Tuesday, July 16, 2024

नफरत से नफरत कभी खत्म नहीं हो सकती

 सूरज की किरणें जब धरती पर अपनी सुनहरी आभा बिखेर रही थीं, तभी गाँव पंछीपुर में एक नई सुबह का आगमन हुआ। गाँव का हर कोना सुंदरता और सादगी से भरा हुआ था। वहाँ के लोग परंपराओं का पालन करते हुए शांति और प्रेम से रहते थे। लेकिन गाँव के किनारे पर एक ऐसा परिवार रहता था जो दूसरों से अलग था। 

वो परिवार था ठाकुर धर्मसिंह का। धर्मसिंह अपने कठोर और नफरत भरे स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे। वे गाँव के लगभग हर व्यक्ति से किसी न किसी कारण से नाराज़ रहते थे। उनका जीवन क्रोध और द्वेष से भरा हुआ था। धर्मसिंह का बेटा, वीरू, अपने पिता की तरह ही क्रोधित और नफरत से भरा हुआ था।


गाँव के एक और किनारे पर रहता था मोहिनी देवी का परिवार। मोहिनी देवी एक दयालु और करुणामयी महिला थीं। उनका परिवार सादगी और प्रेम का प्रतीक था। उनके बेटे, अर्जुन, की दोस्ती गाँव के हर बच्चे से थी। अर्जुन का स्वभाव बिल्कुल विपरीत था वीरू से।


एक दिन, गाँव में एक मेला लगा। सारे गाँव वाले वहाँ खुशी-खुशी मेले का आनंद लेने पहुंचे। धर्मसिंह और वीरू भी वहाँ गए, लेकिन उनका मन हमेशा की तरह क्रोध और द्वेष से भरा हुआ था। मेले में अर्जुन और वीरू का आमना-सामना हुआ। वीरू ने अर्जुन को धक्का दे दिया और उसे अपमानित करने की कोशिश की। अर्जुन ने शांतिपूर्वक स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन वीरू के मन में नफरत की आग जल रही थी।


मोहिनी देवी ने यह सब देखा और उन्हें बहुत दुःख हुआ। उन्होंने सोचा कि आखिर कब तक ये नफरत गाँव में शांति और प्रेम को नष्ट करती रहेगी। उन्होंने ठान लिया कि वे इस नफरत की दीवार को प्यार से गिराएंगी।


अगले दिन, मोहिनी देवी ने अर्जुन को भेजा कि वह वीरू के घर जाकर उसे आमंत्रित करे। अर्जुन ने वीरू से मिलकर उसे अपने घर आने का न्यौता दिया। वीरू ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन अर्जुन के प्यार भरे शब्दों और मोहिनी देवी की करुणा ने उसे आने के लिए मना लिया।


जब वीरू मोहिनी देवी के घर पहुंचा, तो उसने देखा कि वहाँ का वातावरण कितना शांत और सुकून भरा था। मोहिनी देवी ने वीरू का स्वागत अपने बेटे की तरह किया और उसे मिठाई खिलाई। वीरू को पहले तो यह सब अजीब लगा, लेकिन धीरे-धीरे वह मोहिनी देवी और अर्जुन के प्रेम और अपनत्व से प्रभावित होने लगा।


मोहिनी देवी ने वीरू से कहा, "बेटा, नफरत से नफरत कभी खत्म नहीं होती। नफरत को केवल प्यार द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है। यह एक प्राकृतिक सत्य है। अगर हम किसी से नफरत करेंगे, तो बदले में हमें भी नफरत ही मिलेगी। लेकिन अगर हम प्यार देंगे, तो हमें भी प्यार ही मिलेगा।"


वीरू ने यह सुनकर सोचा और उसे एहसास हुआ कि उसके जीवन में जो भी कड़वाहट और क्रोध है, वह उसे ही नुकसान पहुंचा रहा है। उसने सोचा कि अगर वह अपने दिल से नफरत को निकालकर प्यार को जगह दे, तो उसका जीवन भी बदल सकता है।


वीरू ने मोहिनी देवी के घर से जाते समय अपने दिल में एक नई उम्मीद और एक नया संकल्प लिया। उसने ठान लिया कि वह अपने पिता धर्मसिंह को भी यह बात समझाएगा और अपने जीवन को बदलने की कोशिश करेगा।


जब वीरू घर पहुंचा, तो उसने अपने पिता से सारी बातें बताईं और उनसे कहा, "पिताजी, हम अपने जीवन में नफरत और क्रोध से कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। हमें प्यार और शांति की राह पर चलना चाहिए।"


धर्मसिंह ने पहले तो वीरू की बात को अनसुना किया, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपने बेटे की बातों में सच्चाई को महसूस किया। उन्होंने सोचा कि शायद वीरू सही कह रहा है।


धर्मसिंह ने अपने जीवन में पहली बार अपने दिल को नफरत से मुक्त किया और प्यार की राह पर चलने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने गाँव वालों से माफी मांगी और उन्हें अपने साथ चलने का न्यौता दिया। गाँव वालों ने भी धर्मसिंह के इस परिवर्तन को सराहा और उनका साथ दिया।


धीरे-धीरे, पंछीपुर गाँव में एक नई ऊर्जा और एक नई शुरुआत का आगमन हुआ। लोग अब एक-दूसरे से प्रेम और सद्भावना से मिलते थे। गाँव में शांति और खुशी का माहौल था।


मोहिनी देवी के प्रेम और करुणा ने नफरत की दीवार को गिरा दिया और गाँव में प्रेम और शांति की नई कहानी लिख दी। वीरू और अर्जुन की दोस्ती भी अब और मजबूत हो गई थी।


इस कहानी से यह सिद्ध होता है कि नफरत से नफरत कभी खत्म नहीं हो सकती। नफरत को केवल प्यार द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है। यह एक प्राकृतिक सत्य है, और इस सत्य को समझकर हम अपने जीवन में भी बदलाव ला सकते हैं।


इस तरह, पंछीपुर गाँव ने एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया कि कैसे प्यार और करुणा से नफरत को मिटाया जा सकता है और जीवन को सुख और शांति से भरा जा सकता है।

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