Thursday, October 4, 2018

तुम धन्य हो

एक पंडित था, वो रोज घर घर जाके भगवत गीता का पाठ करता था |
एक दिन उसे एक चोर ने पकड़ लिया और उसे कहा तेरे पास जो कुछ भी है मुझे दे दो ,

तब वो पंडित जी बोला की बेटा मेरे पास कुछ भी नहीं है,

तुम एक काम करना मैं यहीं पड़ोस के घर मैं जाके भगवत गीता का पाठ करता हूँ,
वो यजमान बहुत दानी लोग हैं, जब मैं कथा सुना रहा होऊंगा

तुम उनके घर में जाके चोरी कर लेना!
चोर मान गया

अगले दिन जब पंडित जी कथा सुना रहे थे तब वो चोर भी वहां आ गया तब पंडित जी बोले की यहाँ से मीलों दूर एक गाँव है वृन्दावन, वहां पे एक लड़का आता है जिसका नाम कान्हा है,वो हीरों जवाहरातों से लदा रहता है,
अगर कोई लूटना चाहता है तो उसको लूटो वो रोज रात को इस पीपल के पेड़ के

नीचे आता है,। 

जिसके आस पास बहुत सी झाडिया हैं चोर ने ये सुना और ख़ुशी ख़ुशी वहां से चला गया!
वो चोर अपने घर गया और अपनी बीवी से बोला आज मैं एक कान्हा नाम के बच्चे को

लुटने जा रहा हूँ ,

मुझे रास्ते में खाने के लिए कुछ बांध कर दे दो ,पत्नी ने कुछ सत्तू उसको दे दिया

और कहा की बस यही है जो कुछ भी है,
चोर वहां से ये संकल्प लेके चला कि अब तो में उस कान्हा को लुट के ही आऊंगा,
वो बेचारा पैदल ही पैदल टूटे चप्पल में ही वहां से चल पड़ा, 

रास्ते में बस कान्हा का नाम लेते हुए, वो अगले दिन शाम को वहां पहुंचा जो जगह उसे

पंडित जी ने बताई थी!
अब वहां पहुँच के उसने सोचा कि अगर में यहीं सामने खड़ा हो गया तो बच्चा मुझे देख कर

भाग जायेगा तो मेरा यहाँ आना बेकार हो जायेगा,

इसलिए उसने सोचा क्यूँ न पास वाली झाड़ियों में ही छुप जाऊँ,

वो जैसे ही झाड़ियों में घुसा, झाड़ियों के कांटे उसे चुभने लगे!
उस समय उसके मुंह से एक ही आवाज आयी…

कान्हा, कान्हा , उसका शरीर लहू लुहान हो गया पर मुंह से सिर्फ यही निकला,

कि कान्हा आ जाओ! कान्हा आ जाओ!
अपने भक्त की ऐसी दशा देख के कान्हा जी चल पड़े

तभी रुक्मणी जी बोली कि प्रभु कहाँ जा रहे हो वो आपको लूट लेगा!
प्रभु बोले कि कोई बात नहीं अपने ऐसे भक्तों के लिए तो मैं लुट जाना तो क्या

मिट जाना भी पसंद करूँगा!
और ठाकुर जी बच्चे का रूप बना के आधी रात को वहां आए वो जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे

चोर एक दम से बहार आ गया और उन्हें पकड़ लिया और बोला कि

ओ कान्हा तुने मुझे बहुत दुखी किया है, अब ये चाकू देख रहा है न, अब चुपचाप अपने

सारे गहने मुझे दे दे…

कान्हा जी ने हँसते हुए उसे सब कुछ दे दिया!
वो चोर हंसी ख़ुशी अगले दिन अपने गाँव में वापिस पहुंचा,

और सबसे पहले उसी जगह गया जहाँ पे वो पंडित जी कथा सुना रहे थे,
और जितने भी गहने वो चोरी करके लाया था उनका आधा उसने पंडित जी के

चरणों में रख दिया!
जब पंडित ने पूछा कि ये क्या है, तब उसने कहा आपने ही मुझे उस कान्हा का पता दिया था

मैं उसको लूट के आया हूँ, और ये आपका हिस्सा है , पंडित ने सुना और उसे यकीन ही

नहीं हुआ!
वो बोला कि मैं इतने सालों से पंडिताई कर रहा हूँ

वो मुझे आज तक नहीं मिला, तुझ जैसे पापी को कान्हा कहाँ से मिल सकता है!
चोर के बार बार कहने पर पंडित बोला कि चल में भी चलता हूँ तेरे साथ वहां पर,

मुझे भी दिखा कि कान्हा कैसा दिखता है, और वो दोनों चल दिए!
चोर ने पंडित जी को कहा कि आओ मेरे साथ यहाँ पे छुप जाओ,

और दोनों का शरीर लहू लुहान हो गया और मुंह से बस एक ही आवाज निकली

कान्हा, कान्हा, आ जाओ!
ठीक मध्य रात्रि कान्हा जी बच्चे के रूप में फिर वहीँ आये ,

और दोनों झाड़ियों से बहार निकल आये!
पंडित जी कि आँखों में आंसू थे वो फूट फूट के रोने लग गया, और जाके चोर के चरणों में गिर गया और बोला कि हम जिसे आज तक देखने के लिए तरसते रहे, 

जो आज तक लोगो को लुटता आया है, तुमने उसे ही लूट लिया तुम धन्य हो,

आज तुम्हारी वजह से मुझे कान्हा के दर्शन हुए हैं,

तुम धन्य हो……!!
ऐसा है हमारे कान्हा का प्यार, अपने सच्चे भक्तों के लिए ,

जो उसे सच्चे दिल से पुकारते हैं, तो वो भागे भागे चले आते हैं…..!!

