Saturday, July 20, 2024

निंदा नहीं, सहायता करें; हाथ बढ़ाकर जीवन संवारें

 एक छोटे से गाँव में, जहाँ हरियाली और शांति का बसेरा था, वहाँ रहने वाले लोग बड़े ही सरल और प्रेमपूर्वक जीवन व्यतीत करते थे। गाँव का नाम था सुखपुर। सुखपुर में हर कोई एक-दूसरे की मदद करता था और मिलजुल कर रहता था।

एक दिन, गाँव में एक नया व्यक्ति आया। उसका नाम था रामू। रामू एक गरीब परिवार से था और जीवन में बहुत संघर्ष कर चुका था। गाँव के लोग रामू को अच्छी तरह नहीं जानते थे, इसलिए कुछ लोग उसकी आर्थिक स्थिति और पहनावे को देखकर उसकी निंदा करने लगे।

रामू ने गाँव में एक छोटा सा काम शुरू किया और अपनी मेहनत से धीरे-धीरे अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश करने लगा। परंतु, गाँव के कुछ लोग उसकी पीठ पीछे उसकी हंसी उड़ाते और उसकी मेहनत को कमतर आँकते थे। यह सब देखकर रामू का दिल टूट जाता, लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपने काम में लगा रहा।

गाँव के मुखिया, जो एक ज्ञानी और दयालु व्यक्ति थे, ने रामू की स्थिति और लोगों की नकारात्मकता को महसूस किया। मुखिया जी का नाम था हरिहर। उन्होंने सोचा कि इस समस्या का समाधान करना बहुत जरूरी है।

एक दिन, हरिहर ने पूरे गाँव को पंचायत में बुलाया और एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने कहा, "हम सब यहाँ एक-दूसरे के साथ रहते हैं और हमें हमेशा एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। किसी की निंदा करना बहुत आसान है, लेकिन उससे किसी का भला नहीं होता। अगर हम किसी की मदद कर सकते हैं, तो हमें अवश्य हाथ बढ़ाना चाहिए।"

हरिहर ने एक कहानी सुनाई: "एक समय की बात है, एक गाँव में एक गरीब आदमी रहता था जिसका नाम मोहन था। मोहन बहुत मेहनती था, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। गाँव के लोग उसे तिरस्कार भरी नजरों से देखते थे और उसकी निंदा करते थे। एक दिन, गाँव में एक बड़े सेठ आए और उन्होंने मोहन की मेहनत और सच्चाई को देखा। सेठ ने मोहन को अपने यहाँ काम पर रख लिया और उसकी मेहनत के लिए उसे अच्छा वेतन देने लगे। धीरे-धीरे मोहन की स्थिति सुधरने लगी और उसने अपनी मेहनत से एक अच्छी पहचान बना ली। वह गाँव का सबसे सम्मानित व्यक्ति बन गया।"

हरिहर ने आगे कहा, "अगर सेठ ने मोहन की निंदा करने के बजाय उसकी मदद की थी, तो हमें भी इसी प्रकार सोचना चाहिए। किसी की निंदा करके हम उसकी आत्मा को चोट पहुंचाते हैं, लेकिन अगर हम उसकी मदद करें तो हम उसकी जिन्दगी बदल सकते हैं।"

मुखिया जी की बातें सुनकर गाँव के लोगों की आँखें खुल गईं। उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने रामू के साथ गलत व्यवहार किया था। गाँव के सभी लोग एकजुट होकर रामू के पास गए और उससे माफी मांगी। उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया कि वे उसकी हर संभव मदद करेंगे ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

रामू ने गाँव के लोगों की माफी स्वीकार की और सभी के सहयोग से अपने काम को और भी बेहतर तरीके से चलाने लगा। गाँव के लोग अब निंदा करने के बजाय एक-दूसरे की मदद करने लगे और सुखपुर एक बार फिर से अपनी पुरानी समरसता और शांति में लौट आया।

रामू ने अपने अनुभव से एक महत्वपूर्ण सीख ली और गाँव के लोगों ने भी समझा कि किसी की निंदा करने से कुछ नहीं मिलता। अगर हम किसी की मदद कर सकते हैं, तो हमें अवश्य अपने हाथ बढ़ाने चाहिए। इस प्रकार, सुखपुर का हर व्यक्ति एक-दूसरे की मदद करने और प्रेमपूर्वक जीवन जीने की राह पर चल पड़ा। और इस तरह, सुखपुर सचमुच सुखी गाँव बन गया।

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