Wednesday, October 19, 2016

गरीबो का हक

एक गरीब FAMILY थी..! जिस मे 5 लोग थे...। माँ बाप और 3 बच्चे बाप हमेशा बीमार रहता था । एक दिन वो मर गया । 3 दिन तक पड़ोसियों ने खाना भेजा । बाद में भूखे रहने के दिन आ गए..। माँ ने कुछ दिन तक जैसे तैसे बच्चों को खाना खिलाया । लेकिन कब तक आखिर फिर से भूखे रहना पड़ा । जिस की वजह से 8 साल का बेटा बीमार हो गया । और बिस्तर पकड़ लिया....। एक दिन 5 साल की बच्ची ने माँ के कान में पूछा । माँ भाई कब मरेगा....?? माँ ने तड़प कर पूछा, ऐसा क्यों पूछ रही हो बच्ची ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, जिसे सुन कर आप की आँखों में आँसु आ जायेंगे...! बच्ची का जवाब था । माँ भाई मरेगा तो घर में
खाना आएगा ना...! भाइयो और बहनो, भुख दुनिया में सबसे बड़ी है सुबह मिटाओ शाम को फिर खड़ी है।।
आपके खाने में गरीबो का भी
हक है ।

Tuesday, October 18, 2016

.मुझमें राम ,तुझमें राम

एक ब्राम्हण था, कृष्ण के  मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था। उसकी पत्नी इस बात से  हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात  में वह पहले भगवान को लाता।  भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज  पहले भगवान को समर्पित करता। एक दिन घर में लड्डू बने।  ब्राम्हण ने लड्डू लिए और भोग लगाने चल दिया।  पत्नी इससे नाराज हो गई,
कहने लगी कोई पत्थर की  मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं  जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ  दौड़ पड़ते हो।
अबकी बार बिना खिलाए न  लौटना, देखती हूं कैसे भगवान खाने आते हैं।  बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के
ताने सुनकर ठान ली कि बिना  भगवान को खिलाए आज मंदिर  से लौटना नहीं है।  मंदिर में जाकर धूनि लगा ली।  भगवान के सामने लड्डू रखकर विनती करने लगा।  एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता,  न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा। आसपास देखने वालों  की भीड़ लग गई।  सभी कौतुकवश देखने  लगे कि आखिर होना क्या है। मक्खियां भिनभिनाने लगी  ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।  मीठे की गंध से चीटियां  भी लाईन लगाकर चली आईं।
ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया,  फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा  कुत्ते भी ललचाकर आने लगे।  ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।  लड्डू पड़े देख मंदिर के  बाहर बैठे भिखारी भी आए गए।  एक तो चला सीधे  लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।  दिन ढल गया, शाम हो गई।  न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।  शाम से रात हो गई। लोगों ने सोचा ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं,  भगवान तो आने से रहे।  धीरे-धीरे सब घर चले गए। ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया। लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।  भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी  तो दिनभर से ही इस घड़ी का इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े।  उदास ब्राम्हण भगवान को  कोसता हुआ घर लौटने लगा।  इतने सालों की सेवा बेकार  चली गई।कोई फल नहीं मिला।  ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया। रात को सपने में भगवान आए।  बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने।  बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह  ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा होता। कितने रूप धरने पड़े  तेरे लड्डू खाने के लिए। मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी।  पर तुने हाथ नहीं धरने दिया।  दिनभर इंतजार करना पड़ा। आखिर में लड्डू खाए  लेकिन जमीन से उठाकर  खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी।  अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना।  भगवान चले गए। ब्राम्हण की नींद खुल गई।  उसे एहसास हो गया। भगवान तो आए थे खाने  लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।  बस, ऐसे ही हम भी भगवान
के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं।
.मुझमें राम ,तुझमें राम
सबमें राम समाया,
सबसे करलो प्रेम जगतमें ,
कोई नहीं पराया....
"जय बाबा बालक नाथ जी."