प्रेम से कहिये श्री राधे ~ हे राधे ! जय जय श्री राधे—–

मेरो तो गिरधर-गोपाल, दूसरो न कोई

Monday, October 1, 2018

गज़ब की एकता

किसी गाँव में चार मित्र रहते थे।

चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते,
 योजनाएँ बनाते।

एक ब्राह्मण

एक ठाकुर
 
एक बनिया और
एक नाई था

पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था,

 गज़ब की एकता थी।

इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने, चने आदि चीजे उखाड़ कर खाते थे।

एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े...

और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे।

खेत का मालिक किसान आया.....

चारों की दावत देखी

उसे बहुत क्रोध आया

उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे

पर चार के आगे एक?

वो स्वयं पिट जाता

सो उसने एक युक्ति सोची।

चारों के पास गया,

ब्राह्मण के पाँव छुए,

ठाकुर साहब की जयकार की

बनिया महाजन से राम जुहार

और फिर नाई से बोला--

देख भाई....

ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं,

ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं अन्नदाता हैं,

महाजन सबको उधारी दिया करते हैं.....

ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं

*तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू?*

 तू तो ठहरा नाई तूने चने क्यों उखाड़े?*

*इतना कहकर उसने नाई के दो तीन लट्ठ रसीद किये।*

बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया.....

क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी।

अब किसान बनिए के पास आया और बोला-

तू साहूकार होगा तो अपने घर का

पण्डित जी और ठाकुर साहब तो नहीं है ना!

तूने चने क्यों उखाड़े?

बनिये के भी दो तीन तगड़े तगड़े लट्ठ जमाए।

पण्डित और ठाकुर ने कुछ नहीं कहा।

अब किसान ने ठाकुर से कहा--

ठाकुर साहब....

 माना आप अन्नदाता हो...

पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है....

अरे पण्डित महाराज की बात दीगर है

उनके हिस्से जो भी चला जाये दान पुन्य हो जाता है.....

पर आपने तो बटमारी की!

ठाकुर साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया,

पण्डित जी कुछ बोले नहीं,

नाई और बनिया अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे।

जब ये तीनों पिट चुके....

तब किसान पण्डितजी के पास गया और बोला--

माना आप भूदेव हैं,

पर इन तीनों के गुरु घण्टाल आप ही हैं

आपको छोड़ दूँ

ये तो अन्याय होगा

तो दो लट्ठ आपके भी पड़ने चाहिए।

मार खा चुके बाकी तीनों बोले.....
 
हाँ हाँ, पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए।

अब क्या पण्डित जी भी पीटे गए।

किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके पीटा....
 
किसी ने किसी के पक्ष में कुछ नहीं कहा,

उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये।

मित्रों पिछली दो तीन सदियों से हिंदुओं के साथ यही होता आया है,

कहानी सच्ची लगी हो तो समझने का प्रयास करो और......

अगर कहानी केवल कहानी लगी हो.......

तो आने वाले समय के लट्ठ तैयार हैं।

Sunday, September 30, 2018

ये बेटिया

 ​​पापा मैने आपके लिए हलवा बनाया है 11 साल की बेटी​​ बोली
 ​​अपने पिता से बोली जो की अभी ऑफिस से घर में पहुंचे ही थे 
 ​​पिता​ - वाह क्या बात है,लाकर खिलाओ फिर पापा को !!​ 
 ​​बेटी दौड़ती हुई फिर रसोई में गई और बड़ा कटोरा भरकर हलवा लेकर आई​​ 
 ​​पिता ने खाना शुरू किया और बेटी को देखा पिता की आखों में आंशू आ गये  
 ​क्या हुआ पापा हलवा अच्छा नहीं लगा​ क्या 
 ​पिता - नहीं मेरी बेटी बहुत अच्छा बना है , और देखते देखते पूरा कटोरा खाली कर दिया​ 
 ​इतने में माँ बाथरूम से नहाकर बाहर आई, और बोली : ला मुझे खिला अपना हलवा !!​ 
 ​पिता ने बेटी को 50 रुपए इनाम में दिये ।​
 ​बेटी खुशी से मम्मी के लिए रसोई से हलवा लेकर आई​ 
 ​मगर ये क्या जेसे ही उसने हलवा की पहली चम्मच मुँह में डाली तो तुरंत थूक दिया ।​ 
 ​और बोली ये क्या बनाया है ... ये कोई हलवा है​ ​इसमें चीनी नहीं नमक भरा है,​ 
 ​और आप इसे कैसे खा गए ये तो एकदम कड़वा है !!​ 
 ​पत्नी :- मेरे बनाये खाने में तो कभी नमक कम है कभी मिर्च तेज है कहते रहते हो​ 
 ​और बेटी को बजाय कुछ कहने के इनाम देते हो !!​ 
 ​पिता हँसते हुए : पगली ... तेरा मेरा तो जीवन भर का साथ है ...​
 ​रिश्ता है पति पत्नी का, जिसमे नोक झोक .. रूठना मनाना सब चलता है !!​ 
 ​मगर ये तो बेटी है कल चली जाएगी ।​
 ​आज इसे वो अहसास ... वो अपनापन महसूस हुआ जो मुझे इसके जन्म के समय हुआ था ।​ 
 ​आज इसने बड़े प्यार से पहली बार मेरे लिए कुछ बनाया है ,​ 
 ​फिर बो जैसा भी हो मेरे लिए सबसे बेहतर और सबसे स्वादिष्ट है !!​ 
 ​ये बेटिया अपने पापा की परीया और राजकुमारी होती है जैसे तुम अपने पापा की परी हो !!​ 
 ​वो रोते हुए पति के सीने से लग गई और सोच रही थी ... इसी लिए हर लड़की अपने पति में  अपने पापा की छवि ढूंढ़ती है !!​ 
 ​दोस्तों ... यही सच है,​ 
 ​हर बेटी अपने पिता के बड़े करीब होती है या यूँ कहें कलेजे का टुकड़ा​ 
 ​इसलिए शादी में विदाई के समय सबसे ज्यादा पिता ही रोता है !!​
 ​कई जन्मों की जुदाई के बाद बेटी का जन्म होता है ,​  ​इसलिए तो कन्या दान करना सबसे बड़ा पूण्य होता है 

