भगवान कृष्ण की भूमि वृंदावन का है. वृंदावन पहुंच कर,मैँ मुग्ध
होकर पावन धरा को निहार रहा था। जयपुर से लंबी यात्रा के बाद हम सभी को
कड़ाके की भूख लगी थी सो एक साफ से दिखने वाले रेस्टोरेंट पर रुक गये । समय
नष्ठ ना करने के लिए थाली मंगाई गई। एक साफ से ट्रे में दाल, सब्जी,चावल,
रायता व साथ एक टोकरी में रोटियां आई। पहले
कुछ कौर में ध्यान नही गया फिर मुझे कुछ ठीक नही लगा। मुझे रोटी में
खट्टेपन का अहसास हुआ, फिर सब्जी की ओर ध्यान दिया तो देखा सब्जी में हर
टुकड़े का रंग अलग अलग सा था। चावल चखा तो वहां भी माजरा गड़बड़ था। सारा खाना
छोड़ दिया। फिर काउंटर पर बिल पूछा यो 650 का बिल थमाया। मैंने कहा 'भैया!
पैसे तो दूँगा लेकिन एक बार आपकी रसोई देखना चाहता हूं" वो अटपटा गया और
पूछने लगा "क्यों?"मैंने कहा "जो पैसे देता है उसे देखने का हक़ है कि खाना
साफ बनता है या नहीँ?"इससे पहले की वो कुछ समख पाता मैंने होटल की रसोई की
ओर रुख किया। आश्चर्य
की सीमा ना रही जब देखा रसोई में कोई खाना नहीं पक रहा था। एक टोकरी में
कुछ रोटियां पड़ी थी। फ्रिज खोल तो खुले डिब्बों में अलग अलग प्रकार की पकी
हुई सब्जियां पड़ी हुई थी।कुछ खाने में तो फफूंद भी लगी हुई थी। फ्रिज
से बदबू का भभका आ रहा था।डांटने पर रसोइये ने बताया की सब्जियां करीब एक
हफ्ता पुरानी हैं। परोसने के समय वो उन्हें कुछ तेल डालकर कड़ाई में तेज
गर्म कर देता है और धनिया टमाटर से सजा देता है। रोटी का आटा 2 दिन में एक
बार ही गूंधता है। कई
कई घण्टे जब बिजली चली जाती है तो खाना खराब होने लगता है तो वो उसे तेज़
मसालों के पीछे छुपाकर परोस देते हैं। रोटी का आटा खराब हो तो उसे वो नॉन
बनाकर परोस देते हैं। मैंने
रेस्टोरेंट मालिक से कहा कि "आप भी कभी यात्रा करते होंगे, इश्वेर करे जब
अगली बार आप भूख से बिलबिला रहे हों तो आपको बिल्कुल वैसा ही खाना मिले
जैसा आप परोसते हैं" उसका चेहरा स्याह हो गया.... आज आपको खतरो, धोखों व
ठगी से सिर्फ़ जागरूकता ही बचा सकती है क्योंकी भगवान को भी दुष्टों ने घेर
रखा है। भारत से सही व गलत का भेद खत्म होता जा रहा है.... हर
दुकान व प्रतिष्ठान में एक कोने में भगवान का बड़ा या छोटा मंदिर होता है,
व्यपारी सवेरे आते ही उसमे धूप दीप लगाता है, गल्ले को हाथ जोड़ता है और फिर
सामान के साथ आत्मा बेचने का कारोबार शुरू हो जाता है!!! भगवान से मांगते
वक़्त ये नही सोचते की वो स्वयं दुनिया को क्या दे रहे हैं!
Tuesday, August 29, 2017
Wednesday, August 2, 2017
सर्वशक्तीमान
एक शख्स गाड़ी से उतरा.. और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट मे घुसा , जहाज़ उड़ने
के लिए तैयार था , उसे किसी कांफ्रेंस मे पहुंचना था जो खास उसी के लिए
आयोजित की जा रही थी.....
