राजेश एक छोटे से गाँव में रहने वाला लड़का था। उसके पिता एक किसान थे और परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। लेकिन राजेश के सपने बड़े थे — वह एक आईएएस अधिकारी बनना चाहता था। उसके गाँव में ना अच्छी पढ़ाई की सुविधा थी, ना कोचिंग, और ना ही इंटरनेट। जब वह किसी से अपने सपने की बात करता, लोग हँसते और कहते, “राजेश, पहले ठीक से पास तो हो जा, फिर बड़े-बड़े ख्वाब देखना।”
राजेश के लिए ये बातें चुभती थीं, लेकिन वो जानता था कि सपनों की राह आसान नहीं होती। उसने मन ही मन ठान लिया था — “अगर मुझे कुछ बनना है, तो पहले खुद से लड़ना होगा। रास्ते तो सबके लिए मुश्किल होते हैं।”
संघर्ष की शुरुआत
गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं था। किताबें पुरानी थीं और कई बार शिक्षक महीनों स्कूल नहीं आते थे। लेकिन राजेश ने हार नहीं मानी। वह पुराने टॉपर्स के नोट्स माँगकर पढ़ता, खुद से समझने की कोशिश करता और जो नहीं आता, उसे बार-बार पढ़ता।
सुबह चार बजे उठना उसकी आदत बन चुकी थी। खेत के काम में पिता की मदद करने के बाद वह पढ़ाई करता। बिजली अक्सर चली जाती थी, तो वह लालटेन की रौशनी में घंटों बैठा रहता। कई बार थकान इतनी होती कि आँखें खुद-ब-खुद बंद हो जातीं, लेकिन वह खुद को याद दिलाता — "सपनों को हकीकत में बदलना है तो खुद से लड़ना पड़ेगा।”
पहली हार और खुद से सवाल
राजेश ने जब पहली बार सिविल सेवा की परीक्षा दी, तो वह प्री-एग्जाम में ही फेल हो गया। यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका था। उसने खुद से पूछा — "क्या मैं वाकई इस लायक हूँ?" एक पल के लिए वह खुद पर से भरोसा खो बैठा। उसने किताबें बंद कर दीं, कमरे में बैठा रहा और सोचता रहा — “लोग सही कहते हैं, ये सब मेरे बस की बात नहीं।”
लेकिन तभी उसे अपनी माँ की बात याद आई — “हार वो ही मानता है जो खुद से हार जाता है।” ये बात उसके ज़हन में गूंज उठी।
नई शुरुआत
राजेश ने खुद को फिर से खड़ा किया। उसने अपनी गलतियों की समीक्षा की, जहाँ कमजोर था वहाँ ज़्यादा मेहनत की, और फिर से तैयारी शुरू की। इस बार उसने केवल पढ़ाई नहीं की, बल्कि खुद को मानसिक रूप से मज़बूत भी बनाया।
उसने अपने मोबाइल में एक वॉलपेपर लगा लिया —
“सपनों को हकीकत में बदलना है तो रास्तों से नहीं, खुद से लड़ना होगा।”
जब भी वह थकता, मन करता छोड़ दे, तो बस ये वाक्य देखता और फिर से उठ जाता।
दूसरा प्रयास और सफलता की ओर कदम
अगली बार जब उसने परीक्षा दी, तो वह न सिर्फ प्रीलिम्स बल्कि मेंस में भी पास हो गया। अब सिर्फ इंटरव्यू बाकी था। इंटरव्यू से पहले वो बहुत नर्वस था। लेकिन इस बार उसने खुद से एक वादा किया — “मैं डरूंगा नहीं, मैं खुद पर भरोसा करूँगा।”
इंटरव्यू में उससे पूछा गया, "राजेश, आपने इतने कम संसाधनों में ये तैयारी कैसे की?"
उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया,
"मैंने रास्तों को दोष नहीं दिया सर, मैंने खुद से लड़ना सीखा।"
अंततः सफलता
कुछ महीनों बाद रिजल्ट आया — राजेश का नाम चयनित उम्मीदवारों की सूची में सबसे ऊपर था। पूरे गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। जो लोग कभी उसके सपनों पर हँसते थे, वही अब गर्व से कहते — “राजेश हमारे गाँव का बेटा है।”
राजेश ने उस दिन अपने घर की दीवार पर एक पंक्ति लिख दी —
“सपनों को हकीकत में बदलना है तो रास्तों से नहीं, खुद से लड़ना होगा।”
सीख
राजेश की कहानी हम सबको एक सीख देती है —
हमारे रास्ते चाहे कितने भी मुश्किल हों, जब तक हम खुद पर विश्वास रखते हैं और अपने आलस, डर, और असफलताओं से लड़ते हैं, तब तक कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता। दुनिया की सबसे कठिन लड़ाई वही होती है जो इंसान खुद से लड़ता है। और जब वो जंग जीत ली जाती है, तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती।
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