Monday, April 16, 2018

दरिद्रता का श्राप

एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। भिक्षा माँग कर जीवन-यापन करती थी। 
एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिच्छा नहीं मिली।
वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी।
छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले । कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात मे नही खाऊँगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊँगी ।
यह सोंचकर ब्राह्मणी चनों को कपडे़ में बाँधकर रख दियाऔर वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी ।

देखिये समय का खेल:::

कहते हैं:::

पुरुष बली नहीं होत है,
समय  होत   बलवान ।

ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये।
इधर उधर बहुत ढूँढा चोरों को वह चनों की बँधी पुटकी मिल गयी चोरों ने समझा इसमें सोने के सिक्के हैं इतने मे ब्राह्मणी जग गयी और शोर मचाने लगी ।

गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे़। चोर वह पुटकी लेकर भगे।
पकडे़ जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये।

(संदीपन मुनि का आश्रम गाँव के निकट था
जहाँ भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे)

गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है। गुरुमाता देखने के लिए आगे बढीं  तो चोर समझ गये कोई आ रहा है, चोर डर गये और आश्रम से भगे ! भगते समय चोरों से वह पुटकी वहीं छूट गयी।और सारे चोर भाग गये।

इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना ! कि उसकी चने की पुटकी  चोर उठा ले गये ।

तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया की " मुझ दीनहीन असहाय के जो भी चने  खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा " ।

उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू़ लगाने लगीं तो झाडू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पुटकी मिली गुरु माता ने पुटकी खोल के देखी तो उसमे चने थे।

सुदामा जी और कृष्ण भगवान जंगल से लकडी़ लाने जा रहे थे। (रोज की तरह )
गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा जी को दे दी।

और कहा बेटा ! जब वन मे भूख लगे तो दोनो लोग यह चने खा लेना ।

सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही  चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ में लिया त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालुम हो गया ।

सुदामा जी ने सोचा ! गुरु माता ने कहा है यह चने दोनों लोग  बराबर बाँट के खाना।
लेकिन ये चने अगर मैंने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी शृष्टी दरिद्र हो जायेगी।
नहीं-नहीं मैं ऐसा नही करुँगा मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा ।
मैं ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नहीं खाने दूँगा।

और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए।

दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। चने खाकर ।
लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया।