वह अपनी सीट पर बैठा और जहाज़ उड़
गया...अभी कुछ दूर ही जहाज़ उड़ा था कि....कैप्टन ने ऐलान किया , तूफानी
बारिश और बिजली की वजह से जहाज़ का रेडियो सिस्टम ठीक से काम नही कर
रहा....इसलिए हम क़रीबी एयरपोर्ट पर उतरने के लिए मजबूर हैं.।
जहाज़
उतरा वह बाहर निकल कर कैप्टन से शिकायत करने लगा कि.....उसका एक-एक मिनट
क़ीमती है और होने वाली कांफ्रेस मे उसका पहुचना बहुत ज़रूरी है....पास खड़े
दूसरे मुसाफिर ने उसे पहचान लिया....और बोला डॉक्टर पटनायक आप जहां
पहुंचना चाहते हैं.....टैक्सी द्वारा यहां से केवल तीन घंटे मे पहुंच सकते
हैं.....उसने शुक्रिया अदा किया और टैक्सी लेकर निकल पड़ा...
लेकिन ये क्या आंधी , तूफान , बिजली , बारिश ने गाड़ी का चलना मुश्किल कर दिया , फिर भी ड्राइवर चलता रहा...
अचानक ड्राइवर को एह़सास हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है...
ना उम्मीदी के उतार चढ़ाव के बीच उसे एक छोटा सा घर दिखा....इस तूफान मे वही ग़नीमत समझ कर गाड़ी से नीचे उतरा और दरवाज़ा खटखटाया....
आवाज़ आई....जो कोई भी है अंदर आ जाए..दरवाज़ा खुला है...
अंदर एक बुढ़िया आसन बिछाए भगवद् गीता पढ़ रही थी...उसने कहा ! मांजी अगर इजाज़त हो तो आपका फोन इस्तेमाल कर लूं...
बुढ़िया मुस्कुराई और बोली.....बेटा कौन सा फोन ?? यहां ना बिजली है ना फोन..
लेकिन
तुम बैठो..सामने चरणामृत है , पी लो....थकान दूर हो जायेगी..और खाने के
लिए भी कुछ ना कुछ फल मिल जायेगा.....खा लो ! ताकि आगे सफर के लिए कुछ
शक्ति आ जाये...
डाक्टर ने शुक्रिया अदा किया और
चरणामृत पीने लगा....बुढ़िया अपने पाठ मे खोई थी कि उसकेे पास उसकी नज़र
पड़ी....एक बच्चा कंबल मे लपेटा पड़ा था जिसे बुढ़िया थोड़ी थोड़ी देर मे हिला
देती थी...
बुढ़िया फारिग़ हुई तो उसने कहा....मांजी ! आपके स्वभाव और एह़सान ने मुझ पर जादू कर दिया है....आप मेरे लिए भी दुआ
कर दीजिए....यह मौसम साफ हो जाये मुझे उम्मीद है आपकी दुआऐं ज़रूर क़बूल होती होंगी...
बुढ़िया
बोली....नही बेटा ऐसी कोई बात नही...तुम मेरे अतिथी हो और अतिथी की सेवा
ईश्वर का आदेश है....मैने तुम्हारे लिए भी दुआ की है.... परमात्मा का शुक्र
है....उसने मेरी हर दुआ सुनी है..
बस एक दुआ और मै उससे माँग रही हूँ शायद जब वह चाहेगा उसे भी क़बूल कर लेगा...
कौन सी दुआ..?? डाक्टर बोला...
बुढ़िया बोली...ये जो 2 साल का बच्चा तुम्हारे सामने अधमरा
पड़ा
है , मेरा पोता है , ना इसकी मां ज़िंदा है ना ही बाप , इस बुढ़ापे मे इसकी
ज़िम्मेदारी मुझ पर है , डाक्टर कहते हैं...इसे कोई खतरनाक रोग है जिसका वो
इलाज नही कर सकते , कहते हैं एक ही नामवर डाक्टर है , क्या नाम बताया था
उसका !