Friday, September 28, 2018

संसार स्त्रीप्रधान है

एक राजा था ।.. उसने एक सर्वे करनेका सोचा कि 
मेरे राज्य के लोगों की घर गृहस्थि पति से चलती है या पत्नि से..। 
उसने एक ईनाम रखा कि "  जिसके घर में पतिका हुकम चलता हो उसे मनपसंद घोडा़ ईनाम में मिलेगा और जिसके घर में पत्नि की सरकार हो वह एक सेब ले जाए.. 
एक के बाद एक सभी नगरजन सेब उठाकर जाने लगे । राजाको चिंता होने लगी.. क्या मेरे राज्य में सभी सेब ही हैं ?
इतने में एक लम्बी लम्बी मुछों वाला, मोटा तगडा़ और लाल लाल आखोंवाला जवान आया और बोला 
" राजा जी मेरे घर में मेरा ही हुकम चलता है .. ला ओ घोडा़ मुझे दिजीए .."
राजा खुश हो गए और कहा जा अपना मनपसंद घोडा़ ले जा ..। जवान काला घोडा़ लेकर रवाना हो गया । 
घर गया और फिर थोडी़ देरमें दरबार में वापिस लौट आया।
राजा: " क्या हुआ जवामर्द ? वापिस क्यों आया !
जवान : " महाराज, घरवाली कहती है काला रंग अशुभ होता है, सफेद रंग शांति का प्रतिक होता है तो आप मुझे सफेद रंग का घोडा़ दिजिए
राजा: " घोडा़ रख ..और सेब लेकर चलती पकड़ ।
इसी तरह रात हो गई .. दरबार खाली हो गया लोग सेब लेकर चले गए ।
आधी रात को महामंत्री ने दरवाजा खटखटाया..
राजा : " बोलो महामंत्री कैसे आना हुआ ?
महामंत्री : " महाराज आपने सेब और घोडा़ ईनाम में रखा ,इसकी जगह एक मण अनाज या सोना महोर रखा होता तो लोग लोग कुछ दिन खा सकते या जेवर बना सकते ।
राजा :" मुझे तो ईनाम में यही रखना था लेकिन महारानी ने कहा कि सेब और घोडा़ ही ठीक है इसलिए वही रखा 
महामंत्री : " महाराज आपके लिए सेब काट दुँ..!!
राजा को हँसी आ गई । और पुछा यह सवाल तुम दरबारमें या कल सुबह भी पुछ सकते थे । तो आधी रात को क्यों आये ??
महामंत्री : " मेरी धर्मपत्नि ने कहा अभी जाओ और पुछ के आओ सच्ची घटना का पता चले ..।
राजा ( बात काटकर ) : " महामंत्री जी , सेब आप खुद ले लोगे या घर भेज दिया जाए ।"
 समाज चाहे पुरुषप्रधान हो लेकिन संसार स्त्रीप्रधान है 

Thursday, September 27, 2018

श्राद्ध का दिन

एक बार गुरु रामानंद ने कबीर से कहा कि हे कबीर! आज श्राद्ध का दिन है और पितरो के लिये खीर बनानी है. आप जाइये, पितरो की खीर के लिये दूध ले आइये....

कबीर उस समय 9 वर्ष के ही थे..
कबीर दूध का बरतन लेकर चल पडे.....चलते चलते आगे एक गाय मरी हुई पडी मिली....कबीर ने आस पास से घास को उखाड कर, गाय के पास डाल दिया और वही पर बैठ गये...!!!
दूध का बरतन भी पास ही रख लिया.....

काफी देर हो गयी, कबीर लौटे नहीं, तो गुरु रामानंद ने सोचा....
पितरो को छिकाने का टाइम हो गया है...कबीर अभी तक नही आया....तो रामानंद जी खुद चल पडे दूध लेने.
चले जा रहे थे तो आगे देखा कि कबीर एक मरी हुई गाय के पास बरतन रखे बैठे है...!!!

गुरु रामानंद बोले, अरे कबीर तू दूध लेने नही गया.?

कबीर बोले: स्वामीजी, ये गाय पहले घास खायेगी तभी तो दुध देगी...!!!

