Monday, June 29, 2015

जब शत्रु मित्र बन गए


बरगद का एक पुराना पेड़ था | उस पेड़ की जडो के पास दो बिल थे | एक बिल में चूहा रहता था और दुसरे बिल में नेवला | पेड़ के बीच खोखली जगह में बिल्ली रहा करती थी | पेड़ की डाल पर उल्लू रहता था | बिल्ली, नेवला, और उल्लू – तीनो चूहे पर निगाह रखते की कब वह पकड़ में आए और वे उसे खाए | उधर बिल्ली चूहे के आलावा नेवला तथा उल्लू पर भी निगाह रखती थी की इनमे से कोई मिल जाए | इस प्रकार बरगद में रहनेवाले ये चारो प्राणी शत्रु बनकर रहते थे |
चूहा और नेवला बिल्ली के डर से दिन में बाहर न निकलते | केवल रात में भोजन की तलाश करते | उल्लू तो रात में ही निकलता था | उधर बिल्ली इन्हें पकड़ने के लिए रात में भी चुपचाप निकल पडती |
एक दिन वहा एक बहेलिया आया | उसने खेत में जाल लगाया और चला गया | रात में चूहे की खोज में बिल्ली खेत की | और गई | उसने जाल को नहीं देखा और बस उसमे वह फँस गई | कुछ देर बाद द्वे पांव चूहा उधर से निकला | उसने बिल्ली को जाल में फंसा देखा तो बहुत खुश हुआ |
तभी न जाने कहा से धूमते हुए नेवला और उल्लू आ गए | चूहे ने सोचा – ये दोनों मुझे नहीं छोड़ेगे | बिल्ली तो मेरी शत्रु हे ही | अब क्या करूँ |
उसने सोचा – इस समय बिल्ली मुसीबत में है | मदद पाने के लालच में शत्रु भी मित्र बन जाता है | इसलिए इस समय बिल्ली की शरण में जाना चाहिए |
चूहा तुरंत बिल्ली के पास गया और बोला = “मुझे तुम्हारी इस हालत पर दया आ रही है | में जाल काटकर तुम्हे मुक्त कर सकता हु | किन्तु में केसे विश्वास करूँ कि तुम मित्रता का व्यवहार करोगी ?”
बिल्ली ने कहा – “तुम्हारे दो शत्रु इधर ही आ रहे है | तुम मेरे पास आकर छिप जाओ | इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है  कि में तुम्हे मित्र बनाकर छिपा लूगी |”
चूहा बिल्ली के पास छिप गया | उधर नेवला और उल्लू भी घूमते धूमते आगे निकल गए | बिल्ली से कहा – “आज से तुम मेरे मित्र हो | अब जल्दी से जाल काट दो | सवेरा होते ही बहेलिया यहाँ आ जाएगा |”
चूहे ने जाल काट दिया और भागकर फिर से बिल में छिप गया | बिल्ली भी मुक्त होकर आ गई | उसने चूहे को आवाज दी – “अरे मित्र | बहार आओ | अब डरने कि क्या बात है |”
चूहा बोला – “में तुम्हे खूब जानता हु | शत्रु केवल मुसीबत में फंसकर कि मित्र बनता है | बाद में वह फिर शत्रु बन जाता है | में तुमपर विश्वास नहीं कर सकता | “

मुर्ख और ज्ञानी


एक दिन एक समस्या को सुलझाने के बाद बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल, क्या तुम जानते हो कि एक मुर्ख और ज्ञानी व्यक्ति में क्या अंतर है ?”
“जी महाराज में जानता हु | “ बीरबल ने कहा “क्या तुम विस्तार से बता सकते हो ?” अकबर ने कहा |
“महाराज, वह व्यक्ति जो अपनी बुदि का प्रयोग मुशिकल, चुनोतिपूर्ण तथा प्रतिकूल परिस्थितियों मव अपना नियन्त्रण खोए बिना करता है वह ज्ञानी होता है | परन्तु वह व्यक्ति जो प्रतिकूल परिस्थितियों को इस प्रकार सुलझाता है कि वे और प्रतिकूल हो जाती है, मुर्ख कहलाता है |”
बादशाह अकबर ने सोचा की बीरबल कहना चाहता है की एक पढ़ा लिखा व्यक्ति ही ज्ञानी होता है क्योकि उसे पता होता है कि कब किस समस्या का समाधान केसे करना है | बीरबल के चतुर जवाब से बादशाह के ह्रदय में उसका स्थान और पक्का हो गया |

बोल का मोल


एक आदमी बूढा हो चला था | उसके चार बेटे थे | बेटे यो तो सभी कम जानते थे | किन्तु बोलचाल और आचरण में चारो एक जैसे न थे | पिता ने कई बार उनसे कहा – “यदि तुमने अपनी बोलचाल और आचरण नहीं सुधारा तो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते |” किन्तु पिता की बात को कोरा उपदेश समझकर बेटो ने कभी ध्यान नहीं दिया |
एक बार को बात है | चारो बेटे और पिता लंबी यात्रा पैर जा रहे थे | इस यात्रा के बिच उनके पास खाने  पिने को कुछ भी न बचा था | जो धन था वह भी ख़त्म हो चूका था | वे लोग कई दिन से भूखे थे | बस यही चाहते थे की किसी तरज ज़ल्दी से ज़ल्दी अपने घर पहुच जाये|
पांचो एक जगह सडक के किनारे विश्राम कर रहे थे | तभी एक व्यापारी अपनी बेलगाडी को हांकता हुआ निकला | वह व्यापारी किसी मेले में जा रहा था | उसने बेलगाडी में तरह-तरह के पकवान और मिठाई भर रखी थी वह उन्हें बेचने के लिए जा रहा था |
पकवाने और मिठाईयो की महक से पांचो में मुंह में पानी आने लगा | बूढे ने कहा – “जाओ व्यापारी से मागो | शायद कुछ खाने को दे दे |”
पिता की आज्ञा सुनकर बेटा व्यापारी के पास गया | बोला – “अरे, ओ व्यापारी, इतना मॉल ले जा रहे है, थोडा मुझे दे | भूख बहुत लगी है |”
व्यापारी ने सोचा – यह कितना मुर्ख है } दुसरे से मागंते समय मीठी वाणी बोलनी चाहिए | अच्छा | यह जितनी कठोर वाणी बोल रहा है इसे उतना ही कठोर पकवान दुगा | यह सोचकर उसने एक सुखा हुआ पकवान दे दिया |
व्यापारी थोरी दूर ही गया की दूसरा भाई उसके पास पहुचा | बोला –“बड़े भाई, प्रणाम! क्या छोटे भाई को खाने के लिए कुछ भी न दोगे?”
व्यापारी ने सोचा – इसने उसे भाई कहा है | छोटे भाई को देना मेरा कर्तव्य है | उसने कहा – “लो भाई, मिठाई खाओ |” और उसने एक दोना भर कर मिठाई दे दी |
अब तीसरा भाई व्यापारी के पास गया | वह बोला =”आदरणीय | आप मेरे पिता समान है | मुझे कुछ खाने को दे |”
व्यापारी ने सोचा – यह मुझे अपने पिता जैसा आदर दे रहा है | इसे तो भरपेट मिठाई देनी चाहिए | और उसने कई दोनो से पकवान और मिठाई भरकर दे दी |
अतं में चोथा पुत्र गया | उसे देखकर व्यापारी मुस्कराया तो वह भी मुस्करा दिया | उसने कहा – मित्र, इस मुसीबत की घड़ी में टीम सहारा बे सकते तो | क्या तुम मुझे भूखा ही रखोगे |”
व्यापारी ने सोचा – मित्र पर लोग सब कुछ न्योछावर कर देते है | फिर यह मित्र तो मुसीबत में है | इसकी मदद करनी चाहिए | मेरा क्या है ? – शहर जाकर और मॉल भर ले उगा | उसने कहा – “मित्र | इस गाड़ी से लदे सरे पकवान और मिठाई तुम्हारे लिए है | चलो, कहा ले चलू |”
और वे दोनों वहा आ गए, जहा पिता के साथ बाकि तीनो बेटे बेठे थे | पिता ने उस सबसे कहा – “अब तुम सब अपनी – अपनी मांगी हुई भोजन साम्रगी की तुलना करो | जिसने जैसा बोला और आचरण किया, उसे वेसा ही मिला | क्या अब भी अपने “बोल का मोल” नहीं समझे ?”