Sunday, April 15, 2018

समझो तो देव

एक राजा ने भगवान कृष्ण का एक मंदिर बनवाया
और पूजा के लिए एक पुजारी को लगा दिया. पुजारी बड़े भाव से
बिहारीजी की सेवा करने लगे. भगवान की पूजा-अर्चना और
सेवा-टहल करते पुजारी की उम्र बीत गई. राजा रोज एक फूलों की
माला सेवक के हाथ से भेजा करता था.पुजारी वह माला बिहारीजी
को पहना देते थे. जब राजा दर्शन करने आता तो पुजारी वह माला बिहारीजी के गले से उतारकर राजा को पहना देते थे. यह रोज का
नियम था. एक दिन राजा किसी वजह से मंदिर नहीं जा सका.
उसने एक सेवक से कहा- माला लेकर मंदिर जाओ. पुजारी से कहना
आज मैं नहीं आ पाउंगा. सेवक ने जाकर माला पुजारी को दे दी और
बता दिया कि आज महाराज का इंतजार न करें. सेवक वापस आ
गया. पुजारी ने माला बिहारीजी को पहना दी. फिर उन्हें विचार आया कि आज तक मैं अपने बिहारीजी की चढ़ी माला
राजा को ही पहनाता रहा. कभी ये सौभाग्य मुझे नहीं
मिला.जीवन का कोई भरोसा नहीं कब रूठ जाए. आज मेरे प्रभु ने
मुझ पर बड़ी कृपा की है. राजा आज आएंगे नहीं, तो क्यों न माला
मैं पहन लूं. यह सोचकर पुजारी ने बिहारीजी के गले से माला
उतारकर स्वयं पहन ली. इतने में सेवक आया और उसने बताया कि राजा की सवारी बस मंदिर में पहुंचने ही वाली है.यह सुनकर
पुजारी कांप गए. उन्होंने सोचा अगर राजा ने माला मेरे गले में देख
ली तो मुझ पर क्रोधित होंगे. इस भय से उन्होंने अपने गले से
माला उतारकर बिहारीजी को फिर से पहना दी. जैसे ही राजा
दर्शन को आया तो पुजारी ने नियम अुसार फिर से वह माला
उतार कर राजा के गले में पहना दी. माला पहना रहे थे तभी राजा को माला में एक सफ़ेद बाल दिखा.राजा को सारा माजरा समझ गया
कि पुजारी ने माला स्वयं पहन ली थी और फिर निकालकर
वापस डाल दी होगी. पुजारी ऐसाछल करता है, यह सोचकर राजा
को बहुत गुस्सा आया. उसने पुजारी जी से पूछा- पुजारीजी यह
सफ़ेद बाल किसका है.? पुजारी को लगा कि अगर सच बोलता हूं
तो राजा दंड दे देंगे इसलिए जान छुड़ाने के लिए पुजारी ने कहा- महाराज यहसफ़ेद बाल तो बिहारीजी का है. अब तो राजा गुस्से
से आग- बबूला हो गया कि ये पुजारी झूठ पर झूठ बोले जा रहा
है.भला बिहारीजी के बाल भी कहीं सफ़ेद होते हैं. राजा ने कहा-
पुजारी अगर यह सफेद बाल बिहारीजी का है तो सुबह शृंगार के
समय मैं आउंगा और देखूंगा कि बिहारीजी के बाल सफ़ेद है या
काले. अगर बिहारीजी के बाल काले निकले तो आपको फांसी हो जाएगी. राजा हुक्म सुनाकर चला गया.अब पुजारी रोकर
बिहारीजी से विनती करने लगे- प्रभु मैं जानता हूं आपके
सम्मुख मैंने झूठ बोलने का अपराध किया. अपने गले में डाली
माला पुनः आपको पहना दी. आपकी सेवा करते-करते वृद्ध हो
गया. यह लालसा ही रही कि कभी आपको चढ़ी माला पहनने का
सौभाग्य मिले. इसी लोभ में यह सब अपराध हुआ. मेरे ठाकुरजी पहली बार यह लोभ हुआ और ऐसी विपत्ति आ पड़ी है. मेरे
नाथ अब नहींहोगा ऐसा अपराध. अब आप ही बचाइए नहीं तो
कल सुबह मुझे फाँसी पर चढा दिया जाएगा. पुजारी सारी रात रोते
रहे. सुबह होते ही राजा मंदिर में आ गया. उसने कहा कि आज
प्रभु का शृंगार वह स्वयं करेगा. इतना कहकर राजा ने जैसे ही मुकुट
हटाया तो हैरान रह गया. बिहारीजी के सारे बाल सफ़ेद थे. राजा को लगा, पुजारी ने जान बचाने के लिए बिहारीजी के बाल रंग
दिए होंगे. गुस्से से तमतमाते हुए उसने बाल की जांच करनी
चाही. बाल असली हैं या नकली यब समझने के लिए उसने जैसे
ही बिहारी जी के बाल तोडे, बिहारीजी के सिर से खून
कीधार बहने लगी. राजा ने प्रभु के चरण पकड़ लिए और क्षमा
मांगने लगा. बिहारीजी की मूर्ति से आवाज आई- राजा तुमने आज तक मुझे केवल मूर्ति ही समझा इसलिए आज से मैं तुम्हारे
लिए मूर्ति ही हूँ. पुजारीजी मुझे साक्षात भगवान् समझते हैं.
उनकी श्रद्धा की लाज रखने के लिए आज मुझे अपने बाल सफेद
करने पड़े व रक्त की धार भी बहानी पड़ी तुझे समझाने के लिए.