Monday, October 17, 2016

प्रेम कभी अकेला नहीं

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर
हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर
लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और
बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।
 

Friday, October 14, 2016

माँ बाप का प्यार

एक छोटे बालक को आम का पेड बहोत पसंद था। जब भी फुर्सत मिलती वो तुरंत आम के पेड के पास पहुंच जाता। पेड के उपर चढना, आम खाना और खेलते हुए थक जाने पर आम की छाया मे ही सो जाना। बालक और उस पेड के बीच एक अनोखा संबंध बंध गया था।
*
बच्चा जैसे जैसे बडा होता गया वैसे वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।
 कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।
आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता रहता।
एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी और आते देखा। आम का पेड खुश हो गया।
*
बालक जैसे ही पास आया  तुरंत पेड ने कहा, "तु कहां चला गया था? मै रोज़ तुम्हे याद किया करता था। चलो आज दोनो खेलते है।"
बच्चा अब बडा हो चुका था, उसने आम के पेड से कहा, अब मेरी खेलने की उम्र नही है। मुझे पढना है,
पर मेरे पास फी भरने के लिए पैसे नही है।"
पेड ने कहा, "तु मेरे आम लेकर बाजार मे जा और बेच दे,
 इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"
*
उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम उतार लिए, पेड़ ने भी ख़ुशी ख़ुशी दे दिए,और वो बालक उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।
*
उसके बाद फिर कभी वो दिखाई नही दिया।
 आम का पेड उसकी राह देखता रहता।
 एक दिन अचानक फिर वो आया और कहा,
अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मेरा संसार तो चल रहा है पर मुझे मेरा अपना घर बनाना है इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"
*
आम के पेड ने कहा, " तू चिंता मत कर अभी में हूँ न,
तुम मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,
उसमे से अपना घर बना ले।"
उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।
*
आम का पेड के पास कुछ नहीं था वो  अब बिल्कुल बंजर हो गया था।
कोई उसके सामने भी नही देखता था।
 पेड ने भी अब वो बालक/ जवान उसके पास फिर आयेगा यह आशा छोड दी थी।
*
फिर एक दिन एक वृद्ध वहां आया। उसने आम के पेड से कहा,
 तुमने मुझे नही पहचाना, पर मै वही बालक हूं जो बारबार आपके पास आता और आप उसे हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"
आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,
"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुझे दे सकु।"
वृद्ध ने आंखो मे आंसु के साथ कहा,
 "आज मै कुछ लेने नही आया हूं, आज तो मुझे तुम्हारे साथ जी भरके खेलना है, तुम्हारी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"
*
ईतना कहते वो रोते रोते आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।
*
वो वृक्ष हमारे माता-पिता समान है, जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।
जैसे जैसे बडे होते गये उनसे दुर होते गये।पास तब आये जब जब कोई जरूरत पडी, कोई समस्या खडी हुई।

आज भी वे माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।

आओ हम जाके उनको लिपटे उनके गले लग जाये जिससे उनकी वृद्धावस्था फिर से अंकुरित हो जाये।

यह कहानी पढ कर थोडा सा भी किसी को एहसास हुआ हो और अगर अपने माता-पिता से थोडा भी प्यार करते हो तो...
माँ बाप आपको सिर्फ प्यार प्यार प्यार  देंगे.

Thursday, October 13, 2016

अच्छे लोग

एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर रहता था, और वहीं पास एकमोरनी भी रहती थी। एक दिन मोरने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि- "हम तुम विवाह कर लें, तो कैसा अच्छा रहे?" मोरनी ने पूछा- "तुम्हारे मित्र कितने है ?" मोर ने कहा उसका कोई मित्र नहीं है।
तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर दिया। मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है। उसने एक सिंह से.., एक कछुए से.., और सिंह के लिए शिकार का पता लगाने वाली टिटहरी से.., दोस्ती कर लीं। जब उसने यह समाचार मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत विवाह के लिए तैयार हो गई। पेड़ पर घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते
थे। एक दिन शिकारी आए। दिन भर कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़ की छाया में ठहर गए और सोचने लगे, पेड़ पर चढ़कर अंडे- बच्चों से भूख बुझाई जाए। मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई, मोर मित्रों के पास सहायता के लिए दौड़ा। बस फिर क्या था.., टिटहरी ने जोर- जोर से चिल्लाना शुरू किया। सिंह समझ गया, कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे चला.., जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया। सिंह से डरकर भागते हुए शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची। जैसे ही हाथ बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया। शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए। इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने लगा दिया। मोरनी ने कहा- "मैंने विवाह से पूर्व मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात काम की निकली न, यदि मित्र न होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।”
मित्रता सभी रिश्तों में अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है। और मित्र किसी भी व्यक्ति की अनमोल पूँजी होते है। अगर गिलास दुध से भरा हुआ है तो आप उसमे और दुध नहीं डाल सकते । लेकिन आप उसमे शक्कर डाले । शक्कर अपनी जगह बना लेती है और अपना होने का अहसास दिलाती है उसी प्रकार अच्छे लोग हर किसी के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं.... 