Sunday, June 28, 2015

समय की कीमत


एक शहर में एक परिवार रहता था | पति-पत्नी और उनकी एक प्यारी सी बेटी | पति हर रोज़ की तरह अपने दफ्तर जाता और रात में घर आता | एक दिन वो देर रात से घर आया और  दरवाज़ा खटखाया और तभी उसकी ६ वर्षीय बेटी ने दरवाज़ा खोला और या देख कर उसको आश्रय हुआ की उसकी बेटी अभी तक सोई नहीं |
जैसे बचो की आदत होती है घर आते ही अपने माँ पाप से लिपट जाते है और बाते करना शुरु कर देते है उसी तरह उसकी बेटी ने भी वही किया | अन्दर  घुसते  ही  बेटी ने  पूछा —“ पापा पापा क्या  मैं  आपसे  एक प्रशन पूछ  सकती हू |
पिता ने कहा: हा बिलकुल बेटी | तो बेटी ने पूछा की आप एक दिन में कितना कमा लेते हो |
पिता का उसका ये सवाल अच्छा नहीं लगा पर फिर भी पिता ने उसको बता दिया और फिर बेटी ने दुबारा पूछा की पापा पापा आप एक धंटे में कितना कमा लेता हो | बस यह सुन कर पिता आग बबूला हो गया और अपनी बेटी तो डानट दिया और यह कह कर वो अपने कमरे में चला गया |
थोरी देर बाद जब पिता का दुस्सा थोडा शांत हो गया तो उसको लगा की मैंने बिना बात के उसको गुस्सा कर दिया, वो अपनी बेटी के पास गया | उसको अपनी गोदी में बैठाया और कहा: “बेटा में एक घंटे में २०० रुपये कमा लेता हू |”
तभी बेटी ने बड़ी मासूमियत   से   सर  झुकाते   हुए  कहा अच्छा -, “  पापा  क्या  आप  मुझे  १०० रूपये  दे  सकते  हो ?”
पिता ने कहा बिलकुल बेटी दे सकता हू पर तुम इसका क्या करोगे, तुम्हे क्या चाइये, तुम मुझे बता दो कल में ले आउगा | बेटी ने कहा नहीं पापा मुझे कुछ नहीं चाइये बस आप मुझे १०० रूपये दो | पर वो सोचने  लगा  कि क्या हो  सकता  है क्यों चाइये रुपये इसको क्या करेगी १०० रुपये का |
तभी पिता ने अपने पर्स में से १०० रुपये निकाल कर अपनी बेटी को दे दिए | “Thank You पापा ” बेटी ख़ुशी  से  पैसे  लेते  हुए  कहा , और  फिर  वह  तेजी  से  उठकर  अपनी  आलमारी  की  तरफ   गई , वहां  से  उसने  ढेर  सारे  सिक्के  निकाले  और  धीरे -धीरे  उन्हें  गिनने  लगी |
यह देख कर उसको समझ नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है | जब मेरी बेटी के पास इतने पैसे है तो और क्यों मांग रही है |
पिता ने पूछ ही लिया, जब  तुम्हारे  पास  पहले  से  ही  पैसे  थे  तो  तुमने   मुझसे  और  पैसे  क्यों  मांगे ?”
बेटी ने कहा  क्योंकि  मेरे  पास पैसे कम  थे , पर  अब  पूरे हो गए है |
बेटी ने बहुत ही प्यार से अपने पिता को कहा, “पापा अब  मेरे  पास  २०० रूपये  हैं . क्या  मैं  आपका  एक  घंटा  खरीद सकती हूँ ? Please आप ये पैसे ले लोजिये और कल  घर  जल्दी  आ  जाइये  , हम सभी साथ मिल कर खाना खाएगे | यह सुन कर पिता की आँखों में आंसू आ गए और अपनी बेटी को गले लगा लिया |”
दोस्तों ,  इस तेज रफ़्तार ज़िन्दगी हम सभी लोग इतना व्यस्थ हो गए है की अपने परिवार वालो को वक़्त ही नहीं दे पाते | हम उन लोगो के लिए  ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा importance रखते हैं | दोस्तों हमे ये ख्याल रखना होगा की इस व्यस्त ज़िन्दगी में हम अपने परिवार वालो के साथ भी कुछ समय बिता सके |

Saturday, June 27, 2015

व्यापार लोभ का


किसी जन्म में भगवान बुद्ध एक व्यापारी के घर पैदा हुए | वह व्यापारी नगर में फेरी लगाकर अपनी चीजे बेचता था | उसी नगर में सेरिव नाम का व्यापारी भी था | जब भगवान बुद्ध बड़े हुए तब उनके व्यापारी पिता ने सृवे के साथ उन्हें व्यापार के लिए भेजा |
सेरिव बहुत ही चतुर और कपटी व्यापारी था | बुद्ध जी अत्यंत दयालु और सरल ह्रदय थे | वे दोनों एक नगर  में पहुचे | उस नगर में एक सेठ था | उसके परिवार में केवल उसकी बीवी इर बेटी थी | उनके पास धन-दोलत न थी | घर में जो कुछ सामान था उसे भी धीरे – धीरे बेचकर अपना गुजारा कर रही थी |
सेरिव और बुद्ध उस नगर में फेरी लगाने लगे | उस सेठ परिवार के घर के समाने से पहले सेरिव गुजरा | वह आवाज दे रहा था –“ मनके – मोती की माला ले लो“ |
सेठ की बेटी ने माँ से कहा – “अगर तुम कहो तो इस फेरीवाले से एक मोती माला ले लू|”
“माँ, तुम्हे यद् है, हमारे पास पीतल की एक पुरानी थाली पड़ी है| उसे  ही बेचकर माला ले लू?”
माँ ने सोचा – “चलो बेटी की इतनी सी इच्छा तो पूरी कर ही सकती हु | इसलिए उसने उसकी बात मान ली |”
सेठ की  बेटी खुशी – खुशी बाहर आई और फेरीवाले को बुलाकर बोली – “यह थाली ले लो और मुझे एक माला दे दो|”
सेरिव ने थाली देखी | थाली मेली जरुर थी पर थी सोने की | सेरिव बोला –“यह तो दो कोडी की थाली है | इसमें माला क्या, एक गुरिया भी नहीं मिल सकती | यह तो पीतल की है|” और वह उस थाली की उपेशा से फेंककर चला गया | उसने सोचा, इस तरह थाली की निंदा करने से उः उसे मुफ्त में ही ले सकेगा |
सेठ की बेटी निराश हो गई | थोड़ी देर बाद दूसरा फेरीवाला आया | उसने इसे भी थाली दिखाकर एक माला मांगी | यह फेरीवाला भगवान बुद्ध थे | उन्होंने देखकर कहा – “यह तो सोने की है और इसका मूल्य भुत है | मेरे पास तो पांच हजार मुद्रए है |”
“ठीक है वही दे दो|” सेठ की बेटी ने खुश होकर कहा |
बुद्ध जी ने पांच हजार मुद्रए और एक माला देकर वह थाली खरीद ली और वहा से चले गए |”
कुछ देर बाद सेरिव फिर आया | सेठ की बेटी से बोला – “लोओं, उस बेकार थाली के बदले ही में एक माला दे दू |”
“तुम झूठ बोलते हो } वह थाली सोने की थी | एक फेरीवाला आया था और वह पांच हजार मुद्राओ में खरीदकर ले गया | अच्छा हुआ, तुम्हारी बातो में आकर मेने थाली नहीं दी |”
सेरिव बहुत दुखी हुआ | जब वह बुद्ध जी से मिला तब वह उसको देखते ही साडी बात समझ गए | उन्होंने कहा -
“तुम तो पुराने हो | लेकिन इतनी सी बात भूल गए की लोभ करले और धोखा देने से व्यापार में सगा हनी होती है | ईमानदारी से व्यापार करनेवाले को ही सोने की थाली मिलती है|”

Thursday, June 25, 2015

एकता और फुट


एक जंगल में बटेर पक्षियो का बहुत बड़ा झुंड था | वे निर्भय होकर जंगल में रहते थे | इसी करण उनकी संख्या भी बढती जा रही है |
एक दिन एक शिकारी ने उन बटेरो को देख लिया | उसने सोचा की अगर थोड़े – थोड़े बटेर में रोज पकडकर ले जाऊ तो मुझे शिकार के लिए भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी |
अगले दिन शिकारी एक बड़ा सा जाल लेकर आया | उसने जाल तो लगा दिया, किन्तु बहुत से चतुर बटेर खतरा समझकर भाग गए | कुछ नासमझ और छोटे बटेर थे, वे फंस गए |
शिकारी बटेरो के इतने बड़े खजाने को हाथ से नहीं जाने देना चाहता था | वह उन्हें पकड़ने की नई – नई तरकीबे सोचने लगा | फिर भी बटेर पकड़ में न आते |
अब शिकारी बटेर की बोली बोलने लगा | उस आवाज को सुनकर बटेर जैसे ही इकटठे होते कि शिकारी जाल फेककर उन्हें पकड़ लेता | इस तरकीब में शिकारी सफल हो गया | बटेर धोखा खा जाते और शिकारी के हाथो पकड़े जाते | धीरे – धीरे उनकी संख्या कम होने लगी |
तब एक रात एक बूढ़े बटेर ने सबकी सभा बुलाई | उसने कहा – “इस मुसीबत से बचने का एक उपाय में जनता हु | जब तुम लोग जाल में फंसे ही जाओ तो इस उपाय का प्रयोग करना | तुम सब एक होकर वह जाल उठाना और किसी झाड़ी पर गिरा देना | जाल झाड़ी के ऊपर उलझ जाएगा और तुम लोग निचे से निकलकर भाग जाना | लेकिन वह कम तभी हो सकता है जब तुममे एकता होगी |”
अगले दिन से बटेरो ने एकता दिखाई और वे शिकारी कि चकमा देने लगे | शिकारी अब जंगल से खाली हाथ लोटने लगा | उसकी पत्नी ने करण पूछा तो वह बोला – “बटेरो ने एकता का मंत्र जान लिया है | इसलिए अब पकड़ में नहीं आते है | तू चिंता मत कर | जिस दिन उनमे फुट पड़ेगी, वे फिर पकड़े जाएगे |”
कुछ दिन बाद ऐसा ही हुआ | बटेरो का एक समूह जाल में फंस गया | उसे लेकर उड़ने कि बात हुई | बटेरो ने बहस छिड गई | कोई कहता –“में क्यों जाल उठाऊ? क्या यह सिर्फ मेरा ही कम है?” दूसरा कहता –“जब तुझे चिंता नहीं है तो में क्यों जाल उठाऊ |” तीसरा कड़ता –“ऐसा लगता है जैसे उठाने का ठेका तुम्ही लोगो ने ले रखा है |”
वे आपस की फुट में पड़कर बहस कर ही रहे थे कि शिकारी आ गया और उसने सब बटेरो को पकड़ लिया | अगले दिन बूढ़े बटेर ने बचे हुए बटेरो को समझाया –“एकता बड़े-से-बड़े संकट का मुकाबला कर सकती है | कलह पर फुट से सिर्फ विनाश होता है | अगर इस बात को भूल जाओगे तो तुम सब अपना विनाश कर लोगे |” और फिर वह शिकारी कभी भी बटेर नहीं पकड़ सका 