रामानंद बोले: अरे ये गाय तो मरी हुई है, ये घास कैसे खायेगी??

कबीर बोले: स्वामी जी, ये गाय तो आज मरी है....जब आज मरी गाय घास नही खा सकती...!!!
...तो आपके 100 साल पहले मरे हुए पितर खीर कैसे खायेगे...??

यह सुनते ही रामानन्दजी
मौन हो गये..!!
उन्हें अपनी भूल का ऐहसास
हुआ.!!
*
*जो जीवित है उनकी सेवा करो..!!*
*वही सच्चा श्राद्ध है.!!*

Tuesday, September 25, 2018

बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ

एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा, "आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी"

पति-"अगर हमारा लड़का होता है, तो मैं उसे गणित पढाऊगा, हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।" 

पत्नी - "अगर लड़की हुई तो...?" 
पति- "अगर हमारी लड़की होगी तो, मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत ही नही होगी"

"क्योंकि, उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी, कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।"

"एक तरह से वो, मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी, चाहे मैं उसके लिए कुछ खास करू या ना करू।"

"जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी। वो हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी।"

"यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।"

"वो मेरे लिए संसार से लडेगी, जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी।"

पत्नी - "कहने का मतलब है कि, आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा।"

पति- "नहीं, नहीं क्या पता मेरा बेटा भी ऐसा ही करेगा, पर वो सिखेगा।"

"परंतु बेटी, इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है।"

पत्नी -  "पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी...?"

पति- "हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे।"

"इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए, बेटियाँ परी होती हैं"

"जो सदा बिना शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।"

*"बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ होती हैं*
*जो घर खुदा को पसंद हो, वहां होती हैं"*

Saturday, September 22, 2018

गुरु की कृपा

काशी नगर के एक धनी सेठ थे, जिनके कोई संतान नही थी । बड़े-बड़े विद्वान् ज्योतिषो से सलाह-मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला । सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठजी को किसी ने सलाह दी की आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते है तब भगवान "राम" स्वयं कथा सुनने आते हैं । इसलिये उनसे कहना कि भगवान् से पूछे की आपके संतान कब होगी ।

सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते है और अपनी समस्या के बारे में भगवान् से बात करने को कहते हैं। कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है, की प्रभु वो सेठजी आये थे, जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे । तब भगवान् ने कहा कि गोवास्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं इस कारण उनके तो सात जन्मो तक संतान नही लिखी हुई हैं ।

दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं । सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते हैं  ।
थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते है। और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है की भिक्षा दो फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं । तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी । व्यापारी की पत्नी उसे दो रोटी दे देती है । उससे प्रसन्न होकर संत ये कहकर चला जाता है कि जाओ तुम्हारे दो संतान होगी ।

एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वाँ संताने हो जाती है । कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता हैं । व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते है । उन्हें देखकर वे व्यापारी से पूछते है की ये बच्चे किसके है। व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही है । आपने तो झूठ बोल दिया की भगवान् ने कहा की मेरे संतान नही होगी, पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वा संताने हुई है  । 

गोस्वामी जी ये सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते है । फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं । उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है ।

शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं, तो भगवान् उनसे पूछते है कि-- गोस्वामी जी आज क्या बात है ? चिन्तित मुद्रा में क्यों हो ? तो गोस्वामी जी कहते है की प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा पटक दिया । आपने तो कहा ना कि व्यापारी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है फिर उसके दो संताने कैसे हो गई ।

तब भगवान् बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता क्योकि में नियमो की मर्यादा में बंधा हूँ । पर अगर.. मेरे किसी भक्त ने उन्हें कह दिया की तुम्हारे संतान होगी, तो उस समय में भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी। क्योकि में भी मेरे भक्तों की मर्यादा से बंधा हूँ । मै मेरे भक्तो के वचनों को काट नही सकता मुझे मेरे भक्तों की बात रखनी पड़ती हैं । इसलिए गोस्वामी जी अगर आप भी उसे कह देते की जा तेरे संतान हो जायेगी तो - - *मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वो सब कुछ देना पड़ता हैं जो उसके नही लिखा हैं ।*
मित्रों कहानी से तात्पर्य यही हैं कि भले हीं विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो , पर अगर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नही 
भाग लिखी मिटे नही, लिखे विधाता लेख
मिल जावे गुरु मेहर तो, लगे लेख पे मेख ।।
भाग्य में लिखा विधाता का लेख मिट नही सकता । पर किसी पर गुरु की मेहरबानी हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता हैं

Wednesday, September 19, 2018

"बेटा, 'ढ़ेर सारा'

कल मैंने 550 रु किलो की दर से घी लिया।

पिताजी बोले, "हमारे समय में तो इतने रुपए में 'ढ़ेर सारा' घी आ जाता।"

मैंने बोला, "पिताजी #ढ़ेर_सारा यानी क्या? उदाहरण देकर समझाइये।"

मेरी बात सुन पिताजी शांत रह गए।

मैंने फिर पूछा, "पिताजी #ढ़ेर_सारा क्या?"

पिताजी कुछ नहीं बोले, बस चुपचाप छत पर आ गए।
ऊपर आकर वो शांति से बैठे, पानी पिया फिर बोले...