 कहते हैं- समझो तो देव नहीं तो पत्थर.श्रद्धा हो तो उन्हीं पत्थरों में भगवान सप्राण
होकर भक्त से मिलने आ जाएंगे ।।

Friday, April 13, 2018

बीवी का ख़ौफ़

गाँव मैं रात को भजन का प्रोग्राम था,

शर्मा जी की बहुत इच्छा थी जाने की पर पत्नी ने मना कर दिया,

"तुम रात को बहुत देर से आओगे, मैं कब तक जागूँगी?",

ग्यारह बजे वापस आने का बोल के शर्मा जी चले गये,

भजन संध्या मैं ऐसे डूब गये के समय का ध्यान ना रहा,

घड़ी मैं एक बजे का समय देख शर्मा जी की हालत ख़राब हो गयी,

चप्पल हाथ मैं लिए दौड़ने लगे और हर हर महादेव बोलने लगे,

भजन संध्या मैं अलौकिक माहौल था तो शिवजी भी वहीं थे,

वो शर्मा जी की सहायता के लिये आये, "बोल भक्त क्या परेशानी है?"

शर्मा जी- आप मेरे साथ मेरे घर तक चलो, मैं दरवाज़ा खटखटाऊँ तो आप आगे आके सम्भाल लेना, मेरी बीवी आज मुझे छोड़ेगी नही।

शिवजी- वत्स तेरी पत्नी तुझे क्यों मारेगी?

शर्मा जी- प्रभु मैं बीवी को ग्यारह बजे आने का कह के आया था,

शिवजी- तो अभी कितने बजे है?,

शर्मा जी- प्रभु डेढ़ बजे है,

डेढ़ सुनते ही शिवजी भी भागने लगे,

शर्मा जी - प्रभु क्या हुआ?,

शिवजी दौड़ते दौड़ते बोले, "मैं ख़ुद साढ़े बारह बजे का बोल के आया था"!!!!