Wednesday, June 24, 2015

बोल का मोल


एक आदमी बूढा हो चला था | उसके चार बेटे थे | बेटे यो तो सभी कम जानते थे | किन्तु बोलचाल और आचरण में चारो एक जैसे न थे | पिता ने कई बार उनसे कहा – “यदि तुमने अपनी बोलचाल और आचरण नहीं सुधारा तो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते |” किन्तु पिता की बात को कोरा उपदेश समझकर बेटो ने कभी ध्यान नहीं दिया |
एक बार को बात है | चारो बेटे और पिता लंबी यात्रा पैर जा रहे थे | इस यात्रा के बिच उनके पास खाने  पिने को कुछ भी न बचा था | जो धन था वह भी ख़त्म हो चूका था | वे लोग कई दिन से भूखे थे | बस यही चाहते थे की किसी तरज ज़ल्दी से ज़ल्दी अपने घर पहुच जाये|
पांचो एक जगह सडक के किनारे विश्राम कर रहे थे | तभी एक व्यापारी अपनी बेलगाडी को हांकता हुआ निकला | वह व्यापारी किसी मेले में जा रहा था | उसने बेलगाडी में तरह-तरह के पकवान और मिठाई भर रखी थी वह उन्हें बेचने के लिए जा रहा था |
पकवाने और मिठाईयो की महक से पांचो में मुंह में पानी आने लगा | बूढे ने कहा – “जाओ व्यापारी से मागो | शायद कुछ खाने को दे दे |”
पिता की आज्ञा सुनकर बेटा व्यापारी के पास गया | बोला – “अरे, ओ व्यापारी, इतना मॉल ले जा रहे है, थोडा मुझे दे | भूख बहुत लगी है |”
व्यापारी ने सोचा – यह कितना मुर्ख है } दुसरे से मागंते समय मीठी वाणी बोलनी चाहिए | अच्छा | यह जितनी कठोर वाणी बोल रहा है इसे उतना ही कठोर पकवान दुगा | यह सोचकर उसने एक सुखा हुआ पकवान दे दिया |
व्यापारी थोरी दूर ही गया की दूसरा भाई उसके पास पहुचा | बोला –“बड़े भाई, प्रणाम! क्या छोटे भाई को खाने के लिए कुछ भी न दोगे?”
व्यापारी ने सोचा – इसने उसे भाई कहा है | छोटे भाई को देना मेरा कर्तव्य है | उसने कहा – “लो भाई, मिठाई खाओ |” और उसने एक दोना भर कर मिठाई दे दी |
अब तीसरा भाई व्यापारी के पास गया | वह बोला =”आदरणीय | आप मेरे पिता समान है | मुझे कुछ खाने को दे |”
व्यापारी ने सोचा – यह मुझे अपने पिता जैसा आदर दे रहा है | इसे तो भरपेट मिठाई देनी चाहिए | और उसने कई दोनो से पकवान और मिठाई भरकर दे दी |
अतं में चोथा पुत्र गया | उसे देखकर व्यापारी मुस्कराया तो वह भी मुस्करा दिया | उसने कहा – मित्र, इस मुसीबत की घड़ी में टीम सहारा बे सकते तो | क्या तुम मुझे भूखा ही रखोगे |”
व्यापारी ने सोचा – मित्र पर लोग सब कुछ न्योछावर कर देते है | फिर यह मित्र तो मुसीबत में है | इसकी मदद करनी चाहिए | मेरा क्या है ? – शहर जाकर और मॉल भर ले उगा | उसने कहा – “मित्र | इस गाड़ी से लदे सरे पकवान और मिठाई तुम्हारे लिए है | चलो, कहा ले चलू |”
और वे दोनों वहा आ गए, जहा पिता के साथ बाकि तीनो बेटे बेठे थे | पिता ने उस सबसे कहा – “अब तुम सब अपनी – अपनी मांगी हुई भोजन साम्रगी की तुलना करो | जिसने जैसा बोला और आचरण किया, उसे वेसा ही मिला | क्या अब भी अपने “बोल का मोल” नहीं समझे ?”

Tuesday, June 23, 2015

मनुष्य की इच्छाएँ


मनुष्य की इच्छाएँ कभी खतम  नही होती | मानव की इछाये कुछ देर के लिये तो सुख देती पर मन की शांती नही दे सकती | मन एक प्रकार का रथ है जिसमे कामन, करोध, लोभ, मोह, अंहकर, ओर घृणा नाम के साथ अश्व जुटे है | कामना इन सब से प्रमुख है |
मन के तीन विकार होते है:- तामसिक, राजसिक व् सात्विक | तामसिक मन हमेशा दुसरो को नुकसान पहुचाने में आनंद प्राप्त करता है और राजसिक मन अहंकार व् शासन की बात सोचता है और सात्विक हमेशा प्रेम और शांति ही चाहता है| विवेक से ही मन को शांत और काबू में किया जा सकता है | मनुष्य के भीतर कामना, मोह, व् अंहकार जेसी जो व्रतिया है उनके सकारात्मक रूप भी है | माता पिता अपने बच्चो को कभी दुख नहीं दे सकते इसलिए कामना करते है की उनके बच्चे हमेशा सुखी रहे | मन का प्रेम ही उन्हें सन्तान के लिए बलिदान करने को भी तत्पर करता है | उनका इसमें कोई स्वार्थ नहीं होता है बस होती है तो कामना और आशीर्वाद | इसी तरह मोह का भी उदारण भी है | जब कोई युवक किसी युवती के प्रति आकर्षित होता है तो वह उसके अवगुण नहीं देखता और उसकी तरह खिंचा चला जाता है | पहले तो येन केन प्रकारेण वह उसे पाना चाहता है और पा लिया तो खोना नहीं चाहता है | उसका अंह जब जगता है तो वह खुद को उसकी नजरो में उठाने के लिए तरह-तरह से हाथ पैर मरता है | इस तरह वह अपने प्यार को पाने में सफल होता है |
नकारात्मक रूप में अंह मानव का दुश्मन भी है क्योकि यह दुसरो से बेमतलब मुकाबला करवाता है | इससे ग्रस्त व्यक्ति तरह-तरह की इच्छाएँ पलता है  और जब उससे नहीं मिलती तो बेमतलब दुखी भी हो जाता है | परन्तु अगर अंह सकारत्मक हो तो मानव का जीवन आनंद मय हो जाता है | मन को किस दिशा में ले जाना है वो इन्सान के हाथो में होता है | चाहे तो अच्छी जगह पर लगा दे या बुरी जगह पर | संतो ने कहा है: कामनाओ का अंत विनाश है | तो सवाल उठता है की क्या इनका त्याग कर देना चाहिए? क्या इन्सान को बड़ा बनने का सपना नहीं देखना चाहिए?
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की काम, क्रोध, व् लोभ  ये तीनो नर्क के द्वार है | इस तीनो का त्याग करे क्योकि इनसे आत्मा तक का हनन होता है | कामुक आचार से व्यक्ति भ्रष्ट हो जाता है और क्रोध बुदी को भ्रष्ट करता है और विवेक में कमी लाता है जबकि लोभ उसे भिखारी बना देता है और कामनाओ के पूरा न होने से उसे निराशा होती है |
कुछ साधू – संत यह भी कहते है की कामनाएँ प्रक्रति की देन है इसलिए मानव कामनाओ का त्याग नहीं कर सकता जब तक वो जीवन जी रहा है | इच्छाओ को दबाना मुस्किल ही नहीं अपितु ना मूनकिन ही है मनुष्य इच्छाओ का पुतला है | बस इस का एक ही उपाय है की अपनी इच्छाओ को सकरात्मक दिशा दी जाये | योगी कामनाओ से विमुख होता है और वह इच्छा मुक्ति के लिए, मोक्ष के लिए तप का सहारा लेता है पर ग्रहस्त तो संसार की बिच जीता है और उसे चाहिए की संसार में रह कर अपनी इच्छाओ को एक रूप देना चाहिए और मन में हमेशा दुसरो के कल्याण के बारे में ही सोचना चाहिए और अपना कर्म करते रहना चाहिए |
श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है की कर्म योग ही स्र्वोप्रिये है उन्होंने कहा है: “कर्म मार्ग ग्रहस्त लोगो के लिए है सन्यास या कर्म से विमुख होने से कोई शिकार तक नहीं पहुचता | जो इंदियो को अपने नियंत्रित करके बिना किसी आसिक्त के कर्म मार्ग पैर अग्रसर होता है वाही श्रेष्ठ है|” आज का मनुष्य मोज-मस्ती व् ऐश्वर्य को होड़ में लगा हुआ है और मानव मूल्य के बारे में नहीं और न ही संसार के बारे में, बस पैसा आते ही अपने सुख में वलीन हो जाता है और सब कुछ भूल जाता है |
यह एक विडबना है की मनुष्य तन की गंदगी मल-मल कर धोता है लेकिन मन को गंदगी बे बारे में तनिक भी नहीं सोचता | मानव अपने स्वार्थ के लिए तो दुसरो का गला भी काटने से नहीं डरता | धन जाने, स्वास्थ गिरने और तरह-तरह की बदनामी के बाद ही मानव हो होश आता है और फिर बाद में भगवान को भी अपने बुरे के लिए खरी-कोठी सुनाता है | वो भूल जाता है की उसने क्या किया था दुसरो के साथ बस उसे अपना ही दुख दिखाई देता है और दूसरो का नहीं | अगर वो पहले से ही संभल जाता तो उसका कभी बुरा नहीं होता और अगर दुःख आता भी तो हसी हसी से काट देता अपने दुःख को |
सीख: वक्त चाहे बुरा और या अच्छा, अपने मकसद को कभी न भूलना न आप को सिर्फ और सिर्फ समाज कल्याण करना है और उसी की राह पर चलना है 