"बेटा, 'ढ़ेर सारा' यानि #बहुत_... उदाहरण देकर कहूँ तो हमारे समय में इतने रुपए में इतना घी आ जाता कि पूरा मोहल्ला एक एक कटोरी घी पी लेता।"

मैं बोला, "पिताजी, ये उदाहरण तो आप नीचे भी दे सकते थे?"

"बेटा, नीचे बहुत #भीड़ थी और "भीड़ को उदाहरण समझ नही आता है।"

मैं बोला, "पिताजी में समझा नही...
'भीड़ को उदाहरण' मतलब क्यों नही?'

पिताजी बोले... "एक बार मोदी ने कहा था कि "विदेशों में हमारे देश का बहुत पैसा जमा है।"

भीड़ ने कहा कि... कितना?

तो मोदी जी ने उदाहरण देकर समझाया, "इतना कि पूरा पैसा अगर वापस आ जाए तो प्रति भारतीय 15-15 लाख आ जाए।"

बस सुनने वालों की भीड़ में उपस्थित हरामखोर भिखारी तभी से "15 लाख" मांग रहे है।

और ये उदाहरण अगर मैं नीचे देता तो हो सकता है कि कल कई हरामखोर लोग भिखारियों की तरह अपनी अपनी कटोरी लेकर घी मांगने आ जाते।"

Saturday, September 15, 2018

इच्छा मृत्यु

जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल आया और जैसे ही काल आया, मौत आई तो गीधराज जटायु ने कहा -- खवरदार ! ऐ मौत ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना।मैं मौत को स्वीकार तो करूँगा; लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकती, जब तक मैं सीता जी की सुधि प्रभु श्री राम को नहीं सुना देता।ईमानदारी से बतायें, इच्छा मृत्यु हुई कि नहीं? मरना चाहते हैं जटायु जी कि नहीं, जो मौत को ललकार रहे हैं और मौत छू नहीं पा रही है ।काँप रही है खड़ी हो कर।गीधराज जटायु ने कहा -- मैं मौत से डरता नहीं हूँ ।तुझे मैं स्वीकार करूँगा; लेकिन मुझे तब तक स्पर्श नहीं करना, जब तक मेरे प्रभु श्री राम न आ जायँ और मैं उन्हें सीताहरण की गाथा न सुना दूँ ।

मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही; लेकिन आपको पता होना चाहिए, इच्छा मृत्यु का वरदान तो मैं मानता हूँ कि गीधराज जटायु को मिला।

किन्तु महाभारत के भीष्म पितामह जो महान तपस्वी थे, नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे, 6 महीने तक बाणों की शय्या पर लेट करके मौत का इंतजार करते रहे ।आँखों से आँसू गिरते थे।भगवान कृष्ण जब जाते थे तो मन ही मन हँसते थे; क्योंकि सामाजिक मर्यादा के कारण वहिरंग दृष्टि से उचित नहीं था; लेकिन जब जाते थे तो भीष्म के कर्म को देखकर मन ही मन मुसकराते थे और भीष्म पितामह भगवान कृष्ण को देखकर दहाड़ मारकर रोते थे।

कन्हैया! मैं कौन से पाप का परिणाम देख रहा हूँ कि आज बाणों की शय्या पर लेटा हूँ ।भगवान कृष्ण मन ही मन हँसते थे, वहिरंग दृष्टि से समझा देते थे भीष्म पितामह को; लेकिन याद रखना वह दृश्य महाभारत का है, जब भगवान श्री कृष्ण खड़े हुए हैं, भीष्मपितामह बाणों की शय्या पर लेटे हैं, आँखों में आँसू हैं भीष्म के, रो रहे हैं ।
भगवान मन ही मन मुसकरा रहे हैं ।
रामायण का यह दृश्य है कि गीधराज जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं, भगवान रो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं ।बोलो भाई, वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान कृष्ण हँस रहे हैं और रामायण में जटायु जी हँस रहे हैं और भगवान राम रो रहे हैं ।बोलो, भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं?
अंत समय में जटायु को भगवान श्री राम की गोद की शय्या मिली; लेकिन भीषण पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली।
जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहा है, राम जी की शरण में, राम जी की गोद में और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं ।ऐसा अंतर क्यों?
ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था, विरोध नहीं कर पाये थे ।
दुःशासन को ललकार देते, दुर्योधन को ललकार देते; लेकिन द्रौपदी रोती रही, बिलखती रही, चीखती रही, चिल्लाती रही; लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे।नारी की रक्षा नहीं कर पाये, नारी का अपमान सहते रहे ।उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और गीधराज जटायु ने नारी का सम्मान किया, अपने प्राणों की आहुति दे दी।तो मरते समय भगवान श्री राम की गोद की शय्या मिली।
यही अंतर है, इसीलिए भीष्म 6 महीने तक रोते रहे, तड़पते रहे; क्योंकि कर्म ऐसा किया था कि नारी का अपमान देखते रहे और जटायु ने ऐसा सत्कर्म किया कि नारी का अपमान नहीं सह पाये, नारी के सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
आज भगवान ने जटायु को अपना धाम दे दिया ।तो जटायु को भगवान का धाम मिला, भगवान का रूप मिला और वे भगवानमय बन गये।इस प्रकार जटायु चतुर्भुज रूप धारण करके भगवान के धाम को प्राप्त हुए ।
जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं उनकी गति भीष्म जैसी होती है और जो अपना परिणाम जानते हुए भी औरों के लिए संघर्ष करता है उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है

Tuesday, September 11, 2018

ज़िन्दगी कैसी है पहेली

कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा! पता नहीं समझती क्या है खुद को! जब देखो झगड़ा।" सुकून से रहने नहीं देती। बड़बड़ाते हुए वह घर से बाहर निकल गया।

नजदीक के चाय के स्टॉल पर पहुँच कर चाय ऑर्डर की और सामने रखे स्टूल पर बैठ गया। 
"इतनी सर्दी में बाहर चाय पी रहे हो!"
उसने गर्दन घुमा कर देखा तो साथ के स्टूल पर बैठे बुजुर्ग उससे मुख़ातिब थे।
"आप भी तो इतनी सर्दी और इस उम्र में बाहर हैं!"

बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा मैं निपट अकेला। न कोई गृहस्थी, न साथी। तुम तो शादीशुदा लगते हो ।

पत्नी घर में जीने नहीं देती। हर समय चिकचिक। बाहर न भटकूँ तो क्या करूँ ! गर्म चाय के घूँट अंदर जाते ही दिल की  कड़वाहट निकल पड़ी।

बुजुर्ग अब थोड़ा संजीदा होकर बोले:
"पत्नी जीने नहीं देती! बरखुरदार ज़िन्दगी ही पत्नी से होती है। 8 बरस हो गए हमारी पत्नी को गए हुए।"
बुजुर्ग ने ठंडी साँस के साथ अपनी वेदना छलकाते हुए कहा ---  जब ज़िंदा थी, कभी कद्र नहीं की। आज कम्बख़्त चली गयी तो भूलाई नहीं जाती । घर काटने को होता है। बच्चे अपने अपने काम में मस्त।"
आलीशान घर, धन दौलत सब है! पर उसके बिना कुछ मज़ा नहीं...यूँ ही कभी कहीं, कभी कहीं भटकता रहता हूँ।"

"कुछ अच्छा नही लगता, उसके जाने के बाद, पता चला वो धड़कन थी --- मेरे जीवन की ही नहीं मेरे घर की भी सब बेजान हो गया  हैं ... बुज़ुर्ग की आँखों में दर्द और आंसुओं का समंदर था।

उसने चाय वाले को पैसे दिए। नज़र भर बुज़ुर्ग को देखा। एक मिनट गंवाए बिना घर की ओर मुड़ गया।
चिंतित पत्नी दरवाजे पर ही खड़ी थी।
"कहाँ चले गए थे? जैकेट भी नहीं पहना, ठण्ड लग जाएगी तो?"

"तुम भी तो बिना स्वेटर के दरवाजे पर खड़ी हो।"
दोनों ने आँखों से एक दूसरे के प्यार को पढ़ लिया।

ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय ... कभी तो रुलाये कभी ये हँसाये

Monday, September 10, 2018

कर्मो की दौलत

एक राजा था जिसने ने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके( एकतरह शाही खजाना ) आबादी से बाहर जंगल एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने मे सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी एक चाबी राजा के पास और एक उसकेएक खास मंत्री के पास थी इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला , तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख देख कर खुश हो रहा था , और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था।*
उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खजाने का दरवाजा खुला है वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कही कल रात जब मैं खजाना देखने आया तब शायद खजाना का दरवाजा खुला रह गया होगा, उसने जल्दी जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया . उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ , और दरवाजे के पास आया तो ये क्या ...दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था . उसने जोर जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहां उनकी आवाज सुननेवाला उस जंगल में कोई ना था ।
राजा चिल्लाता रहा , पर अफसोस कोई ना आया वो थक हार के खजाने को देखता रहा अब राजा भूख और पानी की प्यास से बेहाल हो रहा था , पागलो सा हो गया.. वो रेंगता रेंगता हीरो के संदूक के पास गया और बोला ए दुनिया के नायाब हीरो मुझे एक गिलास पानी दे दो.. फिर मोती सोने चांदी के पास गया और बोला ए मोती चांदी सोने के खजाने मुझे एक वक़्त का खाना दे दो..राजा को ऐसा लगा की हीरे मोती उसे बोल रहे हो की तेरे सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे एक गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती..राजा भूख से बेहोश हो के गिर गया ।
जब राजा को होश आया तो सारे मोती हीरे बिखेर के दीवार के पास अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया , वो दुनिया को एक पैगाम देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था ।
राजा ने पत्थर से अपनी उंगली फोड़ी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया . उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा को ढूंढते रहे पर बहुत दिनों तक राजा ना मिला तो मंत्री राजा के खजाने को देखने आया , उसने देखा कि राजा हीरे जवाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है , और उसकी लाश को कीड़े मोकड़े खा रहे थे . राजा ने दीवार पर खून से लिखा हुआ था...ये सारी दौलत एक घूंट पानी ओर एक निवाला नही दे सकी...
यही अंतिम सच है |आखिरी समय आपके साथ आपके कर्मो की दौलत जाएगी , चाहे आप कितनी बेईमानी से हीरे पैसा सोना चांदी इकट्ठा कर लो सब यही रह जाएगा |इसीलिए जो जीवन आपको प्रभु ने उपहार स्वरूप दिया है , उसमें अच्छे कर्म लोगों की भलाई के काम कीजिए बिना किसी स्वार्थ के ओर अर्जित कीजिए अच्छे कर्मो की अनमोल दौलत |जो आपके सदैव काम आएगी 

