Saturday, November 7, 2015

सच्चा चिकित्सक कौन

एक बार रसायन शास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक महत्वपूर्ण रसायन तैयार करने के लिए एक सहायक की आवश्यकता थी। उन्होंने अपने परिचितों और कुछ पुराने शिष्यों को इसके बारे में बताया। उन्होंने कई युवकों को उनके पास भेजा। आचार्य ने सबकी थोड़ी-बहुत परीक्षा लेने के बाद उनमें से दो युवकों को इस कार्य के लिए चुना। दोनों को एक-एक रसायन बनाकर लाने का आदेश दिया।
पहला युवक दो दिनों के बाद ही रसायन तैयार कर लाया। नागार्जुन ने उससे पूछा- तुमने बहुत जल्दी रसायन तैयार कर लिया। कुछ परेशानी तो नहीं आई? युवक बोला-आचार्य! परेशानी तो आई। मेरे माता-पिता बीमार थे। पर मैंने आपके आदेश को महत्व देते हुए मन को एकाग्र किया और रसायन तैयार कर लिया। आचार्य ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। कुछ ही देर बाद दूसरा युवक बिना रसायन लिए खाली हाथ लौटा।
वह आते ही बोला-आचार्य क्षमा करें। मैं रसायन नहीं बना पाया। क्योंकि जैसे ही मैं यहां से गया तो रास्ते में एक बूढ़ा आदमी मिल गया जो पेट-पीड़ा से कराह रहा था। मुझसे उसकी पीड़ा देखी नहीं गई। मैं उसे अपने घर ले गया और उसका इलाज करने लगा। अब वह पूरी तरह स्वस्थ है। अब आप आज्ञा दें तो मैं रसायन तैयार करके शीघ्र ले आऊं।
नागार्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा-वत्स। तुम्हें अब रसायन बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। कल से तुम मेरे साथ रहकर काम कर सकते हो। फिर वह पहले युवक से बोले-बेटा! अभी तुम्हें अपने अंदर सुधार करने की आवश्यकता है। तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया, इससे मुझे प्रसन्नता हुई। यह अच्छी बात तो है पर यह मत भूलो कि सच्चा चिकित्सक वह है जिसके भीतर मानवीयता भरी हो। अगर किसी को तत्काल सेवा और उपचार चाहिए तो चिकित्सक को सभी आवश्यक कार्य छोड़कर उसकी सेवा में लग जाना चाहिए।

Friday, November 6, 2015

एकाग्रता से काम नहीं करेंगे तो कठिन ही लगेगा

एक बार राजा टॉलमी ने गणित सीखने का फैसला किया। उन्हें पता चला कि यूक्लिड महान गणितज्ञ हैं। उन्होंने उनसे ही गणित की शिक्षा लेने की सोची। यूक्लिड से तुरंत संपर्क किया गया। वह रोज आकर राजा को गणित के सूत्र सिखाने लगे। लेकिन टॉलमी को गणित सीखने में आनंद ही नहीं आता था। उनका ध्यान हरदम इधर-उधर भटकता रहता था। उन्होंने सोचा कि लोग तो कहते हैं कि यूक्लिड महान गणितज्ञ हैं और उनके जैसे विद्वान कम ही होते हैं, फिर वह मुझे सरलता से गणित क्यों नहीं सिखा पा रहे। मैं उनसे यह प्रश्न अवश्य पूछूंगा।
अगले दिन जब यूक्लिड राजा को गणित के कुछ सूत्र समझा रहे थे तो राजा खीझकर बोले,'आप तो बड़े भारी विद्वान कहे जाते हैं। मुझे ऐसे सरल सूत्र सिखाइए न, जो आसानी से समझ में आ जाएं। अभी तक मुझे तो गणित का एक सूत्र भी सही ढंग से समझ में नहीं आया है। ऐसे में मैं भला गणित का विद्वान कैसे बन सकता हूं।' राजा की बात सुनकर यूक्लिड मुस्कराते हुए बोले,'राजन, मैं तो आपको सहज और सरल सूत्र ही सिखा रहा हूं। कठिनाई मेरे सिखाने में नहीं बल्कि आपके सीखने में है।
आपने गणित सीखने का फैसला तो कर लिया पर उसके लिए अपने मन को तैयार नहीं कर पाए। गणित हो या फिर राजकाज, किसी भी विषय में यदि आप रुचि नहीं लेंगे और एकाग्रता से काम नहीं करेंगे तो वह कठिन ही लगेगा। जिस सहजता से आप राजकाज संभालते हैं उसी सहजता से आप गणित सीखें, अवश्य सफल होंगे।' यूक्लिड की बातें राजा टॉलमी को समझ में आ गईं। उन्होंने एकाग्र होकर गणित सीखना आरंभ कर दिया।