Wednesday, April 11, 2018

साक्षात लक्ष्मी

पति ने घर मेँ पैर रखा....‘अरी सुनती हो !'
आवाज सुनते ही पत्नी हाथ मेँ पानी का गिलास लेकर बाहर आयी और बोली
"अपनी beti का रिश्ता आया है,
अच्छा भला इज्जतदार सुखी परिवार है,
लडके का नाम युवराज है ।
बैँक मे काम करता है। 
बस beti  हाँ कह दे तो सगाई कर देते है."
Beti उनकी एकमात्र लडकी थी..
घर मेँ हमेशा आनंद का वातावरण रहता था ।
कभी कभार सिगरेट व पान मसाले के कारण उनकी पत्नी और beti के साथ कहा सुनी हो जाती लेकिन
वो मजाक मेँ निकाल देते ।
Beti खूब समझदार और संस्कारी थी ।
S.S.C पास करके टयुशन, सिलाई काम करके पिता की मदद करने की कोशिश करती ।
अब तो beti ग्रेज्यूऐट हो गई थी और नौकरी भी करती थी
लेकिन बाप उसकी पगार मेँ से एक रुपया भी नही लेते थे...
और रोज कहते ‘बेटी यह पगार तेरे पास रख तेरे भविष्य मेँ तेरे काम आयेगी ।'
दोनो घरो की सहमति से beti  और
युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुहूर्त भी निकलवा दिया.
अब शादी के 15 दिन और बाकी थे.
बाप ने beti को पास मेँ बिठाया और कहा-
" बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई...उन्होने कहा दहेज मेँ कुछ नही लेँगे, ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज ।
तो बेटा तेरे शादी के लिए मेँने कुछ रुपये जमा किए है।
यह दो लाख रुपये मैँ तुझे देता हूँ।.. तेरे भविष्य मेँ काम आयेगे, तू तेरे खाते मे जमा करवा देना.'
"OK PAPA" - beti ने छोटा सा जवाब देकर अपने रुम मेँ चली गई.
समय को जाते कहाँ देर लगती है ?
शुभ दिन बारात आंगन में आयी,
पंडितजी ने चंवरी मेँ विवाह विधि शुरु की।
फेरे फिरने का समय आया....
कोयल जैसे कुहुकी हो ऐसे beti दो शब्दो मेँ बोली
"रुको पडिण्त जी ।
मुझे आप सब की उपस्तिथि मेँ मेरे पापा के साथ बात करनी है,"
“पापा आप ने मुझे लाड प्यार से बडा किया, पढाया, लिखाया खूब प्रेम दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही...
लेकिन युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से आपने दिया दो लाख रुपये का चेक मैँ वापस देती हूँ।
इन रुपयों से मेरी शादी के लिए लिये हुए उधार वापस दे देना 
और दूसरा चेक तीन लाख जो मेने अपनी पगार मेँ से बचत की है...
जब आप रिटायर होगेँ तब आपके काम आयेगेँ,
मैँ नही चाहती कि आप को बुढापे मेँ आपको किसी के आगे हाथ फैलाना पडे !
अगर मैँ आपका लडका होता तब भी इतना तो करता ना ? !!! "
वहाँ पर सभी की नजर beti  पर थी...
“पापा अब मैं आपसे जो दहेज मेँ मांगू वो दोगे ?"
बाप- भारी आवाज मेँ -"हां बेटा", इतना ही बोल सके ।
"तो पापा मुझे वचन दो"
आज के बाद सिगरेट के हाथ नही लगाओगे....
तबांकु, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे।
सब की मौजुदगी मेँ दहेज मेँ बस इतना ही मांगती हूँ ।."
लडकी का बाप मना कैसे करता ?
शादी मे लडकी की विदाई समय कन्या पक्ष को रोते देखा होगा लेकिन 
आज तो बारातियो कि आँखो मेँ आँसुओ कि धारा निकल चुकी थी।
मैँ दूर se us beti को लक्ष्मी रुप मे देख रहा था....
रुपये का लिफाफा मैं अपनी जेब से नही निकाल पा रहा था....
साक्षात लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूं ??

Saturday, April 7, 2018

पंडित

एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नहीं था। इसलिए उसकी पत्नी पड़ोस से पानी ले आई। पानी पीकर पंडित ने पूछा....

पंडित - कहाँ से लायी हो? बहुत ठंडा पानी है।

पत्नी - पड़ोस के कुम्हार के घर से।

(पंडित ने यह सुनकर लोटा फेंक दिया और उसके तेवर चढ़ गए। वह जोर-जोर से चीखने लगा )

पंडित - अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया। कुम्हार ( शूद्र ) के घर का पानी पिला दिया।

(पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी)

उसने पण्डित से माफ़ी मांग ली।

पत्नी - अब ऐसी भूल नहीं होगी।

शाम को पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं था।

पंडित - रोटी नहीं बनाई। भाजी नहीं बनाई। क्यों????

पत्नी - बनायी तो थी। लेकिन अनाज पैदा करने वाला कुणबी(शूद्र) था और जिस कड़ाई में बनाया था, वो कड़ाई लोहार (शूद्र) के घर से आई थी। सब फेंक दिया।

पण्डित - तू पगली है क्या?? कहीं अनाज और कढ़ाई में भी छूत होती है?

यह कह कर पण्डित बोला- कि पानी तो ले आओ।

पत्नी - पानी तो नहीं है जी।

पण्डित - घड़े कहाँ गए???

