राजस्थान के एक छोटे से गाँव “धौलपुर” में सरिता नाम की लड़की रहती थी। गाँव में बेटियों कोपढ़ाना ज़रूरी नहीं समझा जाता था। लड़कियों के लिए सबसे बड़ी मंज़िल मानी जाती थी—घर केकाम सीखो और जल्दी शादी कर लो।
पर सरिता अलग थी। उसे किताबों से प्यार था। जब उसकी सहेलियाँ गुड़ियों से खेलतीं, वह पुरानेअख़बारों और फटे-पुराने नोटबुक्स में नए शब्द खोजती। उसके मन में एक ही ख्वाब था—शिक्षिका बनना।
पर रास्ता आसान नहीं था।
पिता किसान थे, जो खुद पढ़े-लिखे नहीं थे। वे मानते थे कि पढ़ाई सिर्फ लड़कों के लिए होती है।माँ कभी-कभी सरिता को चुपके से पढ़ने देती, पर खुलकर साथ नहीं दे पाती।
गाँव के स्कल में 8वीं तक पढ़ाई होती थी। उसके आगे पढ़ने के लिए शहर जाना पड़ता, और वहकिसी भी लड़की के लिए ‘बदचलन’ कहलाने जैसा था।
एक दिन सरिता ने साहस कर पिता से कहा, “पापा, मुझे शहर जाकर आगे पढ़ना है। मैं मास्टरनीबनना चाहती हूँ।”
पिता गुस्से से बोले, “ये सब बातें तेरे बस की नहीं हैं। हम लड़कियों को घर से बाहर नहीं भेजते।”
सरिता की आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में आग थी। उसने सोचा—
"मुश्किलें वो दीवारें हैं जो केवल मजबूत इरादों के सामने ही झुकती हैं!"
उस दिन के बाद उसने ठान लिया—हर मुश्किल से लड़ेगी, लेकिन सपनों को नहीं छोड़ेगी।
रात को जब सब सो जाते, वह मिट्टी के दीये की रोशनी में पढ़ती। जो किताबें नहीं मिलतीं, उन्हेंउधार लेकर पढ़ती। उसने खुद से अंग्रेज़ी सीखना शुरू किया, सरकारी रेडियो पर चलने वालेशैक्षणिक कार्यक्रम सुने।
धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। 10वीं की परीक्षा उसने गाँव में टॉप की। अख़बार मेंउसका नाम छपा। स्कूल के मास्टर जी खुद उसके घर आए और पिता से बोले, “भाई साहब, येलड़की नहीं, चिंगारी है। इसे मत रोको।”
पिता पहली बार चुप हो गए।
सरिता को शहर के सरकारी स्कूल में दाखिला मिला। अब वह हर रोज़ 10 किलोमीटर साइकिलचलाकर स्कूल जाती। धूप, बारिश, सर्दी—कुछ भी उसे रोक नहीं पाता।
शहर में पढ़ते हुए उसे कई ताने भी मिले—“गांव की लड़की क्या करेगी?”, “सरकारी स्कूल काक्या फायदा?”, “इतनी मेहनत क्यों कर रही है?”
पर सरिता मुस्कराकर कहती,
“मैं उन दीवारों से टकरा रही हूँ, जो सालों से हमें रोक रही हैं। और मुझे यकीन है, ये दीवारेंगिरेंगी।”
12वीं के बाद उसने बी.एड. किया। गाँव लौटते हुए वह अब सिर्फ एक बेटी नहीं थी, वह एकआदर्श बन चुकी थी।
उसने गाँव में लड़कियों के लिए एक निशुल्क ट्यूशन सेंटर शुरू किया। वहीं बैठकर वह गणित, हिंदी और जीवन के पाठ पढ़ाती। जो लड़कियाँ कभी स्कूल का मुँह नहीं देखती थीं, वे अब सपनेदेखने लगीं।
पिता, जिन्होंने कभी कहा था “ये तेरे बस की बात नहीं”, अब गाँव में सबसे पहले कहते—"मेरीबेटी मास्टरनी है!"
एक दिन गाँव में सरकारी प्राथमिक स्कूल की नौकरी निकली। सरिता ने आवेदन किया और मेरिटलिस्ट में उसका नाम सबसे ऊपर आया।
जिस स्कूल में कभी वह पढ़ने के लिए लड़ती थी, अब वहीं पढ़ाने लगी।
स्कूल की दीवार पर एक नया बोर्ड लगाया गया, जिस पर लिखा था:
“मुश्किलें वो दीवारें हैं जो केवल मजबूत इरादों के सामने ही झुकती हैं!”
सीख:
मुश्किलें हर किसी के जीवन में आती हैं। वे दीवारें हैं—पुरानी सोच, समाज की बंदिशें, संसाधनोंकी कमी। लेकिन अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी दीवार हमेशा नहीं टिक सकती। जो इंसानहार नहीं मानता, वह धीरे-धीरे दुनिया को बदलने लगता है।
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