Monday, June 22, 2015

जब शत्रु मित्र बन गए


बरगद का एक पुराना पेड़ था | उस पेड़ की जडो के पास दो बिल थे | एक बिल में चूहा रहता था और दुसरे बिल में नेवला | पेड़ के बीच खोखली जगह में बिल्ली रहा करती थी | पेड़ की डाल पर उल्लू रहता था | बिल्ली, नेवला, और उल्लू – तीनो चूहे पर निगाह रखते की कब वह पकड़ में आए और वे उसे खाए | उधर बिल्ली चूहे के आलावा नेवला तथा उल्लू पर भी निगाह रखती थी की इनमे से कोई मिल जाए | इस प्रकार बरगद में रहनेवाले ये चारो प्राणी शत्रु बनकर रहते थे |
चूहा और नेवला बिल्ली के डर से दिन में बाहर न निकलते | केवल रात में भोजन की तलाश करते | उल्लू तो रात में ही निकलता था | उधर बिल्ली इन्हें पकड़ने के लिए रात में भी चुपचाप निकल पडती |
एक दिन वहा एक बहेलिया आया | उसने खेत में जाल लगाया और चला गया | रात में चूहे की खोज में बिल्ली खेत की | और गई | उसने जाल को नहीं देखा और बस उसमे वह फँस गई | कुछ देर बाद द्वे पांव चूहा उधर से निकला | उसने बिल्ली को जाल में फंसा देखा तो बहुत खुश हुआ |
तभी न जाने कहा से धूमते हुए नेवला और उल्लू आ गए | चूहे ने सोचा – ये दोनों मुझे नहीं छोड़ेगे | बिल्ली तो मेरी शत्रु हे ही | अब क्या करूँ |
उसने सोचा – इस समय बिल्ली मुसीबत में है | मदद पाने के लालच में शत्रु भी मित्र बन जाता है | इसलिए इस समय बिल्ली की शरण में जाना चाहिए |
चूहा तुरंत बिल्ली के पास गया और बोला = “मुझे तुम्हारी इस हालत पर दया आ रही है | में जाल काटकर तुम्हे मुक्त कर सकता हु | किन्तु में केसे विश्वास करूँ कि तुम मित्रता का व्यवहार करोगी ?”
बिल्ली ने कहा – “तुम्हारे दो शत्रु इधर ही आ रहे है | तुम मेरे पास आकर छिप जाओ | इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है  कि में तुम्हे मित्र बनाकर छिपा लूगी |”
चूहा बिल्ली के पास छिप गया | उधर नेवला और उल्लू भी घूमते धूमते आगे निकल गए | बिल्ली से कहा – “आज से तुम मेरे मित्र हो | अब जल्दी से जाल काट दो | सवेरा होते ही बहेलिया यहाँ आ जाएगा |”
चूहे ने जाल काट दिया और भागकर फिर से बिल में छिप गया | बिल्ली भी मुक्त होकर आ गई | उसने चूहे को आवाज दी – “अरे मित्र | बहार आओ | अब डरने कि क्या बात है |”
चूहा बोला – “में तुम्हे खूब जानता हु | शत्रु केवल मुसीबत में फंसकर कि मित्र बनता है | बाद में वह फिर शत्रु बन जाता है | में तुमपर विश्वास नहीं कर सकता | “

बीरबल की बेटी


एक दिन बीरबल की बेटी ने बादशाह से मिलने के लिए बहुत जोर दिया | वह 11 वर्ष की थी | वह भी अपने लिटा के समान बुद्धिमान तथा चतुर थी | बीरबल ने उसे खुश करने के लिए महल में ले गया | महल में जाकर उसने सभी कक्ष तथा शाही उधान देखे | उसके बाद वह शाही दरबार में गई | उस समय बादशाह दरबार में बैठे थे | उन्होंने बीरबल की बेटी को देखा तथ उसका स्वागत किया | उसके बाद वह भोजन करने चली गई | भोजन के बाद बादशाह ने उससे पूछा, “बेटी क्या तुम जानती हो कि किस प्रकार बात करनी चाहिए “

“जी महाराज, न अधिक न ही बहुत काम” और यह जवाब सुनकर बादशाह हेरान हो गए, उन्हें समझ नहीं आया कि वह क्या बताना चाहती है, इसलिय उन्होंने उससे पूछा, “तुम क्या कहना चाहती हो, बेटी |”


“मेरा मतलब है कि मुझा बड़ो से काम बाते करनी चाहिए और मित्रो के साथ अधिक”

बीरबल कि बेटी का इतना उतम जवाब सुनकर बादशाह बहुत प्रसन्न हुए और बोले “तो तुम भी अपने बिता के समान चतुर हो | “

Saturday, June 20, 2015

स्व-कर्म करते जाओ


हमारी संस्कति में आध्यात्मिको की नजर में मोक्ष, एक सर्वोच्च कल्पना है। मोक्ष मिलना चाहिए ऐसी हर व्यक्ति की आंतरिक भावना होती है। किंतु हमारे ऋषि-मुनियों ने जिन चार पुरूषार्थों का महत्व दिया है, उनमें मोक्ष चौथा पुरूषार्थ है। धर्म, अर्थ और काम अन्य तीन पुरूषार्थ हैं। इन तीन पुरूषार्थों के लिए काम करते करते ही मोक्ष के बारे में सोचना होता है। यह जरूरी नहीं है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए घर-परिवार, कामकाज छोड़कर जंगलों में घूमते रहो।

अपना निहित काम पूरा करते हुए, अपना उत्तरदायित्व सही ढंग से पूरा करते हुए भी मोक्ष हमें सहजता से मिल सकता है। मराठी के एक संत सावता माली थे। खेती करना, फल-सब्जियां उगाना ही उनका पेशा था। वे विठ्ठल के बड़े भक्त थे। किंतु अपनी जिम्मेदारी छोड़कर उन्होंने कभी ईश्वर की आराधना नहीं की। वे कहते थे -'हम माली हैं। खेती करना,अनाज-फल-सब्जियां उगाना हमारा काम है। हम मोट चलाते हैं, तब पेड़ों को पानी मिलता है। तब सेवंती शांति का रूप लेकर आती है। हम अपने स्व-कर्म में रत होते हैं, तो मोक्ष अपने पैरों से हमें मिलने आता है।

सावता माली की कही हुई दो बातें ध्यान में रखना जरूरी है। मोट चलाकर खेती को पानी देनेवाला माली केवल पानी खींचता नहीं, बल्कि यह काम वह बड़े प्रेम के साथ करता है। इसलिए सेवंती शांति का रूप धारण कर आती है और बेला चमेली के फूलों से प्रेम का ही आविष्कार होता रहता है। माली जो स्व-धर्म करता है, उससे पूरे विश्व को आनंद मिलता है और इसलिए माली मोक्ष के करीब जाता है।