Monday, October 10, 2016

जीवन की सीख

एक बार गोपाल राव अपने बड़े भाई गोविंद राव के साथ कबड्डी खेल रहे थे। गोविंद राव विरोधी टीम में थे। गोविंद राव कबड्डी खेलते हुए गोपाल राव के खेमे की तरफ आए और उन्होंने गोपाल राव को इशारा कर के कहा कि वे उन्हें न पकड़ें और नंबर लेने दें, परंतु गोपाल राव को यह बात ठीक नहीं लगी। उन्होंने खेल को पूरी न्याय भावना के साथ खेलना उचित समझा और अपने बड़े भाई गोविंद राव को पकड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी। आखिरकार उन्होंने उसे पकड़ ही लिया। इस तरह गोविंद राव आउट हो गए।
यह बात गोविंद राव को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने घर लौटने पर गोपाल राव से कहा,'गोपाल, जब मैंने तुझे मना किया था कि मुझे मत पकड़ना, तब भी तूने मुझे पकड़ ही लिया। तू मेरा कैसा भाई है रे, जो अपने बड़े भाई की इतनी सी बात भी न मान सका।' गोविंद राव की बात सुनकर गोपाल राव अपने भाई के आगे आकर बोले,'भैया, आपके प्रति मेरे मन में पूरी श्रद्धा है। आप जो भी कहेंगे, वह मैं अवश्य करके दिखाऊंगा, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान की बाजी ही क्यों न लगानी पड़ जाए? किंतु मैं बेईमानी नहीं कर सकता।
खेल भी हमें पूरी ईमानदारी व निष्ठा से खेलना चाहिए क्योंकि खेल-खेल में अपनायी गई भावना ही आगे हमारे विचारों व भावों को पुष्ट करती है। मैं नहीं चाहता कि बड़े होने पर मेरे अंदर झूठ बोलने या गलत कार्य करने की आदत पड़ जाए।' अपने से पांच साल छोटे भाई की बात सुनकर गोविंद राव ने उसी समय अपने को सुधारने का प्रण कर लिया।

Friday, October 7, 2016

माँ तो माँ होती है

पति के घर में प्रवेश करते ही पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा  पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता कीया, वहाँ भी नहीं पहुँचे ! मामला क्या है ? वो-वो… मैं  पती की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, बोलते नही ? कहां चले गये थे ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये ? वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।
पती थोड़ी हिम्मत करके बोला क्या कहा? तुम मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हें क्या तकलीफ है? आग बबूला थी पत्नी! उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता तुम समझ क्यों नहीं रही । पती ने दबी जुबान से कहा । क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है ? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ ! पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था अब ये हमारे पास ही रहेगी पति ने कठोरता अपनाई । मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ । वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महा रानी जी को भी यहाँ आते जरा सी भी लाज नहीं आई ? कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी ! झेंपते हुए पत्नी बोली: “मां, तुम ?” हाँ बेटा ! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया । दामाद जी को फोन कीया, तो ये मुझे यहां ले आये ।
बुढ़िया ने कहा, तो पत्नी ने गद्गगद नजरों से पति की तरफ देखा और मुस्कराते हुए बोली । आप भी बड़े वो हो, डार्लिंग ! पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे ?इस मैसेज को इतना शेयर करो, कि हर औरत तक पहुंच सके !कि माँ तो माँ होती है! क्या मेरी, क्या तेरी?