उसका रिक्शा था।

 अब वो अमीर आदमी अपने गाड़ी के काले शीशे ऊँचे करके उसे देखता है।

  रिक्शे वाले ने अपनी सीट उठाई बैग में से काला सा, गन्दा सा, मेला सा कपड़ा निकाला, रिक्शा को साफ़ किया, मज़े में बैठ गया और वही गाना गुन-गुनाने लगा।

 अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी से पूछता है: “कि चक्कर क्या है। इसको कोई फरक ही नहीं पड रहा इतनी आरामदायक वाली, इतनी बेहतरीन जिंदगी को ठुकरा के वापस इस कठिन जिंदगी में आना और फिर वैसे ही खुश होना, वैसे ही गुन-गुनाना।”

  फिर वो सेक्रेटरी उस अमीर आदमी को कहता है: “सर यह एक कामियाब इन्सान की पहचान है। एक कामियाब इन्सान वर्तमान में जीता है, उसको मनोरंजन (enjoy) करता है और बढ़िया जिंदगी की उम्मीद में अपना वर्तमान खराब नहीं करता।

 अगर उससे भी बढ़िया जिंदगी मिल गई तो उसे भी वेलकम करता है उसको भी मनोरंजन (enjoy) करता है उसे भी भोगता है और उस वर्तमान को भी ख़राब नहीं करता। और अगर जिंदगी में दुबारा कोई बुरा दिन देखना पड़े तो वो भी उस वर्तमान को उतने ही ख़ुशी से, उतने ही आनंद से, उतने ही मज़े से, भोगता है मनोरंजन करता है और उसी में आनंद लेता है।”

कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है, और अच्छे दिनों की उम्मीद में अपने वर्तमान को ख़राब नहीं करें। और न ही कम अच्छे दिनों में ज्यादा अच्छे दिनों को याद करके अपने वर्तमान को ख़राब करना है।

Monday, December 31, 2018

कौशल भूल जाउंगा


एक बार इंद्र भगवान ने गुस्से मे आकर सभी को श्राप दे दिया कि 12 साल वो बरसात नही करेंगे जिससे लोग पानी को तरसेंगे... 

लोगो मे हाहाकार मच गया
बडे बडे देवो ने समझाया पर इंद्र भगवान नही माने....

बारिश का महीना आया , इंद्रदेव ने बारिश नही की
पर एक किसान अपने बच्चो के साथ खेत मे गया और खेती के वो सभी काम करने लगा जो बरसात से पहले किये जाते है साथ मे वो अपने बच्चो को भी समझा रहा था के काम कैसे किया जाये... 

इंद्रदेव को देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि 12 साल तक पानी नही बरसेगा फिर भी ये काम क्यूं कर रहा है ????

इंद्रदेव ब्राह्मण का रूप धर के उसके पास गये और कहा , हे किसान क्या तूमने श्रापित आकाशवाणी नही सुनी कि12 साल बरसात नही होगी??? फिर क्यू खेत जोत रहे हो??? 

किसान ने कहा सुनी थी ब्राह्मणदेवता

पर अगर मै और मेंरे बेटे 12 साल काम नही करेंगे तो हम भूल जायेगे कि खेती कैसे करते है फिर बारिश होगी तो भूखो मर जायेंगे इसलिये हम खेती कर रहे है....

इंद्रदेव की आंखे खुल गई
वो सोचने लगे 12 साल मे तो शायद मैं भी बारिश गिराने का कौशल भूल जाउंगा...... 

उन्होने तुरंत श्राप वापस लिया और बारिश करवा दी...

मोरल:- इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि ...

हमें कितनी भी कडकी लगी हो या पैसे की तंगी हो ..

31 दिसंबर तो मनाना ही चाहिये.. नही तो जिस दिन पैसे आयेंगे हम पार्टी करना भूल गये होंगे.....

इतनी देर सब्र से पढने के लिये धन्यवाद

Thursday, December 27, 2018

लिफाफे

एक नव नियुक्त मैनेजर को पुराने मैनेजर ने जाते जाते तीन बन्द
लिफाफे दिये।
जिन पर क्रमशः १ २ ३ की गिनती लिखी थी 
और कहा कि जब कभी भी तुम्हें इस कार्यालय में कोई बड़ी समस्या आ जाए तो ये
१ नंबर का लिफाफा खोलना
और जब कभी दूसरी बड़ी समस्या आ जाए तो ये
२ नंबर का लिफाफा खोलना
और जब कभी तुम्हें तीसरी बड़ी समस्या आ जाए तो ये
३नंबर का लिफाफा खोलना

नव नियुक्त मैनेजर ने खुश होकर हामी भरी, और तीनों लिफाफों को संभाल कर रख लिया

काफी समय के बाद हेड अॉफिस ने बिजनेस नहीं बढ़ने पर काफी कड़ा पत्र लिखा 

मैनेजर साहब को कुछ सूझा नहीं कि मैनेजमेंट को क्या
जवाब दें। तभी उन्हें याद आया और उन्होंने लिफाफा नंबर १ खोला अंदर जो लेटर निकला उस पर लिखा था

*अपना सारा दोष पुराने मैनेजर के माथे डाल दो कि उसने कुछ किया नहीं अतः वह सब नये सिरे से ठीक कर रहा है!*

मैनेजर साहब ने वैसा ही कियाऔर समस्या टल गई

कुछ महीनों बाद  फिर वैसा ही पत्र आया कि टारगेट पूरे नहीं हो रहे हैं क्यों न उसके विरूद्घ कोई कार्यवाही की जाये? 

घबराकर मैनेजर साहब ने लिफाफा नंबर २ खोला

उसमें लिखा था कि जवाब दो कि 

*स्टाफ बराबर काम नहीं करता वह कुछ को हटा रहा है व कुछ को ट्रान्सफर कर रहा है,कार्यालय में भारी परिवर्तन कर रहा है* 

ऐसा लिख दो ""

मैनेजर साहब ने वैसा ही किया और मुसीबत फिर टल गई

कुछ समय पश्चात फिर प्रधान कार्यालय द्वारा बिजनेस नहीं बढ़ने पर भारी चिन्ता व्यक्त की गयी कि चेयरमैन साहब भी बहुत नाराज हैं

मैनेजर को तीसरे लिफाफे की याद आई

 उन्होंने लिफाफा नंबर ३ खोला उसमें
लिखा था
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. *अब तुम भी तीन लिफाफे बना लो.