सूरजपुर एक शांत और हरा-भरा गाँव था। वहाँ के लोग मेहनती और सहृदय थे, लेकिनकुछ समय से गाँव में एक अजीब सा माहौल बनने लगा था। लोग एक-दूसरे से कम बात करने लगे थे औररिश्तों में खटास आ गई थी। इस गाँव में एक बहुत ही प्रभावशाली और सम्मानित व्यक्ति रहते थे, जिनकानाम था रामनारायण।रामनारायण जी एक बहुत अच्छे किसान थे। उन्होंने अपने खेतों में हमेशा अच्छीफसलें उगाईं। उनकी मेहनत और ईमानदारी के चर्चे दूर-दूर तक थे। एक दिन, उनके खेत में काम करने वालेएक मजदूर ने कहा, "रामनारायण जी, आपकी जमीन अच्छी है, खाद भी अच्छा है, लेकिन पानी में खारापनआ गया है। इससे हमारी फसलें ठीक से नहीं उगेंगी।"रामनारायण जी ने ध्यान दिया और सच में, पानी कास्वाद बदल गया था। उन्होंने तुरंत समाधान खोजने की कोशिश की और पास के तालाब से मीठा पानीलाकर सिंचाई करने लगे। धीरे-धीरे फसलें फिर से खिलने लगीं और खेतों में हरियाली लौट आई।रामनारायण जी ने इस अनुभव से एक महत्वपूर्ण सीख ली। उन्होंने सोचा, "जमीन अच्छी हो, खाद भीअच्छा हो, लेकिन अगर पानी खारा हो तो फसलें नहीं खिलतीं। क्या यही बात हमारे संबंधों पर भी लागूहोती है?" उन्होंने गाँव में फैली दूरियों और तनावों के बारे में सोचा और समझने की कोशिश की।रामनारायण जी ने देखा कि गाँव के लोग अपने कर्मों में तो अच्छे हैं, लेकिन उनकी वाणी में कठोरता आ गईहै। लोग एक-दूसरे से कड़वी बातें करते हैं, जिससे उनके बीच संबंध खराब हो रहे हैं। उन्होंने महसूस कियाकि जैसे खारे पानी से फसलें नहीं उगतीं, वैसे ही कड़वी वाणी से संबंध नहीं टिकते।रामनारायण जी ने एकदिन गाँव की चौपाल में सभी को बुलाया और अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, "भाइयों और बहनों, जैसेहमारी फसलें अच्छी जमीन और अच्छे खाद के बावजूद खारे पानी से नहीं उग सकतीं, वैसे ही हमारे भावऔर कर्म अच्छे होने के बावजूद अगर हमारी वाणी खराब है, तो हमारे संबंध भी नहीं टिक सकते। हमेंअपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा, तभी हम एक-दूसरे के करीब आ सकेंगे।"गाँव के लोगरामनारायण जी की बातों से प्रभावित हुए। उन्होंने सोचा, "यह सच है कि हम एक-दूसरे से अच्छे कर्म करतेहैं, लेकिन हमारी वाणी में मिठास नहीं है। हमें अपनी वाणी को सुधारना होगा।"गाँव वालों ने निर्णय लियाकि वे अपनी वाणी में बदलाव लाएंगे। उन्होंने एक-दूसरे से कड़वी बातें कहने की बजाय, प्रेमपूर्ण औरसम्मानजनक शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू किया। धीरे-धीरे, गाँव का माहौल बदलने लगा। लोग फिर सेएक-दूसरे के साथ हंसी-खुशी से बात करने लगे। संबंधों में मिठास और अपनापन लौट आया।रामनारायणजी ने एक और कदम उठाया। उन्होंने गाँव में एक वाणी सुधार कार्यक्रम का आयोजन किया, जहाँ लोगोंको सिखाया गया कि कैसे वे अपनी वाणी में सुधार ला सकते हैं। इस कार्यक्रम में लोगों ने सीखा कि गुस्सेमें भी कैसे शांत और सम्मानजनक तरीके से बात की जा सकती है।कुछ ही महीनों में, सूरजपुर गाँव कामाहौल पूरी तरह से बदल गया। अब वहाँ के लोग एक-दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक बात करते और संबंधों कोमजबूत बनाते। गाँव में खुशहाली और शांति का माहौल लौट आया। रामनारायण जी के इस पहल काअसर सभी ने महसूस किया और उन्हें धन्यवाद दिया।रामनारायण जी ने अपनी इस सफलता का श्रेय गाँववालों को दिया और कहा, "हमने मिलकर इस बदलाव को संभव किया है। हमें हमेशा याद रखना चाहिएकि जैसे खारा पानी फसलों को खराब कर देता है, वैसे ही कड़वी वाणी हमारे संबंधों को खराब कर देतीहै। हमें अपनी वाणी में मिठास और प्रेम बनाए रखना चाहिए, ताकि हमारे संबंध भी सजीव और मजबूतरहें।"अंतयह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारी वाणी का हमारे संबंधों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।भले ही हमारे भाव और कर्म अच्छे हों, लेकिन अगर हमारी वाणी में कठोरता और कड़वाहट है, तो हमारेसंबंध नहीं टिक सकते। हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना चाहिए, ताकि हमारे संबंध मजबूतऔर खुशहाल रह सकें। जैसे फसलें अच्छी जमीन और खाद के बावजूद खारे पानी से नहीं उगतीं, वैसे हीहमारे संबंध भी कड़वी वाणी से टिक नहीं सकते।
Friday, June 21, 2024
वाणी का महत्व
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