Friday, September 7, 2018

सच्चा तीर्थ

एक गरीब, एक दिन एक सिक्ख के पास, अपनी जमीन बेचने गया। बोला सरदार जी मेरी 2 एकड़ जमीन आप रख लो।*
 
*सिक्ख बोला, क्या कीमत है?* 
*गरीब बोला, --50 हजार रुपये।*

*सिक्ख, थोड़ी देर सोच के ..., वो ही खेत जिसमे ट्यूबवेल लगा 
गरीब --- जी। आप, मुझे 50 हजार से कुछ कम भी देंगे, तो जमीन, आपको दे दूँगा।*

*सिक्ख ने आंखे बंद की 5 मिनट सोच के... नही, मैं उसकी कीमत 2 लाख रुपये दूँगा।*
 
*गरीब... पर मैं 50 हजार ले रहा हूँ आप 2 लाख क्यो ??*

*सिक्ख बोला, तुम जमीन क्यों बेच रहे हो?*

*गरीब बोला, बेटी की शादी करना है। बच्चों की पढ़ाई की फीस जमा करना है। बहुत कर्ज है। मजबूरी है। इसीलिए मज़बूरी में बेचना है।  पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं?*

*सिक्ख बोला, मुझे जमीन खरीदना है। किसी की मजबूरी नही खरीदना, अगर आपकी जमीन की कीमत मुझें मालूम है। तो मुझें, आपके कर्ज, आपकीं जवाबदेही और मजबूरी का फायदा नही उठाना.  मेरा "वाहेगुरू" कभी खुश नहीं होगा।*
  
*ऐसी जमीन या कोई भी साधन, जो किसी की मजबूरियों को देख के खरीदे। वो घर और जिंदगी में, सुख नही देते, आने वाली पीढ़ी मिट जाती है।*
 
*हे, मेरे मित्र, तुम खुशी खुशी, अपनी बेटी की शादी की तैयारी करो। 50 हजार की हम पूरा गांव व्यवस्था कर लेगें। तेरी जमीन भी तेरी रहेगी।*
  
*मेरे, गुरु नानकदेव साहिब ने भी, अपनी बानी में, यही हुक्म दिया है।*

*गरीब हाथ जोड़कर, आखों में नीर भरी खुशी-खुशी दुआयें देता चला गया।*
 
*ऐसा जीवन, हम भी बना सकते है।*

*बस किसी की मजबूरी, न खरीदे। किसी के दर्द, मजबूरी को समझकर, सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ है। ... एक यज्ञ है। ...सच्चा कर्म और बन्दगी है।

Wednesday, September 5, 2018

सच्चे साधु के लक्षण

एक बार की बात है। एक संत अपने एक शिष्य के साथ किसी नगर की ओर जा रहे थे। 
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रास्ते में चलते-चलते रात हो चली थी और तेज बारिश भी हो रही थी। संत और उनका शिष्य कच्ची सड़क पर चुपचाप चले जा रहे थे। 
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उनके कपड़े भी कीचड़ से लथपथ हो चुके थे। मार्ग में चलते-चलते संत ने अचानक अपने शिष्य से सवाल किया - 'वत्स, क्या तुम बता सकते हो कि वास्तव में सच्चा साधु कौन होता है ?
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संत की बात सुनकर शिष्य सोच में पड़ गया। उसे तुरंत कोई जवाब नहीं सूझा। 
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उसे मौन देखकर संत ने कहा - सच्चा साधु वह नहीं होता, जो अपनी सिद्धियों के प्रभाव से किसी रोगी को ठीक कर दे या पशु-पक्षियों की भाषा समझ ले। 
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सच्चा साधु वह भी नहीं होता, जो अपने घर-परिवार से नाता तोड़ पूरी तरह बैरागी बन गया हो या जिसने मानवता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया हो।
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शिष्य को यह सब सुनकर बहुत आश्चर्य हो रहा था। वह तो इन्हीं गुणों को साधुता के लक्षण मानता था। 
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उसने संत से पूछा - गुरुदेव, तो फिर सच्चा साधु किसे कहा जा सकता है ? 
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इस पर संत ने कहा - वत्स, कल्पना करो कि इस अंधेरी, तूफानी रात में हम जब नगर में पहुंचें और द्वार खटखटाएं। 
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इस पर चौकीदार हमसे पूछे - कौन है ? और हम कहें - दो साधु। 
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इस पर वह कहे - मुफ्तखोरो ! चलो भागो यहां से। न जाने कहां-कहां से चले आते हैं। 
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संत के मुख से ऐसी बातें सुनकर शिष्य की हैरानी बढ़ती जा रही थी।
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संत ने आगे कहा - सोचो, इसी तरह का व्यवहार और जगहों पर भी हो। हमें हर कोई उसी तरह दुत्कारे, अपमानित करे, प्रताड़ित करे। 
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इस पर भी यदि हम नाराज न हों, उनके प्रति जरा-सी भी कटुता हमारे मन में आए और हम उनमें भी प्रभु के ही दर्शन करते रहें, तो समझो कि यही सच्ची साधुता है। 
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साधु होने का मापदंड है - हर परिस्थिति में समानता और सहजता का व्यवहार।
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इस पर शिष्य ने सवाल किया - लेकिन इस तरह का भाव तो एक गृहस्थ में भी हो सकता है। तो क्या वह भी साधु है ? 
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संत ने मुस्कराते हुए कहा - बिलकुल है, जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि सिर्फ घर छोड़कर बैरागी हो जाने से ही कोई साधु नहीं हो जाता। 
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साधु वही है, जो साधुता के गुणों को धारण करे। और ऐसा कोई भी कर सकता है।

