इतने सालों तक अभिषेक ने अपनी ज़िन्दगी को धन और सफलता की तलाश में बिताए थे। उसकी आदत बन गई थी कि वह हमेशा दूसरों की ग़लतियों को निकालता और उन्हें अपने आत्मसमर्पण की सबूत मानता था।
अभिषेक की बढ़ती धन-संपत्ति को देखकर उसकी आंखों में एक अलग सी चमक आ गई थी। उसे लगता था कि वह सफलता की सीढ़ीयों को चढ़ता जा रहा है और दूसरों को नीचे गिराता जा रहा है।
एक दिन, अभिषेक ने एक बुजुर्ग आदमी को अपने अच्छे दिनों की कहानी सुनते हुए देखा। वह आदमी जीवन की हर कठिनाई को हंसी में बदलने में सक्षम था। अभिषेक ने सोचा, "क्या यह सब धन और सफलता के बावजूद भी मुमकिन है?"
अभिषेक ने उस बुजुर्ग से मिलकर उससे सीखा कि सफलता केवल धन और यश में नहीं होती, बल्कि सच्ची सफलता तभी होती है जब आप दूसरों की मदद करते हैं और उनकी बुराई करने का वक़्त नहीं निकालते।
अब अभिषेक ने अपनी ज़िन्दगी में एक नया मोड़ लिया। उसने अपना समय और धन दूसरों की सेवा में खर्चना शुरू किया। उसने एक शिक्षा संस्थान खोला ताकि गरीब बच्चे भी अच्छी शिक्षा पा सकें।
अभिषेक ने खुद को यहां तक पहुंचाने वाली राहों को और अपने स्वरूप को बेहतर बनाने के लिए समर्थ बनाया। उसने यह सीखा कि सफलता का मतलब धन और यश नहीं, बल्कि अपनी भलाई और दूसरों की मदद करना है।
अब अभिषेक का चेहरा हंसता और खुशी से भरा हुआ है। उसने सीखा कि जीवन में सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है, "किसी दूसरे की बुराई करने का वक़्त ना मिले।
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