यह कहानी है एक गाँव के एक छोटे से लड़के की, जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन गरीब परिवार से था, लेकिन उसमें अच्छे सपने और आत्मविश्वास की भावना थी। वह हमेशा से बड़ा आदमी बनने का सपना देखता था।
अर्जुन का परिवार उसके सपनों को समझ नहीं पा रहा था। वे चाहते थे कि अर्जुन सिर्फ अपने पढ़ाई में व्यस्थ रहे और एक अच्छा सरकारी नौकरी पाए, लेकिन अर्जुन के दिल में एक अलग सपना था।
एक दिन, अर्जुन ने अपने गाँव में एक विद्वान के बारे में सुना। यह विद्वान विशेष ज्ञानवान थे और वे गाँव में एक पुस्तकालय चलाते थे। अर्जुन ने उनकी ओर रुख कर देखा और वहां पर उन्होंने विशाल पुस्तकों का संग्रह देखा।
अर्जुन का दिल पुस्तकों की ओर जाता है और वह वहां पुस्तकों के बीच बैठ जाता है। वह पहले पुस्तक में खो जाता है और फिर दूसरी, तीसरी, और बाकी की पुस्तकों में भी।
विद्वान ने देखा कि अर्जुन बड़ी रुचि और उत्साह से पढ़ रहा है और वह उसके पास आया। विद्वान ने अर्जुन के साथ कुछ समय बिताया और उसे बड़े ज्ञानवान बनाने का प्रस्ताव दिया।
अर्जुन ने विद्वान की प्रेरणा से अपनी पढ़ाई में मेहनत करना शुरू किया और वह रोज़ पुस्तकालय जाता था। उसने विभिन्न विषयों में अपनी ज्ञान को विस्तारित किया और उसने अपने विद्यालय के अच्छे अंक प्राप्त किए।
धीरे-धीरे, अर्जुन ने अपनी पढ़ाई को और भी अच्छा बनाया और उसने अपनी ज्ञान की गहराई में बढ़ने का निर्णय लिया। वह अपने ज्ञान को और भी विकसित करने के लिए एक प्रमुख विश्वविद्यालय में प्रवेश पाया और वह वहां पढ़ाई करने गया।
अर्जुन ने वहां पर अपनी पढ़ाई में मेहनत करना शुरू किया और उसने अपने ज्ञान को और भी गहरा किया। वह प्रोफेसर्स के साथ विवाद करते थे, प्रश्न पूछते थे, और नये-नये दिशाओं में सोचते थे।
अंत में, अर्जुन ने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण मार्ग पर कदम रखा और वह एक प्रमुख ज्ञानी बन गए। उन्होंने अपने ज्ञान को समाज के लिए उपयोगी तरीके से इस्तेमाल किया और वह एक प्रमुख शिक्षाविद्या बन गए।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि जहां प्रश्न नहीं, वहां जिज्ञासा नहीं - और जहां जिज्ञासा नहीं, वहां ज्ञान का उद्गम हो ही नहीं सकता। हमें हमेशा सवाल करने और जानने की जिज्ञासा रखनी चाहिए, क्योंकि यह ही हमारे जीवन को बढ़ावा देता है और हमें अधिक ज्ञानान्वित बनाता है।
No comments:
Post a Comment