Sunday, August 26, 2018

अपनी खुशियाँ और गम

दो बुजुर्ग  बातें कर रहे थे....
पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BE किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है
कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..
दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...??
पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका ME /M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो...
दूसरा :- और कुछ...
पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए..
मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए..
वो क्या है लडाई झगड़े होते है...
दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है..
पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का..
दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो...
कहते कहते उनका गला भर आया..
फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी....
पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा...
दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही... मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है... वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी...
पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नही बोल पाए...
         
 दोस्तों परिवार है तो जीवन मे हर खुशी, खुशी लगती है अगर परिवार नही तो किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे.

Thursday, August 23, 2018

आत्मग्लानि

जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,,
की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,,
उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,,

और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,,

सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस ( वरदान द्वारा प्राप्त ) पुत्र हैं,,

और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,,

बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,,
उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,,
जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,,


रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,,

अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,,

और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,,

अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,,

हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,,

अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,,


एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था,,

और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो,,
है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो,,
जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे,,

इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था,,

संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी,, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे,,


बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा,,

और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर,, हे ब्रम्ह अंश,, हे राजकुमार बाली,,
( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो,,

हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो,
फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो,,
अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो,,
इससे तुम्हे क्या मिलेगा,,

तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता,,

क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा,,
उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी,,

इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर,,


और राम नाम का जाप कर,,
इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा,,
और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे,,


इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को,,
जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है,,

और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है,,

जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के,,

और जिस राम की तू बात कर रहा है,
वो है कौन,

और केवल तू ही जानता है राम के बारे में,

मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना,

और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है,,

हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है,,
उनकी महिमा अपरंपार है,
ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए,,


बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा,,
मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में,,


बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे,,

हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली,,
तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा,,
पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा,,


बाली-  तब ठीक है कल     के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा,,

हनुमान जी ने बाली की बात मान ली,,

बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा,,


अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे,,
तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए,,

हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा,,

ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान,,
मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो,,

और युद्ध के लिए न जाओ,

हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु,,
बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता,,
परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता,,
और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है,,
जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा,,
अन्यथा सारी विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है,,


तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी,,
पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं,,
केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं,,
बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे,,
युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें,,


हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले,,


उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था,,

और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था,,

पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था,,

हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,,
बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा,,


ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा,,

उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई,,

बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई,,

बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे,
उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया,
बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा,,
उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा,,

बाली को कुछ समझ नही आ रहा था,,

तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,


बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा,,
वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया,,


सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया,,

कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला- ये सब क्या है,

हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना,,
फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ,

मुझे कुछ समझ नही आया,,


ब्रम्हा जी बोले-, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा,,

बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही है,,
ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार मे मेरे तेज़ का सामना कोई नही कर सकता,,
पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा,,,


ब्रम्हा जो बोले- हे बाली,

मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा,,
पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके,,

सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते,,


इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया,,

और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे,,

ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे,,
क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती,,


ये सुन कर बाली ने वही हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था,,
मुझे क्षमा करें,,

और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया,,

Saturday, August 11, 2018

मूर्ख समझा जाना

एक गाँव में एक कायस्थ रहता था, उसकी बुद्धि की ख्याति दूर दूर तक फैली थी।
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एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। काफी देर चर्चा के बाद राजा ने कहा –
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“महाशय, आप बहुत ज्ञानी है, इतने पढ़े लिखे है पर आपका लड़का इतना मूर्ख क्यों है ? उसे भी कुछ सिखायें।
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उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नहीं पता॥” यह कहकर राजा जोर से हंस पड़ा..

कायस्थ को बुरा लगा, वह घर गया व लड़के से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?”
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“सोना”, बिना एक पल भी गंवाए उसके लड़के ने कहा।
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“तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उड़ाई।”
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लड़के के समझ मे आ गया, वह बोला “राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं,
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जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति  शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग मे ही पड़ता है।
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मुझे देखते ही बुलवा लेते हैं, अपने एक हाथ में सोने का व दूसरे में चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं...

और मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मज़ा लेते हैं। ऐसा तक़रीबन हर दूसरे दिन होता है।”
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“फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ मे मेरी भी❓”
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लड़का हंसा व हाथ पकड़कर पिता  को अंदर ले गया

और कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी।
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यह देख वो कायस्थ हतप्रभ रह गया।
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लड़का बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा।
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वो मुझे मूर्ख समझकर मज़ा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नहीं मिलेगा।”कायस्थ का बेटा हूँ अक़्ल से काम लेता हूँ
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मूर्ख होना अलग बात है
और मूर्ख समझा जाना अलग..

स्वर्णिम मॊके का फायदा उठाने से बेहतर है, हर मॊके को स्वर्ण में तब्दील करना।
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 कायस्थ की बुद्धी पे शक मत करना!!