बचपन में जब हम ट्रैन की सवारी करते थें, माँ घर से सफर के लिए खाना बनाकर लें जाती थी l पर ट्रैन में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए l पापा नें समझाया ये हमारे बस का नहीँ l अमीर लोग इस तरह पैसे खर्च कर सकते है, हम नहीँ l बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो वर्ग घर से भोजन बांध कर लें जा रहें हैंl स्वास्थ सचेतन हैं वे l आखिर वो अंतर रह ही गया l
बचपन मेंं जब हम सूती कपड़ा पहनते थें, तब वो वर्ग टेरीलीन का वस्त्र पहनता था l बड़ा मन करता था पर पापा कहते हम इतना खर्च नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरेलिन पहने तब वो वर्ग सूती के कपड़े पहनने लगा l सूती कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च नहीँ कर सकते l आखिर अंतर रह ही गया l
बचपन मेंं जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनो के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनो के पास का वो हिस्सा ढक लेते l बड़े होकर देखा वो वर्ग घुटनो के पास फटे पतलून महंगे दामों मेंं बड़े दुकानों से खरीदकर पहन रहा है l आखिर अंतर रह ही गया l
बचपन मेंं हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते, तब वे
स्कूटर पर जाते l जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जबतक हम मारुति खरीदे, वो बीएमडब्लू पर जाते दिखे l आखिर अंतर रह ही गया l
और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर BMW खरीदे अंतर को मिटाने के लिए तो वो साइकलिंग करते नज़र आये ...अंतर रह ही गया।
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