जब हम अपना काम दिल लगाकर, ठीक तरीके से करते हैं, तब भी हम मोक्ष के पास क्यों नहीं जाते? उनके लिए थॉमस एडिसन का कहना उचित है। वह कहते हैं,'मैंने अपने पूरे जीवन में कभी भी काम नहीं किया। जो किया वह मौज-मस्ती थी। मौज और कार्यपूर्ति की खुशी, यही तो काम का प्रयोजन है।' आज भी हम अपने व्यवस्थापन प्रशिक्षण में यही सीख देते हैं कि'वर्क इज फन।' आज आप किसी से भी उसके काम के बारे में पूछिए। हर एक यही कहेगा कि 'मेरे काम में कोई अर्थ नहीं है।'

इसका अर्थ यह नहीं है कि उसे दिए गए काम से या उसके स्वीकृत काम में वह खुश नहीं है। नाखुश इंसान ऐसा काम चुनेगा, जो उसे अच्छा लगे। अगर वह वेतन से नाखुश हो, तो अधिक वेतन देनेवाला काम वह चुनेगा। किंतु वास्तव यह है कि कई लोगों को काम में कोई भी काम हम क्या उद्देश्य मन में रखकर करते हैं, इसे महत्व होता है और जैसा हमारा उद्देश्य हो, वैसा ही फल भी मिलता है। कोई काम सत् प्रवृत्ति से किया जाए तो उसका फल सात्त्विक खुशी देनेवाला ही होगा।

कोई अपेक्षा मन में रखकर किया हुआ काम पूर्ति का आनंद नहीं देता, बल्कि फल न मिलने का दु:ख जरूर देता है, और कोई काम तामसी वृत्ति से किया गया हो, तो उस काम में से शून्य ही हाथ आता है । इसलिए गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, 'कृष्णार्पण वृत्ति से काम करो।' यह काम मुझे ईश्वर के लिए करना है, यह सोचकर कोई काम जब हम करते हैं, तब हमारे पास जो भी अच्छा है, वह सब उस काम में लगाने का प्रयास करते हैं ।

ऐसी समर्पण वृत्ति से किया गया काम सदा अच्छा फल ही देगा। पिछले पचास सालों में जापानी उद्योग ऐसे विकसित हुए कि अमरीका के लिए भी आह्वान बन गए। इतना छोटा देश ऐसी अनहोनी कर सका, इसका कारण है, जापान के हर एक मजदूर की अपने काम पर होनेवाली दृढ़ श्रद्धा। इस संदर्भ में उदाहरण के तौर पर एक कहानी हमेशा सुनाई जाती है।

एक कारखाने में एक मजदूर के पास केवल एक ही काम था और वह यह कि हर मशीन में चार स्क्रू फिट करना। एक बार एक विदेशी मेहमान कारखाना देखने आए, उन्होंने देखा कि वे चार स्क्रू लगाते हुए भी मजदूर अपने काम में एकचित्त हो गया था। उन्होंने मजदूर से पूछा, 'इतना एकचित्त होकर करने लायक क्या है इस काम में?' मजदूर ने उत्तर दिया, 'जब यह मशीन विदेश में जाएगी, तब इसका एक भी स्क्रू ढीला होने से काम नहीं चलेगा ।' लोग कहेंगे,'जापानी मशीन ऐसी ही होती हैं।' कोई मेरे देश के बारे में ऐसा कहे, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा इसलिए मैं अपना काम दिल लगाकर, एकचित्त होकर और अपने कामपर विश्वास रखकर करता हूं।

अपने काम पर इतना विश्वास रखनेवाले अनगिनत मजदूर जापान में हैं, इसलिए विनाश की राख से उठकर जापान फिनिक्स जैसी उड़ान भर सका। अपनी सारी शक्तियां, कुशलता तथा तन-मन-धन का अर्पण कर, अगर हम स्वीकृत किया हुआ काम निष्ठापूर्वक करें तो कीर्ति, सम्पत्ति हमारे सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाएगी। इस बात में किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।'

इसमें क्या रखा है? यह क्यों करना है? इसका क्या फायदा है' यही तकिया कलाम सुनाने से तो अच्छा है कि जो काम हमने हाथ में लिया है, उसे पूर्ण करने के लिए जी-जान से हम कोशिश करें। पूरी शक्ति लगाकर, मन एकचित्त कर उसपर ही ध्यान केंद्रित करें। ऐसा हम कर सके तो किसी भी काम में असफलता नहीं मिलेगी। यह विचार मन में दृढ़ हो जाए, तो स्व-कर्म में रत रहकर भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

सारांश यही कि हमारा काम हम निष्ठापूर्वक नेकी से और श्रद्धा से करते हैं, तो उसकी कीमत सबसे बड़ी होती है। हम किसके लिए क्या करते हैं, इसपर हमारे काम की केवल कीमत ही तय नहीं होती, बल्कि सार्वकालिक मूल्य भी तय होता है। ऐसा मूल्य केवल समर्पण भावना में होता है।



ग्रहण करने का गुण


एक घड़ा पानी से भरा हुआ रखा रहता था। उसके ऊपर एक कटोरी ढकी रहती थी। घड़ा अपने स्वभाव से परोपकारी था। बर्तन उस घड़े के पास आते, उससे जल पाने को अपना मुख नवाते। घड़ा प्रसन्नता से झुक जाता और उन्हें शीतल जल से भर देता। प्रसन्न होकर बर्तन शीतल जल लेकर चले जाते। कटोरी बहुत दिन से यह सब देख रही थी। एक दिन उससे रहा न गया, तो उसने शिकायत करते हुए अपने दिल की टीस घड़े से व्यक्त की, 'बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?' 'पूछो।' घड़े ने शांत स्वर में उत्तर दिया।

कटोरी ने अपने मन की बात कही, 'मैं देखती हूं कि जो भी बर्तन तुम्हारे पास आता है, तुम उसे अपने जल से भरकर संतुष्ट कर देते हो। मैं सदा तुम्हारे साथ रहती हूं, फिर भी तुम मुझे कभी नहीं भरते। यह मेरे साथ पक्षपात है।' अपने शीतल जल की तरह शांत व मधुर वाणी में घड़े ने उत्तर दिया, 'कटोरी बहन, तुम गलत समझ रही हो।

मेरे काम में पक्षपात जैसा कुछ नहीं। तुम देखती हो कि जब बर्तन मेरे पास आते हैं, तो जल ग्रहण करने के लिए विनीत भाव से झुकते हैं। तब मैं स्वयं उनके प्रति विनम्र होते हुए उन्हें अपने शीतल जल से भर देता हूं। किंतु तुम तो गर्व से भरी हमेशा मेरे सिर पर सवार रहती हो।

जरा विनीत भाव से कभी मेरे सामने झुको, तब फिर देखो कैसे तुम भी शीतल जल से भर जाती हो। नम्रता से झुकना सीखोगी तो कभी खाली नहीं रहोगी। मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी बात समझ गई होगी।' कटोरी ने मुस्कराकर कहा, 'आज मैंने ग्रहण करने का गुण सीख लिया।'


भविष्य की चिंता में व्यर्थ समय खराब नहीं करना चाहिए।


एक सेठ भविष्य को लेकर आशंकित रहता था। शाम को जब वह दुकान से घर लौटता तो भविष्य की संभावित कठिनाइयों को लेकर तिल का ताड़ बनाने लगता। घर के सभी लोगों, खासकर उसकी पत्नी को इससे बहुत परेशानी होती। धीरे-धीरे पत्नी समझ गई कि बेवजह नकारात्मक चिंतन में घुलते रहने की वजह से उसके पति की यह हालत हो रही है। पत्नी ने उसे सुधारने के लिए एक नाटक रचा। एक दिन वह चारपाई पर रोनी सूरत बनाकर पड़ गई। उसने घर का कोई काम भी नहीं किया।

शाम को सेठ जब घर आया और पत्नी को चारपाई पर लेटे देखा तो उसकी चिंता बढ़ गई। उसने पत्नी से उदासी का कारण पूछा। इस पर पत्नी बोली,'नगर में एक पहुंचे हुए ज्योतिषी पधारे हैं। लोग कहते हैं कि वे त्रिकालदर्शी हैं और उनका कहा कभी झूठ नहीं होता। पड़ोसन की सलाह पर आज मैं भी उनसे मिलने गई थी। उन्होंने मेरा हाथ देखकर बताया कि मैं सत्तर बरस तक जियूंगी। मैं यह सोच-सोचकर परेशान हूं कि सत्तर बरस में मैं कितना अनाज खा जाऊंगी...'