हां "डॉ पटनायक " ....वह इसका ऑप्रेशन कर सकता है ,
लेकिन मैं बुढ़िया कहां उस डॉ तक पहुंच सकती हूं ? लेकर जाऊं भी तो पता नही
वह देखने पर राज़ी भी हो या नही ? बस अब बंसीवाले से ये ही माँग रही थी कि
वह मेरी मुश्किल आसान कर दे..!!
डाक्टर की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा है....वह भर्राई हुई आवाज़ मे बोला !
माई...आपकी
दुआ ने हवाई जहाज़ को नीचे उतार लिया , आसमान पर बिजलियां कौदवां दीं ,
मुझे रस्ता भुलवा दिया , ताकि मैं यहां तक खींचा चला आऊं ,हे भगवान! मुझे
यकीन ही नही हो रहा....कि कन्हैया एक दुआ क़बूल करके अपने भक्तौं के लिए इस
तरह भी मदद कर सकता है.....!!!!
दोस्तों वह
सर्वशक्तीमान है....परमात्मा के बंदो उससे लौ लगाकर तो देखो...जहां जाकर
इंसान बेबस हो जाता है , वहां से उसकी परमकृपा शुरू होती है...।यह आप सबसे
अधिक लोगो को भेजे ताकि मुझ जैसे लाखो लोगो की आँखे खुले।
Monday, July 24, 2017
खुशी की वजह
मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर
के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द
था कि अंदर जाकर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को
रोक ना सका।
अंदर जा कर
मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के
साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को
क्यों मार रही हो ? जबकि आप खुद भी रोती हो।
उसने
जवाब दिया भाई साहब इसके पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत
ही गरीब हैं, उनके जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इसकी
पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता
है और रोज़ाना घर देर से आता है।
जाते
हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान
नहीं देता है जिसकी वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है।
मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।
इस
घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी
मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से
मार खाता था। मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो
दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो
उनसे कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली
में डाल लेता।
मैं यह
नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का
चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उसकी झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के
किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर
मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार
ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।
अचानक
एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिसकी दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही
सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक
ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर
धक्का दे दिया।
वह बच्चा
आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी
देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस
शख्स का जिसकी दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स
ने बच्चे को कुछ नहीं कहा।
थोड़ी
सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और
वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार
को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस
स्कूल की और चल पड़ा। और मैं भी उसके पीछे पीछे चल रहा था।
बच्चे
ने रास्ते में अपना मुंह धोकर स्कूल चल दिया। मै भी उसके पीछे स्कूल चला
गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उसके टीचर
ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जाकर टीचर को मना किया कि मासूम
बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही
आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार
मै इसके घर पर भी खबर दे चुका हूँ।
खैर
बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का
मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम
के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ
से एक बार फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।
सुबह
उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी
पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और
बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके
घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप
का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।
वह
फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों
खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम
तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर
देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और
आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।
अचानक
मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह बहुत ही दर्द भरी
सिसकियां लेकर लगातार रो रही थी, और मैने फौरन उसके टीचर की तरफ देखा तो
बहुत शिद्दत से उसके आंसू बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था
जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का
एहसास हो रहा हो।
उसकी
माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया।
बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते
हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट लेलो, बच्चे
ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया।