पत्नी - वो तो मैंने फेंक दिए। क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थे।

पंडित बोला- दूध ही ले आओ। वही पीलूँगा।

पत्नी - दूध भी फेंक दिया जी। क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था, वो तो नीची (शूद्र) जाति से था।

पंडित- हद कर दी तूने तो यह भी नहीं जानती की दूध में छूत नहीं लगती है।

पत्नी-यह कैसी छूत है जी, जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नहीं लगती।

(पंडित के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ लूं)

वह गुर्रा कर बोला - तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है।

पत्नी- खाट!!!! उसे तो मैनें तोड़ कर फेंक दिया है जी। क्योंकि उसे शूद्र (सुथार ) जात वाले ने बनाया था।

पंडित चीखा - वो फ़ूलों का हार तो लाओ। भगवान को चढ़ाऊंगा, ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये।

पत्नी - हार तो मैंने फेंक दिया। उसे माली (शूद्र) जाति के आदमी ने बनाया था।

पंडित चीखा- सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी हैं या नहीं।

पत्नी - हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोड़ना बाकी है। क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है।

पंडित के पास कोई जबाब नहीं था।
उसकी अक्ल तो ठिकाने आयी।
बाकी लोगों कि भी आ जायेगी।

Friday, April 6, 2018

मेरी माता

एक बार अकबर बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे!

रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा .. मंत्री बीरबल ने झुक कर प्रणाम किया !

अकबर ने पूछा कौन हे ये ?
बीरबल -- मेरी माता हे !

अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़ कर फेक दिया और बोला .. कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की ...!

बीरबल ने उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी! .. आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला ) झाड़ मिला .. बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर कहा: जय हो बाप मेरे ! !
अकबर को गुस्सा आया .. दोनों हाथो से झाड़ को उखाड़ने लगा .. इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो बोला: .. बीरबल ये क्या हो गया !

बीरबल ने कहा आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये गुस्सा हो गए!

अकबर जहाँ भी हाथ लगता खुजली होने लगती .. बोला: बीरबल जल्दी कोई उपाय बतायो!

बीरबल बोला: उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है .. उससे विनती करनी पड़ेगी !

अकबर बोला: जल्दी करो !

आगे गाय खड़ी थी बीरबल ने कहा गाय से विनती करो कि ... हे माता दवाई दो..

गाय ने गोबर कर दिया .. अकबर के शरीर पर उसका लेप करने से फौरन खुजली से राहत मिल गई!
अकबर बोला .. बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे?

बीरबल ने कहा: .. नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है! सामने गंगा बह रही थी .. आप बोलिए हर -हर गंगे .. जय गंगा मईया की .. और कूद जाइए !

नहा कर अपनेआप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने बीरबल से कहा: .. कि ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत माता हैं! इनको मानने वालों को ही हिन्दू कहते हैं

Thursday, April 5, 2018

माँ की कोख

बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी
जंगल में शिकार खेलने गया।
संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा
पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी
वर्षा पड़ने लगी।
जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत
डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में
रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने
लगा।
रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक
दिखाई दिया।
वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी ।
वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था,
इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने
का स्थान बना रखा था।
अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी
की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी
और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।
उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका,
लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न
देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर
जाने देने के लिए प्रार्थना की।
बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-
कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ,
लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।
इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर
वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने
की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे
झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।।
इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता।
मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।
राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस
झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो
बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है,
सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।
बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह
होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर
देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।
राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में
झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि
सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने
जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास
करने की बात सोचने लगा।
वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस
पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा
कहने लगा।
राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और
दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा
हो गया।
कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से
पूछा," परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान
पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ?
परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् ! वह कौन राजा
था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी
मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी
प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य
भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है।
उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है। "
श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा
परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं।
इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय
आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि
तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक
जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट
फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी
मूर्खता नहीं है ?"
राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन
मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
मेरे भाई - बहनों, वास्तव में यही सत्य है।
जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो
अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना
करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त
कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा।
और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो ( उस
राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं
ये कहाँ आ गया ( और पैदा होते ही रोने लगता है )
फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की
खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक
उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है।
यही मेरी भी कथा है और आपकी भी।