यह सुनकर सेठ उसे समझाते हुए बोला-'अरी बावरी, यह सब एक दिन में थोड़े ही होगा। समय के साथ आने और खर्च होने का काम चलता रहेगा। तू व्यर्थ ही चिंता करती है।' यह सुनकर पत्नी ने तुरंत कहा-'आप भी तो रोज भविष्य के बारे में सोच-सोचकर खुद भी परेशान होते हैं और हमें भी परेशान करते हैं। ऐसा क्यों नहीं सोचते कि समयानुसार यदि समस्याएं आएंगी, तो उनका हल भी निकालते रहेंगे।' सेठ को अपनी भूल समझ में आ गई। उसने अपनी दुविधा दूर करने के लिए पत्नी को धन्यवाद दिया।


Thursday, June 18, 2015

जब भी आप जिंदगी में बेहद उदास और हताश हो जाएँ तो याद रखें 10 बातें |


हमारे जीवन में अक्सर ऐसे मौके आते हैं जब हमें सारे दरवाजे बंद नजर आते हैं और हम बेहद निराश और  उदासी से घिर जाते हैं। ऐसे मौके पर हमें आपने आप को अपने परिवेश की अच्छी चीजों की याद दिलानी पड़ती है क्यूंकि ऐसी चीजें हमारे आस-पास हमेशा मौजूद रहती हैं, और जब हम अपनी और अपने आस-पास की अच्छाईयों पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो बाकि नकारात्मक चीजें अपने आप विलुप्त हो जाती हैं और हम पहले से कहीं ज्यादा मजबूत और बुलंद इरादों के साथ आगे बढ़ते हैं।

हम ऐसी ही कुछ अद्भुत बातों के बारे में आपको बताएंगए जो हमेशा आपको मजबूती प्रदान करेंगे। तो जब भी उदासी और निराशा का बादल आप पर गहराए तो इन १० बातों को याद रखें : 
 १. वक्त सारे घाव भर देता है : 
आप जिन परिस्थितियों से भी गुजरे हों, या फिर आपके हालत कितने भी बुरे क्यों न रहे हों, ये जल्द ही खत्म होंगे। आप इन हालातों से जूझना सीख जायेंगे और इनके साथ जीना भी सीख जाएंगे, धीरे धीरे आपको इन हालातों की आदत हो जाएगी और सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जायेगा।
२. मौके हर जगह हैं : 
हर दिन के साथ जिंदगी आपको अनगिनत मौके देती है; आपको बस उन्हें पहचानने और उनका सबसे अच्छा इस्तेमाल करने के लिए प्रयासरत होना पड़ेगा।
3. दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है जो आपकी मदद कर सकते हैं और आपको प्रेरित कर सकते हैं : 
हो सकता है आप नकारात्मक सोच और हमेशा जीवन को नकारने वाले बुरे लोगों से घिरे हों जो आपके लक्ष्यों का मजाक उड़ाते हों और हमेशा आपको नीचे दिखाने की कोशिश करते हों; मैं आपसे यही कहूँगा कि ऐसे लोगों से आप दूर ही रहें ; हमें ऐसे लोगों की जरुरत नहीं है, अगर आप ऐसे लोगों के साथ जुड़े रहते हैं तो आप कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
लेकिन यह भी याद रखें की हमारे आस पास अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है जो हमेशा हमें प्रेरित करते है और हमारा उत्साह बढ़ाते है। इंटरनेट के युग में ऐसी वेबसाइटस और ब्लॉग्स भी हैं(जैसे हिंदी साहित्य मार्गदर्शन ) जो आपको बेहतर बनने में आपकी मदद करती हैं। आपको बस उन्हें पहचानना और खोजना है।
4. अगर आपको अपने बारे में कुछ पसंद नहीं है तो उसे आप कभी भी बदल सकते हैं : 
कमियां हम सब में होती हैं।  हो सकता है आपको अपना पतला या मोटा शरीर पसंद न हो या आप सोचते हों की आपके अंदर कुछ विशेष गुण नहीं है या फिर आप दूसरों से बातें करने में शरमाते हैं, लोगों के सामने बोलने में डर लगता है  इत्यादि ।
इन सभी चीजों को बदला सकता है; बस आपको ये जानना है की आप ऐसा बदलाव क्यों लाना चाहते हैं और इसके प्रति हमेशा प्रयासरत रहें। अगर प वास्तव में अपना जीवन बदलना चाहते हैं तो हर दिन अपनी इन कमियों को दूर करने का प्रयास करें।  
5. कुछ भी उतना बुरा नहीं है जितना कि दिखता है : 
कभी-कभी हम हालातों को इतना बढ़ा चढ़ा कर देखने लगते हैं की वो हमारे लिए सबसे बुरा प्रतीत होने लगते हैं जबकि वास्तव में सब कुछ, कुछ ही समय के लिए होता है और बदला जा सकता है।
6. जीवन सुलझा होता है इसे उलझाएं नहीं :
हमें अपने जीवन को हमेशा सुलझाने का प्रयास करना चाहिए इसलिए अपने अति-महत्वकांछी लक्ष्यों को त्याग दें और लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं इसका अनुमान लगाना छोड़ दें।  जिन चीजों का इस्तेमाल आप बिलकुल नहीं करते हैं उनको फेंक दें और अपने डेस्क पर या घर में थोड़ा जगह बनायें। पुरानी बातों और भविष्य की चिंता में समय व्यर्थ न करें और वर्तमान में ध्यान केंद्रित करें।  
7. असफलताएँ और गलतियां आशीर्वाद /वरदान हैं :
असफल होना सफलता के लिए किये गए प्रयास का सबसे बड़ा प्रमाण है, इसका मतलब है कि आप अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं।  
किसी भी कार्य में प्रयास करने पर भी असफलता आपको अनुभव प्रदान करती है और मजबूत बनाती है और आपको सिखाती है कि किन गलतियों को दोहराने से आपको बचना चाहिए जो अगले प्रयास में सफलता सुनिश्चित कर सकती है।  
8. "​जाने दो यारों"  ऐटिट्यूड अपनाएं : हमेशा आप प्रसन्न रहेंगे 
कभी कभी कुछ चीजों को छोड़ देना या किसी को माफ़ कर देना बहुत अच्छा साबित होता है। ऐसा करने से आपको शांति मिलती है और आपके मन से बोझ हल्का हो जाता है। शांत मन से ही आप वर्तमान में जी सकते हैं और अपने कार्यों में ध्यान लगाकर प्रगति कर सकते हैं।  
9. कायनात हमेशा आपके पक्ष में काम करती है न की विरोध में :
जीवन कभी-कभी हमें अन्यायपूर्ण लगता है और हम ये सवाल पूछने लगते हैं की "हमेशा मैं ही क्यों", लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए लगता है कि हम कभी कभी चीजों को कुछ ज्यादा ही व्यक्तिगत ले लेते हैं और कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगा बैठते हैं या फिर उतना प्रयास नहीं करते जितना हमें करना चाहिए था। ब्रम्हाण्ड हमें हमेशा संकेत देता रहता है लेकिन कभी कभी हम बंद दरवाजों की तरफ इतनी देर तक देखते रहते हैं की आगे के मौके हमें दिखाई नहीं देते।  आपको ब्रम्हांड के संकेतो को समझना होगा और आपके लिए जो सही है उसका चुनाव करना होगा।  
10 .  हर अगला दिन आपके लिए नयी उमीदों का भण्डार लेकर आता है :
जब भी मैं बुरा महसूस करता हूँ मैं आपने आप से ये दोहराता हूँ कि अगला दिन नयी उम्मीदों के साथ आएगा और अपने साथ कुछ नया लेकर आएगा और यही सच है। गुजरा दिन कितना ही बुरा क्यों न हो, आने वाला दिन नया होता है और हमें तय करना होता है की इसकी शुरुआत कैसे की जाय और इस कैसे बिताया जाय।  

याद रखिये कठिन परिस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं और कुछ लोग रिकॉर्ड तोड़ते हैं

सुख की माया में फंसा इंसान


एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम का वक्त था। अंधेरे के कारण कुआं उसे दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई। नीचे झांका, तो देखा की कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे हैं। वह जिस डाल को पकड़े था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक हाथी कहीं से आया और पेड़ के तने को जोर-जोर से हिलाने लगा। वह घबरा गया और उसने सोचा कि हे भगवान अब मेरा क्या होगा। 
उस पेड़ के ठीक ऊपर मधुमक्खियों का छत्ता था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उड़ने लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद शहद की लटकते हुए इंसान के होठों पर आ गिरी। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा। शहद की उस बूंद में अद्भुत मिठास थी। कुछ पल के बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। वह इतना मगन हो गया की अपनी मुश्किलों को भूल गया। उस जंगल से शिव पार्वती अपने वाहन से गुजर रहे थे। पार्वती ने शिव से उसे बचने का अनुरोध किया। भगवन शिव ने उसके निकट जा कर कहा, 'मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो।' उस इंसान ने कहा कि भगवान एक बूंद शहद और चाट लूं, तो चलूं। एक बूंद, फिर एक बूंद। हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। आखिर में थककर भगवान शिव चले गए। वह जिस जंगल में जा रहा था, वह जंगल है दुनिया और अंधेरा है अज्ञान। पेड़ की डाली है आयु। दिन रात रूपी चूहे उसे कुतर रहे हैं। घमंड का मदमस्त हाथी उस पेड़ को उखाड़ने में लगा हुआ है। शहद की बूंदें संसारिक सुख हैं जिनके कारण मनुष्य आसपास के खतरे को अनदेखा करता है। सुख की माया में खोए मन को खुद भगवान भी नहीं बचा सकते।