आज
भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रखकर
मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से
उसे मार ले। टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगाकर इस क़दर ज़ोर से
रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।
मैने
अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह
जो बैग में सूट है वह किसके लिए है। बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी
माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते
हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास
पैसे नही हैं इसलिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।
तो
यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे ? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने
मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने
जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे
दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए
दर्जी के पास जमा किये हैं।
टीचर
और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और
विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उनके बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल
होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।
Tuesday, July 18, 2017
गधे की समाधी
किसी मंदीर में एक पंडित रहते थे। पंडित के पास 1गधा भी था सैकड़ों भक्त उस मंदीर पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे उन भक्तों में एक बंजारा भी था। वह बहुत गरीब था , फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता, पंडित की सेवा करता, और फिर अपने काम पर जाता, उसका कपड़े का व्यवसाय था, कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता, कपड़े बेचता❗ एक दिन उस पंडित को उस
पर दया आ गई, उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया❗ अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गईं। वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक जाता तो खुद भी गधे पर बैठ जाता इसी बीच गधा भी अपने नये मालीक से काफी घूलमील गया था यूं ही कुछ महीने बीत गए, एक दिन गधे की मृत्यु हो गई❗ बंजारा बहुत दुखी हुआ, उसने गधे को उचित स्थान पर दफनाया, और उसकी समाधी बनाई और फूट-फूट कर रोने लगा❗ समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने जब यह दृश्य देखा, तो सोचा जरूर किसी संत की समाधी होगी❗ तभी यह बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है❗ यह सोचकर उस व्यक्ति ने समाधी पर माथा टेका और अपनी मनोकामना हेतु वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया❗ कुछ दिनों के उपरांत ही उस व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई उसने खुशी के मारे सारे गांव में डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण संत की समाधी है❗ वहां जाकर जो मनोकामना मांगो वह पूर्ण होती है। मनचाही मुरादे बख्शी जाती हैं उस दिन से उस समाधी पर भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया❗ दूर-दराज से भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु आने लगे। बंजारे की तो चांदी हो गई,
बैठे-बैठे उसे कमाई का साधन मिल गया था❗ और धीरे धीरे वह समाधी भी पूरी तरह से मंदीर का आकार ले चुकी थी❗ एक दिन वही पूराने पंडित जिन्होंने बंजारे को अपना गधा भेंट स्वरूप दिया था वहां से गुजर रहे थे❗
उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला- "आपके गधे ने तो मेरी जिंदगी बना दी❗
जब तक जीवित था तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था और मरने के बाद मेरी जीविका का साधन उसका मंदीर बन गया है❗" पंडित हंसते हुए बोले, "बच्चा! जिस मंदीर में तू नित्य माथा टेकने आता था, वह मंदीर इस गधे की मां का था❗" यूही चल रहा है भारत.....
*इस प्रसंग का......*
*G* - *गधे की*
*S* - *समाधी पे*
*T* - *टेको माथा*
Sunday, July 16, 2017
एक खूबसूरत सोच
एक व्यक्ति एक दिन बिना बताए काम पर नहीं गया. मालिक ने,सोचा इस कि तन्खाह बढ़ा दी जाये तो यह
और दिल्चसपी से काम करेगा.....और उसकी तन्खाह बढ़ा दी....अगली बार जब उसको तन्खाह से ज़्यादा पैसे दिये तो वह कुछ नही बोला चुपचाप पैसे रख लिये..... कुछ महीनों बाद वह फिर ग़ैर हाज़िर हो गया...... मालिक को बहुत ग़ुस्सा आया..... सोचा इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ यह नहीं सुधरेगाऔर उस ने बढ़ी हुई
तन्खाह कम कर दी और इस बार उसको पहले वाली ही तन्खाह दी...... वह इस बार भी चुपचाप ही रहा और
ज़बान से कुछ ना बोला.... तब मालिक को बड़ा ताज्जुब हुआ.... उसने
उससे पूछा कि जब मैने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद तुम्हारी तन्खाह
बढा कर दी तुम कुछ नही बोले और आज तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्खाह
कम कर के दी फिर भी खामोश ही रहे.....!! इस की क्या वजह है..? उसने जवाब दिया....जब मै पहले ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था....!! आपने मेरी तन्खाह बढ़ा कर दी तो मै समझ गया..... परमात्मा ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेज दिया है...... और जब दोबारा मै ग़ैर हाजिर हुआ तो मेरी माता जी का निधन हो गया था...जब आप ने मेरी तन्खाह कम दी तो मैने यह मान लिया की मेरी माँ अपने हिस्से का
अपने साथ ले गयीं..... फिर मै इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ जिस का ज़िम्मा ख़ुद परमात्मा ने ले रखा है.....