दृढ़ संकल्प

पंजाब के एक छोटे से गांव में एक सीधा-सादा लड़का था गंगाराम। जब उसने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली तो उसे नौकरी करने के लिये परिवार वालों ने उसे उसके चाचा के पास शहर भेज दिया। वह शहर में इंजीनियर के कार्यालय में काम कर रहे अपने चाचा के पास उनसे नौकरी के लिये कहने गया। जब वह उनके कार्यालय में पहुंचा तो वहां उसका चाचा नहीं मिला क्योंकि वह इंजीनियर के साथ दौरे पर गया था।

वह गांव का लड़का था। ऑफिस में उसे जो कुर्सी सबसे बढि़या दिखाई दी, वह उसी पर बैठ गया। कुछ देर बाद चपरासी अंदर आया और उसने एक गंवार लड़के को इंजीनियर सर की कुसी पर बैठे देखा तो वह क्रोध से तमतमा कर बोला- ' ओए लड़के! तुझे पता भी है यह किसकी कुर्सी है ? चल उठ यहां से ! इस पर बैठने का साहस भी तूने कैसे किया? यह तो साहब की कुर्सी है।' इतना अपमान होने के बाद गंगाराम क्या करता, उसे उठना पड़ा। परन्तु उसे इस अपमान से बेहद पीड़ा हुई और उसने उसी क्षण, मन ही मन प्रतिज्ञा की कि वह इंजीनियर बन कर ही रहेगा। जब तक इंजीनियर नहीं बन जाता, नौकरी नहीं करेगा।

जब उसकी अपने चाचा जी से मुलाकात हुई और उन्होंने उसके आने का कारण पूछा तो गंगाराम बोला, ''चाचाजी, मैं आया तो नौकरी की तलाश में था पर अब तो आपके पास रहकर पढ़ूंगा।'' सारी बात सुनकर चाचा बहुत खुश हुआ। उन्होंने भी गंगाराम का साहस बढ़ाया और गंगाराम ने भी मन लगाकर पढ़ाई की। अपनी लगन और बेहद मेहनत के बल पर उसने प्रथम श्रेणी में इंजीनियरिंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह इंजीनियर ही नहीं बना बल्कि 'सर' की उपाधि भी प्राप्त की और सारे देश भर में नाम कमाया। दिल्ली में उनके नाम से ही 'सर गंगाराम' अस्पताल भी चल रहा है।

Wednesday, November 4, 2015

अच्छे काम की शुरुआत

फिलाडेल्फिया में फ्रैंकलिन नाम का एक गरीब लड़का रहता था। उसकी कॉलोनी में हमेशा अंधेरा रहता था। वह रोज देखता कि अंधेरे में आने-जाने में लोगों को बहुत दिक्कत होती है। एक दिन उसने अपने घर के सामने एक बांस गाढ़ दिया और शाम को उस पर एक लालटेन जला कर टांग दिया। लालटेन से उसके घर के सामने उजाला हो गया लेकिन पड़ोसियों ने इसके लिए उसका खूब मजाक उड़ाया। एक व्यक्ति बोला, 'फ्रैंकलिन, तुम्हारे एक लालटेन जला देने से कुछ नहीं होगा। पूरी कालोनी में तो अंधेरा ही रहेगा।'
फ्रैंकलिन के घर वालों ने भी उसके इस कदम का विरोध किया और कहा,'तुम्हारे इस काम से फालतू में पैसा खर्च होगा।' फ्रैंकलिन ने कहा,'मानता हूं कि एक लालटेन जलाने से ज्यादा लोगों को फायदा नहीं होगा, मगर कुछ लोगों को तो इसका लाभ मिलेगा ही।' कुछ ही दिनों में इसकी चर्चा हर तरफ शुरू हो गई और फ्रैंकलिन के प्रयास की सराहना भी की जाने लगी। उसकी देखादेखी कुछ और लोग अपने-अपने घरों के सामने लालटेन जला कर टांगने लगे। एक दिन पूरी कॉलोनी में उजाला हो गया।
यह बात शहर भर में फैल गई और नगरपालिका पर चारों तरफ से दबाव पड़ने लगा कि वह कॉलोनी में रोशनी का इंतजाम अपने हाथ में ले। कमेटी ने ऐसा ही किया। धीरे-धीरे फ्रैंकलिन की शोहरत चारों तरफ फैल गई। एक दिन नगरपालिका ने फ्रैंकलिन का सम्मान किया। इस अवसर पर फ्रैंकलिन ने कहा कि हर अच्छे काम के लिए पहल तो किसी एक को करनी ही पड़ती है। अगर हर कोई दूसरों के भरोसे बैठा रहे तो कभी अच्छे काम की शुरुआत होगी ही नहीं।