कर्म की ताकत


उस समय फ्रांस के महान विजेता नेपोलियन एक साधारण सैनिक थे। वह बेहद मेहनती और अपने काम के प्रति समर्पित थे। एक दिन राह में एक ज्योतिषी कुछ लोगों का हाथ देख रहे थे। नेपोलियन भी वहां ठहर गए और अपना हाथ ज्योतिषी के आगे कर दिया। ज्योतिषी काफी देर तक हाथ पढ़ता रहा और अचानक उनका चेहरा उदास हो गया।
उसके मनोभावों को नेपोलियन समझ गए और बोले, 'क्या हुआ महाराज? क्या मेरे हाथ में कोई अनहोनी बात लिखी है, जिससे आप चिंतित हो उठे हैं।' ज्योतिषी ने अपनी गर्दन उठाई और बोला, 'तुम्हारे हाथ में भाग्य रेखा ही नहीं है। मैं यही देखकर चिंतित था। जिसके हाथ में भाग्य रेखा ही न हो, उसका भाग्य प्रबल कैसे हो सकता है?' ज्योतिषी की बात सुनकर नेपोलियन दंग रह गए।
वह बहुत ही महत्वाकांक्षी थे। उन्हें ज्योतिषी की बात से बहुत आघात पहुंचा। वह ज्योतिषी से बोले, 'महाराज, मैं अपने कर्म से अपना भाग्य ही बदल दूंगा। जीवन हाथ की रेखाओं पर नहीं, कर्म की रेखा पर निर्भर करता है। हमारे सद्कर्मों की रेखा जितनी बड़ी होगी, सफलता भी उसी हिसाब से मिलेगी।' ज्योतिषी बोले, 'बेटा, काश तुम्हारी बात सच साबित हो।'
नेपोलियन को अपने अदम्य साहस और आत्मबल पर पूरा विश्वास था। इसलिए उन्होंने तय कर लिया कि जो सफलता उनके भाग्य में नहीं है, उसे वे कर्म के बल पर मेहनत से पाकर दिखाएंगे। और सचमुच अनेक बाधाओं का सामना करते हुए नेपोलियन एक साधारण सैनिक से सम्राट बने। उन्होंने अपने कर्म से भाग्य रेखा को कर्म रेखा में बदला और दुनिया को एक नई दिशा प्रदान करते हुए दिखा दिया कि कर्म की ताकत से बड़ी कोई ताकत नहीं होती

विपत्ति से डरकर मत भागो

 
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद तीर्थयात्रा के लिए निकले। कई दिन तक दर्शन करते हुए वह काशी आए और विश्वनाथ के मंदिर में पहुंचे। दर्शन करके बाहर आए तो देखते हैं कि कुछ बंदर इधर से उधर चक्कर लगा रहे हैं। स्वामीजी जैसे ही आगे बढ़े कि बंदर उनके पीछे पड़ गए। उन दिनों स्वामीजी लंबा अंगरखा पहना करते थे और सिर पर साफा बांधते थे।
विद्या प्रेमी होने के कारण उनकी जेबें किताबों और कागजों से भरी रहती थीं। बंदरों को भ्रम हुआ कि उनकी जेबों में खाने की चीजें हैं। अपने पीछे बंदरों को आते देखकर स्वामीजी डर गए और तेज चलने लगे। बंदर भी तेजी से पीछा करने लगे। स्वामीजी ने दौड़ना शुरू किया। बंदर भी दौड़ने लगे। स्वामीजी अब क्या करें? बंदर उन्हें छोड़ने को तैयार ही नहीं थे। स्वामीजी का बदन थर-थर कांपने लगा। वे पसीने से नहा गए। लोग तमाशा देख रहे थे, पर कोई भी उनकी सहायता नहीं कर रहा था। तभी एक ओर से बड़े जोर की आवाज आई- 'भागो मत!' ज्यों ही ये शब्द स्वामीजी के कानों में पड़े, उन्हें बोध हुआ कि विपत्ति से डरकर जब हम भागते हैं तो वह और तेजी से हमारा पीछा करती है। अगर हम हिम्मत से उसका सामना करें तो वह मुंह छिपाकर भाग जाती है।

फिर क्या था, स्वामीजी निर्भीकता से खड़े हो गए, बंदर भी खड़े हो गए। थोड़ी देर खड़े रहकर वे लौट गए। उस दिन से स्वामीजी के जीवन में नया मोड़ आ गया। उन्होंने समाज में जहां कहीं बुराई देखी उससे कतराए नहीं, हौसले से उसका मुकाबला किया।

Tuesday, June 16, 2015

काम में संलग्नता


गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूरी करके एक शिष्य अपने गुरु से विदा लेने आया। गुरु ने कहा- वत्स, यहां रहकर तुमने शास्त्रो 06; का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया, किंतु कुछ उपयोगी शिक्षा शेष रह गई है। इसके लिए तुम मेरे साथ चलो।

शिषî 1;य गुरु के साथ चल पड़ा। गुरु उसे गुरुकुल से दूर एक खेत के पास ले गए। वहां एक किसान खेतों को पानी दे रहा था। गुरु और शिष्य उसे गौर से देखते रहे। पर किसान ने एक बार भी उनकी ओर आंख उठाकर नहीं देखा। जैसे उसे इस बात का अहसास ही न हुआ हो कि पास में कोई खड़ा भी है। 

वहां ; से आगे बढ़ते हुए उन्होंने देखा कि एक लुहार भट्ठी में कोयला डाले उसमें लोहे को गर्म कर रहा था। लोहा लाल होता जा रहा था। लुहार अपने काम में इस कदर मगन था कि उसने गुरु-शिष् 351; की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया। 

गु ;रु ने शिष्य को चलने का इशारा किया। फिर दोनों आगे बढ़े। आगे थोड़ी दूर पर एक व्यक्ति जूता बना रहा था। चमड़े को काटने, छीलने और सिलने में उसके हाथ काफी सफाई के साथ चल रहे थे। गुरु ने शिष्य को वापस चलने को कहा।

शिषî 1;य समझ नहीं सका कि आखिर गुरु का इरादा क्या है? रास्ते में चलते हुए गुरु ने शिष्य से कहा- वत्स, मेरे पास रहकर तुमने शास्त्रो 06; का अध्ययन किया लेकिन व्यावहार 67;क ज्ञान की शिक्षा बाकी थी। तुमने इन तीनों को देखा। ये अपने काम में संलग्न थे। अपने काम में ऐसी ही तल्लीनता आवश्यक है, तभी व्यक्ति को सफलता मिलेगी

आपका अच्छा व्यवहार आपके लिए कितना महत्वपूर्ण


यह प्रेरक कहानी  जो यह बताती है कि आपका अच्छा व्यवहार आपके लिए कितना महत्वपूर्ण हो सकता है।
ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक फ्रीजर प्लांट  में काम करता था। वह दिन का अंतिम समय था और सभी लोग घर जाने को तैयार थे। तभी प्लांट में एक तकनीकी समस्या  उत्पन्न हो गयी और वह उसे दूर करने में जुट गया। जब तक वह कार्य पूरा करता, तब तक अत्यधिक देर हो गयी। लाईटें बुझा दी गईं, दरवाजे सील हो गये और वह उसी प्लांट में बंद हो गया। बिना हवा व प्रकाश के पूरी रात आइस प्लांट में फंसे रहने के कारण उसकी कब्रगाह बनना तय था।
लगभग आधा घण्टे का समय बीत गया। तभी उसने किसी को दरवाजा खोलते पाया। क्या यह एक चमत्कार था? उसने देखा कि दरवाजे पर सिक्योरिटी गार्ड टार्च लिए खड़ा है। उसने उसे बाहर निकलने में मदद की।
बाहर निकल कर उस व्यक्ति ने सिक्योरिटी से पूछा "आपको कैसे पता चला कि मै भीतर हूँ?" 
गार्ड ने उत्तर दिया- "सर, इस प्लांट में 50 लोग कार्य करते हैँ पर सिर्फ एक आप हैँ जो मुझे सुबह आने पर हैलो व शाम को जाते समय बाय कहते हैँ। आज सुबह आप ड्यूटी पर आये थे पर शाम को आप बाहर नहीं गए। इससे मुझे शंका हुई और मैं देखने चला आया।'' 
वह व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका किसी को छोटा सा सम्मान देना कभी उसका जीवन बचाएगा। याद रखेँ, जब भी आप किसी से मिलें तो उसका गर्मजोशी और मुस्कुराहट के साथ सम्मान करें। हमें नहीं पता, पर हो सकता है कि ये आपके जीवन में भी चमत्कार दिखा दे