एक खूबसूरत सोच :
अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया,
तो
बेशक कहना, जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी और जो भी पाया वो प्रभू की
मेहेरबानी थी, खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच में, ज्यादा मैं
मांगता. नहीं और कम वो देता नहींFriday, July 14, 2017
आप भी बूढ़े होगें।
एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर
गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।
रेस्टॉरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे
लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।
खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उनके
कपड़े साफ़ किये, उनका चेहरा साफ़ किया, उनके बालों में कंघी की,चश्मा
पहनाया और फिर बाहर लाया।
सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के
साथ
बाहर जाने लगा।
तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या
तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "
बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर
नहीं जा रहा। "
वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ
छोड़ कर जा रहे हो,
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद
(आशा)। "
आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना
पसंद नहीँ करते
और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता
नहीं ठीक से खाया भी नहीं जाता आप तो घर पर ही रहो वही अच्छा
होगा.
क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी
गोद मे उठा कर ले जाया
करते थे,
आप जब ठीक से खा नही
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर
जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी
फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते हैं???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...
क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होगें।
Sunday, July 9, 2017
किचन कॉलिंग
सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेके रात तक, रात से फिर सुबह तक........
सच
में ऐसा लगता है, किचन और खाना के अलावा ज़िन्दगी में कुछ और है ही नही। हर
औरत की दुविधा, कब और क्या बनाना है। कभी कभी लगता हैं खुद को ही पका
डालू।सॉरी । ऐसा बोलना नही चाहती पर ऐसा ही लगता है।
ऐसा
नही की मुझे खाना बनाना पसंद नही। मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है, और लोग
कहते है कि मै बहुत टेस्टी खाना बनाती हूँ। पर हर चीज़ की हद होती है। अगर
24 घंटे में 8 घंटे भी किचन में रहना पड़े तो कैसा लगेगा?
हमारे
यहाँ तोरू परवल कोई नही खाता। बैगन गोबी पसंद नही। करेले से तो एलर्जी है।
तो क्या रहा? आलू और भिंडी।पापा डाईबेटिक पेशेंट है, इसलिए आलू अवॉयड करते
हैं।
पति को छोले पनीर पसंद है, पापा को भाती नही। पापा को मंगोड़ी पापड़ पसंद हैं, पति ने आज तक चखा नही।
अब हमारी प्यारी माताजी।दांतों का इलाज चल रहा हैं। चावल खिचड़ी उपमा, उनको भाता नही। बचा बिचारा दलिया। उसके साथ भी कढ़ी और आलू।
अब
सुनो ये रात से सुबह तक के किस्से। कभी रात 12 बजे दही ज़माना याद आता हैं।
कभी रात के 1 बजे चने भिगोने।कभी 2 बजे लगता है कहीं किचन की मोटर तो ओंन
नही। कभी 3 बजे फ्रीजर से बोतल निकालना। 4 बज गए तो दही अंदर रख दु नही तो
खट्टा हो जाएगा।
क्या करूँ मैं और मेरे जैसी बिचारियाँ
ये
किचन कॉलिंग यही खत्म नही होता। बच्चे 7 बजे दूध पीते है, माँ पापा 8 बजे
चाय। पति देव 9 बजे कॉफ़ी।बच्चे 10 बजे नास्ता करते है, पति 11 और माँ 12।
सासु माँ 2 बजे लंच करती हैं । बच्चे 3 बजे। थैंक्स गॉड, इनका और पापा का लंच पैक होता हैं।
डिनर की तो पूछो मत। बच्चे 8 बजे। पापा 9 बजे। माँ 10 बजे और पति देव 11 बजे।
12 से 4 की कहानी तो मैं पहले ही सुना चुकी हूँ।
सच बोलू तो ये कोई व्यंग्य नही है। मेरी ज़िंदगी की हकीकत हैं। पहले पहले तो रोती थीं, ये सब अखरता था, सारा दिन चिड़चिड़ी रहती थी।
फिर
किसी ने मुझे समझाया, जो चीज़ हम बदल नही सकते, उसे accept करो और enjoy
करो।इसलिए अब इसे व्यंग्य के रूप में बता कर हँस लेती हूँ और हँसा देती
हूँ।
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