Monday, June 15, 2015

मुफ्त में सलाह देने की आदत


कुछ लोगों को बिना मांगे सलाह देने की आदत होती है. वे किसी को बेवकूफी करते देख चुप नहीं रह पाते और सलाह दे देते हैं. हालांकि उनका उद्देश्य अच्छा होता है. वे सिर्फ सामनेवाले की भलाई चाहते हैं, लेकिन कई लोग इस बात को गलत अर्थ में ले लेते हैं. अब ये कहानी ही पढ़ लें.
बहुत समय पहले की बात है. नर्मदा नदी के किनारे एक विशालकाय वृक्ष था. इस पर बड़ी संख्या में पक्षियों के घोसले थे. पेड़ इतना घना था कि भारी बारिश में भी घोसलों का कुछ नहीं बिगड़ता था. एक दिन मानसून की भारी बारिश हुई. घंटों तक रुकने का नाम नहीं ले रही थी. बारिश के साथ तेज हवा भी चल रही थी. तभी बंदरों का एक झुंड वहां पहुंचा. बंदर बहुत भीग चुके थे और ठंडी हवा के झोंकों से कांप रहे थे.
 घोसलों में बैठे पक्षियों ने बंदरों की यह हालत देखी. उनमें से एक पक्षी बंदरों से बोला, ‘तुम्हें हर बार बारिश में इस तरह परेशान क्यों होना पड़ता है? हमें देखो, हमने सिर्फ घास-फूस और तिनके लाकर ही अपने घोंसले बनाये हैं और आज हम सुरक्षित हैं, लेकिन ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ, दो पैर दिये हैं, जिनका इस्तेमाल तुम इधर-उधर कूदने और खेलने में करते हो. तुम अपने लिए घर क्यों नहीं बना लेते, जो बारिश-धूप में तुम्हारी रक्षा करेगा.’
पक्षी की यह बात सुन कर बंदर आग-बबूला हो गये. उन्हें लगा कि यह पक्षी हमारे बारे में इस तरह से कैसे बात कर रहा है. बंदरों को लगा कि यह पक्षी अपने घोसले में बैठ कर हमें उपदेश दे रहा है. ‘बारिश रुक जाने दो, तब हम इन्हें सबक सिखायेंगे.’ बंदरों के सरदार ने कहा.जैसे ही बारिश थमी, सारे बंदर पेड़ पर चढ़ गये और उन्होंने घोसलों को तबाह कर डाला. घोसलों में रखे अंडों को फोड़ दिया. अब पेड़ पर घोसलों का नामोनिशान नहीं रह गया था. नतीजा यह हुआ कि पक्षियों ने इधर-उधर उड़ कर अपनी जान बचायी. इसलिए कहा गया है कि सलाह हमेशा समझदार को देनी चाहिए और वह भी तब, जब मांगी जाये. मूर्खो को सलाह कभी नहीं देना चाहिए.
 सलाह देना अच्छी बात है, लेकिन सलाह देने के पहले सामने वाले व्यक्ति का स्वभाव देख लें. यह अच्छी तरह समझ लें कि कहीं वह मूर्ख तो नहीं?
- बिना मांगे किसी को सलाह न दें, वरना सलाह की अहमियत कम हो जाती है. सलाह तभी देनी चाहिए, जब खुद सामने वाला आपसे आ कर मांगे.

Sunday, June 14, 2015

इस दुनिया में नामुनकिन कुछ भी नहीं


विल्मा रुडोल्फ का जन्म अमेरिका के टेनेसी प्रान्त के एक गरीब घर में हुआ था| चार साल की उम्र में विल्मा रूडोल्फ को पोलियो हो गया और वह विकलांग हो गई| विल्मा रूडोल्फ केलिपर्स के सहारे चलती थी। डाक्टरों ने हार मान ली और कह दिया कि वह कभी भी जमीन  पर चल नहीं पायेगी।
विल्मा रूडोल्फ की मां सकारात्मक मनोवृत्ति महिला थी और उन्होंने विल्मा को प्रेरित किया और कहा कि तुम कुछ भी कर सकती हो इस संसार में नामुनकिन कुछ भी नहीं| विल्मा ने अपनी माँ से कहा ‘‘क्या मैं दुनिया की सबसे तेज धावक बन सकती हूं ?’’
माँ ने विल्मा से कहा कि ईश्वर पर विश्वास, मेहनत और लगन से तुम जो चाहो वह प्राप्त कर सकती हो|
नौ साल की उम्र में उसने जिद करके अपने ब्रेस निकलवा दिए और चलना प्रारम्भ किया। केलिपर्स उतार देने के बाद चलने के प्रयास में वह कई बार चोटिल हुयी एंव दर्द सहन करती रही लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी एंव लगातार कोशिश करती गयी| आखिर में जीत उसी की हुयी और एक-दो वर्ष बाद वह बिना किसी सहारे के चलने में कामयाब हो गई|
उसने 13 वर्ष की उम्र में अपनी पहली दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सबसे अंतिम स्थान पर आई। लेकिन उसने हार नहीं मानी और और लगातार दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती गयी| कई बार हारने के बावजूद वह पीछे नहीं हटी और कोशिश करती गयी| और आखिरकार एक ऐसा दिन भी आया जब उसने प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया।
15 वर्ष की अवस्था में उसने टेनेसी राज्य विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ उसे कोच एड टेम्पल मिले| विल्मा ने टेम्पल को अपनी इच्छा बताई और कहा कि वह सबसे तेज धाविका बनना चाहती है| कोच ने उससे कहा – ‘‘तुम्हारी इसी इच्छाशक्ति की वजह से कोई भी तुम्हे रोक नहीं सकता और मैं इसमें तुम्हारी मदद करूँगा”.
विल्मा ने लगातार कड़ी मेहनत की एंव आख़िरकार उसे ओलम्पिक में भाग लेने का मौका मिल ही गया| विल्मा का सामना एक ऐसी धाविका (जुत्ता हेन) से हुआ जिसे अभी तक कोई नहीं हरा सका था| पहली रेस 100 मीटर की थी जिसमे विल्मा ने जुता को हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया एंव दूसरी रेस (200 मीटर) में भी विल्मा के सामने जुता ही थी इसमें भी विल्मा ने जुता को हरा दिया और दूसरा स्वर्ण पदक जीत लिया|
तीसरी दौड़ 400 मीटर की रिले रेस थी और विल्मा का मुकाबला एक बार फिर जुत्ता से ही था। रिले में रेस का आखिरी हिस्सा टीम का सबसे तेज एथलीट ही दौड़ता है। विल्मा की टीम के तीन लोग रिले रेस के शुरूआती तीन हिस्से में दौड़े और आसानी से बेटन बदली। जब विल्मा के दौड़ने की बारी आई, उससे बेटन छूट गयी। लेकिन विल्मा ने देख लिया कि दुसरे छोर पर जुत्ता हेन तेजी से दौड़ी चली आ रही है। विल्मा ने गिरी हुई बेटन उठायी और मशीन की तरह तेजी से दौड़ी तथा जुत्ता को तीसरी बार भी हराया और अपना तीसरा गोल्ड मेडल जीता।
इस तरह एक विकलांग महिला (जिसे डॉक्टरों ने कह दिया था कि वह कभी चल नहीं पायेगी) विश्व की सबसे तेज धाविका बन गयी और यह साबित कर दिया की इस दुनिया में नामुनकिन कुछ भी नहीं 

हर मौसम एक सा नहीं होता


एक दिन पिता ने अपने तीनों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा, 'हमारे यहां नाशपाती का कोई पेड़ नहीं है। मैं चाहता हूं, तुम सब चार-चार महीने के अंतराल पर उसके पेड़ की खोज में जाओ और पता लगाओ कि वह कैसा होता है?' तीनों बेटे बारी-बारी से गए और लौट भी आए। पिता ने उन्हें अपने पास बुलाया और पेड़ के बारे में बताने को कहा।

पहला बेटा बोला, 'पिताजी, वह तो बिलकुल उदास और सूखा हुआ पेड़ था।' दूसरे बेटे ने पहले को बीच में ही रोकते हुए कहा, 'नहीं-नहीं, वो बिलकुल हरा-भरा पेड़ था, लेकिन उस पर फल एक भी नहीं लगा था।' तीसरा बेटा बोला, 'भैया, लगता है तुम कोई गलत पेड़ देख आए। मैंने सचमुच नाशपाती का पेड़ देखा, वो तो बहुत शानदार और फलों से लदा था।' तीनों आपस में विवाद करने लगे।

तभी पिताजी बोले, 'तुम्हें ऐसे झगड़ने की कोई जरूरत नहीं है। तुम तीनों ही पेड़ का सही वर्णन कर रहे हो। मैंने जानकर तुम्हें अलग-अलग मौसम में भेजा था। जो तुमने देखा, वो उस मौसम के अनुसार था। अब मैं चाहता हूं कि तुम तीन बातें गांठ बांध लो- पहली, किसी चीज के बारे में सही और पूरी जानकारी चाहिए, तो उसे लंबे समय तक देखो-परखो।

दूसरी, हर मौसम एक सा नहीं होता। जैसे वृक्ष मौसम के अनुसार सूखता, हरा-भरा या फलों से लदा रहता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी बुरे दौर से गुजर रहे हो तो हिम्मत और धैर्य बनाए रखो। समय अवश्य बदलता है। और तीसरी बात- अपनी बात को सही मान कर उसी पर अड़े मत रहो। दूसरों के विचारों को भी सुनो।